अप्रैल 2025 में उत्तर प्रदेश के सभी परिषदीय विद्यालयों में "अभिभावक-शिक्षक बैठक" (Parent Teacher Meeting - PTM) का सफल आयोजन किया गया। यह बैठक उत्तर प्रदेश शासन के निर्देशानुसार और "समग्र शिक्षा अभियान" के अंतर्गत तय तिथि पर आयोजित की जाती है। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य विद्यालयों में अध्ययनरत सभी बच्चों की शैक्षिक प्रगति, नियमित उपस्थिति, व्यवहार, व्यक्तिगत समस्याएं, कमजोर विषय, ड्रॉपआउट की स्थिति और अभिभावकों की सहभागिता पर विचार-विमर्श करना होता है।
सरकार ने आरटीई एक्ट 2009 (नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम) के अंतर्गत यह व्यवस्था की है कि छात्रों की समग्र प्रगति के लिए अभिभावकों और शिक्षकों के बीच सीधा संवाद स्थापित किया जाए। इसी क्रम में प्रत्येक त्रैमासिक माह – जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के दूसरे सोमवार को प्रातः 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक पीटीएम का आयोजन करने का निर्देश है। यदि उस दिन विद्यालय में अवकाश हो, तो अगले कार्यदिवस में पीटीएम की जाती है।
इस बैठक के लिए पहले से ही राज्य परियोजना निदेशक कार्यालय, लखनऊ से आदेश जारी किया गया था, जिसमें पीटीएम के आयोजन की प्रक्रिया, समय, विषयवस्तु और उद्देश्य स्पष्ट किए गए थे। विद्यालयों को निर्देशित किया गया था कि बैठक के दौरान हर बच्चे के अभिभावक को बुलाकर उनकी उपस्थिति सुनिश्चित की जाए। जिन अभिभावकों की उपस्थिति लगातार कम पाई जाती है, उन्हें विशेष आमंत्रण भेजा जाए और बच्चों की शिक्षा में उनकी भूमिका को समझाया जाए।
बैठक में विद्यालय के प्रधानाध्यापक, कक्षा शिक्षक, समन्वयक और अन्य शिक्षक उपस्थित रहे। छात्रों की प्रगति रिपोर्ट, होमवर्क की जांच, परीक्षा परिणाम और व्यवहार रिपोर्ट अभिभावकों को दिखाई गई। कई स्कूलों में शिक्षकों ने चार्ट, प्रगति तालिका, रिपोर्ट कार्ड और स्लाइड प्रजेंटेशन के माध्यम से बच्चों की स्थिति को समझाने का प्रयास किया। छात्रों की कमजोरियों को इंगित कर उन्हें सुधारने के सुझाव दिए गए।
अभिभावकों ने भी बैठक में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने शिक्षकों से सीधा संवाद किया, बच्चों की पढ़ाई और समस्याओं को साझा किया और शिक्षकों से मार्गदर्शन मांगा। कुछ अभिभावकों ने बताया कि घर पर बच्चों को पढ़ाई में दिक्कत होती है, कुछ ने मोबाइल और टीवी के बढ़ते उपयोग की शिकायत की। इस पर शिक्षकों ने उन्हें घर पर समय निर्धारण, अनुशासन और शिक्षण तकनीक के बारे में सुझाव दिए।
इस बैठक में विशेष रूप से "ड्रॉप आउट" बच्चों की पहचान और उनकी पुनः विद्यालय वापसी पर बल दिया गया। शासन स्तर से स्पष्ट निर्देश थे कि ऐसे बच्चे जो लंबे समय से अनुपस्थित हैं या स्कूल छोड़ चुके हैं, उनके अभिभावकों से बात करके पुनः प्रवेश दिलवाया जाए। इस उद्देश्य से प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों ने व्यक्तिगत रूप से उन घरों तक जाकर संपर्क किया था, जिन बच्चों की उपस्थिति बहुत कम है।
बैठक में यह भी कहा गया कि कोई भी बच्चा केवल आर्थिक कारणों से, परिवहन की दिक्कत से, या किसी अन्य समस्या के कारण पढ़ाई से वंचित न रहे। इसके लिए सरकारी योजनाएं जैसे कि फ्री किताबें, यूनिफॉर्म, मिड डे मील आदि का लाभ कैसे मिल रहा है, इसकी समीक्षा भी की गई।
बैठक के दौरान निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा हुई:
छात्रों की उपस्थिति – किन बच्चों की उपस्थिति कम है और इसका कारण क्या है।
शैक्षिक प्रगति – कौन से विषयों में बच्चे कमजोर हैं और कैसे उन्हें सुधार की आवश्यकता है।
पठन-पाठन का वातावरण – स्कूल और घर दोनों में पढ़ाई का माहौल कैसा है।
अभिभावकों की भूमिका – बच्चों को पढ़ाई में सहयोग कैसे करें, कैसे प्रेरित करें।
ड्रॉप आउट की रोकथाम – ऐसे बच्चों की पहचान और पुनः प्रवेश की रणनीति।
सरकारी योजनाओं की जानकारी – जैसे मिड डे मील, मुफ्त स्टेशनरी, साइकल, यूनिफॉर्म इत्यादि।
बाल संरक्षण – बच्चों पर किसी तरह का मानसिक या शारीरिक दबाव तो नहीं डाला जा रहा है।
स्वास्थ्य और स्वच्छता – बच्चों की साफ-सफाई, पीने का पानी, शौचालय आदि की स्थिति।
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