Up basic School News

Basic education builds the foundation of a strong nation.

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a group of school children participating in a cultural event with joy and enthusiasm.

NIPUN Bharat Mission

NIPUN Bharat helps young children read and do basic math with understanding and confidence.

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Tuesday, May 6, 2025

भारत-पाक तनाव के बीच मॉक ड्रिल: यूपी-बिहार समेत 244 जिलों की लिस्ट देखें

 


244 जिलों में मॉक ड्रिल की योजना, जानें आपके जिले का नाम है या नहीं












 

👉उत्तर प्रदेश में कैबिनेट ने ट्रांसफर पॉलिसी को दी मंज़ूरी !! प्रेस नोट जारी https://basicshikshakhabar.com/2025/05/h-2266/


👉UP cabinet meeting : योगी कैबिनेट की बैठक में इन 11 महत्वपूर्ण फैसलों पर मुहर, जानें क्या-क्या, देखें प्रेस कॉन्फ्रेंस https://basicshikshakhabar.com/2025/05/h-2267/


 👉यूपी में 15 मई से सरकारी कर्मचारियों के तबादले होंगे: ट्रांसफर नीति को मंजूरी, 17 शहरों में पार्किंग बनेगी; कैबिनेट में 11 प्रस्ताव पास https://basicshikshakhabar.com/2025/05/b-1777/


👉विद्यालयों में नवीन नामांकन के सम्बन्ध में देखे  जिले के BSA का आदेश👆🏻 https://basicshikshakhabar.com/2025/05/h-2268/













Sunday, May 4, 2025

टीचर्स ऑफ द ईयर 2025 सम्मान समारोह | नवाचारी शिक्षकों को मिला मंच

 



टीचर्स ऑफ द ईयर 2025 शिक्षक सम्मान समारोह एक ऐसा आयोजन था जिसमें शिक्षकों की मेहनत, लगन और नवाचार को पहचान मिली। शिक्षक हमारे समाज की रीढ़ होते हैं। वे बच्चों को न केवल पढ़ाते हैं, बल्कि उनके जीवन को सही दिशा में ले जाते हैं। जब ऐसे शिक्षकों को सम्मान मिलता है, तो उनका मनोबल बढ़ता है और वे और भी अच्छा करने की प्रेरणा पाते हैं। स्टडी हॉल एजुकेशन फाउंडेशन ने इसी सोच के साथ यह आयोजन किया, ताकि उन शिक्षकों को पहचाना जा सके जो पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों की सोच और समझ को भी निखार रहे हैं।

यह कार्यक्रम "आरोही – एजुकेटिंग चिल्ड्रन फॉर जेंडर जस्टिस" नाम की पहल के अंतर्गत हुआ। इसका मकसद था उन शिक्षकों को सम्मान देना, जो अपने काम में कुछ नया कर रहे हैं और बच्चों की पढ़ाई को रोचक और आसान बना रहे हैं। यह आयोजन लखनऊ विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ और इसकी अगुवाई की स्टडी हॉल एजुकेशन फाउंडेशन की प्रमुख डॉ. उर्वशी सैनी ने की।

इस समारोह के लिए प्रतियोगिता फरवरी 2025 में शुरू हुई थी। इसमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के कुल 117 शिक्षकों ने भाग लिया। सभी प्रतिभागियों को अपनी किसी खास शिक्षण पद्धति या नवाचार पर एक वीडियो बनाकर वेबसाइट पर भेजना था। इन वीडियो में दिखाया गया कि शिक्षक किस तरह बच्चों को पढ़ा रहे हैं, क्या नया तरीका अपना रहे हैं, और बच्चों पर उसका क्या असर हो रहा है। फिर एक टीम ने उन वीडियो को देखा और सबसे अच्छे शिक्षकों को चुना।

इस प्रतियोगिता में उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले के डॉ. त्रिलोकचंद को द्वितीय स्थान मिला। वे सिविलियन उच्च प्राथमिक विद्यालय ओरिया में सहायक अध्यापक हैं। उन्होंने विज्ञान को बच्चों के लिए आसान और मजेदार बनाने के नए तरीके बताए, जिससे बच्चे प्रयोग करके सीखते हैं। निर्णायक मंडल को यह तरीका बहुत अच्छा लगा।

पहला स्थान मिला उत्तर प्रदेश के ही कानपुर देहात की प्राथमिक विद्यालय नाही की शिक्षिका श्रीमती अवंतिका सिंह को। उन्होंने लड़कियों की पढ़ाई में नए प्रयोग किए और समावेशी शिक्षा की मिसाल पेश की। तीसरे स्थान पर रहीं कानपुर नगर की सहायक अध्यापिका श्रीमती रेखा गुप्ता, जिन्होंने बच्चों के व्यक्तित्व विकास को ध्यान में रखकर शिक्षा दी।

सम्मान समारोह 21 अप्रैल 2025 को हुआ। इसमें कई खास लोग मौजूद थे। मुख्य अतिथि थीं उत्तर प्रदेश सरकार की ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्रीमती विजयलक्ष्मी गौतम। उनके साथ मंच पर लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक चंद्र राय, समग्र शिक्षा अभियान की प्रमुख श्रीमती एकता जैन, कस्तूरबा विद्यालय के डीसी श्री मुकेश और माध्यमिक शिक्षा परिषद के अधिकारी श्री विष्णु कांत पांडे भी थे।

इन सभी खास मेहमानों ने मंच पर आकर चुने गए शिक्षकों को सम्मानित किया। उन्हें प्रशंसा पत्र, मेडल, स्मृति चिन्ह और नकद पुरस्कार दिए गए। डॉ. त्रिलोकचंद को ₹20,000 का चेक, एक प्रशंसा पत्र, मेडल और स्मृति चिन्ह मिला। यह उनके लिए बहुत गर्व की बात थी।

जब डॉ. त्रिलोकचंद ने मंच से अपनी बात कही, तो उन्होंने कहा कि यह सम्मान उनके लिए बहुत प्रेरणादायक है। उन्होंने अपने जिले के शिक्षा अधिकारी श्री अजय मिश्रा, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी श्री अजब सिंह यादव और अपने स्कूल के पूरे स्टाफ को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह सम्मान सिर्फ उनका नहीं, बल्कि उन सभी शिक्षकों का है जो मेहनत से पढ़ाते हैं।

जब वे अपने विद्यालय लौटे, तो छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। स्कूल में खुशी का माहौल था और सबने मिलकर उनके सम्मान में कार्यक्रम भी किया।

इस आयोजन में सिर्फ "टीचर्स ऑफ द ईयर" के विजेता ही नहीं, बल्कि साल भर में हुई अन्य प्रतियोगिताओं के विजेता बच्चों और उनके शिक्षकों को भी सम्मानित किया गया। इनमें बाल साहित्य लेखन, चित्रकला, नुक्कड़ नाटक, विज्ञान प्रदर्शनी और बाल संसद जैसी प्रतियोगिताएं शामिल थीं। बच्चों के साथ-साथ उनके गाइड शिक्षकों को भी सम्मान मिला, क्योंकि उनके प्रयास से ही बच्चे इन आयोजनों में भाग ले पाए।

इस तरह के आयोजनों का समाज में बहुत बड़ा असर होता है। जब शिक्षकों को उनके अच्छे काम के लिए पहचाना जाता है, तो वे और भी लगन से काम करते हैं। वे बच्चों की पढ़ाई को सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रखते, बल्कि उनके जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में काम करते हैं।

इस आयोजन में उन शिक्षकों को खासतौर पर महत्व दिया गया जो लड़कियों और वंचित वर्ग के बच्चों को पढ़ाने में जुटे हैं। इससे समाज में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा मिलता है।

अंत में यही कहा जा सकता है कि "टीचर्स ऑफ द ईयर 2025" जैसे कार्यक्रम शिक्षा क्षेत्र में एक नई दिशा दिखाते हैं। ये न केवल शिक्षकों को सम्मानित करते हैं, बल्कि पूरे समाज को यह संदेश देते हैं कि अच्छे कार्य की पहचान जरूर होती है। डॉ. त्रिलोकचंद जैसे शिक्षक हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बना रहे हैं। ऐसे आयोजन शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव और प्रेरणा का स्रोत बनते हैं।

 

👉यूपी में छह आईएएस अफसरों के तबादले

https://www.updatemarts.com/2025/05/blog-post_125.html


👉UP: पहलगाम में मृत अफसर को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी..! पोस्ट साझा करने पर शिक्षिका जेब अफरोज निलंबित; BSA ने लिया एक्शन..!

https://www.updatemarts.com/2025/05/up-bsa.html


👉जनपद में एनसीईआरटी की किताबें नहीं चलाने पर 33 स्कूलों पर लगाया एक-एक लाख रुपये का अर्थ दंड।

https://www.updatemarts.com/2025/05/33.html


 👉अंतर्जनपदीय म्यूच्यूअल ट्रांसफर स्पेशल

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Wednesday, April 30, 2025

महिलाओं के लिए शिक्षक पद: शिक्षा क्षेत्र में आदर्श करियर

 

                                             

हमारे समाज में शिक्षक का स्थान बहुत ऊँचा माना जाता है। खासकर जब कोई महिला शिक्षक बनती है, तो वह न केवल शिक्षा का कार्य करती है, बल्कि वह समाज की सोच को भी बदलने का काम करती है। एक महिला जब कक्षा में जाती है, तो वह सिर्फ किताबें नहीं पढ़ाती, वह बच्चों को जीवन के मूल्यों, संस्कारों और इंसानियत का पाठ भी पढ़ाती है। एक महिला शिक्षक अपने धैर्य, ममता और समझदारी से बच्चों को सिखाने का जो तरीका अपनाती है, वह बच्चों के मन पर गहरा असर छोड़ता है।

कानपुर देहात जैसे क्षेत्र में जहां पारिवारिक जीवन और सामाजिक जिम्मेदारियाँ महिलाओं पर अधिक होती हैं, वहां शिक्षक की नौकरी उनके लिए एक वरदान जैसी होती है। शिक्षक का पेशा महिलाओं को वह सम्मान और स्थिरता देता है जिसकी उन्हें जरूरत होती है। यह नौकरी उन्हें घर और कार्य के बीच संतुलन बनाए रखने का अवसर देती है। स्कूल के निश्चित समय, छुट्टियों की सुविधा और बच्चों के साथ एक सकारात्मक वातावरण उन्हें शांति और संतोष प्रदान करता है। जब एक महिला अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बाद खुद भी एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती है, तो वह अपने परिवार के साथ-साथ समाज के बच्चों के भविष्य को भी सँवारने का कार्य करती है।

एक महिला शिक्षक केवल एक विषय की जानकार नहीं होती, वह बच्चों की मार्गदर्शक, सहारा और प्रेरणा भी होती है। बच्चों के मन को समझना, उन्हें प्यार से पढ़ाना, और हर बच्चे के भीतर छिपी प्रतिभा को पहचानना एक महिला शिक्षक की सबसे बड़ी विशेषता होती है। वह बच्चों को डांटने के बजाय उन्हें समझाने में विश्वास रखती है। एक माँ की तरह वह हर विद्यार्थी को अपनी संतान समझकर पढ़ाती है। यही कारण है कि बच्चों को महिला शिक्षक अधिक प्रिय लगती हैं। उनकी बातों में मिठास होती है और उनके व्यवहार में अपनापन होता है।

महिला शिक्षकों का धैर्य, उनकी कोमलता और व्यवहारिक समझ उन्हें इस पेशे के लिए सबसे उपयुक्त बनाती है। वे न केवल पढ़ाने का कार्य करती हैं, बल्कि विद्यालय की व्यवस्था, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद और अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय रहती हैं। एक महिला शिक्षक बच्चों के सर्वांगीण विकास की दिशा में कार्य करती है। वह यह सुनिश्चित करती है कि हर बच्चा आत्मविश्वास से भरा हो, अच्छे संस्कारों के साथ बड़ा हो और समाज में एक अच्छा नागरिक बने।

