Up basic School News

Basic education builds the foundation of a strong nation.

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a group of school children participating in a cultural event with joy and enthusiasm.

NIPUN Bharat Mission

NIPUN Bharat helps young children read and do basic math with understanding and confidence.

Nurturing Nature, Growing Futures

Green mission by students to make earth clean and fresh.

Mission Shikshan Samvad – For Education and Teacher Respect

Mission to uplift education, honor teachers, and promote human welfare through dialogue.

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Tuesday, May 6, 2025

भारत-पाक तनाव के बीच मॉक ड्रिल: यूपी-बिहार समेत 244 जिलों की लिस्ट देखें

 


244 जिलों में मॉक ड्रिल की योजना, जानें आपके जिले का नाम है या नहीं












 

👉उत्तर प्रदेश में कैबिनेट ने ट्रांसफर पॉलिसी को दी मंज़ूरी !! प्रेस नोट जारी https://basicshikshakhabar.com/2025/05/h-2266/


👉UP cabinet meeting : योगी कैबिनेट की बैठक में इन 11 महत्वपूर्ण फैसलों पर मुहर, जानें क्या-क्या, देखें प्रेस कॉन्फ्रेंस https://basicshikshakhabar.com/2025/05/h-2267/


 👉यूपी में 15 मई से सरकारी कर्मचारियों के तबादले होंगे: ट्रांसफर नीति को मंजूरी, 17 शहरों में पार्किंग बनेगी; कैबिनेट में 11 प्रस्ताव पास https://basicshikshakhabar.com/2025/05/b-1777/


👉विद्यालयों में नवीन नामांकन के सम्बन्ध में देखे  जिले के BSA का आदेश👆🏻 https://basicshikshakhabar.com/2025/05/h-2268/













Monday, May 5, 2025

AI टीचर ‘सुमन मैडम’ – झांसी के शिक्षक का अनोखा नवाचार

 


झांसी जिले के एक छोटे से गांव में कार्यरत शिक्षक मोहनलाल सुमन ने तकनीक का ऐसा अद्भुत प्रयोग किया है जो पूरे देश के लिए मिसाल बन सकता है। उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके ‘सुमन मैडम’ नाम की एक आभासी शिक्षिका तैयार की है। यह कोई साधारण तकनीकी उपकरण नहीं है, बल्कि एक संवेदनशील और समझदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टीचर है जो बच्चों की सोच, भाषा, व्यवहार और सवालों को समझती है। यह प्रयोग झांसी जनपद के गुरसरांय ब्लॉक के कंपोजिट विद्यालय राजापुर में कार्यरत बेसिक शिक्षक मोहनलाल सुमन ने किया है। उन्होंने गांव के बच्चों की जरूरत को समझते हुए यह महसूस किया कि उन्हें एक ऐसी साथी शिक्षिका की जरूरत है जो स्कूल के समय के अलावा भी हमेशा उनके साथ रह सके। यही सोचकर उन्होंने AI तकनीक का उपयोग करते हुए मोबाइल फोन के माध्यम से एक ऐसी डिजिटल शिक्षिका तैयार की जो हर विषय को बच्चों की रुचि और भाषा के अनुसार सिखा सके।

‘सुमन मैडम’ बच्चों को कहानियां सुनाती हैं, कविताएं सिखाती हैं, सामान्य ज्ञान से लेकर विज्ञान तक की जानकारी देती हैं। वह चित्रकला, खेल और जीवन से जुड़े सवालों का भी उत्तर देती हैं। ये केवल पढ़ाने वाली मशीन नहीं हैं, बल्कि बच्चों की जिज्ञासाओं को समझकर उनके स्तर पर संवाद करती हैं। वे बच्चों की भावनाओं को भी ध्यान में रखती हैं और उन्हें आत्मविश्वास से भर देती हैं। बच्चों के साथ उनका व्यवहार किसी सजीव शिक्षक की तरह ही होता है। जब भी कोई बच्चा सवाल करता है, तो सुमन मैडम उसका उत्तर सिर्फ पाठ्यक्रम के हिसाब से नहीं देतीं, बल्कि लोकभाषा, स्थानीय संस्कृति और वास्तविक जीवन के उदाहरणों से समझाने की कोशिश करती हैं। यही उन्हें खास बनाता है


इस प्रयास की सबसे बड़ी बात यह है कि इसे किसी बड़े शहर या महंगे संसाधनों की मदद से नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्र के एक सामान्य शिक्षक द्वारा तैयार किया गया है। इसने यह साबित कर दिया कि अगर नीयत साफ हो और सोच सकारात्मक हो तो तकनीक को गांव तक लाया जा सकता है और बच्चों के लिए बड़ा बदलाव किया जा सकता है। आज जब देश में बहुत से लोग AI को लेकर आशंकित हैं, वहीं झांसी के एक छोटे से गांव से यह संदेश गया है कि तकनीक को अपनाकर शिक्षा को अधिक प्रभावशाली, संवेदनशील और बच्चों के अनुकूल बनाया जा सकता है।मोहनलाल सुमन का यह प्रयास इस बात का प्रमाण है कि शिक्षक सिर्फ किताबों के पाठ पढ़ाने वाले नहीं होते, वे समाज में बदलाव लाने वाले सच्चे नायक होते हैं। उन्होंने न केवल एक डिजिटल शिक्षिका बनाई बल्कि उस शिक्षिका में संवेदना, संवाद की कला और मार्गदर्शन की भावना भी भरी। यह प्रयोग केवल तकनीकी दृष्टि से नहीं बल्कि सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से भी एक नई सोच की ओर इशारा करता है।

