Up basic School News

Basic education builds the foundation of a strong nation.

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a group of school children participating in a cultural event with joy and enthusiasm.

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Sunday, May 11, 2025

शिक्षकों ने गरीब लड़की की शादी के लिए की मदद

 


शिक्षकों ने निभाई समाज सेवा की भूमिका – गरीब की बेटी की शादी के लिए जुटाया गृहस्थी का सामान

 


देशभर में जब-जब समाज सेवा की बात होती है, तो उसमें अक्सर डॉक्टरों, समाजसेवियों, सरकारी संस्थाओं या राजनीतिक नेताओं की चर्चा होती है। परंतु इस बार उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जनपद के संदलपुर ब्लॉक शिक्षकों ने समाज सेवा की एक ऐसी मिसाल पेश की है जो हर दिल को छू लेने वाली है।

यह घटना एक गरीब परिवार की बेटी की शादी से जुड़ी है, जो कि झोपड़ी में रहकर जैसे-तैसे जीवन व्यतीत कर रहा था। लड़की के पिता के पास न तो आय का कोई निश्चित साधन था और न ही वह अपनी बेटी की शादी का खर्च उठा पाने की स्थिति में थे। जब यह बात शिक्षकों को पता चली, तो उन्होंने बिना किसी सरकारी मदद के, अपने निजी स्तर पर इस परिवार की मदद करने का फैसला किया।

शिक्षकों ने इस गरीब परिवार की आर्थिक स्थिति और बेटी की शादी की जरूरत को समझते हुए, गृहस्थी के लगभग सभी जरूरी सामान जैसे बर्तन, पलंग, गद्दा, गैस सिलेंडर, अलमारी, कपड़े, टेबल पंखा, कूलर, बाल्टी, ड्रम, बिछावन, चादरें, तकिए आदि जुटाए और उन तक पहुँचा दिए। सिर्फ सामान ही नहीं, उन्होंने लड़की की शादी में आर्थिक सहायता भी प्रदान की, ताकि वह विवाह बिना किसी बाधा के सम्पन्न हो सके।

इस पुनीत कार्य में भाग लेने वाले शिक्षक सिर्फ अपने विषय की शिक्षा नहीं दे रहे, बल्कि मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं की भी शिक्षा समाज को दे रहे हैं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि शिक्षक समाज के निर्माण में केवल विद्यालय की चारदीवारी के भीतर ही नहीं, बल्कि समाज के हर जरूरतमंद व्यक्ति के जीवन में रोशनी देने वाले दीपक हैं।

इस नेक पहल की अगुवाई करते हुए शिक्षकों ने कहा कि जब तक शिक्षक समाज से जुड़कर, समाज की समस्याओं को समझकर उनके समाधान में भागीदारी नहीं निभाएंगे, तब तक शिक्षा का उद्देश्य अधूरा रहेगा।

इस प्रयास में भाग लेने वाले प्रमुख शिक्षकों में शामिल रहे – दीपक कटियार, संदीप कटियार, विवेक कुमार, शशिकांत बिंदल, मनीष चौधरी, डॉ. राकेश त्रिपाठी, रमेश चौरसिया, गौरव सिंह राजपूत, प्रभात गुप्ता, सुभाष किशोर, सत्येंद्र सिंह, अमरेंद्र गुप्ता, प्रदीप तिवारी, मनीष श्रीवास्तव, रामकृष्ण पाल, विवेक शुक्ला, विनय त्रिपाठी, मयंक पांडेय, रमेश यादव, अंकुर वर्मा, योगेश त्रिपाठी, अशोक यादव आदि।

गौर करने योग्य बात यह भी है कि इस घटना की जानकारी जब आस-पास के ग्रामीणों और समाज के अन्य लोगों को हुई, तो वे भी शिक्षकों की इस पहल की सराहना करने लगे। लोगों ने इसे समाज में एक नई दिशा देने वाला प्रयास बताया। यह घटना एक उदाहरण है कि यदि प्रत्येक नागरिक अपने-अपने स्तर पर समाज की मदद के लिए तैयार हो जाए, तो कोई भी व्यक्ति अभावग्रस्त नहीं रहेगा।

इस पहल से शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने भी खुशी जताई और कहा कि ऐसे शिक्षक वास्तव में विभाग का गौरव हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह प्रयास अन्य शिक्षकों के लिए एक प्रेरणा बन सकता है।

इस कार्यक्रम को शिक्षकों ने किसी औपचारिकता या दिखावे के रूप में नहीं, बल्कि पूर्ण रूप से मानवीय कर्तव्य समझकर निभाया। उन्होंने यह कार्य न तो मीडिया में दिखाने के लिए किया और न ही किसी प्रकार की प्रसिद्धि पाने के लिए, बल्कि सिर्फ इसलिए किया ताकि एक गरीब बेटी की शादी बिना किसी रुकावट के हो सके और उसके माता-पिता की चिंता कुछ हद तक कम हो जाए।

गांव के लोगों ने भी शिक्षकों को धन्यवाद देते हुए कहा कि आज के समय में जब हर कोई सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में सोचता है, तब ऐसे लोग समाज की सच्ची धरोहर हैं। शिक्षक, जो शिक्षा का दीप जलाते हैं, वही समाज में सेवा का भी उदाहरण बन सकते हैं – यह घटना उसका सटीक उदाहरण है।

इस पूरी घटना ने समाज को यह भी सिखाया कि एक शिक्षक का कार्य सिर्फ विद्यार्थियों को पढ़ाना नहीं होता, बल्कि वह समाज के कमजोर वर्गों को सहारा देने का माध्यम भी बन सकता है। शिक्षकों का यह कार्य न सिर्फ मानवता की सेवा है, बल्कि उनके पेशे की गरिमा को भी नई ऊंचाई देता है।

इस प्रेरणादायक समाचार से यह स्पष्ट होता है कि यदि शिक्षकों की सोच समाज-सेवा की हो, तो वे ना केवल भविष्य के नागरिकों को शिक्षित कर सकते हैं, बल्कि वर्तमान समाज की समस्याओं को भी हल करने में योगदान दे सकते हैं। शिक्षकों का यह योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसी मिसाल बन सकता है, जिससे वे सीखें कि इंसानियत और मदद का जज़्बा ही सच्ची शिक्षा का सार है।


👉UP TGT परीक्षा 2025 स्थगित – 14 और 15 मई की परीक्षा अब नई तिथि पर होगी        https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/TGT.html


👉उत्तर प्रदेश में जातिवार गणना के लिए जियो फेंसिंग, टैबलेट और एआई तकनीक का होगा प्रयोग: एक ऐतिहासिक पहल https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/censusnews.html


👉AI टीचर ‘सुमन मैडम’ – झांसी के शिक्षक का अनोखा नवाचार https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/ai.html


👉बस्ती में ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी करने वाले शिक्षक को जेल  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/social%20media%20post%20.html

Monday, April 28, 2025

पहले देश, फिर मांगें: पहलगाम शहीदों को श्रद्धांजलि और राष्ट्रहित का संकल्प

 

पहले देश, फिर मांगें: पहलगाम शहीदों को श्रद्धांजलि और राष्ट्रहित का संकल्प......