आजकल कई महिलाएं शादी के बाद या माँ बनने के बाद घर की जिम्मेदारियों में उलझ जाती हैं, लेकिन शिक्षक की नौकरी उन्हें फिर से आत्मनिर्भर और सक्रिय बनाने का माध्यम बनती है। वह सुबह बच्चों को तैयार करती है, खुद विद्यालय जाती है, और समय पर घर लौटती है। स्कूल के समय और घर के काम के बीच एक अच्छा तालमेल बन जाता है। इससे उन्हें न केवल मानसिक संतुलन मिलता है, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता भी प्राप्त होती है। उन्हें अपनी मेहनत की कमाई मिलती है, जिससे उनका आत्मविश्वास और आत्मसम्मान दोनों बढ़ता है।

महिला शिक्षक होने का एक और बड़ा लाभ यह है कि वह समाज में एक आदर्श बन जाती हैं। जब एक गाँव या कस्बे की लड़की यह देखती है कि उनकी दीदी या आंटी स्कूल में पढ़ाने जाती हैं, तो उनके मन में भी शिक्षक बनने की प्रेरणा जागती है। एक महिला शिक्षक अपने कार्य और व्यवहार से समाज की अन्य महिलाओं के लिए उदाहरण बनती है। वह दिखाती हैं कि एक महिला सिर्फ रसोई या घर तक सीमित नहीं है, वह बच्चों के भविष्य की निर्माता भी बन सकती है।

एक महिला शिक्षक जब बच्चों को पढ़ाती है, तो वह हर बच्चे के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करती है। वह जानती है कि हर बच्चा अलग है, और हर बच्चे को अलग तरीके से समझाना पड़ता है। उसके पास धैर्य होता है, सहनशीलता होती है और एक सच्चा मन होता है। वह बच्चों की सफलता में अपनी खुशी ढूंढती है। जब कोई बच्चा परीक्षा में अच्छे अंक लाता है या मंच पर आत्मविश्वास से बोलता है, तो उसे लगता है कि उसकी मेहनत सफल हो गई। यह संतोष और खुशी शायद ही किसी अन्य पेशे में इतनी सच्चाई से मिलती हो।

महिला शिक्षक का यह कार्य सिर्फ स्कूल तक ही सीमित नहीं होता। वह बच्चों के अभिभावकों से भी मिलती है, उन्हें बच्चों की प्रगति की जानकारी देती है, और जरूरत पड़ने पर परामर्श भी देती है। वह समाज और परिवार के बीच एक पुल की तरह काम करती है। एक अच्छा शिक्षक न केवल किताबों का ज्ञान देता है, बल्कि बच्चों को अच्छा इंसान भी बनाता है। और जब यह कार्य एक महिला करती है, तो उसमें संवेदना, अपनापन और ममता और भी अधिक जुड़ जाती है।

सरकारी विद्यालयों में महिला शिक्षकों की संख्या बढ़ना हमारे समाज के लिए शुभ संकेत है। इससे न केवल शिक्षा का स्तर सुधरता है, बल्कि महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ती है। वे अपनी प्रतिभा और ज्ञान से समाज को सशक्त बनाती हैं। सरकार भी अब महिला शिक्षकों को बढ़ावा दे रही है, क्योंकि यह देखा गया है कि जब महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में आती हैं, तो बच्चों के प्रति अनुशासन और संवेदनशीलता दोनों में सुधार होता है। महिलाएं बच्चों के साथ ज्यादा जुड़ाव बना लेती हैं और उन्हें सकारात्मक दिशा में प्रेरित कर सकती हैं।

शिक्षक की नौकरी में सबसे अच्छी बात यह होती है कि इसमें हर दिन कुछ नया होता है। हर दिन नया पाठ, नई गतिविधि, और नई बातें। महिला शिक्षक इन सभी में उत्साह के साथ भाग लेती हैं। उन्हें स्कूल के बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों और प्रधानाचार्य के साथ भी अच्छा तालमेल बनाना होता है। वे सबकी बातें सुनती हैं, समझती हैं और स्कूल के वातावरण को खुशनुमा बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।

कई बार जब बच्चों के माता-पिता व्यस्त होते हैं या शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होते, तब महिला शिक्षक बच्चों की विशेष देखभाल करती हैं। वह न केवल पढ़ाई बल्कि व्यवहार, साफ-सफाई और नैतिक मूल्यों के बारे में भी सिखाती हैं। वह बच्चों को अपनेपन से सुधारती हैं। यही कारण है कि बच्चों को अपनी 'मैम' सबसे प्यारी लगती हैं। वे उनके साथ अपनी बातें साझा करते हैं, उनसे प्रेरणा लेते हैं और उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

महिला शिक्षक का जीवन सरल होते हुए भी महान होता है। वह सुबह तैयार होकर विद्यालय जाती है, बच्चों को सिखाती है, उन्हें जीवन के लिए तैयार करती है और शाम को घर लौटकर अपने परिवार की देखभाल भी करती है। वह हर जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाती है। वह कभी थकती नहीं, क्योंकि उसे पता है कि उसका कार्य केवल एक नौकरी नहीं है, यह सेवा है – देश सेवा, समाज सेवा और मानव सेवा।

महिलाओं को शिक्षक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह न केवल उनके लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक करियर है, बल्कि समाज के निर्माण में भी उनकी भागीदारी सुनिश्चित करता है। जब एक महिला शिक्षिका बनती है, तो वह एक पीढ़ी को सिखाती है, संवारती है और मजबूत बनाती है। यह पेशा उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है, उन्हें एक पहचान देता है और समाज में उनका स्थान ऊँचा करता है।

अंत में यही कहा जा सकता है कि महिला शिक्षक हमारे समाज की रीढ़ हैं। वे शिक्षा के माध्यम से समाज को संवारती हैं, बच्चों को संस्कार देती हैं, और आने वाले कल को बेहतर बनाती हैं। उनका योगदान अमूल्य है। हर महिला जो शिक्षक बनना चाहती है, वह समाज के लिए एक प्रेरणा है। शिक्षक की नौकरी उसके लिए केवल आजीविका का साधन नहीं है, बल्कि यह उसके जीवन का मिशन बन जाता है। ऐसी महिला शिक्षिकाओं को हम सभी का नमन और सम्मान मिलना चाहिए।

 

👉विगत दस वर्षों (अप्रैल, 2016 से मार्च 2025) में नियुक्त शिक्षकों के सम्बन्ध में सूचना उपलब्ध कराये जाने विषयक।‌

https://www.updatemarts.com/2025/04/2016-2025.html


👉म्यूच्यूअल ट्रांसफर अपडेट

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_728.html


👉फैसला: निजी स्कूलों को फीस वृद्धि से पहले अनुमति लेनी होगी

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_805.html


Monday, April 28, 2025

भविष्य के स्कूलों में एआई टीचर का आगमन: शिक्षक और मानवता का महत्व

 


हमारा और हमारे विद्यालयों का भविष्य अब तेजी से बदल रहा है। आने वाला समय ऐसा होगा, जब हमारे स्कूलों में इंसान नहीं, बल्कि एआई टीचर पढ़ाएंगे। एआई टीचर यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बने शिक्षक होंगे, जिन्हें न सैलरी देनी होगी, न भत्ते, न ही पेंशन देना पड़ेगा। ये टीचर कभी छुट्टी नहीं मांगेंगे, बीमार नहीं पड़ेंगे और हमेशा समय पर पढ़ाई कराएंगे। लेकिन क्या ये एआई टीचर बच्चों को वह सच्चा मार्गदर्शन दे पाएंगे जो एक इंसानी शिक्षक देता है? आज के शिक्षक बच्चों को केवल पढ़ाई ही नहीं कराते, बल्कि उन्हें संस्कार, समझदारी और जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। जब बच्चे किसी परेशानी में होते हैं तो एक इंसानी शिक्षक उन्हें समझता है, सहारा देता है। लेकिन एआई टीचर केवल मशीन की तरह काम करेंगे। वे बच्चों के दुख, खुशी, डर या सपनों को नहीं समझ पाएंगे। सरकारों के लिए एआई टीचर सुविधाजनक हो सकते हैं क्योंकि इससे पैसे बचेंगे, लेकिन क्या इससे बच्चों का सही विकास हो पाएगा? गाँवों और कस्बों में आज भी बच्चे अपने शिक्षकों से जीवन के बड़े सबक सीखते हैं। अगर भविष्य में केवल मशीनें बच्चों को पढ़ाएंगी, तो बच्चों में संवेदनशीलता, करुणा और समझ कम हो सकती है। वे केवल जानकारी के भंडार बन जाएंगे, पर इंसानी भावना से खाली हो सकते हैं। स्कूल सिर्फ पढ़ाई की जगह नहीं हैं, वे बच्चों के व्यक्तित्व को संवारने का स्थान हैं। एक इंसानी शिक्षक अपने अनुभव, ज्ञान और प्यार से बच्चों को जीवन का सही रास्ता दिखाता है। एआई टीचर केवल तय कार्यक्रम के अनुसार पढ़ाएंगे। वे बच्चों के सवालों के पीछे छुपी जिज्ञासा को नहीं समझ पाएंगे, न ही बच्चों के विचारों को उड़ान दे पाएंगे। इसलिए तकनीक का उपयोग हमें शिक्षकों की सहायता के लिए करना चाहिए, न कि उनकी जगह लेने के लिए। आज डिजिटल बोर्ड, ऑनलाइन क्लास जैसे साधनों ने शिक्षा को आसान बनाया है, लेकिन इंसानी शिक्षक की जगह कभी नहीं ले सकते। इंसानी शिक्षक बच्चों की आँखों से उनका मन पढ़ सकते हैं, उनकी समस्याएं समझ सकते हैं। एक मशीन कभी यह नहीं कर सकती। अगर पूरी शिक्षा मशीनों के हाथ में चली गई तो आने वाली पीढ़ी संवेदनहीन हो सकती है। सोचने, समझने और महसूस करने की शक्ति कम हो सकती है। इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि शिक्षा केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि अच्छा इंसान बनाना है। शिक्षक वह दीपक है जो बच्चों के जीवन में उजाला करता है। मशीनें चाहे जितनी तेज हो जाएं, लेकिन वे उस दीपक की जगह नहीं ले सकतीं। अगर एआई टीचर आएंगे तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वे केवल सहायक बनें, शिक्षक नहीं। हमारे विद्यालयों का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब इंसान और तकनीक दोनों साथ मिलकर काम करेंगे। शिक्षकों का सम्मान करना जरूरी है क्योंकि वे समाज का निर्माण करते हैं। एक मशीन कभी समाज नहीं बना सकती। शिक्षा का मकसद केवल नौकरी पाना नहीं है, बल्कि एक अच्छा इंसान बनाना है। इसलिए हमें अपने विद्यालयों में एआई टीचर को सहायक के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए, मुख्य शिक्षक के रूप में नहीं। हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि अपने असली शिक्षकों का सम्मान करें और तकनीक का सही उपयोग करें। भविष्य तभी उज्ज्वल रहेगा जब मानवता और ज्ञान साथ-साथ चलेंगे। शिक्षक जिंदाबाद, मानवता जिंदाबाद।


👉शिक्षा निदेशालय में भीषण आग पांच हजार फाइलें जलकर राख, घटना की जांच के लिए समिति गठित

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_329.html


👉निकली शिक्षक पदों हेतु नौकरियां, करें आवेदन, देखें विज्ञप्ति

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_103.html


👉बिना सूचना/बिना अवकाश के विद्यालय से दीर्घावधि से अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने के सम्बन्ध में ।