सुमन मैडम का स्वरूप ऐसा है कि बच्चे उन्हें अपना मित्र भी मानते हैं और मार्गदर्शक भी। बच्चों के माता-पिता भी अब इस तकनीक से जुड़कर अपने बच्चों की पढ़ाई में सहयोग दे पा रहे हैं। यह पूरी प्रक्रिया सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह एक सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत भी बन रही है। अब गांव के अन्य शिक्षक भी इस प्रयास से प्रेरणा लेकर तकनीक के प्रयोग को अपनाने लगे हैं।

इस प्रयास से यह स्पष्ट होता है कि भविष्य की शिक्षा तकनीक और मानवीय संवेदना का मेल होगी। आज भारत के कोने-कोने में लाखों शिक्षक काम कर रहे हैं लेकिन यदि उनमें से हर एक शिक्षक इस तरह की सोच रखे तो हमारी शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बदल सकती है।

मोहनलाल सुमन का यह नवाचार एक उदाहरण है कि अगर कोई शिक्षक चाह ले तो वह अपने साधनों से भी तकनीक को समझ सकता है, अपनाकर प्रयोग कर सकता है और शिक्षा को बच्चों के लिए रुचिकर बना सकता है। उन्होंने तकनीक को केवल एक मददगार उपकरण नहीं बल्कि बच्चों के मन को समझने वाला साथी बना दिया है।

आज जब शिक्षा व्यवस्था में कई तरह की चुनौतियां हैं, तब एक शिक्षक का ऐसा प्रयास उम्मीद की किरण की तरह सामने आया है। यह पहल यह दिखाती है कि तकनीक को अपनाने के लिए बड़े संसाधनों की नहीं बल्कि बड़े इरादों की जरूरत होती है।

इस प्रयास ने यह साबित कर दिया है कि एक गांव के विद्यालय से भी पूरी शिक्षा व्यवस्था को दिशा दी जा सकती है। यह प्रेरणादायक कहानी पूरे देश के लिए एक सीख है कि शिक्षक चाहें तो कुछ भी असंभव नहीं है।

क्या आप भी इस तरह की पहल को अपनाना चाहेंगे?


👉उन्नाव ब्रेकिंग जिलाधिकारी गौरांग राठी और मुख्य विकास अधिकारी प्रेम प्रकाश मीणा की जांच में बड़ा खुलासा, NRLM में 3.85 करोड़ का गबन, डीडीओ संजय पाण्डेय और डीएमएम शिखा मिश्रा पर दर्ज हुई एफआईआर, गिरफ्तारी के प्रयास तेज...... https://basicshikshakhabar.com/2025/05/g-1291/


👉फर्जी निरीक्षण कर्ता कर रहा था बेसिक विद्यालयों की जांच, पकड़ा       

                       https://basicshikshakhabar.com/2025/05/f-1262/



👉लर्निग रिसोर्स पैकेज के अन्तर्गत परिषदीय प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों के उपयोगार्थ उपलब्ध कराये जा रहे टैबलेट्स के संबंध में।

 

👉प्राथमिक विद्यालय में धक्का-मुक्की; प्रिंसिपल को कुर्सी से गिराने का आरोप, शिक्षिका और प्रधानाचार्य निलंबित https://basicshikshakhabar.com/2025/05/r-813/


Wednesday, April 30, 2025

महिलाओं के लिए शिक्षक पद: शिक्षा क्षेत्र में आदर्श करियर

 

                                             

हमारे समाज में शिक्षक का स्थान बहुत ऊँचा माना जाता है। खासकर जब कोई महिला शिक्षक बनती है, तो वह न केवल शिक्षा का कार्य करती है, बल्कि वह समाज की सोच को भी बदलने का काम करती है। एक महिला जब कक्षा में जाती है, तो वह सिर्फ किताबें नहीं पढ़ाती, वह बच्चों को जीवन के मूल्यों, संस्कारों और इंसानियत का पाठ भी पढ़ाती है। एक महिला शिक्षक अपने धैर्य, ममता और समझदारी से बच्चों को सिखाने का जो तरीका अपनाती है, वह बच्चों के मन पर गहरा असर छोड़ता है।

कानपुर देहात जैसे क्षेत्र में जहां पारिवारिक जीवन और सामाजिक जिम्मेदारियाँ महिलाओं पर अधिक होती हैं, वहां शिक्षक की नौकरी उनके लिए एक वरदान जैसी होती है। शिक्षक का पेशा महिलाओं को वह सम्मान और स्थिरता देता है जिसकी उन्हें जरूरत होती है। यह नौकरी उन्हें घर और कार्य के बीच संतुलन बनाए रखने का अवसर देती है। स्कूल के निश्चित समय, छुट्टियों की सुविधा और बच्चों के साथ एक सकारात्मक वातावरण उन्हें शांति और संतोष प्रदान करता है। जब एक महिला अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बाद खुद भी एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती है, तो वह अपने परिवार के साथ-साथ समाज के बच्चों के भविष्य को भी सँवारने का कार्य करती है।

एक महिला शिक्षक केवल एक विषय की जानकार नहीं होती, वह बच्चों की मार्गदर्शक, सहारा और प्रेरणा भी होती है। बच्चों के मन को समझना, उन्हें प्यार से पढ़ाना, और हर बच्चे के भीतर छिपी प्रतिभा को पहचानना एक महिला शिक्षक की सबसे बड़ी विशेषता होती है। वह बच्चों को डांटने के बजाय उन्हें समझाने में विश्वास रखती है। एक माँ की तरह वह हर विद्यार्थी को अपनी संतान समझकर पढ़ाती है। यही कारण है कि बच्चों को महिला शिक्षक अधिक प्रिय लगती हैं। उनकी बातों में मिठास होती है और उनके व्यवहार में अपनापन होता है।