 



देश से बड़ा कुछ नहीं होता। जब भी कोई मुश्किल समय आता है, हमें अपने निजी हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को सबसे पहले रखना चाहिए। हाल ही में जो दर्दनाक घटना हमारे देश में घटी, उसने पूरे देशवासियों को सोचने पर मजबूर कर दिया। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा पहलगाम में किए गए भीषण आतंकी हमले में हमारे 27 निर्दोष भारतीय भाई-बहनों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस हादसे ने देश को गहरे शोक और आक्रोश से भर दिया है। इस कठिन समय में, अटेवा संगठन ने एक बहुत ही समझदारी भरा फैसला लिया है। उन्होंने 1 मई को दिल्ली के जंतर मंतर पर पुरानी पेंशन बहाली के लिए प्रस्तावित धरना स्थगित कर दिया है। यह निर्णय न केवल संवेदनशीलता दिखाता है बल्कि राष्ट्र के प्रति सच्ची निष्ठा का प्रमाण भी है।

जब देश संकट में हो, तो अपने हक और अधिकारों की लड़ाई को कुछ समय के लिए रोकना ही असली देशभक्ति है। देश रहेगा, तभी हम रहेंगे। अगर हमारे देश की सुरक्षा खतरे में होगी, तो हमारे अधिकार, हमारी सुविधाएं, हमारी पेंशन, सब कुछ अर्थहीन हो जाएगा। सेना में कार्यरत लेफ्टिनेंट विनय नरवाल भी इस हमले में वीरगति को प्राप्त हुए। सेना में आज भी पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू है, लेकिन पेंशन का लाभ तभी लिया जा सकता है जब व्यक्ति जीवित रहे। शांति और सुरक्षा के बिना न पेंशन का कोई मतलब रह जाता है और न ही किसी सुविधा का।

पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने हमें यह सिखाया है कि सबसे पहले देश की रक्षा जरूरी है। हमारे नागरिकों की जान बचाना जरूरी है। हमारा भविष्य तभी सुरक्षित है जब हमारा देश सुरक्षित है। अगर देश के नागरिक असुरक्षित होंगे तो किसी भी प्रकार की मांग, आंदोलन, सुविधाएं सब व्यर्थ हैं। इसलिए इस समय हम सबकी पहली प्राथमिकता देश की एकता और अखंडता को बचाना है। हमें यह समझना चाहिए कि व्यक्तिगत हितों की लड़ाई बाद में लड़ी जा सकती है, लेकिन राष्ट्रहित सर्वोपरि है।

आज भारत सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्यवाही का ऐलान किया है। यह समय है कि हम सब भारतवासियों को सरकार और सुरक्षाबलों का पूर्ण समर्थन करना चाहिए। आतंकवाद का सामना एकजुट होकर ही किया जा सकता है। हमें अपने दुख, अपनी मांगों को कुछ समय के लिए भूलकर शहीदों के परिवारों के साथ खड़ा होना चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि जो लोग देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर देते हैं, उनके कारण ही हम सुरक्षित रह पाते हैं।

शिक्षक, कर्मचारी, सैनिक, किसान, व्यापारी — सभी देश की उन्नति में अपना योगदान देते हैं। लेकिन इन सबका योगदान तभी अर्थपूर्ण होता है जब देश का वातावरण शांत और सुरक्षित हो। कोई भी विकास तभी संभव है जब देश की सीमाएं सुरक्षित हों, जब देश के भीतर शांति हो। इसलिए इस समय जरूरी है कि हम राष्ट्रहित को प्राथमिकता दें।

जब देश की रक्षा में लगे जवान अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं, तब हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपने छोटे-छोटे हितों को भूलकर राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए काम करें। इस समय आंदोलन, धरना, प्रदर्शन का समय नहीं है। यह समय है देश के साथ खड़े होने का, आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का।

आज हमारे 27 भाई-बहन आतंकी हमले में शहीद हो गए। उनके घरों में मातम पसरा है। उनके परिवारों का दुख शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उन परिवारों का दर्द समझना और उनके साथ खड़ा होना हम सबका नैतिक दायित्व है। जब देश पर हमला होता है तो वह केवल एक जगह या कुछ लोगों पर हमला नहीं होता, वह हम सब पर हमला होता है।

अटेवा द्वारा धरना स्थगित करने का निर्णय एक उदाहरण है कि कैसे देशहित को निजी मांगों से ऊपर रखा जा सकता है। हमें इस निर्णय से प्रेरणा लेकर हमेशा यह याद रखना चाहिए कि देश सबसे पहले है। अगर देश सुरक्षित है तो हम अपनी सभी मांगें भविष्य में पूरी कर सकते हैं। लेकिन अगर देश ही सुरक्षित नहीं रहा तो कोई आंदोलन, कोई मांग, कोई सुविधा बच नहीं पाएगी।

देशभक्ति केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराने से पूरी नहीं होती। असली देशभक्ति तो तब होती है जब हम कठिन समय में अपने निजी हितों को त्याग कर देश के साथ खड़े होते हैं। जब हम शहीदों के बलिदान को याद करते हैं और उनके सपनों का भारत बनाने के लिए काम करते हैं।

आज आतंकवाद केवल गोली चलाकर नहीं लड़ रहा, बल्कि वह हमारे समाज में डर फैलाकर हमें तोड़ने की कोशिश कर रहा है। अगर हम अपने छोटे-छोटे स्वार्थों में उलझकर एकता भूल जाएंगे तो आतंकवादी अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे। लेकिन अगर हम एकजुट रहेंगे, अपने मतभेदों को भूलकर देश के साथ खड़े रहेंगे तो कोई भी ताकत हमें हरा नहीं सकती।

पहलगाम के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनका बलिदान व्यर्थ न जाने दें। हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम हर परिस्थिति में देश को सर्वोपरि रखेंगे। देशहित में जो भी त्याग करना पड़े, हम करेंगे।

हमें यह भी समझना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई एक दिन की नहीं है। यह एक लंबी लड़ाई है जिसमें धैर्य, एकता और समर्पण की जरूरत है। हमें अपने सैनिकों, अपने सुरक्षाबलों पर भरोसा रखना चाहिए और उन्हें अपना पूर्ण समर्थन देना चाहिए।

जब देश सुरक्षित रहेगा, जब देश में अमन रहेगा, तब ही हम अपने हक और अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं। तब ही हम पेंशन बहाली की लड़ाई को भी सही तरीके से आगे बढ़ा सकते हैं।

आज का दिन हमें यह सिखाता है कि पहले देश, फिर अन्य मांगें। राष्ट्र सबसे पहले। व्यक्तिगत हित बाद में।

आइए, हम सब मिलकर पहलगाम के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करें और यह संकल्प लें कि हम हर हाल में देश के साथ खड़े रहेंगे। हम आतंकवाद के खिलाफ एकजुट रहेंगे। हम अपने निजी स्वार्थों को देशहित के सामने छोटा मानेंगे।

भारत माता की जय! जय हिंद! वंदे मातरम्!



 

👉जनपद के भीतर BEO के बदले विकास खण्ड

https://www.updatemarts.com/2025/04/beo_28.html

👉हर सप्ताह परखी जाएगी विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता

👉समस्त डायट प्राचार्य, AD BASIC, BSA, BEO, DCs, SRG, ARP एवं शिक्षक संकुल कृपया ध्यान दें

👉95 हजार विद्यार्थियों के अभिभावकों के खातों में शीघ्र जाएगी यूनिफॉर्म की रकम https://basicshikshakhabar.com/2025/04/ff-715/


 


भविष्य के स्कूलों में एआई टीचर का आगमन: शिक्षक और मानवता का महत्व

 