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_872.html


👉शिक्षकों ने अपराह्न 1.30 के पहले छोड़ा स्कूल, तो होगी कार्यवाही

https://www.updatemarts.com/2025/04/130.html




Friday, April 25, 2025

पहुलगाम में 22 अप्रैल 2025 का आतंकी हमला – बायसरन पार्क में निर्दोष हिंदू पर्यटकों की हत्या

 

22 अप्रैल 2025 का दिन देश के लिए बहुत दुख और सदमे से भरा हुआ रहा। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में बायसरन नाम की एक सुंदर और हरी-भरी जगह है, जिसे लोग 'मिनी स्विट्जरलैंड' भी कहते हैं। यह जगह घने जंगलों, बर्फ से ढके पहाड़ों और खूबसूरत मैदानों के कारण बहुत प्रसिद्ध है। गर्मियों की छुट्टियों में लोग परिवार के साथ घूमने-फिरने आते हैं और यहां की ठंडी हवा, हरियाली और शांत वातावरण का आनंद लेते हैं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस बार बायसरन में कुछ ऐसा हुआ जिसने देशभर के लोगों का दिल दहला दिया।

मंगलवार की दोपहर को करीब तीन बजे का समय था। बायसरन पार्क में बहुत सारे लोग अपने परिवार के साथ टट्टू की सवारी कर रहे थे, बच्चे घास पर खेल रहे थे, कुछ लोग फोटोग्राफी कर रहे थे और कुछ खाने-पीने की दुकानों के पास चाय और स्नैक्स का आनंद ले रहे थे। तभी अचानक वहां कुछ लोग सेना की वर्दी पहनकर आए। उन्हें देखकर किसी को शक नहीं हुआ, क्योंकि ऐसा लग रहा था कि वो सेना के जवान हैं और पर्यटकों की सुरक्षा के लिए आए हैं। लेकिन कुछ ही देर बाद सब कुछ बदल गया।

सेना की वर्दी में आए ये लोग असली सैनिक नहीं थे। ये आतंकवादी थे, जो पहले से योजना बनाकर आए थे। उन्होंने सबसे पहले लोगों को इकट्ठा किया और फिर उनसे उनका नाम और धर्म पूछा। कुछ लोगों से पहचान पत्र भी दिखवाए। जब उन्हें यह पता चला कि सामने खड़ा व्यक्ति हिंदू है और उसने कलमा नहीं पढ़ा है, तो उन्होंने उस पर गोलियां चला दीं। यह बहुत ही क्रूर और अमानवीय हमला था। लोग भागने लगे, बच्चों की चीखें गूंजने लगीं, और चारों ओर अफरा-तफरी मच गई।

इस हमले में कुल 26 लोगों की मौत हो गई और 17 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। मरने वालों में ज्यादातर लोग अलग-अलग राज्यों से आए पर्यटक थे। कोई अपने माता-पिता के साथ आया था, कोई अपने बच्चों के साथ और कोई अपने जीवनसाथी के साथ। लेकिन अब वे सब वापस नहीं जा पाए। उनकी यात्रा वहीं खत्म हो गई। यह हमला पुलवामा के बाद जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा आतंकवादी हमला माना जा रहा है।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि हमलावर चार से छह की संख्या में थे। वे देवदार के पेड़ों के पीछे से चुपचाप आए थे और अचानक हमला कर दिया। उनके पास ऑटोमैटिक राइफलें थीं। उन्होंने पहले हिन्दू पहचान करने के लिए कई लोगों से बातें कीं और जैसे ही उनकी पहचान सुनिश्चित हुई, उन पर गोलियों की बौछार कर दी। जो लोग वहां मौजूद थे, उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसा भयानक मंजर कभी नहीं देखा।

घटना के बाद सुरक्षा बलों को खबर दी गई और तुरंत सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान वहां पहुंचे। उन्होंने इलाके को घेर लिया और आतंकियों की तलाश शुरू की। घायलों को हेलीकॉप्टर से श्रीनगर के अस्पतालों में भेजा गया, जहां उनका इलाज चल रहा है। बहुत सारे लोग अब भी सदमे में हैं और बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं।

इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकवादी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने ली है। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस हमले का मास्टरमाइंड लश्कर का डिप्टी चीफ सैफुल्लाह खालिद है। सैफुल्लाह खालिद पाकिस्तान में बैठकर आतंक फैलाने की योजना बनाता है और पाकिस्तानी सेना की मदद से उन्हें अंजाम देता है। उसे हाल ही में पाकिस्तान के एक शहर में भाषण देने के लिए बुलाया गया था, जहां उसने भारतीय लोगों के खिलाफ नफरत फैलाई।

हमले में जिन लोगों की जान गई, उनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, गुजरात, हरियाणा, केरल, ओडिशा, मध्यप्रदेश और यहां तक कि नेपाल और अरुणाचल प्रदेश से भी लोग थे। वे सभी सिर्फ छुट्टी मनाने और कश्मीर की खूबसूरती देखने आए थे। लेकिन अब उनकी लाशें घर पहुंचीं, जिससे उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।

इस हमले ने न केवल पूरे देश को दुखी किया है, बल्कि एक बड़ा सवाल भी खड़ा किया है कि क्या पर्यटक अब सुरक्षित हैं? क्या परिवारों के साथ घूमने जाने वाले लोग अब डर के साए में जिएंगे? क्या धर्म के नाम पर किसी की जान लेना सही है? इन सवालों के जवाब ढूंढना सरकार, सुरक्षा एजेंसियों और हम सभी की जिम्मेदारी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस समय विदेश दौरे पर थे और अमेरिका के उपराष्ट्रपति भारत दौरे पर आए थे। इस हमले का समय भी सोच-समझकर चुना गया था, ताकि दुनिया का ध्यान इस ओर जाए कि जम्मू-कश्मीर अब भी सुरक्षित नहीं है। इस हमले से यह संदेश देने की कोशिश की गई कि जम्मू-कश्मीर में पर्यटक सुरक्षित नहीं हैं, खासकर हिंदू धर्म के लोग।

यह हमला अमरनाथ यात्रा से कुछ समय पहले हुआ, लेकिन यह यात्रा से जुड़ा नहीं था। यह उन लोगों पर हमला था, जो सिर्फ घूमने और प्रकृति का आनंद लेने आए थे। वे न तो किसी धार्मिक कार्य में लगे थे, न ही किसी राजनीतिक मकसद से आए थे। वे आम नागरिक थे, जो छुट्टी मना रहे थे।

हमले के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तीन संदिग्ध आतंकियों के स्केच जारी किए हैं, जिनके नाम आसिफ फौजी, सुलेमान शाह और अबु तल्हा बताए गए हैं। सुरक्षा एजेंसियां अब इनकी तलाश में जंगलों और आसपास के इलाकों में छानबीन कर रही हैं। साथ ही, बायसरन और आसपास के इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

इस हमले के बाद देशभर में गुस्सा और दुख की लहर फैल गई है। सोशल मीडिया पर लोगों ने सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की है। कई राज्यों में मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए शोक सभाएं आयोजित की गईं। स्कूलों और कार्यालयों में दो मिनट का मौन रखा गया और मोमबत्तियां जलाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

पर्यटन मंत्रालय ने भी इस हमले की निंदा की और कहा कि ऐसी घटनाएं देश की छवि को नुकसान पहुंचाती हैं। साथ ही, सरकार ने सभी राज्यों के पर्यटकों से अपील की है कि वे सतर्क रहें और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी तुरंत पुलिस को दें।

अब यह सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि इस हमले के दोषियों को पकड़कर उन्हें कड़ी सजा दिलवाएं। साथ ही, पर्यटकों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए जाएं, ताकि भविष्य में कोई भी परिवार इस तरह के दुख का सामना न करे।

यह हमला हमें यह भी याद दिलाता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। जो लोग धर्म के नाम पर खून बहाते हैं, वे इंसान नहीं हो सकते। एक सच्चा इंसान किसी की मुस्कान, किसी के परिवार और किसी के सपने छीनने का हकदार नहीं हो सकता। हमें एकजुट होकर नफरत के इन सौदागरों का विरोध करना होगा और देश में शांति, भाईचारे और प्रेम की भावना को बनाए रखना होगा।

देश आज भी उन 26 निर्दोष लोगों के लिए शोक मना रहा है, जो केवल पहलगाम की सुंदरता देखने आए थे, लेकिन उनकी जिंदगी वहीं खत्म हो गई। उनका कसूर बस इतना था कि वे किसी एक धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने किसी का 'कलमा' नहीं पढ़ा। यह एक बहुत ही शर्मनाक और अमानवीय सोच है, जिसे हमें मिलकर खत्म करना होगा।

हमले के बाद बचे लोगों ने जो बताया, वह बहुत ही दर्दनाक था। एक महिला ने बताया कि उसका बेटा घास पर खेल रहा था, और तभी गोली चलने लगी। उसने अपने बेटे को बचाने की कोशिश की, लेकिन गोली उसके पति को लग गई और वह वहीं गिर पड़ा। एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि वह अपने माता-पिता के साथ आया था, और सब लोग बहुत खुश थे। लेकिन अचानक गोलियां चलने लगीं और उसका भाई वहीं मारा गया। ऐसे कितने ही लोगों की कहानियां हैं, जो सुनकर आंखों से आंसू निकल आते हैं।

हम सबको इस घटना से सीख लेनी चाहिए और अपने देश, अपने लोगों और अपने समाज की सुरक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए। कोई भी ताकत हमें डराकर नहीं हरा सकती, जब तक हम मिलकर उसका विरोध करते रहें। इन शहीद पर्यटकों की याद में हमें अपने देश को और मजबूत और सुरक्षित बनाना होगा।






Thursday, April 24, 2025

UP Board Result 2025: 10वीं और 12वीं का रिजल्ट कल होगा जारी

 

UP Board 10वीं और 12वीं रिजल्ट 2025 कल होगा जारी | यूपी बोर्ड रिजल्ट अपडेट
यूपी बोर्ड की 10वीं और 12वीं की परीक्षा 2025 में फरवरी और मार्च के महीनों में हुई थी। अब सभी छात्र और उनके परिवार बहुत उत्साहित हैं क्योंकि कल बोर्ड का रिजल्ट आने वाला है। इस रिजल्ट का इंतजार लाखों छात्रों को है, जिन्होंने साल भर मेहनत करके परीक्षा दी थी।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (UPMSP) रिजल्ट को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर जारी करेगी। छात्र अपना रिजल्ट upresults.nic.in या upmsp.edu.in पर जाकर देख सकेंगे। रिजल्ट देखने के लिए रोल नंबर और जन्मतिथि की जरूरत होगी।
इस साल लगभग 55 लाख छात्रों ने परीक्षा दी थी। इसमें 10वीं के करीब 30 लाख और 12वीं के लगभग 25 लाख छात्र शामिल थे। इस बार परीक्षा को नकल रहित और शांतिपूर्ण बनाने के लिए कई नई व्यवस्थाएं की गई थीं जैसे सीसीटीवी कैमरे और सख्त निगरानी। इससे परीक्षा ठीक से हुई और अब रिजल्ट की तैयारी पूरी हो गई है।
जब रिजल्ट आएगा, तो उसमें छात्र का नाम, रोल नंबर, विषय के अंक, कुल अंक, प्रतिशत और पास या फेल की जानकारी होगी। अगर किसी छात्र को लगे कि उसके अंक कम आए हैं, तो वह पुनः जांच (रीचेकिंग) के लिए आवेदन कर सकता है। और अगर कोई छात्र एक-दो विषयों में फेल हो जाता है, तो वह कम्पार्टमेंट परीक्षा देकर पास हो सकता है।
10वीं पास करने के बाद छात्र 11वीं में जाकर आर्ट्स, साइंस या कॉमर्स में से कोई भी स्ट्रीम चुन सकते हैं। कुछ छात्र आईटीआई या तकनीकी कोर्स भी कर सकते हैं। वहीं 12वीं पास करने वाले छात्र कॉलेज में बीए, बीएससी, बीकॉम जैसे कोर्स में दाखिला ले सकते हैं या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकते हैं।
हर साल की तरह इस साल भी जो छात्र टॉप करेंगे, उन्हें सरकार की ओर से इनाम मिल सकते हैं, जैसे लैपटॉप, टेबलेट या छात्रवृत्ति। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी टॉप करने वाले छात्रों को सम्मानित कर सकते हैं।
रिजल्ट आने पर बहुत सारे छात्र एक साथ वेबसाइट खोलते हैं, जिससे साइट स्लो हो सकती है। ऐसे में घबराएं नहीं, थोड़ा इंतजार करें और दोबारा कोशिश करें। रिजल्ट का प्रिंट या स्क्रीनशॉट जरूर निकालकर रखें, क्योंकि यह आगे स्कूल या कॉलेज में काम आएगा।
अगर किसी छात्र के अंक कम आए हैं, तो निराश होने की जरूरत नहीं है। रिजल्ट केवल एक पड़ाव है, मंज़िल नहीं। मेहनत करने से हमेशा आगे बढ़ने का रास्ता मिलता है। इस रिजल्ट से हर छात्र को अपने भविष्य की नई शुरुआत करने का मौका मिलेगा।
कल का दिन बहुत खास होगा, क्योंकि लाखों छात्र अपनी सालभर की मेहनत का फल देखेंगे। सभी बच्चों को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं। मेहनत और ईमानदारी से काम करने वालों को सफलता जरूर मिलती है।
👉UP Board Result 2025 : यूपी बोर्ड परिणाम पर बड़ा अपडेट, कल 12:30 बजे जारी होंगे 10वीं-12वीं के नतीजे, आदेश जारी
https://basicshikshakhabar.com/2025/04/d-3607/ 