महिला शिक्षकों का धैर्य, उनकी कोमलता और व्यवहारिक समझ उन्हें इस पेशे के लिए सबसे उपयुक्त बनाती है। वे न केवल पढ़ाने का कार्य करती हैं, बल्कि विद्यालय की व्यवस्था, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद और अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय रहती हैं। एक महिला शिक्षक बच्चों के सर्वांगीण विकास की दिशा में कार्य करती है। वह यह सुनिश्चित करती है कि हर बच्चा आत्मविश्वास से भरा हो, अच्छे संस्कारों के साथ बड़ा हो और समाज में एक अच्छा नागरिक बने।

आजकल कई महिलाएं शादी के बाद या माँ बनने के बाद घर की जिम्मेदारियों में उलझ जाती हैं, लेकिन शिक्षक की नौकरी उन्हें फिर से आत्मनिर्भर और सक्रिय बनाने का माध्यम बनती है। वह सुबह बच्चों को तैयार करती है, खुद विद्यालय जाती है, और समय पर घर लौटती है। स्कूल के समय और घर के काम के बीच एक अच्छा तालमेल बन जाता है। इससे उन्हें न केवल मानसिक संतुलन मिलता है, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता भी प्राप्त होती है। उन्हें अपनी मेहनत की कमाई मिलती है, जिससे उनका आत्मविश्वास और आत्मसम्मान दोनों बढ़ता है।

महिला शिक्षक होने का एक और बड़ा लाभ यह है कि वह समाज में एक आदर्श बन जाती हैं। जब एक गाँव या कस्बे की लड़की यह देखती है कि उनकी दीदी या आंटी स्कूल में पढ़ाने जाती हैं, तो उनके मन में भी शिक्षक बनने की प्रेरणा जागती है। एक महिला शिक्षक अपने कार्य और व्यवहार से समाज की अन्य महिलाओं के लिए उदाहरण बनती है। वह दिखाती हैं कि एक महिला सिर्फ रसोई या घर तक सीमित नहीं है, वह बच्चों के भविष्य की निर्माता भी बन सकती है।

एक महिला शिक्षक जब बच्चों को पढ़ाती है, तो वह हर बच्चे के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करती है। वह जानती है कि हर बच्चा अलग है, और हर बच्चे को अलग तरीके से समझाना पड़ता है। उसके पास धैर्य होता है, सहनशीलता होती है और एक सच्चा मन होता है। वह बच्चों की सफलता में अपनी खुशी ढूंढती है। जब कोई बच्चा परीक्षा में अच्छे अंक लाता है या मंच पर आत्मविश्वास से बोलता है, तो उसे लगता है कि उसकी मेहनत सफल हो गई। यह संतोष और खुशी शायद ही किसी अन्य पेशे में इतनी सच्चाई से मिलती हो।

महिला शिक्षक का यह कार्य सिर्फ स्कूल तक ही सीमित नहीं होता। वह बच्चों के अभिभावकों से भी मिलती है, उन्हें बच्चों की प्रगति की जानकारी देती है, और जरूरत पड़ने पर परामर्श भी देती है। वह समाज और परिवार के बीच एक पुल की तरह काम करती है। एक अच्छा शिक्षक न केवल किताबों का ज्ञान देता है, बल्कि बच्चों को अच्छा इंसान भी बनाता है। और जब यह कार्य एक महिला करती है, तो उसमें संवेदना, अपनापन और ममता और भी अधिक जुड़ जाती है।

सरकारी विद्यालयों में महिला शिक्षकों की संख्या बढ़ना हमारे समाज के लिए शुभ संकेत है। इससे न केवल शिक्षा का स्तर सुधरता है, बल्कि महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ती है। वे अपनी प्रतिभा और ज्ञान से समाज को सशक्त बनाती हैं। सरकार भी अब महिला शिक्षकों को बढ़ावा दे रही है, क्योंकि यह देखा गया है कि जब महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में आती हैं, तो बच्चों के प्रति अनुशासन और संवेदनशीलता दोनों में सुधार होता है। महिलाएं बच्चों के साथ ज्यादा जुड़ाव बना लेती हैं और उन्हें सकारात्मक दिशा में प्रेरित कर सकती हैं।

शिक्षक की नौकरी में सबसे अच्छी बात यह होती है कि इसमें हर दिन कुछ नया होता है। हर दिन नया पाठ, नई गतिविधि, और नई बातें। महिला शिक्षक इन सभी में उत्साह के साथ भाग लेती हैं। उन्हें स्कूल के बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों और प्रधानाचार्य के साथ भी अच्छा तालमेल बनाना होता है। वे सबकी बातें सुनती हैं, समझती हैं और स्कूल के वातावरण को खुशनुमा बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।

कई बार जब बच्चों के माता-पिता व्यस्त होते हैं या शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होते, तब महिला शिक्षक बच्चों की विशेष देखभाल करती हैं। वह न केवल पढ़ाई बल्कि व्यवहार, साफ-सफाई और नैतिक मूल्यों के बारे में भी सिखाती हैं। वह बच्चों को अपनेपन से सुधारती हैं। यही कारण है कि बच्चों को अपनी 'मैम' सबसे प्यारी लगती हैं। वे उनके साथ अपनी बातें साझा करते हैं, उनसे प्रेरणा लेते हैं और उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