हमारा और हमारे विद्यालयों का भविष्य अब तेजी से बदल रहा है। आने वाला समय ऐसा होगा, जब हमारे स्कूलों में इंसान नहीं, बल्कि एआई टीचर पढ़ाएंगे। एआई टीचर यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बने शिक्षक होंगे, जिन्हें न सैलरी देनी होगी, न भत्ते, न ही पेंशन देना पड़ेगा। ये टीचर कभी छुट्टी नहीं मांगेंगे, बीमार नहीं पड़ेंगे और हमेशा समय पर पढ़ाई कराएंगे। लेकिन क्या ये एआई टीचर बच्चों को वह सच्चा मार्गदर्शन दे पाएंगे जो एक इंसानी शिक्षक देता है? आज के शिक्षक बच्चों को केवल पढ़ाई ही नहीं कराते, बल्कि उन्हें संस्कार, समझदारी और जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। जब बच्चे किसी परेशानी में होते हैं तो एक इंसानी शिक्षक उन्हें समझता है, सहारा देता है। लेकिन एआई टीचर केवल मशीन की तरह काम करेंगे। वे बच्चों के दुख, खुशी, डर या सपनों को नहीं समझ पाएंगे। सरकारों के लिए एआई टीचर सुविधाजनक हो सकते हैं क्योंकि इससे पैसे बचेंगे, लेकिन क्या इससे बच्चों का सही विकास हो पाएगा? गाँवों और कस्बों में आज भी बच्चे अपने शिक्षकों से जीवन के बड़े सबक सीखते हैं। अगर भविष्य में केवल मशीनें बच्चों को पढ़ाएंगी, तो बच्चों में संवेदनशीलता, करुणा और समझ कम हो सकती है। वे केवल जानकारी के भंडार बन जाएंगे, पर इंसानी भावना से खाली हो सकते हैं। स्कूल सिर्फ पढ़ाई की जगह नहीं हैं, वे बच्चों के व्यक्तित्व को संवारने का स्थान हैं। एक इंसानी शिक्षक अपने अनुभव, ज्ञान और प्यार से बच्चों को जीवन का सही रास्ता दिखाता है। एआई टीचर केवल तय कार्यक्रम के अनुसार पढ़ाएंगे। वे बच्चों के सवालों के पीछे छुपी जिज्ञासा को नहीं समझ पाएंगे, न ही बच्चों के विचारों को उड़ान दे पाएंगे। इसलिए तकनीक का उपयोग हमें शिक्षकों की सहायता के लिए करना चाहिए, न कि उनकी जगह लेने के लिए। आज डिजिटल बोर्ड, ऑनलाइन क्लास जैसे साधनों ने शिक्षा को आसान बनाया है, लेकिन इंसानी शिक्षक की जगह कभी नहीं ले सकते। इंसानी शिक्षक बच्चों की आँखों से उनका मन पढ़ सकते हैं, उनकी समस्याएं समझ सकते हैं। एक मशीन कभी यह नहीं कर सकती। अगर पूरी शिक्षा मशीनों के हाथ में चली गई तो आने वाली पीढ़ी संवेदनहीन हो सकती है। सोचने, समझने और महसूस करने की शक्ति कम हो सकती है। इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि शिक्षा केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि अच्छा इंसान बनाना है। शिक्षक वह दीपक है जो बच्चों के जीवन में उजाला करता है। मशीनें चाहे जितनी तेज हो जाएं, लेकिन वे उस दीपक की जगह नहीं ले सकतीं। अगर एआई टीचर आएंगे तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वे केवल सहायक बनें, शिक्षक नहीं। हमारे विद्यालयों का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब इंसान और तकनीक दोनों साथ मिलकर काम करेंगे। शिक्षकों का सम्मान करना जरूरी है क्योंकि वे समाज का निर्माण करते हैं। एक मशीन कभी समाज नहीं बना सकती। शिक्षा का मकसद केवल नौकरी पाना नहीं है, बल्कि एक अच्छा इंसान बनाना है। इसलिए हमें अपने विद्यालयों में एआई टीचर को सहायक के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए, मुख्य शिक्षक के रूप में नहीं। हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि अपने असली शिक्षकों का सम्मान करें और तकनीक का सही उपयोग करें। भविष्य तभी उज्ज्वल रहेगा जब मानवता और ज्ञान साथ-साथ चलेंगे। शिक्षक जिंदाबाद, मानवता जिंदाबाद।


👉शिक्षा निदेशालय में भीषण आग पांच हजार फाइलें जलकर राख, घटना की जांच के लिए समिति गठित

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_329.html


👉निकली शिक्षक पदों हेतु नौकरियां, करें आवेदन, देखें विज्ञप्ति

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_103.html


👉बिना सूचना/बिना अवकाश के विद्यालय से दीर्घावधि से अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने के सम्बन्ध में ।

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_872.html


👉शिक्षकों ने अपराह्न 1.30 के पहले छोड़ा स्कूल, तो होगी कार्यवाही

https://www.updatemarts.com/2025/04/130.html




Saturday, April 26, 2025

TSCT: संकट में शिक्षकों का सच्चा साथी….

 

TSCT एक ऐसा संगठन है जो शिक्षकों की मदद के लिए बनाया गया है। जब कोई शिक्षक साथी किसी परेशानी में होता है, जैसे कि बीमारी, दुर्घटना या अचानक निधन हो जाता है, तब TSCT उसकी और उसके परिवार की सहायता करता है। TSCT का पूरा नाम Teachers Social Contribution Team होता है। इस संगठन का काम है कि जब भी किसी शिक्षक को मदद की जरूरत हो, तो तुरंत सहायता दी जाए। अगर कोई शिक्षक साथी दुनिया से चला जाता है, तो उसके परिवार को आर्थिक मदद दी जाती है ताकि वे अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें।

TSCT में कई शिक्षक भाई-बहन जुड़े हुए हैं। सभी साथी समय-समय पर अपनी तरफ से छोटा-छोटा सहयोग करते हैं। इस तरह जब भी कोई मुसीबत आती है, तो संगठन के पास पहले से पैसा जमा होता है और तुरंत मदद दी जा सकती है। TSCT का नियम है कि मदद देने में कोई देरी नहीं होनी चाहिए, ताकि परेशान परिवार को जल्दी सहारा मिल सके। संगठन के सभी काम पारदर्शी तरीके से होते हैं यानी जो भी सहयोग आता है या दिया जाता है, उसकी पूरी जानकारी सभी सदस्यों को दी जाती है।

TSCT में कोई भी शिक्षक भाई-बहन शामिल हो सकता है। इसमें कोई जबरदस्ती नहीं होती। जो अपनी इच्छा से समाज सेवा करना चाहते हैं, वही इसमें जुड़ते हैं। संगठन के पास एक मोबाइल ऐप भी है, जिससे मदद भेजना और जानकारी लेना आसान हो जाता है। आज के समय में जब सब कुछ मोबाइल से हो रहा है, TSCT ने भी अपनी सेवा को तेज और आसान बना दिया है।

यह संगठन इसलिए भी खास है क्योंकि यहां किसी सरकारी मदद का इंतजार नहीं करना पड़ता। जब कोई संकट आता है, तो TSCT तुरंत मदद कर देता है। शिक्षक समाज को मजबूत बनाने के लिए यह संगठन बहुत जरूरी है। जब शिक्षकों को सुरक्षा और सहारा मिलेगा, तभी वे भी बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकेंगे और समाज को आगे बढ़ा सकेंगे।

TSCT में शामिल होने से हर सदस्य को यह भरोसा होता है कि अगर भविष्य में उसे भी कोई परेशानी आई, तो संगठन उसके साथ खड़ा रहेगा। संगठन सभी सदस्यों का सम्मान भी करता है और समय-समय पर सामाजिक कार्यक्रम जैसे रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य जांच, सम्मान समारोह आदि भी कराता है।

अब तक TSCT ने कई ऐसे परिवारों की मदद की है जिनके घर के सदस्य शिक्षक साथी अचानक बीमार हुए या दुनिया से चले गए। कई बार ऐसे दुखद समय में सरकारी मदद आने में देर लगती है, लेकिन TSCT बिना देरी के मदद करता है। बहुत से शिक्षक साथी कहते हैं कि TSCT ने मुश्किल समय में उन्हें एक परिवार की तरह सहारा दिया। सभी शिक्षक मिलकर जब थोड़ा-थोड़ा सहयोग करते हैं, तो बड़ी मदद बन जाती है। यही TSCT की असली ताकत है।

भविष्य में TSCT और भी बड़े स्तर पर काम करना चाहता है। संगठन की योजना है कि जरूरतमंद शिक्षकों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति दी जाए, आवासीय सहायता मिले, पेंशन न पाने वाले शिक्षकों को मदद दी जाए और सभी के लिए स्वास्थ्य बीमा भी कराया जाए। TSCT यह भी चाहता है कि शिक्षकों के लिए एक ऐसा माहौल बने जिसमें वे खुद को सुरक्षित महसूस करें और बिना किसी डर के अपना जीवन आगे बढ़ा सकें।