 

👉UP TGT, PGT दोनों में bed अनिवार्य कर दिया गया है , देखें ऑफिशल लेटर https://basicshikshakhabar.com/2025/04/dd-1146/

 

👉पूरे प्रदेश में स्कूल अब 07:30-01:30 चलेंगे। लेकिन बच्चों की छुट्टी 12:30 बजे होगी। , देखें शिक्षा निदेशक बेसिक क आदेश जारी https://basicshikshakhabar.com/2025/04/ff-706/








Monday, April 21, 2025

कानपुर देहात में शिक्षकों का सम्मान और प्रेरणा भरा आयोजन

 

शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता — सम्मान समारोह में जीवन भर की उपलब्धियों को सलाम



दिनांक 19 अप्रैल 2025 को उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ, अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ, ब्लॉक इकाई मैंथा कानपुर देहात द्वारा एक बहुत ही सुंदर और भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम विकासखंड मैथा के उन शिक्षकों के सम्मान में किया गया, जिन्होंने लंबे समय तक शिक्षा सेवा दी और 31 मार्च 2025 को सेवानिवृत्त हुए। यह समारोह टाउन एरिया गेस्ट हाउस शिवली, कानपुर देहात में बड़े ही अच्छे तरीके से और खुशी-खुशी मनाया गया। इस कार्यक्रम में सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों का सम्मान किया गया।

सेवानिवृत्त शिक्षकों में श्री अशोक कुमार शुक्ला जो कि जिला मंत्री, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ और प्रधानाध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय औगी मैंथा के पद पर कार्यरत थे, श्रीमती रमा वर्मा, प्रधानाध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय कारानी, श्रीमती उषा कटियार, प्रधानाध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय औरंगाबाद, श्री ओम नारायण कटियार, प्रधानाध्यापक, प्राथमिक विद्यालय रंजीतपुर और श्रीमती रुखसाना बेगम, सहायक अध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय जुगराजपुर शिवली शामिल रहे। सभी शिक्षकों को इस समारोह में बड़े सम्मान के साथ बुलाया गया और उनके कार्यकाल की प्रशंसा की गई।

कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के पूजन, अर्चन और माल्यार्पण से की गई। सबसे पहले मुख्य अतिथि श्री राजेंद्र सिंह, जिन्हें सभी राजू भैया के नाम से जानते हैं और जो कंचौसी टाउन एरिया के प्रथम अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष के पति हैं, ने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता नगर पंचायत शिवली के अध्यक्ष श्री अवधेश शुक्ला ने की।

कार्यक्रम में नगर पंचायत सिकंदरा की अध्यक्षा श्रीमती सीमा पाल और उनके प्रतिनिधि श्री पंकज पाल भी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इनके साथ ही खंड शिक्षा अधिकारी मैथा सुश्री सपना सिंह भी समारोह में पधारीं। सबसे पहले सभी अतिथियों का स्वागत उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जनपद और ब्लॉक पदाधिकारियों द्वारा माल्यार्पण और फूलों से किया गया।

इसके बाद मुख्य अतिथि श्री राजेंद्र सिंह राजू भैया ने सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों को मंच पर बुलाया और माल्यार्पण कर, प्रतीक चिन्ह भेंट कर और अंग वस्त्र पहनाकर सम्मानित किया। इसके साथ ही विशिष्ट अतिथियों ने भी सेवानिवृत्त शिक्षकों का सम्मान किया। पूरे माहौल में खुशियों और सम्मान की भावना दिख रही थी।

मुख्य अतिथि श्री राजेंद्र सिंह ने अपने भाषण में कहा कि शिक्षक कभी भी पूरी तरह से सेवानिवृत्त नहीं होता। वह केवल एक पड़ाव पार करता है, लेकिन समाज और शिक्षा के लिए उसका मार्गदर्शन जीवनभर बना रहता है। उन्होंने सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों को शुभकामनाएं दीं और कहा कि आप सभी का जीवन हमेशा खुशहाल और सुखद हो।

इसके बाद विशिष्ट अतिथि श्रीमती सीमा पाल ने कहा कि एक शिक्षक समाज का सबसे बड़ा निर्माता होता है। वह बच्चों को पढ़ाकर उनके भविष्य को संवारता है। उन्होंने सेवानिवृत्त शिक्षकों को शुभकामनाएं दीं और उनके जीवन में सुख-शांति की कामना की। खंड शिक्षा अधिकारी सुश्री सपना सिंह ने भी अपने शब्दों में कहा कि यह बहुत अच्छा और सुंदर कार्यक्रम है। शिक्षक संघ की ब्लॉक इकाई ने इसे बहुत ही अच्छे तरीके से आयोजित किया है। उन्होंने सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों को बधाई दी और कहा कि आपका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।

नगर पंचायत शिवली के अध्यक्ष श्री अवधेश शुक्ला ने अपने भाषण में रामायण की कहानियों का उदाहरण देकर बताया कि जीवन में सेवा और सम्मान का बहुत महत्व है। उन्होंने कहा कि शिक्षक वही है जो जीवनभर शिक्षा देता है। उन्होंने सभी शिक्षकों की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से सभी को प्रेरणा मिलती है।

इस समारोह में शिक्षकों के साथ-साथ अनुदेशक, शिक्षामित्र, बेसिक शिक्षा विभाग के सभी कर्मचारी और बहुत सारे स्थानीय लोग भी मौजूद रहे। सभी ने पूरे कार्यक्रम का आनंद लिया और सेवानिवृत्त शिक्षकों का सम्मान करते हुए तालियां बजाईं।

कार्यक्रम के अंत में उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष श्री एल.बी. सिंह, ब्लॉक अध्यक्ष श्री मुकेश बाजपेई और ब्लॉक मंत्री श्री शशिकांत यादव ने सभी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि हम सबका कर्तव्य है कि अपने शिक्षकों का सम्मान करें और उनके अनुभवों से सीखें। उन्होंने कहा कि संगठन का हमेशा यह प्रयास रहेगा कि शिक्षकों का मान-सम्मान इसी तरह बना रहे।

उन्होंने उपस्थित सभी अतिथियों, शिक्षकों, अनुदेशकों, शिक्षामित्रों, कर्मचारियों और स्थानीय लोगों का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि इतने अच्छे और व्यवस्थित कार्यक्रम के लिए सभी को बधाई और शुभकामनाएं।

इस समारोह में शिक्षकों ने भी अपने-अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने अपने जीवन के कई साल बच्चों को पढ़ाने और संस्कार देने में लगाए। कई शिक्षक अपनी बातें कहते हुए भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता। वह हमेशा समाज और अपने आसपास के लोगों को कुछ न कुछ सिखाता रहता है।

सभी ने मिलकर यह ठाना कि आगे भी इस तरह के कार्यक्रम होते रहने चाहिए ताकि शिक्षक समाज का सम्मान और गौरव हमेशा बना रहे। इस पूरे कार्यक्रम में कहीं भी अव्यवस्था नहीं थी। सब कुछ बहुत अच्छे ढंग से हुआ।

यह कार्यक्रम शिक्षा जगत के लिए प्रेरणा देने वाला और समाज में शिक्षकों के सम्मान को दर्शाने वाला रहा। इस कार्यक्रम ने यह भी बताया कि समाज में शिक्षक का कितना बड़ा स्थान है। अगर शिक्षक न हों तो समाज का निर्माण ही अधूरा रह जाता है।

कार्यक्रम में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और सरस्वती वंदना ने भी सबका मन मोह लिया। पूरे समय वातावरण में खुशी और सम्मान का माहौल रहा। हर किसी के चेहरे पर मुस्कान और गर्व साफ दिख रहा था।

अंत में एक बार फिर से उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ की ओर से सभी का आभार व्यक्त किया गया और यह संकल्प लिया गया कि आगे भी ऐसे आयोजन होते रहेंगे।

इस पूरे कार्यक्रम की सफलता ने यह साबित कर दिया कि शिक्षक हमारे समाज की सबसे मजबूत और सम्मानित कड़ी हैं। जो हर समय देश, समाज और बच्चों के भविष्य को संवारने में लगे रहते हैं।

यह दिन सभी के लिए यादगार और प्रेरणा देने वाला रहा। सभी ने मिलकर इसे एक यादगार समारोह बना दिया।





विद्यालयों में ए आर पी का काम और सहयोगात्मक पर्वेक्षण का महत्व

 

ए आर पी को औचक निरीक्षण और निरीक्षण पंजिका में अंकन का अधिकार नहीं: एक विस्तृत विश्लेषण



भारत में शिक्षा व्यवस्था को लगातार सुधारने के लिए समय-समय पर कई नई योजनाएँ और व्यवस्थाएँ बनाई जाती हैं। विद्यालयों में पढ़ाई की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए अलग-अलग जिम्मेदारियाँ तय की जाती हैं। इन्हीं में से एक व्यवस्था है ए आर पी यानी अकादमिक रिसोर्स पर्सन। ए आर पी का काम यह होता है कि वे विद्यालयों में जाकर शिक्षकों को पढ़ाई-लिखाई में मदद करें, बच्चों की पढ़ाई की स्थिति को समझें और अगर कोई कमी हो, तो उसे सुधारने के लिए सुझाव दें।

ए आर पी का मुख्य उद्देश्य शिक्षा में गुणवत्ता सुधार करना है। वे विद्यालय में जाकर यह देखते हैं कि बच्चे क्या पढ़ रहे हैं, कैसे पढ़ रहे हैं और किस तरीके से शिक्षक पढ़ा रहे हैं। अगर कहीं कोई परेशानी आती है, तो ए आर पी शिक्षक को सलाह देता है कि पढ़ाई में सुधार कैसे किया जा सकता है। साथ ही ए आर पी नई शिक्षा नीति और शिक्षण पद्धति के बारे में भी जानकारी देता है ताकि विद्यालय में पढ़ाई और बेहतर हो सके।

कई बार लोगों में यह भ्रम होता है कि ए आर पी को भी विद्यालय का औचक निरीक्षण करने और निरीक्षण पंजिका में लिखने का अधिकार होता है। लेकिन यह सही नहीं है। औचक निरीक्षण का मतलब होता है बिना बताए अचानक विद्यालय पहुँचकर उसकी पूरी जांच करना। यह अधिकार केवल शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को होता है। जैसे कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी या खंड शिक्षा अधिकारी।