महिला शिक्षक का जीवन सरल होते हुए भी महान होता है। वह सुबह तैयार होकर विद्यालय जाती है, बच्चों को सिखाती है, उन्हें जीवन के लिए तैयार करती है और शाम को घर लौटकर अपने परिवार की देखभाल भी करती है। वह हर जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाती है। वह कभी थकती नहीं, क्योंकि उसे पता है कि उसका कार्य केवल एक नौकरी नहीं है, यह सेवा है – देश सेवा, समाज सेवा और मानव सेवा।

महिलाओं को शिक्षक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह न केवल उनके लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक करियर है, बल्कि समाज के निर्माण में भी उनकी भागीदारी सुनिश्चित करता है। जब एक महिला शिक्षिका बनती है, तो वह एक पीढ़ी को सिखाती है, संवारती है और मजबूत बनाती है। यह पेशा उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है, उन्हें एक पहचान देता है और समाज में उनका स्थान ऊँचा करता है।

अंत में यही कहा जा सकता है कि महिला शिक्षक हमारे समाज की रीढ़ हैं। वे शिक्षा के माध्यम से समाज को संवारती हैं, बच्चों को संस्कार देती हैं, और आने वाले कल को बेहतर बनाती हैं। उनका योगदान अमूल्य है। हर महिला जो शिक्षक बनना चाहती है, वह समाज के लिए एक प्रेरणा है। शिक्षक की नौकरी उसके लिए केवल आजीविका का साधन नहीं है, बल्कि यह उसके जीवन का मिशन बन जाता है। ऐसी महिला शिक्षिकाओं को हम सभी का नमन और सम्मान मिलना चाहिए।

 

👉विगत दस वर्षों (अप्रैल, 2016 से मार्च 2025) में नियुक्त शिक्षकों के सम्बन्ध में सूचना उपलब्ध कराये जाने विषयक।‌

https://www.updatemarts.com/2025/04/2016-2025.html


👉म्यूच्यूअल ट्रांसफर अपडेट

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_728.html


👉फैसला: निजी स्कूलों को फीस वृद्धि से पहले अनुमति लेनी होगी

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_805.html


Monday, April 28, 2025

पहले देश, फिर मांगें: पहलगाम शहीदों को श्रद्धांजलि और राष्ट्रहित का संकल्प

 

पहले देश, फिर मांगें: पहलगाम शहीदों को श्रद्धांजलि और राष्ट्रहित का संकल्प......

 



देश से बड़ा कुछ नहीं होता। जब भी कोई मुश्किल समय आता है, हमें अपने निजी हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को सबसे पहले रखना चाहिए। हाल ही में जो दर्दनाक घटना हमारे देश में घटी, उसने पूरे देशवासियों को सोचने पर मजबूर कर दिया। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा पहलगाम में किए गए भीषण आतंकी हमले में हमारे 27 निर्दोष भारतीय भाई-बहनों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस हादसे ने देश को गहरे शोक और आक्रोश से भर दिया है। इस कठिन समय में, अटेवा संगठन ने एक बहुत ही समझदारी भरा फैसला लिया है। उन्होंने 1 मई को दिल्ली के जंतर मंतर पर पुरानी पेंशन बहाली के लिए प्रस्तावित धरना स्थगित कर दिया है। यह निर्णय न केवल संवेदनशीलता दिखाता है बल्कि राष्ट्र के प्रति सच्ची निष्ठा का प्रमाण भी है।

जब देश संकट में हो, तो अपने हक और अधिकारों की लड़ाई को कुछ समय के लिए रोकना ही असली देशभक्ति है। देश रहेगा, तभी हम रहेंगे। अगर हमारे देश की सुरक्षा खतरे में होगी, तो हमारे अधिकार, हमारी सुविधाएं, हमारी पेंशन, सब कुछ अर्थहीन हो जाएगा। सेना में कार्यरत लेफ्टिनेंट विनय नरवाल भी इस हमले में वीरगति को प्राप्त हुए। सेना में आज भी पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू है, लेकिन पेंशन का लाभ तभी लिया जा सकता है जब व्यक्ति जीवित रहे। शांति और सुरक्षा के बिना न पेंशन का कोई मतलब रह जाता है और न ही किसी सुविधा का।

पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने हमें यह सिखाया है कि सबसे पहले देश की रक्षा जरूरी है। हमारे नागरिकों की जान बचाना जरूरी है। हमारा भविष्य तभी सुरक्षित है जब हमारा देश सुरक्षित है। अगर देश के नागरिक असुरक्षित होंगे तो किसी भी प्रकार की मांग, आंदोलन, सुविधाएं सब व्यर्थ हैं। इसलिए इस समय हम सबकी पहली प्राथमिकता देश की एकता और अखंडता को बचाना है। हमें यह समझना चाहिए कि व्यक्तिगत हितों की लड़ाई बाद में लड़ी जा सकती है, लेकिन राष्ट्रहित सर्वोपरि है।

आज भारत सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्यवाही का ऐलान किया है। यह समय है कि हम सब भारतवासियों को सरकार और सुरक्षाबलों का पूर्ण समर्थन करना चाहिए। आतंकवाद का सामना एकजुट होकर ही किया जा सकता है। हमें अपने दुख, अपनी मांगों को कुछ समय के लिए भूलकर शहीदों के परिवारों के साथ खड़ा होना चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि जो लोग देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर देते हैं, उनके कारण ही हम सुरक्षित रह पाते हैं।