TSCT मानता है कि शिक्षक केवल पढ़ाने का काम ही नहीं करते, बल्कि समाज के निर्माण में भी बड़ा योगदान देते हैं। इसलिए TSCT ने कई सामाजिक काम भी किए हैं जैसे गरीब बच्चों को किताबें देना, पेड़ लगाना और लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देना। ऐसे काम करके TSCT यह बताता है कि शिक्षक समाज के हर क्षेत्र में बदलाव ला सकते हैं।

आज TSCT उन सभी शिक्षकों के लिए एक उम्मीद बन चुका है जो किसी संकट में पड़ जाते हैं। यह संगठन न केवल आर्थिक सहायता करता है, बल्कि भावनात्मक रूप से भी लोगों का सहारा बनता है। जब कोई शिक्षक दुखी होता है, तो TSCT उसे यह भरोसा दिलाता है कि वह अकेला नहीं है। संगठन का हर सदस्य एक दूसरे के साथ खड़ा रहता है।

अगर हम चाहते हैं कि शिक्षक समाज मजबूत हो, तो हमें भी ऐसे संगठनों को सहयोग देना चाहिए। जो सहयोग हम आज करेंगे, वही कल हमारे लिए एक मजबूत सुरक्षा बन सकता है। इसीलिए हमें समय रहते TSCT से जुड़ना चाहिए और इसमें अपना योगदान देना चाहिए। संगठन की ताकत सभी सदस्यों के सहयोग से बढ़ती है। जब सभी मिलकर साथ चलते हैं, तो कोई भी मुश्किल हमें हरा नहीं सकती। आज का छोटा सा योगदान कल किसी के जीवन में बहुत बड़ा सहारा बन सकता है।

आइए, हम सब मिलकर TSCT को और मजबूत बनाएं। एक दूसरे की मदद करें और शिक्षक समाज को गर्व के साथ आगे बढ़ाएं। जब हम मिलकर काम करेंगे, तभी हमारा समाज और देश भी मजबूत बनेगा। TSCT हमारे लिए एक परिवार की तरह है, जिसमें हर सदस्य का सुख-दुख बांटा जाता है। इस परिवार को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी हम सबकी है।


👉कानपुर देहात: स्कूल से कोल्डड्रिंक लाते समय छात्र की ट्रैक्टर से कुचलकर मौत, परिवार में मातम

https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/04/blog-post_89.html

कानपुर देहात: स्कूल से कोल्डड्रिंक लाते समय छात्र की ट्रैक्टर से कुचलकर मौत, परिवार में मातम

 



कानपुर देहात जिले के अमराहत थाना क्षेत्र के सिहुरा गाँव में शुक्रवार को एक बेहद दुखद और दिल को झकझोर देने वाली घटना सामने आई। गाँव के साविलियन विद्यालय के आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र हर्ष कुमार की तेज रफ्तार ट्रैक्टर से कुचलकर मौके पर ही मौत हो गई। हर्ष कुमार रोज की तरह स्कूल गया था। स्कूल में पढ़ाई के बीच उसके शिक्षक ने उसे कोल्डड्रिंक मंगाने के लिए गाँव की दुकान पर भेजा। हर्ष दुकान से कोल्डड्रिंक लेकर जैसे ही लौट रहा था, तभी गाँव के काली माता मंदिर मोड़ के पास पीछे से आ रहे एक तेज रफ्तार ट्रैक्टर ने उसे रौंद दिया। हादसा इतना भयानक था कि हर्ष की मौके पर ही मौत हो गई।

गाँव वालों ने हादसा होते ही शोर मचाया और दौड़कर हर्ष के घरवालों को सूचना दी। घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थीं, इसलिए सभी लोग खुशी के माहौल में थे, लेकिन यह खबर सुनते ही घर में कोहराम मच गया। हर्ष की माँ निर्मला देवी, बहन कुशमा देवी, वीरवती, कमला और हसना आदि रोते-बिलखते घटनास्थल पर पहुँचीं। माँ के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। बहनों की चीख-पुकार से पूरा माहौल गमगीन हो गया। पूरे गाँव में शोक की लहर दौड़ गई। जो घर शादी के गीतों से गूंज रहा था, वहाँ अब मातम पसरा हुआ है।

हर्ष कुमार अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। परिवार में उसकी सबसे बड़ी बहन गुनवती की पहले ही शादी हो चुकी थी। अब छोटी बहन कुशमा की शादी 5 मई को होनी थी। घर में शादी की तैयारियाँ जोरों पर थीं। रिश्तेदार बुलाए जा रहे थे, घर में हल्दी और मेहंदी की तैयारियाँ चल रही थीं, लेकिन इस हादसे ने सारी खुशियाँ छीन लीं। अब घर में सिर्फ आँसू और मातम रह गया है। परिवार वालों का कहना है कि हर्ष बहुत होशियार और समझदार लड़का था। वह पढ़ाई में भी अच्छा था और अपने माता-पिता का सपना था कि वह बड़ा होकर कुछ बनकर उनका नाम रोशन करेगा।

हादसे के बाद ट्रैक्टर चालक गाड़ी छोड़कर मौके से फरार हो गया। ग्रामीणों ने ट्रैक्टर को घेर लिया और तुरंत पुलिस को सूचना दी। थाना प्रभारी सुरजीत सिंह दल बल के साथ मौके पर पहुँचे। उन्होंने हर्ष के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया और ट्रैक्टर को कब्जे में ले लिया। पुलिस ने ट्रैक्टर चालक की पहचान कर ली है और उसकी तलाश में दबिश दे रही है। थाना प्रभारी ने कहा कि जल्द ही आरोपी चालक को गिरफ्तार कर लिया जाएगा और उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी।

हर्ष के पिता शिवसागर निषाद और गाँव के अन्य लोगों ने बताया कि साविलियन विद्यालय में शिक्षक अक्सर बच्चों को स्कूल के काम के अलावा निजी काम के लिए भी भेजते हैं। कभी चाय मंगवाते हैं, कभी कोल्डड्रिंक और कभी अन्य सामान। इसी तरह शुक्रवार को भी शिक्षक ने हर्ष को कोल्डड्रिंक लाने के लिए भेजा था। यदि शिक्षक बच्चों को निजी काम के लिए बाहर न भेजते तो शायद यह हादसा टल सकता था और हर्ष आज जीवित होता। गाँव वालों ने शिक्षकों के इस गैरजिम्मेदाराना रवैये पर गहरी नाराजगी जताई है और दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की माँग की है।

राजपुर खंड शिक्षा अधिकारी संजय गुप्ता ने कहा कि इस पूरे मामले की जाँच कराई जाएगी। यदि जाँच में शिक्षक दोषी पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने कहा कि स्कूल में पढ़ाई के समय बच्चों से निजी काम करवाना नियमों के खिलाफ है। बच्चों को स्कूल में सिर्फ पढ़ाई और गतिविधियों में ही लगाया जाना चाहिए। इस मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है और दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।

गाँव के बुजुर्गों और समाज के अन्य लोगों ने भी इस दुखद हादसे पर दुख जताया और कहा कि स्कूल शिक्षा का मंदिर होता है। वहाँ बच्चों से सामान मंगवाना या निजी काम करवाना बहुत गलत है। इस तरह की घटनाएँ बच्चों की जान के लिए खतरा बन सकती हैं। बच्चों को सुरक्षित माहौल देना सभी शिक्षकों और स्कूल प्रशासन की जिम्मेदारी है। यदि शिक्षक ही बच्चों की सुरक्षा को लेकर लापरवाह रहेंगे तो अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने से डरने लगेंगे।

गाँव में अभी भी मातम पसरा हुआ है। हर कोई हर्ष की मौत पर दुखी है। गाँव के लोग हर्ष के परिवार को ढांढस बंधाने उनके घर पहुँच रहे हैं, लेकिन कोई भी शब्द उनके दुख को कम नहीं कर पा रहा। माँ-बाप की आँखों में आँसू और दिल में अपने बेटे को खोने का दर्द साफ नजर आ रहा है। बहन कुशमा, जिसकी शादी की तैयारियाँ चल रही थीं, अब भाई के बिना कैसे शादी करेगी, यह सोचकर हर किसी की आँखें भर आ रही हैं।