ए आर पी केवल सहयोगात्मक पर्वेक्षण कर सकता है। सहयोगात्मक पर्वेक्षण का मतलब होता है विद्यालय में जाकर शिक्षकों और बच्चों की मदद करना, पढ़ाई की स्थिति को समझना और सुझाव देना। ए आर पी का काम सख्ती करना, दोष निकालना या कार्रवाई करना नहीं होता। वे शिक्षक और बच्चों की पढ़ाई को बेहतर बनाने के लिए मार्गदर्शन देते हैं।

जब ए आर पी विद्यालय में जाता है, तो उसे पहले से सूचना देने की आवश्यकता नहीं होती। वह बिना बताए भी विद्यालय पहुँच सकता है। लेकिन उसका उद्देश्य केवल मदद करना और पढ़ाई में सुधार के लिए सहयोग देना होता है। उसे औचक निरीक्षण करने और निरीक्षण पंजिका में कुछ भी लिखने का अधिकार नहीं है।

डॉ. रहबर सुल्तान द्वारा पूछी गई एक जनसूचना में इस विषय पर जानकारी मांगी गई थी। इसके जवाब में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने स्पष्ट किया कि ए आर पी का काम केवल सहयोग करना है। वे औचक निरीक्षण नहीं कर सकते और निरीक्षण पंजिका में कोई टिप्पणी भी दर्ज नहीं कर सकते। वे केवल भ्रमण पंजिका या सहयोगात्मक पंजिका में ही अपना भ्रमण, सुझाव और शिक्षकों के साथ हुई बातचीत का विवरण दर्ज कर सकते हैं।

निरीक्षण पंजिका वह पंजिका होती है, जिसमें निरीक्षण के समय अधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणियाँ, निर्देश और सुझाव दर्ज किए जाते हैं। इसमें यह भी लिखा जाता है कि विद्यालय में क्या-क्या देखा गया, क्या कमियाँ पाई गईं और क्या सुधार करने को कहा गया। यह अधिकार केवल अधिकृत अधिकारी को होता है।

ए आर पी का काम है कि वह विद्यालय में जाकर देखे कि शिक्षक पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ा रहे हैं या नहीं, बच्चे पढ़ाई को समझ रहे हैं या नहीं, पढ़ाई में कोई परेशानी आ रही है या नहीं। अगर कोई कमी दिखाई दे तो शिक्षक को सहयोगात्मक रूप से सुझाव दें कि इसे कैसे सुधारा जा सकता है। वे शिक्षकों को नई पद्धतियों की जानकारी देते हैं और शिक्षण में मदद करते हैं।

विद्यालयों में औचक निरीक्षण का अधिकार केवल जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, खंड शिक्षा अधिकारी या अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को होता है। वे ही विद्यालय की सफाई, बच्चों की उपस्थिति, मिड डे मील, कक्षाओं की स्थिति और दस्तावेजों की जांच कर सकते हैं। वे ही निरीक्षण पंजिका में अपनी टिप्पणियाँ लिख सकते हैं।

ए आर पी भ्रमण पंजिका या सहयोगात्मक पंजिका में अपनी जानकारी दर्ज कर सकते हैं। इसमें वे लिखते हैं कि किस दिन, कितने बजे विद्यालय आए, किस शिक्षक से मिले, किस कक्षा में गए और बच्चों की पढ़ाई की स्थिति क्या पाई। साथ ही वे अपने सुझाव भी लिख सकते हैं।

अगर ए आर पी अपने कार्य को सही तरीके से करें तो इससे विद्यालय को कई फायदे हो सकते हैं। शिक्षकों को पढ़ाई के नए तरीके सीखने को मिलेंगे। बच्चों की पढ़ाई में सुधार होगा। शिक्षकों और बच्चों के बीच बेहतर तालमेल बनेगा। बच्चों को अपने सवाल पूछने और समझने में आसानी होगी। विद्यालय में शिक्षा का वातावरण बेहतर बनेगा।

विद्यालयों में सहयोगात्मक पर्वेक्षण इसलिए जरूरी है ताकि शिक्षकों को पढ़ाई में मदद मिले और बच्चों की पढ़ाई में गुणवत्ता बनी रहे। ए आर पी और शिक्षक मिलकर अगर ईमानदारी से काम करें तो पढ़ाई का स्तर निश्चित रूप से बेहतर होगा।

सहयोगात्मक पर्वेक्षण का मतलब यह नहीं है कि कमियाँ ढूँढकर सख्ती की जाए। इसका मतलब है मिल-जुलकर पढ़ाई को सुधारना और एक अच्छा शैक्षिक वातावरण बनाना। ए आर पी को भी यह समझना चाहिए कि उनका काम केवल सहयोग करना है, न कि औचक निरीक्षण करना।

विद्यालयों में भ्रमण के दौरान ए आर पी को कोई सख्ती नहीं करनी चाहिए। उन्हें सिर्फ बच्चों और शिक्षकों से बात कर के पढ़ाई की स्थिति को समझना चाहिए और जहाँ जरूरत हो, वहाँ सुझाव देना चाहिए। अगर ए आर पी सच्चे मन से यह काम करें, तो बच्चों की पढ़ाई में बहुत सुधार आ सकता है।

विद्यालयों के शिक्षकों को भी चाहिए कि वे ए आर पी का सहयोग करें। उनसे नई-नई शिक्षण विधियाँ सीखें और अपने पढ़ाने के तरीके में सुधार करें। बच्चों को अच्छे से पढ़ाएँ और उनकी समस्याएँ समझें।

जब शिक्षक और ए आर पी मिलकर काम करेंगे तो विद्यालय का माहौल अच्छा बनेगा। बच्चे भी पढ़ाई में रुचि लेने लगेंगे और अच्छे अंक लाएँगे।

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि ए आर पी केवल सहयोगात्मक पर्वेक्षण करें। वे औचक निरीक्षण न करें और निरीक्षण पंजिका में कुछ भी न लिखें। उन्हें केवल भ्रमण पंजिका या सहयोगात्मक पंजिका में ही अपनी रिपोर्ट दर्ज करनी चाहिए।

यह बात जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा भी स्पष्ट कर दी गई है। उन्होंने कहा है कि ए आर पी का काम केवल सहयोग करना है। वे औचक निरीक्षण नहीं कर सकते और निरीक्षण पंजिका में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते।

अगर हम सभी मिलकर इस व्यवस्था का सही तरीके से पालन करें तो निश्चित रूप से विद्यालयों की पढ़ाई का स्तर और बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा। सहयोग, समझदारी और ईमानदारी से किया गया हर काम हमेशा अच्छे परिणाम देता है।

विद्यालयों में शिक्षा का माहौल तभी बेहतर होगा जब शिक्षक, ए आर पी और अधिकारी मिल-जुलकर काम करें। हर किसी को अपने अधिकार और कर्तव्य का ज्ञान होना चाहिए। इससे शिक्षा व्यवस्था मजबूत होगी और देश का भविष्य भी बेहतर बनेगा।

अगर ए आर पी अपना काम ईमानदारी से करें, शिक्षक उनका सहयोग करें और अधिकारी समय-समय पर विद्यालय का उचित निरीक्षण करें तो पढ़ाई में निश्चित रूप से सुधार होगा। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी और वे देश का नाम रोशन करेंगे।

इसी सोच और भावना के साथ हमें सभी को मिलकर काम करना चाहिए। शिक्षकों को अपने पढ़ाने के तरीके को सुधारना चाहिए। ए आर पी को सहयोग करना चाहिए और अधिकारी को अपने अधिकार के अनुसार निरीक्षण करना चाहिए।

अगर हम सभी मिलकर ईमानदारी और नियम के अनुसार काम करें तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। शिक्षा का स्तर ऊँचा होगा और समाज में अच्छा माहौल बनेगा। यही देश की तरक्की का असली रास्ता है।






Saturday, April 19, 2025

स्कूल चलो मिशन 2025-26: हर बच्चा स्कूल जाएगा, सपनों को सच बनाएगा।




स्कूल चलो मिशन 2025 – एक शिक्षित उत्तर प्रदेश की दिशा में कदम



स्कूल चलो मिशन 2025 उत्तर प्रदेश की एक महत्वपूर्ण योजना है, जिसका उद्देश्य यह है कि हर बच्चा स्कूल जाए और पढ़ाई से वंचित न रहे। यह योजना खासकर गरीब, पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है ताकि वे भी शिक्षा का अधिकार पा सकें। यह मिशन उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा चलाया जा रहा है और इसका मकसद सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा से जोड़ना है।

उत्तर प्रदेश की सरकार यह मानती है कि जब तक हर बच्चा स्कूल नहीं जाएगा, तब तक समाज और देश का विकास अधूरा रहेगा। इसीलिए सरकार ने यह लक्ष्य रखा है कि 2025 तक राज्य का कोई भी बच्चा स्कूल से बाहर न रहे। इसके लिए गांव-गांव और मोहल्लों में जाकर अभिभावकों को जागरूक किया जा रहा है कि वे अपने बच्चों को स्कूल जरूर भेजें। कई जगहों पर शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्राम प्रधानों की मदद से बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया जा रहा है|



स्कूल चलो मिशन 2025 में कई योजनाओं को जोड़ा गया है जिससे बच्चों को स्कूल आने में किसी तरह की परेशानी न हो। बच्चों को मुफ्त किताबें, यूनिफॉर्म, जूते-मोज़े और बैग दिए जा रहे हैं। साथ ही मिड-डे मील योजना के तहत दोपहर का भोजन भी स्कूलों में दिया जा रहा है। इससे गरीब परिवारों के लिए अपने बच्चों को स्कूल भेजना आसान हो गया है क्योंकि अब उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ खाना और जरूरी सामान भी स्कूल से मिल रहा है।

सरकार ने यह भी तय किया है कि जो बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं, उन्हें दोबारा शिक्षा से जोड़ा जाए। इसके लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं। शिक्षक और अधिकारी उन बच्चों के घर जाकर उनसे और उनके माता-पिता से बात करते हैं और उन्हें स्कूल में दाखिला दिलाने का प्रयास करते हैं। खासकर बालिकाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि कई बार लड़कियों को घरेलू कामों में लगा दिया जाता है और उनकी पढ़ाई छूट जाती है। अब सरकार लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए भी विशेष योजनाएं बना रही है।

स्कूल चलो मिशन के तहत सभी स्कूलों में नामांकन अभियान चलाया गया है। इसमें बच्चों को स्कूल में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया जाता है और हर बच्चे की जानकारी दर्ज की जाती है। अगर कोई बच्चा स्कूल से गायब होता है या नहीं आता, तो उसके बारे में जांच की जाती है और उसे वापस स्कूल लाने की कोशिश की जाती है। शिक्षकों को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे अपने क्षेत्र के सभी बच्चों की जानकारी रखें और सुनिश्चित करें कि कोई भी बच्चा पढ़ाई से वंचित न रहे।

इस योजना में तकनीक का भी उपयोग किया जा रहा है। कई स्कूलों में अब डिजिटल हाजिरी की जा रही है जिससे यह पता चलता है कि कितने बच्चे नियमित रूप से स्कूल आ रहे हैं। साथ ही शिक्षा विभाग एक ऐप के माध्यम से हर स्कूल की जानकारी इकट्ठा कर रहा है ताकि योजना को सफल बनाया जा सके। यह ऐप यह भी दिखाता है कि कहां पर बच्चों की संख्या कम है और कहां पर और काम करने की जरूरत है।