शिक्षक, कर्मचारी, सैनिक, किसान, व्यापारी — सभी देश की उन्नति में अपना योगदान देते हैं। लेकिन इन सबका योगदान तभी अर्थपूर्ण होता है जब देश का वातावरण शांत और सुरक्षित हो। कोई भी विकास तभी संभव है जब देश की सीमाएं सुरक्षित हों, जब देश के भीतर शांति हो। इसलिए इस समय जरूरी है कि हम राष्ट्रहित को प्राथमिकता दें।

जब देश की रक्षा में लगे जवान अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं, तब हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपने छोटे-छोटे हितों को भूलकर राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए काम करें। इस समय आंदोलन, धरना, प्रदर्शन का समय नहीं है। यह समय है देश के साथ खड़े होने का, आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का।

आज हमारे 27 भाई-बहन आतंकी हमले में शहीद हो गए। उनके घरों में मातम पसरा है। उनके परिवारों का दुख शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उन परिवारों का दर्द समझना और उनके साथ खड़ा होना हम सबका नैतिक दायित्व है। जब देश पर हमला होता है तो वह केवल एक जगह या कुछ लोगों पर हमला नहीं होता, वह हम सब पर हमला होता है।

अटेवा द्वारा धरना स्थगित करने का निर्णय एक उदाहरण है कि कैसे देशहित को निजी मांगों से ऊपर रखा जा सकता है। हमें इस निर्णय से प्रेरणा लेकर हमेशा यह याद रखना चाहिए कि देश सबसे पहले है। अगर देश सुरक्षित है तो हम अपनी सभी मांगें भविष्य में पूरी कर सकते हैं। लेकिन अगर देश ही सुरक्षित नहीं रहा तो कोई आंदोलन, कोई मांग, कोई सुविधा बच नहीं पाएगी।

देशभक्ति केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराने से पूरी नहीं होती। असली देशभक्ति तो तब होती है जब हम कठिन समय में अपने निजी हितों को त्याग कर देश के साथ खड़े होते हैं। जब हम शहीदों के बलिदान को याद करते हैं और उनके सपनों का भारत बनाने के लिए काम करते हैं।

आज आतंकवाद केवल गोली चलाकर नहीं लड़ रहा, बल्कि वह हमारे समाज में डर फैलाकर हमें तोड़ने की कोशिश कर रहा है। अगर हम अपने छोटे-छोटे स्वार्थों में उलझकर एकता भूल जाएंगे तो आतंकवादी अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे। लेकिन अगर हम एकजुट रहेंगे, अपने मतभेदों को भूलकर देश के साथ खड़े रहेंगे तो कोई भी ताकत हमें हरा नहीं सकती।

पहलगाम के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनका बलिदान व्यर्थ न जाने दें। हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम हर परिस्थिति में देश को सर्वोपरि रखेंगे। देशहित में जो भी त्याग करना पड़े, हम करेंगे।

हमें यह भी समझना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई एक दिन की नहीं है। यह एक लंबी लड़ाई है जिसमें धैर्य, एकता और समर्पण की जरूरत है। हमें अपने सैनिकों, अपने सुरक्षाबलों पर भरोसा रखना चाहिए और उन्हें अपना पूर्ण समर्थन देना चाहिए।

जब देश सुरक्षित रहेगा, जब देश में अमन रहेगा, तब ही हम अपने हक और अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं। तब ही हम पेंशन बहाली की लड़ाई को भी सही तरीके से आगे बढ़ा सकते हैं।

आज का दिन हमें यह सिखाता है कि पहले देश, फिर अन्य मांगें। राष्ट्र सबसे पहले। व्यक्तिगत हित बाद में।

आइए, हम सब मिलकर पहलगाम के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करें और यह संकल्प लें कि हम हर हाल में देश के साथ खड़े रहेंगे। हम आतंकवाद के खिलाफ एकजुट रहेंगे। हम अपने निजी स्वार्थों को देशहित के सामने छोटा मानेंगे।

भारत माता की जय! जय हिंद! वंदे मातरम्!



 

👉जनपद के भीतर BEO के बदले विकास खण्ड

https://www.updatemarts.com/2025/04/beo_28.html

👉हर सप्ताह परखी जाएगी विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता

👉समस्त डायट प्राचार्य, AD BASIC, BSA, BEO, DCs, SRG, ARP एवं शिक्षक संकुल कृपया ध्यान दें

👉95 हजार विद्यार्थियों के अभिभावकों के खातों में शीघ्र जाएगी यूनिफॉर्म की रकम https://basicshikshakhabar.com/2025/04/ff-715/


 


Saturday, April 26, 2025

TSCT: संकट में शिक्षकों का सच्चा साथी….