पुलिस का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्यवाही की जाएगी। चालक को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर न्याय दिलाने की कोशिश की जाएगी। वहीं शिक्षा विभाग की ओर से भी जाँच शुरू कर दी गई है। गाँव के लोग भी इस मामले में न्याय की माँग कर रहे हैं। उनका कहना है कि बच्चों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वालों को सख्त सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई और मासूम बच्चा ऐसी लापरवाही का शिकार न हो।

यह हादसा पूरे समाज के लिए एक बड़ा सबक है। बच्चों को स्कूल भेजने का मतलब है कि वे सुरक्षित रहेंगे और पढ़ाई करेंगे, न कि कि वे किसी निजी काम में भेजे जाएंगे। बच्चों की सुरक्षा को सबसे ऊपर रखना चाहिए। इस घटना से सबको यह सीख लेनी चाहिए कि बच्चों के साथ कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। किसी भी कीमत पर बच्चों से गैरशैक्षणिक कार्य नहीं करवाना चाहिए।

हर्ष कुमार की असमय मौत ने पूरे गाँव, जिले और समाज को झकझोर कर रख दिया है। उसकी मासूम मुस्कान, उसके सपने और उसके माता-पिता की उम्मीदें सब कुछ एक झटके में खत्म हो गईं। अब सिर्फ उसकी यादें रह गई हैं, जो उसके परिवार और गाँव वालों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी। हर्ष की मौत ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम अपने बच्चों को वाकई सुरक्षित माहौल दे पा रहे हैं।

इस दुखद घटना से यह भी साफ हो गया है कि स्कूलों में बच्चों के अधिकारों का सम्मान करना कितना जरूरी है। शिक्षा का अधिकार सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि बच्चों की सुरक्षा और गरिमा का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए। इस तरह की घटनाएँ रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए और उनका पालन कड़ाई से होना चाहिए।

आज हर्ष कुमार हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी मौत एक सवाल छोड़ गई है - क्या हम भविष्य में अपने बच्चों को सुरक्षित और सम्मानपूर्ण माहौल दे पाएंगे? इस सवाल का जवाब हमें ढूँढना ही होगा। प्रशासन, शिक्षा विभाग, स्कूलों के शिक्षक और समाज को मिलकर यह संकल्प लेना चाहिए कि अब कोई भी बच्चा स्कूल के दौरान ऐसी लापरवाही का शिकार न हो।

हर्ष कुमार की आत्मा को शांति मिले और उसके परिवार को इस असीम दुःख को सहने की शक्ति मिले। यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।





सोशल मीडिया पोस्ट से फंसा सरकारी शिक्षक, पहलगाम हमले को बताया प्रोपेगेंडा, पुलिस ने किया गिरफ्तार


पहुलगाम में 22 अप्रैल 2025 का आतंकी हमला – बायसरन पार्क में निर्दोष हिंदू पर्यटकों की हत्या


अंतर्जनपदीय म्यूच्यूअल ट्रांसफर स्पेशल
https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_856.html



सोशल मीडिया पोस्ट से फंसा सरकारी शिक्षक, पहलगाम हमले को बताया प्रोपेगेंडा, पुलिस ने किया गिरफ्तार





हाल ही में एक सरकारी शिक्षक का मामला सामने आया है, जो अपने सोशल मीडिया स्टेटस के कारण बड़ी मुसीबत में फंस गया है। शिक्षक ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले को एक "प्रोपेगेंडा" बताया था। इस बयान को सोशल मीडिया पर डालते ही यह तेजी से वायरल हो गया और पुलिस तक मामला पहुँच गया। पुलिस का कहना है कि इस तरह की पोस्ट न केवल समाज में शांति भंग कर सकती है, बल्कि आतंकियों की सोच को समर्थन भी दे सकती है। पुलिस ने इस शिक्षक को तुरंत गिरफ्तार कर लिया। वहीं शिक्षा विभाग ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए शिक्षक को निलंबित कर दिया है।

बताया जा रहा है कि शिक्षक ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक स्टेटस डाला था, जिसमें पहलगाम में हुए हमले को फर्जी और योजनाबद्ध बताया गया था। शिक्षक ने लिखा था कि यह सब एक साजिश है और लोगों को गुमराह करने के लिए फैलाया जा रहा है। जैसे ही यह स्टेटस सामने आया, लोगों में नाराजगी फैल गई। कई लोगों ने इस पर आपत्ति जताई और तुरंत पुलिस को इसकी सूचना दी। पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी।

पुलिस का कहना है कि इस तरह की पोस्ट बहुत संवेदनशील माहौल में जहर घोल सकती है। खासकर जब देश का माहौल पहले से ही आतंकवाद के कारण तनावपूर्ण है, ऐसे में किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा इस तरह का बयान देना बहुत गैरजिम्मेदाराना है। पुलिस ने शिक्षक को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। प्रारंभिक पूछताछ में शिक्षक ने अपना अपराध कबूल कर लिया है और कहा है कि उसने यह स्टेटस बिना सोचे-समझे डाला था।

शिक्षा विभाग ने भी मामले को गंभीरता से लिया है। विभाग ने तत्काल प्रभाव से शिक्षक को निलंबित कर दिया है। विभाग का कहना है कि सरकारी कर्मचारियों को ऐसे संवेदनशील मामलों पर सोच-समझकर बयान देना चाहिए। सरकारी सेवा में रहते हुए किसी भी तरह की गैरजिम्मेदाराना हरकत सहन नहीं की जाएगी। विभाग ने यह भी कहा है कि शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाएगी और उसकी सेवाओं पर आगे फैसला जांच पूरी होने के बाद लिया जाएगा।

लोगों का भी इस मामले पर तीखा प्रतिक्रिया सामने आया है। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि जब एक शिक्षक, जो बच्चों को सही और गलत का पाठ पढ़ाता है, खुद इस तरह की अफवाहें फैलाता है, तो समाज का क्या होगा। लोगों ने सरकार से मांग की है कि ऐसे कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए ताकि दूसरों को भी सबक मिले।

देश में इस समय सुरक्षा को लेकर बहुत सतर्कता बरती जा रही है। आतंकी घटनाओं के बाद सुरक्षा एजेंसियां लगातार अलर्ट पर हैं। ऐसे में किसी भी तरह की अफवाह या गलत सूचना समाज में तनाव बढ़ा सकती है। सरकार और पुलिस दोनों इस तरह की हरकतों पर कड़ी नजर रख रही हैं। पुलिस ने लोगों से भी अपील की है कि अगर वे किसी भी तरह की भड़काऊ या गलत सूचना देखें तो तुरंत पुलिस को सूचित करें।

यह मामला यह भी बताता है कि सोशल मीडिया का उपयोग कितनी जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए। आजकल हर व्यक्ति के पास सोशल मीडिया पर अपनी बात रखने की आजादी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम बिना सोच-विचार के कुछ भी लिखें। खासकर सरकारी कर्मचारियों को तो और भी ज्यादा सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि उनके हर शब्द को जनता गंभीरता से लेती है।

पुलिस ने यह भी बताया कि शिक्षक का स्टेटस उन ग्रुप्स और पेजों पर भी फैल गया था, जो देश विरोधी सोच रखते हैं। इस वजह से यह मामला और भी गंभीर बन गया। पुलिस अब यह भी जांच कर रही है कि कहीं शिक्षक के किसी आतंकी संगठन से संबंध तो नहीं हैं। हालांकि अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन जांच जारी है। पुलिस का कहना है कि इस तरह की किसी भी साजिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

शिक्षा विभाग ने अपने सभी कर्मचारियों को भी चेतावनी जारी की है कि वे सोशल मीडिया पर कोई भी टिप्पणी करते समय सतर्क रहें। विभाग ने कहा है कि अगर कोई भी कर्मचारी सरकारी सेवा के नियमों का उल्लंघन करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। विभाग ने सोशल मीडिया आचार संहिता का पालन करने की भी सलाह दी है।