स्कूल चलो मिशन 2025 में पंचायतों, नगर निकायों, शिक्षकों, समाजसेवियों और स्थानीय लोगों की भी मदद ली जा रही है। स्कूल चलो रैलियां, प्रभात फेरियां और जनजागरूकता कार्यक्रम किए जा रहे हैं ताकि लोगों को यह समझाया जा सके कि शिक्षा कितनी जरूरी है। छोटे-छोटे बच्चे हाथों में तख्तियां लेकर जब गांवों में निकलते हैं और नारे लगाते हैं "पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया", तो लोगों का ध्यान इस ओर जाता है और वे भी अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने लगते हैं।

सरकार यह भी चाहती है कि सरकारी स्कूलों की छवि सुधरे ताकि माता-पिता अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों के बजाय सरकारी स्कूलों में भेजने को तैयार हों। इसके लिए स्कूलों की इमारतें सुधारी जा रही हैं, शौचालय बनवाए जा रहे हैं, पीने का साफ पानी उपलब्ध कराया जा रहा है और कंप्यूटर शिक्षा की सुविधा भी दी जा रही है। जब स्कूल अच्छा और साफ-सुथरा होगा, तो बच्चे भी वहां जाना पसंद करेंगे और पढ़ाई में रुचि लेंगे।

स्कूल चलो मिशन में शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर भी ध्यान दिया जा रहा है। खेल-कूद, चित्रकला, गायन, नृत्य और अन्य गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ अपनी रुचियों को भी पहचान सकें। शिक्षकों को भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि वे बच्चों को प्यार और स्नेह से पढ़ाएं ताकि बच्चा स्कूल आने से डरे नहीं बल्कि खुशी से आए।

यह मिशन केवल सरकार का नहीं, बल्कि हम सबका है। जब तक हर माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजेंगे, तब तक यह मिशन सफल नहीं हो सकता। समाज के हर वर्ग को आगे आना होगा और शिक्षा के इस अभियान में योगदान देना होगा। स्कूल चलो मिशन 2025 हमें यह याद दिलाता है कि शिक्षा केवल किताबें पढ़ना नहीं है, बल्कि यह बच्चों का भविष्य है, और एक पढ़ा-लिखा बच्चा ही कल एक अच्छा नागरिक बन सकता है।

बेसिक शिक्षा विभाग का यह प्रयास सराहनीय है कि वह हर साल इस योजना को और मजबूत बना रहा है। पहले जहां स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक थी, वहीं अब धीरे-धीरे यह संख्या घट रही है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में अब माता-पिता भी शिक्षा के महत्व को समझने लगे हैं। उन्हें यह समझ में आने लगा है कि अगर उनके बच्चे पढ़-लिख जाएंगे तो वे एक अच्छा जीवन जी पाएंगे।

अभी भी कुछ चुनौतियाँ हैं, जैसे कुछ इलाकों में स्कूल दूर होने के कारण बच्चे नहीं जा पाते, कुछ जगहों पर शिक्षक पर्याप्त नहीं हैं, तो कहीं स्कूलों में सुविधा कम है। लेकिन सरकार इन सभी समस्याओं को दूर करने की कोशिश कर रही है। नए स्कूल खोले जा रहे हैं, शिक्षक बहाल किए जा रहे हैं और स्कूलों को सुविधाजनक बनाया जा रहा है। इसके साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि स्कूलों में बच्चों को सही तरीके से पढ़ाया जाए और उनकी पढ़ाई में कोई कमी न हो।

स्कूल चलो मिशन 2025 का लक्ष्य बड़ा है लेकिन अगर सभी लोग मिलकर प्रयास करें तो यह जरूर सफल हो सकता है। यह मिशन न केवल बच्चों को शिक्षा देगा बल्कि हमारे देश को एक उज्जवल भविष्य भी देगा। जब हर बच्चा पढ़ेगा, तो वह अपने परिवार, गांव और देश के विकास में योगदान देगा। एक पढ़ा-लिखा समाज ही सशक्त समाज बन सकता है।

इसलिए हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने आस-पास के सभी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करेंगे, उनकी मदद करेंगे और इस मिशन को सफल बनाने में अपना योगदान देंगे। स्कूल चलो मिशन 2025 केवल एक योजना नहीं है, यह एक आंदोलन है – शिक्षा का आंदोलन, भविष्य निर्माण का आंदोलन। आइए हम सब मिलकर इस मिशन को सफल बनाएं और उत्तर प्रदेश को शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श राज्य बनाएं।


Wednesday, April 16, 2025

अमेठी जिले ने निपुण अस्सेस्मेंट 2024-25 में प्रदेश में पहला स्थान हासिल किया

 



👉हीट-वेव से बचाव हेतु बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा निर्गत एडवाइजरी व आवश्यक कार्यवाही कराये जाने के संबंध में

           https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_279.html


अमेठी जिले ने शिक्षा के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है। निपुण अस्सेस्मेंट टेस्ट 2024-25 में अमेठी ने प्रदेश भर में पहला स्थान हासिल किया है। यह उपलब्धि जिले के शिक्षकों, अभिभावकों और बच्चों की मेहनत का परिणाम है। पिछले सत्र 2022-23 में अमेठी जिले ने 59वां स्थान प्राप्त किया था, लेकिन इस बार जिले ने ऐतिहासिक छलांग लगाते हुए पहला स्थान हासिल किया।

इस सत्र में अमेठी जिले के कुल 1600 स्कूलों के 133410 बच्चों ने निपुण अस्सेस्मेंट टेस्ट में भाग लिया। इस बार जिले का प्रदर्शन पिछले वर्ष से काफी बेहतर रहा। पिछले सत्र में अमेठी का प्रतिशत 68.01 प्रतिशत था, जो अब बढ़कर 96.4 प्रतिशत हो गया है। यह एक बड़ा सुधार है और इसका श्रेय शिक्षकों की निरंतर मेहनत और बच्चों की लगन को जाता है।

ग्रेड ए में आने वाले बच्चों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। पिछले सत्र में 23.01 प्रतिशत बच्चे ग्रेड ए में थे, जबकि इस बार यह आंकड़ा बढ़कर 53.04 प्रतिशत तक पहुँच गया है। यह दिखाता है कि बच्चों ने बेहतर प्रदर्शन किया है और उनकी मेहनत का फल उन्हें मिल रहा है।

इस बार प्रदेश स्तर पर हमीरपुर ने दूसरा स्थान प्राप्त किया और हापुड़ ने तीसरा स्थान हासिल किया। पिछली बार अमेठी ने 42वां स्थान प्राप्त किया था, जबकि इस बार उसने एक ऐतिहासिक छलांग लगाई और पहले स्थान पर पहुँच गया। यह बदलाव जिले के शैक्षिक माहौल में सुधार का संकेत है।

हालांकि, कुछ जिले इस बार पिछड़ गए हैं। अयोध्या जिला इस बार 64वें स्थान पर लुड़क गया है, जबकि सुल्तानपुर भी पिछली बार की 17वीं रैंक से फिसलकर 62वें स्थान पर पहुँच गया है। यह साबित करता है कि शैक्षिक गुणवत्ता में निरंतर सुधार की आवश्यकता है और यह किसी एक साल की मेहनत से नहीं हो सकता, बल्कि इसे निरंतर बनाए रखना होता है।

अमेठी जिले की यह सफलता केवल बच्चों की मेहनत का परिणाम नहीं है, बल्कि शिक्षकों के निरंतर प्रशिक्षण, स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और अभिभावकों के सहयोग का भी परिणाम है। शिक्षकों को लगातार प्रशिक्षण दिया गया, जिससे वे बच्चों के लिए बेहतर शिक्षण पद्धतियाँ अपना सके। इसके अलावा, विद्यालयों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण की प्रक्रिया को लागू किया गया, जिसका परिणाम आज हम देख रहे हैं।

आने वाले समय में इस सफलता को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे। अमेठी जिले के शिक्षा विभाग ने यह संकल्प लिया है कि बच्चों की शिक्षा में सुधार और गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए निरंतर मेहनत की जाएगी। शिक्षकों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ उनके काम की निगरानी भी की जाएगी, ताकि बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी न रहे।

अमेठी की इस सफलता से अन्य जिलों को भी प्रेरणा मिलनी चाहिए। यह दिखाता है कि अगर समर्पण, मेहनत और सही मार्गदर्शन हो, तो किसी भी जिले को उच्च स्थान प्राप्त किया जा सकता है। यह सफलता जिले के सभी शिक्षा अधिकारियों, शिक्षकों और अभिभावकों के सामूहिक प्रयास का परिणाम है।

अब अमेठी जिले को इस सफलता को बनाए रखते हुए और भी बेहतर करने की चुनौती मिलेगी। बच्चों की शिक्षा में सुधार, शिक्षकों की गुणवत्ता और स्कूलों में सुविधाओं का सुधार अब अमेठी के लिए प्राथमिकता बनेगा। जिले को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों का प्रदर्शन इस स्तर पर बनाए रखा जाए और आगे और भी अच्छे परिणाम प्राप्त किए जाएं।

इस सफलता के बाद अब अमेठी जिले में शिक्षा का माहौल और भी बेहतर होगा। बच्चों को अब और भी अच्छे शिक्षक मिलेंगे, उनके लिए बेहतर सुविधाएँ होंगी और वे शिक्षा के क्षेत्र में और भी ऊँचाइयाँ छू सकेंगे। यह एक नई शुरुआत है, जो जिले की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है।

अमेठी की सफलता से यह भी सीखने को मिलता है कि शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए केवल बच्चों की मेहनत ही नहीं, बल्कि शिक्षकों की मेहनत और निरंतर प्रशिक्षण भी जरूरी है। जब शिक्षक बच्चों के लिए बेहतर तरीकों से पढ़ाते हैं और बच्चों में पढ़ाई के प्रति उत्साह होता है, तो अच्छा परिणाम आता है।

इस सफलता को देखकर अन्य जिलों को भी यह प्रेरणा मिलनी चाहिए कि वे भी अपनी शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाकर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। अगर हर जिला अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए काम करे, तो देशभर में शिक्षा का स्तर ऊँचा हो सकता है और बच्चों का भविष्य उज्जवल हो सकता है।

अमेठी जिले की यह सफलता एक प्रेरणा है, जो यह साबित करती है कि अगर सही दिशा में काम किया जाए और सभी लोग मिलकर प्रयास करें, तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।


👉वित्तीय वर्ष 2025-26 में आयकर अग्रिम कटौती वेतन से प्रति माह किये जाने के सम्बन्ध में

             https://www.updatemarts.com/2025/04/2025-26_16.html

ए.आर.पी. को औचक निरीक्षण एवं निरीक्षण पंजिका में अंकन का अधिकार नहीं

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_345.html




Tuesday, April 15, 2025

कानपुर-उन्नाव सड़क हादसा: 3 शिक्षिकाओं और चालक की मौत, शिक्षक गंभीर घायल

 




कानपुर और उन्नाव के बीच मंगलवार की सुबह एक बेहद दर्दनाक सड़क हादसा हो गया। इस हादसे में तीन महिला शिक्षिकाओं और एक कार चालक की मौके पर ही मौत हो गई। इसके अलावा एक शिक्षक गंभीर रूप से घायल हो गए। यह भयानक हादसा नारामऊ हाईवे कट के पास हुआ। हादसे की खबर जैसे ही आसपास के लोगों और शिक्षा विभाग तक पहुँची, पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई।

सुबह लगभग 7:30 बजे कल्याणपुर निवासी विशाल द्विवेदी नामक युवक अपनी कार से तीन शिक्षिकाओं को स्कूल छोड़ने उन्नाव की ओर ले जा रहा था। नारामऊ में दलहन रोड के पास हाईवे पर एक सीएनजी पंप है। जैसे ही विशाल अपनी कार को सीएनजी भरवाने के लिए मोड़ने लगे, तभी उनकी कार एक बाइक से टकरा गई। बाइक सवार सरकारी शिक्षक अशोक कुमार, जो पनकी के रहने वाले हैं, इस टक्कर में गंभीर रूप से घायल हो गए।