 

TSCT एक ऐसा संगठन है जो शिक्षकों की मदद के लिए बनाया गया है। जब कोई शिक्षक साथी किसी परेशानी में होता है, जैसे कि बीमारी, दुर्घटना या अचानक निधन हो जाता है, तब TSCT उसकी और उसके परिवार की सहायता करता है। TSCT का पूरा नाम Teachers Social Contribution Team होता है। इस संगठन का काम है कि जब भी किसी शिक्षक को मदद की जरूरत हो, तो तुरंत सहायता दी जाए। अगर कोई शिक्षक साथी दुनिया से चला जाता है, तो उसके परिवार को आर्थिक मदद दी जाती है ताकि वे अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें।

TSCT में कई शिक्षक भाई-बहन जुड़े हुए हैं। सभी साथी समय-समय पर अपनी तरफ से छोटा-छोटा सहयोग करते हैं। इस तरह जब भी कोई मुसीबत आती है, तो संगठन के पास पहले से पैसा जमा होता है और तुरंत मदद दी जा सकती है। TSCT का नियम है कि मदद देने में कोई देरी नहीं होनी चाहिए, ताकि परेशान परिवार को जल्दी सहारा मिल सके। संगठन के सभी काम पारदर्शी तरीके से होते हैं यानी जो भी सहयोग आता है या दिया जाता है, उसकी पूरी जानकारी सभी सदस्यों को दी जाती है।

TSCT में कोई भी शिक्षक भाई-बहन शामिल हो सकता है। इसमें कोई जबरदस्ती नहीं होती। जो अपनी इच्छा से समाज सेवा करना चाहते हैं, वही इसमें जुड़ते हैं। संगठन के पास एक मोबाइल ऐप भी है, जिससे मदद भेजना और जानकारी लेना आसान हो जाता है। आज के समय में जब सब कुछ मोबाइल से हो रहा है, TSCT ने भी अपनी सेवा को तेज और आसान बना दिया है।

यह संगठन इसलिए भी खास है क्योंकि यहां किसी सरकारी मदद का इंतजार नहीं करना पड़ता। जब कोई संकट आता है, तो TSCT तुरंत मदद कर देता है। शिक्षक समाज को मजबूत बनाने के लिए यह संगठन बहुत जरूरी है। जब शिक्षकों को सुरक्षा और सहारा मिलेगा, तभी वे भी बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकेंगे और समाज को आगे बढ़ा सकेंगे।

TSCT में शामिल होने से हर सदस्य को यह भरोसा होता है कि अगर भविष्य में उसे भी कोई परेशानी आई, तो संगठन उसके साथ खड़ा रहेगा। संगठन सभी सदस्यों का सम्मान भी करता है और समय-समय पर सामाजिक कार्यक्रम जैसे रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य जांच, सम्मान समारोह आदि भी कराता है।

अब तक TSCT ने कई ऐसे परिवारों की मदद की है जिनके घर के सदस्य शिक्षक साथी अचानक बीमार हुए या दुनिया से चले गए। कई बार ऐसे दुखद समय में सरकारी मदद आने में देर लगती है, लेकिन TSCT बिना देरी के मदद करता है। बहुत से शिक्षक साथी कहते हैं कि TSCT ने मुश्किल समय में उन्हें एक परिवार की तरह सहारा दिया। सभी शिक्षक मिलकर जब थोड़ा-थोड़ा सहयोग करते हैं, तो बड़ी मदद बन जाती है। यही TSCT की असली ताकत है।

भविष्य में TSCT और भी बड़े स्तर पर काम करना चाहता है। संगठन की योजना है कि जरूरतमंद शिक्षकों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति दी जाए, आवासीय सहायता मिले, पेंशन न पाने वाले शिक्षकों को मदद दी जाए और सभी के लिए स्वास्थ्य बीमा भी कराया जाए। TSCT यह भी चाहता है कि शिक्षकों के लिए एक ऐसा माहौल बने जिसमें वे खुद को सुरक्षित महसूस करें और बिना किसी डर के अपना जीवन आगे बढ़ा सकें।

TSCT मानता है कि शिक्षक केवल पढ़ाने का काम ही नहीं करते, बल्कि समाज के निर्माण में भी बड़ा योगदान देते हैं। इसलिए TSCT ने कई सामाजिक काम भी किए हैं जैसे गरीब बच्चों को किताबें देना, पेड़ लगाना और लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देना। ऐसे काम करके TSCT यह बताता है कि शिक्षक समाज के हर क्षेत्र में बदलाव ला सकते हैं।

आज TSCT उन सभी शिक्षकों के लिए एक उम्मीद बन चुका है जो किसी संकट में पड़ जाते हैं। यह संगठन न केवल आर्थिक सहायता करता है, बल्कि भावनात्मक रूप से भी लोगों का सहारा बनता है। जब कोई शिक्षक दुखी होता है, तो TSCT उसे यह भरोसा दिलाता है कि वह अकेला नहीं है। संगठन का हर सदस्य एक दूसरे के साथ खड़ा रहता है।

अगर हम चाहते हैं कि शिक्षक समाज मजबूत हो, तो हमें भी ऐसे संगठनों को सहयोग देना चाहिए। जो सहयोग हम आज करेंगे, वही कल हमारे लिए एक मजबूत सुरक्षा बन सकता है। इसीलिए हमें समय रहते TSCT से जुड़ना चाहिए और इसमें अपना योगदान देना चाहिए। संगठन की ताकत सभी सदस्यों के सहयोग से बढ़ती है। जब सभी मिलकर साथ चलते हैं, तो कोई भी मुश्किल हमें हरा नहीं सकती। आज का छोटा सा योगदान कल किसी के जीवन में बहुत बड़ा सहारा बन सकता है।

आइए, हम सब मिलकर TSCT को और मजबूत बनाएं। एक दूसरे की मदद करें और शिक्षक समाज को गर्व के साथ आगे बढ़ाएं। जब हम मिलकर काम करेंगे, तभी हमारा समाज और देश भी मजबूत बनेगा। TSCT हमारे लिए एक परिवार की तरह है, जिसमें हर सदस्य का सुख-दुख बांटा जाता है। इस परिवार को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी हम सबकी है।