यह घटना समाज के लिए भी एक सीख है। हमें यह समझना चाहिए कि सोशल मीडिया पर लिखी गई एक छोटी सी बात भी बड़े विवाद का कारण बन सकती है। जब देश के हालात नाजुक हों, तो और भी जिम्मेदारी से व्यवहार करना चाहिए। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारी बातें दूसरों को प्रभावित कर सकती हैं।

लोगों ने शिक्षक के इस कृत्य की निंदा करते हुए कहा है कि जब शिक्षक ही गलत संदेश फैलाएंगे, तो छात्रों को क्या सिखाएंगे। शिक्षक का काम बच्चों को सही दिशा दिखाना है, न कि अफवाहें फैलाना। इस घटना के बाद समाज में शिक्षकों की भूमिका को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। कई लोगों ने कहा कि शिक्षकों को भी सोशल मीडिया प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे समझ सकें कि किस तरह की बातें करना सही है और किस तरह की बातें नहीं।

पुलिस ने शिक्षक के मोबाइल फोन और सोशल मीडिया अकाउंट की भी जांच शुरू कर दी है। पुलिस यह जानने की कोशिश कर रही है कि क्या उसने पहले भी इस तरह की कोई पोस्ट की थी या किसी आतंकी ग्रुप के संपर्क में था। पुलिस ने कहा है कि अगर जांच में कुछ भी संदिग्ध पाया गया तो शिक्षक पर देशद्रोह जैसी गंभीर धाराओं मंब भी मामला दर्ज किया जा सकता है।

सरकार ने भी इस पूरे मामले पर कड़ी नजर रखी है। सरकार का कहना है कि जो भी देश की एकता और अखंडता के खिलाफ जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। सरकार ने यह भी कहा है कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कड़ी सजा दी जाएगी।

इस घटना से साफ है कि सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। एक गलत शब्द भी आपको बड़ी मुसीबत में डाल सकता है। खासकर जब आप सरकारी सेवा में हों, तो आपकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। इस मामले ने सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए एक चेतावनी का काम किया है कि वे अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लें और बिना जांचे-परखे कोई भी टिप्पणी न करें।

अंत में, यह कहना गलत नहीं होगा कि यह घटना हमें सोशल मीडिया के सही उपयोग की अहमियत समझाती है। सोशल मीडिया एक शक्तिशाली साधन है, लेकिन इसका दुरुपयोग समाज को नुकसान पहुँचा सकता है। हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हम जो भी लिखें या शेयर करें, वह सही और जिम्मेदारी भरा हो। तभी हम एक सुरक्षित और मजबूत समाज का निर्माण कर सकते हैं। इस घटना ने यह भी साबित कर दिया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है और गलत काम करने वाले को सजा जरूर मिलेगी। शिक्षक का निलंबन और गिरफ्तारी समाज को एक संदेश देता है कि देश विरोधी गतिविधियों के लिए कोई जगह नहीं है, चाहे वह कोई भी हो।


👉पहेंलगाम में 22 अप्रैल 2025 का आतंकी हमला – बायसरन पार्क में निर्दोष हिंदू पर्यटकों की हत्या

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👉8वां वेतन आयोग: सरकारी वेतन और पेंशन में बदलाव की तैयारी

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👉पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन | 1 मई 2025 जंतर-मंतर चलो अभियान

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👉किसी भी शादी विवाह एवं निजी समारोह कार्यक्रम हेतु परिषदीय विद्यालय भवन किसी को भी उपलब्ध न करायें, BSA का आदेश जारी https://basicshikshakhabar.com/2025/04/r-808/



Thursday, April 24, 2025

8वां वेतन आयोग: सरकारी वेतन और पेंशन में बदलाव की तैयारी

 

                

              वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी लाएगा 8वां वेतन आयोग, केंद्र सरकार की तैयारी तेज



भारत में सरकारी कर्मचारी देश के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। केंद्र सरकार समय-समय पर उनके वेतन और पेंशन में बदलाव करती है ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें और अपने काम में मन लगाकर योगदान दे सकें। इसी उद्देश्य से हर 10 साल में एक वेतन आयोग (Pay Commission) बनाया जाता है। अब भारत सरकार 8वां वेतन आयोग (8th Pay Commission) बनाने जा रही है, जिसकी तैयारी जोरों पर है।

सरकार ने 8वें वेतन आयोग के कार्यक्षेत्र (Terms of Reference - ToR) को तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और यह प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है। उम्मीद है कि अगले दो से तीन हफ्तों के भीतर आयोग के कार्यक्षेत्र को अधिसूचित कर दिया जाएगा और इसके साथ ही आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के नाम भी घोषित कर दिए जाएंगे। इससे पहले इस प्रक्रिया में कई महीने की देरी हो चुकी थी, लेकिन अब सरकार ने इसे प्राथमिकता देते हुए तेज़ी से आगे बढ़ाया है।

सरकारी कर्मचारियों का वेतन समय के साथ बढ़ाना जरूरी होता है क्योंकि महंगाई बढ़ती रहती है, चीजों की कीमतें बदलती हैं और जीवन की आवश्यकताएं भी बढ़ती हैं। ऐसे में कर्मचारियों का वेतन यदि पुराना ही बना रहता है, तो वे अपनी और अपने परिवार की जरूरतें पूरी नहीं कर पाते। इसीलिए हर दशक में एक वेतन आयोग बनाया जाता है, जो यह तय करता है कि वर्तमान समय में वेतन और पेंशन की दरें क्या होनी चाहिए।

8वें वेतन आयोग का काम होगा कि वह सभी संबंधित पक्षों से बातचीत करके एक रिपोर्ट तैयार करे। इसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSUs) और कर्मचारी संगठनों के साथ बातचीत की जाएगी। आयोग को यह रिपोर्ट तैयार करने के लिए कम से कम एक वर्ष का समय मिल सकता है। रिपोर्ट 2026 के मध्य में आने की संभावना है। इसके बाद सरकार रिपोर्ट पर निर्णय लेकर 1 जनवरी 2026 से नए वेतन और पेंशन लागू करेगी। इसका लाभ सभी कर्मचारियों और पेंशनधारकों को मिलेगा और उन्हें पिछली तारीख से बकाया राशि भी दी जाएगी।

यह आयोग लगभग 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 65 लाख पेंशनभोगियों को सीधे प्रभावित करेगा। इन कर्मचारियों में सेना, अर्धसैनिक बल, रेलवे, डाक, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन जैसे विभागों के कर्मचारी शामिल हैं। राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के लाखों कर्मचारी भी अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होंगे क्योंकि वे भी केंद्र सरकार के वेतन आयोग की सिफारिशों को अपनाते हैं।

सरकार ने हाल ही में व्यय विभाग (Department of Expenditure) के माध्यम से एक विज्ञापन भी जारी किया है जिसमें 8वें वेतन आयोग के लिए 35 पदों को प्रतिनियुक्ति (deputation) के आधार पर भरने की बात कही गई है। इससे साफ है कि सरकार आयोग की स्थापना में तेजी ला रही है।

7वां वेतन आयोग 28 फरवरी 2014 को गठित हुआ था और इसकी सिफारिशें 1 जनवरी 2016 से लागू की गई थीं। उस समय आयोग की अध्यक्षता जस्टिस अशोक कुमार माथुर ने की थी। 7वें आयोग ने वेतन और पेंशन में औसतन 23.55% की वृद्धि की थी। इससे कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन 7,000 रुपये से बढ़ाकर 18,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया था और अधिकतम वेतन 90,000 रुपये से बढ़कर 2.5 लाख रुपये प्रति माह हो गया था। उस समय महंगाई भत्ता 119% था, जिसे नए वेतन में जोड़ दिया गया था।