इस टक्कर के तुरंत बाद सामने से आ रही एक प्राइवेट ट्रैवल्स की बस ने कार को जोरदार टक्कर मार दी। बस की टक्कर इतनी तेज थी कि कार पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। कार में सवार सभी लोग कार के अंदर बुरी तरह फंस गए। राहगीरों और बिठूर पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद कार में फंसे लोगों को बाहर निकाला।

कार में कुल चार लोग सवार थे। इनमें आकांक्षा मिश्रा, अंजुला मिश्रा, ऋचा अग्निहोत्री और कार चालक विशाल द्विवेदी शामिल थे। हादसे के बाद आकांक्षा मिश्रा और अंजुला मिश्रा को हैलेट अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। विशाल द्विवेदी ने भी इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। शुरू में यह सूचना भी आई कि ऋचा अग्निहोत्री की भी मृत्यु हो गई है, लेकिन बाद में यह खबर गलत साबित हुई।



ऋचा अग्निहोत्री फिलहाल रामा अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हैं। वो होश में हैं, बात कर रही हैं और अपने परिजनों को पहचान भी रही हैं। उनके पेट में गंभीर अंदरूनी चोटें हैं। डॉक्टरों ने बताया है कि अगर ब्लीडिंग नहीं हो रही है, तो वो पूरी तरह ठीक हो सकती हैं। अगर सीटी स्कैन में किसी गंभीर स्थिति का पता चलता है, तो ऑपरेशन कर उनकी तिल्ली निकालनी पड़ सकती है। उनके हाथ, पैर और गले में भी काफी चोटें आई हैं और उन पर प्लास्टर चढ़ाया गया है। उनके परिजन और शिक्षा विभाग के लोग लगातार उनके स्वास्थ्य की जानकारी ले रहे हैं। सभी लोग ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि उनकी सीटी स्कैन रिपोर्ट ठीक आए और वो जल्द से जल्द स्वस्थ होकर घर लौटें।

बाइक सवार अशोक कुमार का भी इलाज रामा अस्पताल में चल रहा है। उनकी हालत भी गंभीर बनी हुई है। इस हादसे की खबर मिलते ही परिजनों में कोहराम मच गया। परिजन अस्पताल पहुँचते ही फूट-फूट कर रोने लगे। वहीं शिक्षा विभाग में भी शोक की लहर फैल गई।

एनएचएआई की टीम ने घटनास्थल पर पहुँच कर क्षतिग्रस्त वाहनों को हटवाया और ट्रैफिक को सामान्य कराया। पुलिस ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और मामले की जाँच शुरू कर दी। इस दुर्घटना में जिन शिक्षिकाओं की मृत्यु हुई, वे कंपोजिट स्कूल जमाल नगर सफीपुर में कार्यरत थीं। इसके अलावा अर्चना नाम की एक और शिक्षिका, जो विद्यालय न्यामतपुर में कार्यरत हैं, की हालत भी गंभीर बताई गई थी। आकांक्षा मिश्रा का भी मौके पर ही निधन हो गया था।

घटना के समय वहां मौजूद राहगीरों ने बताया कि कार पहले बाइक से टकराई और फिर बस से जा भिड़ी। टक्कर इतनी जोरदार थी कि कार के परखच्चे उड़ गए। हादसे के बाद राहगीरों और पुलिस ने कड़ी मशक्कत कर कार में फंसे लोगों को बाहर निकाला।

हादसे के बाद एक और दुखद बात यह रही कि एम्बुलेंस काफी देर से पहुँची। अगर एम्बुलेंस समय पर पहुँच जाती तो शायद कुछ लोगों की जान बचाई जा सकती थी। इस हादसे ने पूरे कानपुर और उन्नाव को गहरे दुख में डुबो दिया। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने शोक व्यक्त किया और कहा कि सड़क सुरक्षा नियमों का पालन करना बहुत ज़रूरी है।

हादसे का सबसे बड़ा कारण हाईवे कट पर अचानक मोड़ लेना और सावधानी में कमी को माना जा रहा है। ऐसे हाईवे कट पर हमेशा दुर्घटनाओं का खतरा ज्यादा रहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हाईवे पर कट बनाते समय विशेष ध्यान देना चाहिए। सीएनजी पंप के सामने कट नहीं होना चाहिए और वहाँ ट्रैफिक सिग्नल व रिफ्लेक्टर लगाए जाने चाहिए। साथ ही बस और भारी वाहन चालकों को भी हाईवे पर धीमी गति से गाड़ी चलानी चाहिए।

इस हादसे से सभी को यह सीख लेनी चाहिए कि कभी भी हाईवे पर अचानक मोड़ नहीं लेना चाहिए। बाइक और कार को आगे-पीछे चलाते समय उचित दूरी बनाए रखनी चाहिए। एम्बुलेंस और पुलिस को घटनास्थल पर समय से पहुँचना चाहिए। सरकारी स्तर पर भी सड़क सुरक्षा के उपाय मजबूत करने चाहिए ताकि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।

ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करें और घायल शिक्षक व शिक्षिका को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ दे। उनके परिजनों को इस असहनीय दुःख को सहने की शक्ति दें। यह हादसा पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है कि हम सभी को सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करना चाहिए और दूसरों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए।






Tuesday, April 8, 2025

एक प्याला पानी, एक नई जिंदगी — गर्मी में पक्षियों की प्यास बुझाएँ


गर्मी का मौसम हर साल आता है। सूरज बहुत तेज़ चमकता है, ज़मीन तपने लगती है और लू चलने लगती है। ऐसे में हम सबको बहुत प्यास लगती है, बार-बार ठंडा पानी पीने का मन करता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे आसपास जो पक्षी रहते हैं, वो इस गर्मी में क्या करते होंगे?

जैसे हम इंसान गर्मी में परेशान हो जाते हैं, वैसे ही गौरैया, बुलबुल, मैना, कबूतर जैसे पक्षी भी बहुत परेशान होते हैं। उन्हें भी प्यास लगती है, लेकिन वो तो दुकानों से पानी की बोतल नहीं खरीद सकते। वो तो सिर्फ वही पानी पी सकते हैं जो उन्हें आस-पास कहीं मिल जाए — जैसे कोई तालाब, पेड़ के नीचे का गड्ढा या कोई साफ बर्तन।

आजकल शहरों में तालाब और झीलें बहुत कम हो गई हैं। पेड़ों की संख्या भी घट गई है। ऊपर से गर्मी में जो थोड़े बहुत जलस्रोत होते हैं, वो भी सूख जाते हैं। इसलिए पक्षियों को बहुत मुश्किल होती है।

क्या आपने गौर किया है कि अब आपके घर की बालकनी या आँगन में पहले जितने पक्षी आते थे, उतने अब नहीं आते? गौरैया, जो कभी हर घर की पहचान हुआ करती थी, अब बहुत कम दिखती है।

इसके कई कारण हैं। हमने अपने घरों में उनके लिए पानी और दाना रखना बंद कर दिया। पेड़ काट दिए, जहाँ वो बैठा करती थीं या घोंसला बनाती थीं। मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगों से भी उन्हें नुकसान पहुँचता है। और सबसे बड़ी बात — हमने उनके लिए समय और ध्यान देना छोड़ दिया।

गर्मी के दिनों में तापमान 40 डिग्री से भी ऊपर चला जाता है। ऐसे में पानी की कमी बहुत बढ़ जाती है। पक्षी इधर-उधर उड़ते हैं, लेकिन जब कहीं भी पानी नहीं मिलता तो कई बार वो प्यास से मर भी जाते हैं।

अब सोचिए, अगर हम सब अपने घर की बालकनी, खिड़की, आँगन या छत पर एक छोटा सा बर्तन रख दें, जिसमें साफ पानी हो — तो कितने पक्षियों की जान बच सकती है। ये एक बहुत छोटा काम है, लेकिन इसका असर बहुत बड़ा होता है।

पानी के साथ-साथ अगर हम कुछ दाना भी रख दें — जैसे चावल, बाजरा, ज्वार या टूटे हुए गेहूं — तो पक्षियों को पीने के बाद खाने को भी मिल जाएगा। गर्मी में दाना ढूंढना भी मुश्किल हो जाता है। ज़मीन सूख जाती है, खेतों में फसल नहीं होती। ऐसे में हमारी मदद उनके लिए एक पूरा भोजन बन जाती है।

इसके लिए बर्तन का चुनाव भी ध्यान से करना चाहिए। मिट्टी, स्टील या सिरेमिक के बर्तन सबसे अच्छे होते हैं क्योंकि ये पानी को ठंडा रखते हैं। प्लास्टिक के बर्तन बहुत गरम हो जाते हैं, इसलिए उन्हें न रखें।

हर दो-तीन दिन में बर्तन को अच्छे से धोना चाहिए और उसमें ताज़ा पानी भरना चाहिए, ताकि पानी दूषित न हो और पक्षियों को कोई बीमारी न हो।

बर्तन को ऐसी जगह रखें जहाँ धूप सीधी न पड़े और पक्षी आराम से बैठ सकें — जैसे छत का कोना, बालकनी, खिड़की की मुंडेर या आँगन का कोई कोना।

थोड़ा सा दाना रोज़ रखना चाहिए। इसे ज़मीन पर या किसी तश्तरी में फैलाकर रख सकते हैं ताकि पक्षी आराम से चुग सकें। अगर घर में पेड़ हैं, तो वहाँ पानी रख सकते हैं ताकि पक्षी शाखाओं पर बैठकर आराम से पानी पी सकें।

कुछ लोग सोचते हैं कि यह सेवा या दान है, लेकिन यह तो संवेदना है, यानी दिल से जुड़ा हुआ एक अच्छा काम। हम सब एक ही धरती पर रहते हैं — इंसान, जानवर, पक्षी और पेड़-पौधे। अगर हम अपने आस-पास के जीवों का ध्यान नहीं रखेंगे, तो यह धरती सूनी और बेरंग हो जाएगी।

बच्चे इस काम में बहुत आगे आ सकते हैं। स्कूलों में पोस्टर बनाकर या ड्रॉइंग बनाकर इस विषय को दिखाया जा सकता है। स्कूल में भी पक्षियों के लिए पानी रखने की जगह बनाई जा सकती है। बच्चे आपस में मिलकर एक बर्ड-फीडिंग टीम भी बना सकते हैं। इससे उनमें प्रकृति से जुड़ाव और जिम्मेदारी की भावना आएगी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ती गर्मी और कम होते जलस्रोतों की वजह से पक्षियों की संख्या घट रही है। उनकी प्रजनन दर यानी बच्चे पैदा करने की क्षमता भी कम हो गई है। गौरैया जैसे पक्षी अब शहरों में घोंसले नहीं बना पा रहे क्योंकि उन्हें न तो जगह मिलती है, न भोजन और न पानी।

अगर एक बच्चा भी एक प्याला पानी रखे, और फिर उसके दोस्त, परिवार वाले और पड़ोसी भी ऐसा करें — तो यह एक बड़ा बदलाव ला सकता है। सोचिए अगर हर गली, हर स्कूल, हर कॉलोनी में परिंदों के लिए पानी हो — तो कितनी ज़िंदगियाँ बच सकती हैं। यह एक अभियान बन सकता है — "हर घर एक प्याला पानी"।

गर्मी हर साल आती है, और हर साल कुछ पक्षी प्यास से तड़प जाते हैं। लेकिन इस बार, हम कुछ अलग और अच्छा कर सकते हैं। हम एक प्याला पानी रखकर किसी परिंदे की जान बचा सकते हैं।

तो आइए, आज से ही यह काम शुरू करें। अपने घर में एक बर्तन रखें। रोज़ उसमें ताज़ा पानी भरें। थोड़ा दाना भी डालें। और सबसे ज़रूरी — दूसरों को भी प्रेरित करें।

पक्षियों की चहचहाहट फिर से लौटेगी — बस ज़रूरत है हमारी एक कोशिश की|

                                                               पक्षियों की प्यास

      गर्मी आई, सूरज तेज़,

      पक्षी बेचारे हो गए फेल।

      ना तालाब, ना पानी की धार,

      प्यासे उड़ते बार-बार।

                                                           गौरैया जो चहकती थी,

                                                           अब वो भी कम दिखती है।

                                                            मैना, कबूतर, बुलबुल प्यारे,

                                                            ढूंढें पानी सारे दिन हमारे।

      प्यास से जब गला सूखता है,

     पंख भी उड़ने से रुकता है।

     पर अगर हम थोड़ा ध्यान दें,

     तो इनका जीवन आसान बनें।

                                                   रखें एक प्याला साफ़ जल,

                                                  बालकनी या छत पर हर पल।

                                                   साथ में थोड़ा दाना भी हो,

                                                   परिंदों को खाना भी तो दो!