👉कानपुर देहात: स्कूल से कोल्डड्रिंक लाते समय छात्र की ट्रैक्टर से कुचलकर मौत, परिवार में मातम

https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/04/blog-post_89.html

Monday, April 21, 2025

पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन | 1 मई 2025 जंतर-मंतर चलो अभियान

 


सरकारी कर्मचारियों के हक की लड़ाई! पुरानी पेंशन बहाली के लिए 1 मई 2025 को जंतर-मंतर, दिल्ली चलें। एकजुटता दिखाएं, भविष्य सुरक्षित बनाएं।



पेंशन एक ऐसी चीज़ है, जो हर सरकारी कर्मचारी के जीवन में बहुत ज़रूरी होती है। जब कोई इंसान अपने पूरे जीवन का सबसे अच्छा समय नौकरी में लगा देता है, दिन-रात मेहनत करता है, अपने परिवार से दूर रहकर, कई बार खतरों का सामना करके देश और समाज के लिए काम करता है, तो उसके बुढ़ापे का सहारा वही पेंशन होती है। पेंशन एक ऐसी लाठी है, जो बुढ़ापे में इंसान को सहारा देती है। जब शरीर जवाब देने लगता है, काम करने की ताकत नहीं रहती, तब यही पेंशन हर महीने एक उम्मीद लेकर आती है कि अब भी हमारा जीवन सम्मान से चल सकेगा।

आज देशभर में बहुत से कर्मचारी इस पेंशन के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। नई पेंशन योजना के आने के बाद से पुरानी पेंशन योजना बंद कर दी गई, और कर्मचारियों को एक ऐसे सिस्टम में डाल दिया गया, जिसमें बुढ़ापे में उन्हें ये भरोसा नहीं रहता कि उनका जीवन बिना किसी चिंता के चलेगा। अब कर्मचारियों को यह डर सताने लगा है कि जब हम बूढ़े हो जाएंगे, तब कौन हमारी मदद करेगा? हमारी पेंशन तो अब तय ही नहीं है, बाजार के उतार-चढ़ाव पर चलने वाली रकम पर हम कैसे अपना भविष्य सुरक्षित मानें? इसी बात ने हजारों कर्मचारियों को एकजुट किया है, और वे अब पुरानी पेंशन बहाली के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

कई राज्यों में इस मुद्दे पर धरने-प्रदर्शन हो चुके हैं। हिमाचल प्रदेश ने इस लड़ाई को बखूबी लड़ा और वहां की सरकार को पुरानी पेंशन योजना लागू करनी पड़ी। यह सब हुआ कर्मचारियों की एकजुटता और हिम्मत के कारण। उन्होंने अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सड़कों पर आंदोलन किया, अपनी आवाज़ को बुलंद किया और आखिरकार अपना हक पाया। अब वही उम्मीद देश के दूसरे राज्यों के कर्मचारियों को भी है। सबको यह लगने लगा है कि अगर हम भी एकजुट होकर अपनी बात कहें, तो सरकार को हमारी बात माननी पड़ेगी।

इसी सिलसिले में 1 मई 2025 को जंतर-मंतर, दिल्ली में एक बड़ा आंदोलन होने जा रहा है। यह केवल एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक मिशन है। इसमें भाग लेना हर उस कर्मचारी का फर्ज़ है, जो अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा चाहता है। यह लड़ाई केवल आज की नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की भी है। अगर आज हम चुप रहेंगे, तो आने वाले समय में हमारे बच्चे और उनके बाद की पीढ़ी भी इसी समस्या से जूझती रहेगी।

कई लोग सोचते हैं कि मैं नहीं जाऊंगा तो क्या फर्क पड़ेगा। पर असली बात यही है कि जब हर कोई यही सोचेगा, तो कोई भी नहीं जाएगा। अगर आप नहीं जाएंगे, तो दूसरा क्यों जाएगा? जब हर कोई ये सोचने लगेगा कि मेरे पास समय नहीं है, मुझे काम है, पत्नी भी नौकरी करती है, बच्चों को देखना है, तो फिर इस लड़ाई को कौन लड़ेगा? ये सोच सही नहीं है। हम चुनाव ड्यूटी करने जाते हैं, स्कूल भी जाते हैं, ऑफिस का सारा काम भी करते हैं, तो फिर अपने हक के लिए क्यों नहीं? अगर आप दो पेंशन लेना चाहेंगे, तो आंदोलन में भी दो लोग जाने चाहिए, आप और आपकी पत्नी। क्योंकि पेंशन दोनों को चाहिए।

बहाने बहुत हो चुके। कोई कहता है कि मैं अगली बार जाऊंगा। पर अगली बार कभी नहीं आती। जो लड़ाई आज लड़नी है, वो आज ही लड़नी पड़ेगी। कोई भी दूसरा आपके लिए लड़ने नहीं आएगा। जब तक आप खुद अपने हक के लिए खड़े नहीं होंगे, तब तक कुछ भी नहीं बदलेगा। महिलाओं का भी ये सवाल है कि हम कैसे जाएं? लेकिन वही महिलाएं स्कूल भी जाती हैं, ऑफिस भी जाती हैं, चुनाव ड्यूटी भी करती हैं। तो फिर अपने हक के लिए जाना क्यों मुश्किल है? पेंशन आपको भी चाहिए, तो उसके लिए लड़ाई भी आपको ही लड़नी होगी। अपने बच्चों के भविष्य के लिए हमें एक बार फिर से हिमाचल की मातृशक्ति की तरह आगे आना होगा।