7वें वेतन आयोग ने एक नई "वेतन मैट्रिक्स" भी प्रस्तावित की थी जिसमें पुरानी "पे बैंड" और "ग्रेड पे" की जगह एक सरल वेतन संरचना बनाई गई थी। इसमें हर स्तर पर वेतन तय कर दिया गया था और कर्मचारियों को उनके स्तर के अनुसार वेतन मिलने लगा था। आयोग ने 2.57 का फिटमेंट फैक्टर तय किया था, जिसका अर्थ था कि पुराने वेतन को 2.57 गुना करके नया वेतन तय किया गया।

अब 8वां वेतन आयोग भी ऐसा ही कोई नया फिटमेंट फैक्टर तय करेगा। यह तय करने में आयोग महंगाई, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), जीवन यापन की लागत और कर्मचारियों की खरीदने की शक्ति को ध्यान में रखेगा। जैसे 2016-17 में जब 7वां वेतन आयोग लागू हुआ था, तो सरकार के राजस्व खर्च में 9.9% की वृद्धि हो गई थी, जबकि इससे पहले यह केवल 4.8% थी। इससे सरकार के लिए पूंजीगत व्यय (capital expenditure) पर असर पड़ा था।

हालांकि, वेतन आयोग की सिफारिशों से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है, लेकिन इसका फायदा भी होता है। जब कर्मचारियों के पास अधिक पैसा आता है, तो वे ज्यादा खरीदारी करते हैं, जिससे बाजार में रौनक बढ़ती है और देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। इससे व्यापार और उद्योग को भी लाभ होता है।

लेकिन राज्यों और सार्वजनिक उपक्रमों के लिए यह हमेशा आसान नहीं होता। उन्हें भी केंद्र के समान वेतन लागू करना पड़ता है जिससे उन पर भी आर्थिक दबाव बढ़ जाता है। इसलिए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से पहले हर सरकार को अपने वित्तीय संसाधनों का आंकलन करना पड़ता है।

सरकार की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि 8वें वेतन आयोग की सिफारिशों के असर को नई मध्यम अवधि की वित्तीय योजनाओं और 16वें वित्त आयोग की सिफारिशों में भी जोड़ा जाएगा। 16वां वित्त आयोग वर्ष 2027 से शुरू होने वाले पांच सालों के लिए केंद्रीय करों के वितरण और राज्यों को मिलने वाले अनुदानों के बारे में सिफारिशें करेगा।

वेतन आयोग न केवल कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने का माध्यम है, बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो सामाजिक और आर्थिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। जब सरकारी कर्मचारियों को अच्छा वेतन मिलता है, तो वे बेहतर जीवन जी पाते हैं, उनका मनोबल बढ़ता है और वे अपने काम में और मेहनत करते हैं। इससे सरकार की योजनाओं को जमीन पर लागू करने में भी मदद मिलती है।

8वें वेतन आयोग से लाखों कर्मचारियों को उम्मीदें हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें उचित वेतन मिले, ताकि वे अपने परिवार की जरूरतें अच्छी तरह पूरी कर सकें। महंगाई के इस दौर में जब सब कुछ महंगा होता जा रहा है, वेतन में वृद्धि समय की मांग है। सरकार भी जानती है कि यदि कर्मचारियों को संतोषजनक वेतन नहीं मिला, तो उनका प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है।

इसलिए 8वें वेतन आयोग की सिफारिशें केवल वेतन और पेंशन का मामला नहीं हैं, यह कर्मचारियों की मेहनत को सम्मान देने और देश की आर्थिक प्रगति में योगदान देने का एक जरिया भी है


👉 8वां वेतन आयोग हेतु पैनल का 2-3 सप्ताह में होगा गठन: टीओआर, अध्यक्ष और वेतन संशोधन पर प्रमुख अपडेट

https://www.updatemarts.com/2025/04/8-2-3.html


👉 UP Board Result 2025 : यूपी बोर्ड परिणाम पर बड़ा अपडेट, कल 12:30 बजे जारी होंगे 10वीं-12वीं के नतीजे, आदेश जारी 

https://basicshikshakhabar.com/2025/04/d-3607/


👉पूरे प्रदेश में स्कूल अब 07:30-01:30। बच्चों की छुट्टी 12:30 बजे।

https://www.updatemarts.com/2025/04/0730-0130-1230.html



Monday, April 21, 2025

कानपुर देहात में शिक्षकों का सम्मान और प्रेरणा भरा आयोजन

 

शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता — सम्मान समारोह में जीवन भर की उपलब्धियों को सलाम



दिनांक 19 अप्रैल 2025 को उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ, अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ, ब्लॉक इकाई मैंथा कानपुर देहात द्वारा एक बहुत ही सुंदर और भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम विकासखंड मैथा के उन शिक्षकों के सम्मान में किया गया, जिन्होंने लंबे समय तक शिक्षा सेवा दी और 31 मार्च 2025 को सेवानिवृत्त हुए। यह समारोह टाउन एरिया गेस्ट हाउस शिवली, कानपुर देहात में बड़े ही अच्छे तरीके से और खुशी-खुशी मनाया गया। इस कार्यक्रम में सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों का सम्मान किया गया।

सेवानिवृत्त शिक्षकों में श्री अशोक कुमार शुक्ला जो कि जिला मंत्री, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ और प्रधानाध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय औगी मैंथा के पद पर कार्यरत थे, श्रीमती रमा वर्मा, प्रधानाध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय कारानी, श्रीमती उषा कटियार, प्रधानाध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय औरंगाबाद, श्री ओम नारायण कटियार, प्रधानाध्यापक, प्राथमिक विद्यालय रंजीतपुर और श्रीमती रुखसाना बेगम, सहायक अध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय जुगराजपुर शिवली शामिल रहे। सभी शिक्षकों को इस समारोह में बड़े सम्मान के साथ बुलाया गया और उनके कार्यकाल की प्रशंसा की गई।

कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के पूजन, अर्चन और माल्यार्पण से की गई। सबसे पहले मुख्य अतिथि श्री राजेंद्र सिंह, जिन्हें सभी राजू भैया के नाम से जानते हैं और जो कंचौसी टाउन एरिया के प्रथम अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष के पति हैं, ने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता नगर पंचायत शिवली के अध्यक्ष श्री अवधेश शुक्ला ने की।

कार्यक्रम में नगर पंचायत सिकंदरा की अध्यक्षा श्रीमती सीमा पाल और उनके प्रतिनिधि श्री पंकज पाल भी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इनके साथ ही खंड शिक्षा अधिकारी मैथा सुश्री सपना सिंह भी समारोह में पधारीं। सबसे पहले सभी अतिथियों का स्वागत उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जनपद और ब्लॉक पदाधिकारियों द्वारा माल्यार्पण और फूलों से किया गया।

इसके बाद मुख्य अतिथि श्री राजेंद्र सिंह राजू भैया ने सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों को मंच पर बुलाया और माल्यार्पण कर, प्रतीक चिन्ह भेंट कर और अंग वस्त्र पहनाकर सम्मानित किया। इसके साथ ही विशिष्ट अतिथियों ने भी सेवानिवृत्त शिक्षकों का सम्मान किया। पूरे माहौल में खुशियों और सम्मान की भावना दिख रही थी।

मुख्य अतिथि श्री राजेंद्र सिंह ने अपने भाषण में कहा कि शिक्षक कभी भी पूरी तरह से सेवानिवृत्त नहीं होता। वह केवल एक पड़ाव पार करता है, लेकिन समाज और शिक्षा के लिए उसका मार्गदर्शन जीवनभर बना रहता है। उन्होंने सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों को शुभकामनाएं दीं और कहा कि आप सभी का जीवन हमेशा खुशहाल और सुखद हो।

इसके बाद विशिष्ट अतिथि श्रीमती सीमा पाल ने कहा कि एक शिक्षक समाज का सबसे बड़ा निर्माता होता है। वह बच्चों को पढ़ाकर उनके भविष्य को संवारता है। उन्होंने सेवानिवृत्त शिक्षकों को शुभकामनाएं दीं और उनके जीवन में सुख-शांति की कामना की। खंड शिक्षा अधिकारी सुश्री सपना सिंह ने भी अपने शब्दों में कहा कि यह बहुत अच्छा और सुंदर कार्यक्रम है। शिक्षक संघ की ब्लॉक इकाई ने इसे बहुत ही अच्छे तरीके से आयोजित किया है। उन्होंने सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों को बधाई दी और कहा कि आपका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।