      मिट्टी या स्टील का हो बर्तन,

      हर दिन बदलें उसमें जल।

      पेड़ के नीचे, कोने में रखें,

      जहाँ परिंदे आराम से बैठें।


                                                  छोटी सी यह मदद हमारी,

                                                  बन जाए इनके लिए प्यारी।

                                                  हम सबका है ये संसार,

                                                  पक्षी भी हैं इसका अंग समान।

      तो आओ मिलकर काम करें,

      हर घर में एक प्याला धरें।

      गर्मी में न कोई प्यासा हो,

      हर पंख खुशहाल और हँसा हो।



Sunday, April 6, 2025

क्या स्कूल सिर्फ अमीरों के लिए हैं? रिया की कहानी और सरकारी स्कूल की सच्चाई जानिए आसान भाषा में!

 



रिया की मौत से उठे सवाल: क्या शिक्षा अब व्यापार बन गई है? पढ़ें एक दर्दनाक सच्चाई जो हर दिल को झकझोर देगी।


• रिया की मौत एक सवाल है हम सबके लिए—क्या हमारे देश में गरीब बच्चों को शिक्षा का हक नहीं? पढ़ें दिल छू लेने वाली कहानी।

• क्या शिक्षा अब अमीरों की जागीर बन गई है? रिया की दर्दनाक कहानी आपको सोचने पर मजबूर कर देगी।

• एक मासूम की जान गई सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके पास फीस नहीं थी—क्या यही है हमारा शिक्षा तंत्र?

• रिया चली गई, पर छोड़ गई सवाल—क्या गरीब होना अब गुनाह है? पढ़ें एक सच्ची और झकझोर देने वाली कहानी।



रिया अब कभी स्कूल नहीं जाएगी...

ये कहानी एक बच्ची की है। बिल्कुल हमारी और आपकी तरह। उसका नाम था रिया प्रजापति। वो उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की रहने वाली थी और 9वीं कक्षा में पढ़ती थी।

रिया पढ़ने में अच्छी थी, सपने देखती थी कि बड़ी होकर कुछ बन पाएगी। लेकिन उसके स्कूल ने उससे एक गलती कर दी… नहीं, गलती नहीं… बहुत बड़ा जुल्म।

उसकी स्कूल की फीस थोड़ी बाकी रह गई थी। इसलिए स्कूल वालों ने उसे परीक्षा देने से रोक दिया और सबके सामने अपमानित किया।

रिया बहुत दुखी हुई। इतना दुखी कि उसने अपनी जान ही दे दी…

अब सोचिए, क्या सिर्फ पैसे न होने की वजह से किसी बच्चे को पढ़ने से रोका जाना चाहिए?

हम सब स्कूल जाते हैं, पढ़ते हैं, सपने देखते हैं। लेकिन अगर किसी के पास पैसे न हों तो क्या वो स्कूल नहीं जा सकता?

हम कहते हैं कि "शिक्षा सबका हक है," लेकिन क्या वाकई ऐसा है?


क्या यही है हमारी नई शिक्षा नीति?

आज हम चाँद तक पहुंच गए हैं, मोबाइल और कंप्यूटर सब कुछ डिजिटल हो गया है। लेकिन गरीब बच्चों के लिए स्कूल जाना अब भी बहुत मुश्किल है।

कई प्राइवेट स्कूल शिक्षा को "बिज़नेस" बना चुके हैं।

• फीस बहुत ज्यादा होती है

• बिल्डिंग चार्ज, यूनिफॉर्म, किताबों के नाम पर पैसे लिए जाते हैं

• और अगर कोई बच्चा पैसे न दे पाए, तो उसे सबके सामने शर्मिंदा किया जाता है।

क्या ये सही है?

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रिया चली गई… लेकिन सवाल छोड़ गई

रिया अब हमारे बीच नहीं है। लेकिन उसकी कहानी हम सबको एक बात सिखाती है—हर बच्चे को पढ़ने का हक है, चाहे वो अमीर हो या गरीब।

कई बच्चे अभी भी चुप हैं, डर के मारे कुछ कह नहीं पाते। लेकिन हमें आवाज़ उठानी चाहिए।

क्योंकि अगली रिया कोई और नहीं… हमारे घर की भी हो सकती है।

हम क्या कर सकते हैं?

• अपने स्कूल में अगर कोई बच्चा परेशान हो रहा है, तो उसकी मदद करें।

• फीस या ड्रेस की वजह से अगर कोई बच्चा रो रहा हो, तो टीचर्स या पैरेंट्स से बात करें।

• और सबसे जरूरी—कभी किसी का मज़ाक न उड़ाएं, बल्कि साथ दें

हम मिलकर रिया जैसी कई ज़िंदगियों को बचा सकते हैं।

रिया की दर्दनाक कहानी बताती है कि हर बच्चे को शिक्षा का हक चाहिए, न कि अपमान। आइए, बदलाव की शुरुआत करें।





क्या वाकई प्राइवेट स्कूल ही हैं बेहतर? जानिए सरकारी स्कूल की असली ताकत और बचत का गणित !

आज के समय में हर माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि अच्छी शिक्षा सिर्फ प्राइवेट स्कूलों में ही मिले। आइए एक नज़र डालें कि प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश लेने से पहले आपको किन खर्चों पर ध्यान देना चाहिए:

________________________________________

प्राइवेट स्कूल की औसत वार्षिक लागत:

खर्च का प्रकार अनुमानित राशि

स्कूल फीस (प्रति वर्ष) ₹12,000 - ₹36,000

बस किराया ₹12,000

परीक्षा शुल्क ₹1,000

यूनिफॉर्म, टाई, बेल्ट आदि ₹1,000

किताबें ₹2,000

स्टेशनरी ₹3,000

टिफिन (₹20 प्रति दिन) ₹6,000

अन्य खर्चे ₹4,000

कुल वार्षिक खर्च ₹41,000

👉 14 साल में कुल खर्च: ₹5,74,000

👉 अगर 2 बच्चे हैं: ₹11,48,000 और नौकरी की कोई गारंटी नहीं!

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👉 अब जानिए सरकारी विद्यालयों की सुविधाएं:

✅ कोई शुल्क नहीं

✅ दो जोड़ी यूनिफॉर्म फ्री

✅ किताबें फ्री (अब NCERT)

✅ मिड-डे मील, दूध और फल फ्री

✅ जूते-मोजे, बैग, स्वेटर फ्री

✅ स्मार्ट क्लासेस और प्रोजेक्टर से पढ़ाई

✅ योग्य शिक्षक—B.Ed., TET, Super-TET पास

✅ खेलकूद, लाइब्रेरी, मासिक एसएमसी बैठक

✅ अभिभावकों के साथ सीधा संवाद और निगरानी

✅ नई शिक्षा नीति आधारित, बाल केंद्रित पाठ्यक्रम

________________________________________

👉 तुलना: प्राइवेट vs सरकारी स्कूल

सुविधा प्राइवेट स्कूल सरकारी स्कूल

फीस ₹41,000+/वर्ष ₹0

किताबें खुद खरीदनी पड़ती हैं फ्री।

मिड-डे मील नहीं हां

ड्रेस, जूते, बैग अलग से खर्च फ्री

शिक्षक कभी प्रशिक्षित नहीं B.Ed./TET पास

डिजिटल क्लास कभी-कभी अब हर स्कूल में


👉 सोचिए, समझिए, फिर फैसला लीजिए।

“अगर आप चाहें, तो प्राइवेट स्कूल की फीस बचाकर हर साल FD कर सकते हैं—14 साल में यह रकम ₹20 लाख से ज़्यादा हो जाएगी!”

👉 अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजें। न सिर्फ शिक्षा मुफ्त है, बल्कि गुणवत्ता और सुविधा दोनों भी शानदार हैं।


👉 अगर आप सहमत हैं, तो इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाएँ।

आप और आपके माता-पिता भी तो सरकारी स्कूल से पढ़कर ही निकले थे... और आज सफल हैं।

प्राइवेट स्कूलों की भारी फीस vs सरकारी स्कूलों की फ्री सुविधाएं—अब सोच-समझकर लें बच्चों की पढ़ाई का फैसला।


यह संदेश हर अभिभावक के लिए है—समझदारी से शिक्षा चुनिए।


शिक्षा की सच्चाई: प्राइवेट स्कूल बनाम सरकारी स्कूल—खर्च, सुविधाएं और अभिभावकों की पसंद……

निजी स्कूलों की लागत

मैं लखनऊ में निजी स्कूलों की अनुमानित वार्षिक लागत की जानकारी जुटा रहा हूँ। इसमें स्कूल फीस, बस किराया, परीक्षा शुल्क, यूनिफॉर्म, किताबें और स्टेशनरी जैसे विभिन्न खर्चों को शामिल किया जाएगा। मेरा लक्ष्य यह समझना है कि अभिभावकों के लिए निजी शिक्षा का वित्तीय बोझ कितना हो सकता है।

सरकारी स्कूलों में मुफ्त सुविधाएँ

उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में मुफ्त मिलने वाली सुविधाओं की पुष्टि करने की प्रक्रिया में हूँ। इनमें दो जोड़ी यूनिफॉर्म, किताबें (एनसीईआरटी), मध्याह्न भोजन, दूध, फल, जूते-मोजे, बैग और स्वेटर शामिल हैं। मैं यह भी जानने की कोशिश कर रहा हूँ कि ये सुविधाएँ कितनी अच्छी गुणवत्ता की हैं और क्या ये सभी सरकारी स्कूलों में उपलब्ध हैं।

स्मार्ट कक्षाएँ और शिक्षक योग्यता

मैं उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में स्मार्ट कक्षाओं और प्रोजेक्टरों की उपलब्धता और उपयोग के बारे में जानकारी एकत्र कर रहा हूँ। साथ ही, मैं सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की योग्यता (बी.एड., टीईटी, सुपर-टीईटी) और उनके प्रशिक्षण के बारे में भी पता लगा रहा हूँ ताकि निजी स्कूलों के शिक्षकों से उनकी तुलना की जा सके।

अन्य सुविधाएँ और नई शिक्षा नीति

सरकारी स्कूलों में खेलकूद की सुविधाओं, पुस्तकालयों और स्कूल प्रबंधन समितियों (एसएमसी) की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास कर रहा हूँ। इसके अतिरिक्त, मैं यह भी देखना चाहता हूँ कि उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत बाल-केंद्रित पाठ्यक्रम को किस हद तक लागू किया गया है।

निजी स्कूलों को प्राथमिकता

मेरा अगला कदम यह पता लगाना है कि लखनऊ में अभिभावक सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा और सुविधाओं के बावजूद अपने बच्चों को निजी स्कूलों में क्यों भेजना पसंद करते हैं। इसके पीछे संभावित कारण, जैसे शिक्षा की कथित गुणवत्ता, बुनियादी ढाँचा और अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा, की जाँच करना चाहता हूँ।







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