कई बार लोग कहते हैं कि हमारे पास समय नहीं है, या हमें गैरसैण नहीं जाना, जिला मुख्यालय नहीं जाना, देहरादून नहीं जाना। तो कब जाओगे? ये बहाने कब तक चलते रहेंगे? क्या जब सबकुछ खत्म हो जाएगा, तब? तब तो कोई फायदा नहीं। पेंशन वो चीज है, जो हर महीने मिलती है। लड़ाई भी उसी तरह लगातार लड़ी जानी चाहिए। जब तक पेंशन नहीं मिलेगी, तब तक धरने भी लगेंगे, प्रदर्शन भी होंगे। जब तक पेंशन बहाल नहीं होगी, हमें चैन से बैठना नहीं है।

जो साथी इस आंदोलन को लड़ रहे हैं, उन्हें भी वही एक पेंशन मिलेगी। वो भी आपके ही जैसे कर्मचारी हैं। उन्होंने अपने विभागीय संगठनों में जिम्मेदारी ली है और अब ये उनका परम कर्तव्य बनता है कि वे इस मिशन में बढ़-चढ़कर भाग लें। अगर वे आपके भविष्य के लिए सड़क पर खड़े हो सकते हैं, तो क्या आप उनके साथ नहीं खड़े हो सकते? ये केवल उनकी लड़ाई नहीं है, ये हम सबकी लड़ाई है।

इस बार सवाल-जवाब और बहानेबाजी बहुत हो गई। अब एक ही जवाब है — 1 मई 2025 को जंतर-मंतर पर चलना है। पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन को मजबूत करना है। हमें अपने हक की इस लड़ाई को और तेज़ करना है। अगर हिमाचल के साथियों ने अपने बच्चों को गोद में लेकर आंदोलन किया और जीत हासिल की, तो हम क्यों नहीं कर सकते? हमें भी आलस छोड़कर, बहानेबाजी छोड़कर, निष्क्रियता और नकारात्मकता से बाहर निकलकर, अपने भविष्य के लिए डटकर खड़ा होना होगा।

यह लड़ाई सिर्फ पैसों की नहीं है, यह सम्मान की भी है। जब कोई रिटायर होता है, तो वह चाहता है कि उसे सम्मान के साथ, बिना किसी चिंता के जीवन जीने का हक़ मिले। अगर आज हम खामोश रहेंगे, तो कल कोई हमारी आवाज़ नहीं सुनेगा। कल कोई हमारा हाल भी पूछने नहीं आएगा। इसी लिए आज उठ खड़े होना जरूरी है।

हिमाचल ने दिखा दिया कि जब कर्मचारी एकजुट हो जाएं, तो कोई भी सरकार उनकी मांगें मानने को मजबूर हो जाती है। हमें भी वही करना है। 1 मई 2025 को हमें दिल्ली के जंतर-मंतर पर इकट्ठा होकर इतिहास रचना है। हर कर्मचारी को वहां पहुंचना है। सिर्फ सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने से कुछ नहीं होगा। हमें सड़कों पर उतरना होगा। अपने नेताओं को आगे लाना होगा। जनजागरूकता फैलानी होगी। हर किसी को बताना होगा कि पेंशन हमारा अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे।

एकजुटता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। जब हम सब एकजुट होंगे, तो हमारी आवाज़ दूर तक जाएगी। सरकार भी तब सुनेगी, जब उसे लगेगा कि अब कर्मचारी शांत बैठने वाले नहीं हैं। इसलिए समय आ गया है, जब हमें अपना हक खुद लेना है। 1 मई 2025 को दिल्ली चल पड़ना है।

हमारे पास अब ज्यादा समय नहीं है। हमें अपने परिवार, अपने बच्चों और अपने बुढ़ापे की चिंता खुद करनी होगी। ये सोचिए कि अगर पुरानी पेंशन नहीं मिली, तो बुढ़ापे में जब तनख्वाह नहीं मिलेगी और इलाज, घर के खर्च, बच्चों की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी, तब क्या होगा? यही सोचिए और इसी सोच के साथ अपनी पूरी इच्छाशक्ति जुटाकर इस आंदोलन में भाग लीजिए।

1 मई को जंतर-मंतर पर एक ऐसी ज्वाला जलानी है, जो हर कर्मचारी के दिल में पेंशन की लड़ाई की आग को और तेज़ कर दे। यह लड़ाई केवल आज के लिए नहीं है, यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है। इस लड़ाई को जीतना ही होगा।

हर कर्मचारी को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। कोई पीछे नहीं रहे। नेता भी आगे आएं। सोशल मीडिया का सही तरीके से इस्तेमाल करें। वीडियो बनाएं, मैसेज भेजें, पोस्टर बनाएं। हर गली, हर मोहल्ले में इस आंदोलन की बात होनी चाहिए। सबको बताइए कि पेंशन हमारा हक है और हम इसे लेकर रहेंगे।

याद रखिए — एकजुटता ही हमारी ताकत है। पेंशन हमारा अधिकार है। हमें मिलकर, एकजुट होकर, बिना डरे, बिना रुके, लगातार लड़ाई लड़नी है। जब तक जीत नहीं मिलती, तब तक लड़ते रहना है। 1 मई 2025 को चलो दिल्ली — जंतर-मंतर पर इतिहास रचने।


 पेंशन है बुढ़ापे का सहारा,
हर महीने मिलने वाला हमारा।
अपने हक के लिए अब लड़ना है,
जंतर-मंतर जाकर कहना है।
सब मिलकर आवाज़ उठाएँगे,
अपना अधिकार वापस लाए 
1 मई को सब चल पड़ेंगे,
पुरानी पेंशन फिर से लेंगे।

 

 



 


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