नगर पंचायत शिवली के अध्यक्ष श्री अवधेश शुक्ला ने अपने भाषण में रामायण की कहानियों का उदाहरण देकर बताया कि जीवन में सेवा और सम्मान का बहुत महत्व है। उन्होंने कहा कि शिक्षक वही है जो जीवनभर शिक्षा देता है। उन्होंने सभी शिक्षकों की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से सभी को प्रेरणा मिलती है।

इस समारोह में शिक्षकों के साथ-साथ अनुदेशक, शिक्षामित्र, बेसिक शिक्षा विभाग के सभी कर्मचारी और बहुत सारे स्थानीय लोग भी मौजूद रहे। सभी ने पूरे कार्यक्रम का आनंद लिया और सेवानिवृत्त शिक्षकों का सम्मान करते हुए तालियां बजाईं।

कार्यक्रम के अंत में उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष श्री एल.बी. सिंह, ब्लॉक अध्यक्ष श्री मुकेश बाजपेई और ब्लॉक मंत्री श्री शशिकांत यादव ने सभी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि हम सबका कर्तव्य है कि अपने शिक्षकों का सम्मान करें और उनके अनुभवों से सीखें। उन्होंने कहा कि संगठन का हमेशा यह प्रयास रहेगा कि शिक्षकों का मान-सम्मान इसी तरह बना रहे।

उन्होंने उपस्थित सभी अतिथियों, शिक्षकों, अनुदेशकों, शिक्षामित्रों, कर्मचारियों और स्थानीय लोगों का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि इतने अच्छे और व्यवस्थित कार्यक्रम के लिए सभी को बधाई और शुभकामनाएं।

इस समारोह में शिक्षकों ने भी अपने-अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने अपने जीवन के कई साल बच्चों को पढ़ाने और संस्कार देने में लगाए। कई शिक्षक अपनी बातें कहते हुए भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता। वह हमेशा समाज और अपने आसपास के लोगों को कुछ न कुछ सिखाता रहता है।

सभी ने मिलकर यह ठाना कि आगे भी इस तरह के कार्यक्रम होते रहने चाहिए ताकि शिक्षक समाज का सम्मान और गौरव हमेशा बना रहे। इस पूरे कार्यक्रम में कहीं भी अव्यवस्था नहीं थी। सब कुछ बहुत अच्छे ढंग से हुआ।

यह कार्यक्रम शिक्षा जगत के लिए प्रेरणा देने वाला और समाज में शिक्षकों के सम्मान को दर्शाने वाला रहा। इस कार्यक्रम ने यह भी बताया कि समाज में शिक्षक का कितना बड़ा स्थान है। अगर शिक्षक न हों तो समाज का निर्माण ही अधूरा रह जाता है।

कार्यक्रम में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और सरस्वती वंदना ने भी सबका मन मोह लिया। पूरे समय वातावरण में खुशी और सम्मान का माहौल रहा। हर किसी के चेहरे पर मुस्कान और गर्व साफ दिख रहा था।

अंत में एक बार फिर से उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ की ओर से सभी का आभार व्यक्त किया गया और यह संकल्प लिया गया कि आगे भी ऐसे आयोजन होते रहेंगे।

इस पूरे कार्यक्रम की सफलता ने यह साबित कर दिया कि शिक्षक हमारे समाज की सबसे मजबूत और सम्मानित कड़ी हैं। जो हर समय देश, समाज और बच्चों के भविष्य को संवारने में लगे रहते हैं।

यह दिन सभी के लिए यादगार और प्रेरणा देने वाला रहा। सभी ने मिलकर इसे एक यादगार समारोह बना दिया।





विद्यालयों में ए आर पी का काम और सहयोगात्मक पर्वेक्षण का महत्व

 

ए आर पी को औचक निरीक्षण और निरीक्षण पंजिका में अंकन का अधिकार नहीं: एक विस्तृत विश्लेषण



भारत में शिक्षा व्यवस्था को लगातार सुधारने के लिए समय-समय पर कई नई योजनाएँ और व्यवस्थाएँ बनाई जाती हैं। विद्यालयों में पढ़ाई की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए अलग-अलग जिम्मेदारियाँ तय की जाती हैं। इन्हीं में से एक व्यवस्था है ए आर पी यानी अकादमिक रिसोर्स पर्सन। ए आर पी का काम यह होता है कि वे विद्यालयों में जाकर शिक्षकों को पढ़ाई-लिखाई में मदद करें, बच्चों की पढ़ाई की स्थिति को समझें और अगर कोई कमी हो, तो उसे सुधारने के लिए सुझाव दें।

ए आर पी का मुख्य उद्देश्य शिक्षा में गुणवत्ता सुधार करना है। वे विद्यालय में जाकर यह देखते हैं कि बच्चे क्या पढ़ रहे हैं, कैसे पढ़ रहे हैं और किस तरीके से शिक्षक पढ़ा रहे हैं। अगर कहीं कोई परेशानी आती है, तो ए आर पी शिक्षक को सलाह देता है कि पढ़ाई में सुधार कैसे किया जा सकता है। साथ ही ए आर पी नई शिक्षा नीति और शिक्षण पद्धति के बारे में भी जानकारी देता है ताकि विद्यालय में पढ़ाई और बेहतर हो सके।

कई बार लोगों में यह भ्रम होता है कि ए आर पी को भी विद्यालय का औचक निरीक्षण करने और निरीक्षण पंजिका में लिखने का अधिकार होता है। लेकिन यह सही नहीं है। औचक निरीक्षण का मतलब होता है बिना बताए अचानक विद्यालय पहुँचकर उसकी पूरी जांच करना। यह अधिकार केवल शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को होता है। जैसे कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी या खंड शिक्षा अधिकारी।

ए आर पी केवल सहयोगात्मक पर्वेक्षण कर सकता है। सहयोगात्मक पर्वेक्षण का मतलब होता है विद्यालय में जाकर शिक्षकों और बच्चों की मदद करना, पढ़ाई की स्थिति को समझना और सुझाव देना। ए आर पी का काम सख्ती करना, दोष निकालना या कार्रवाई करना नहीं होता। वे शिक्षक और बच्चों की पढ़ाई को बेहतर बनाने के लिए मार्गदर्शन देते हैं।

जब ए आर पी विद्यालय में जाता है, तो उसे पहले से सूचना देने की आवश्यकता नहीं होती। वह बिना बताए भी विद्यालय पहुँच सकता है। लेकिन उसका उद्देश्य केवल मदद करना और पढ़ाई में सुधार के लिए सहयोग देना होता है। उसे औचक निरीक्षण करने और निरीक्षण पंजिका में कुछ भी लिखने का अधिकार नहीं है।

डॉ. रहबर सुल्तान द्वारा पूछी गई एक जनसूचना में इस विषय पर जानकारी मांगी गई थी। इसके जवाब में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने स्पष्ट किया कि ए आर पी का काम केवल सहयोग करना है। वे औचक निरीक्षण नहीं कर सकते और निरीक्षण पंजिका में कोई टिप्पणी भी दर्ज नहीं कर सकते। वे केवल भ्रमण पंजिका या सहयोगात्मक पंजिका में ही अपना भ्रमण, सुझाव और शिक्षकों के साथ हुई बातचीत का विवरण दर्ज कर सकते हैं।

निरीक्षण पंजिका वह पंजिका होती है, जिसमें निरीक्षण के समय अधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणियाँ, निर्देश और सुझाव दर्ज किए जाते हैं। इसमें यह भी लिखा जाता है कि विद्यालय में क्या-क्या देखा गया, क्या कमियाँ पाई गईं और क्या सुधार करने को कहा गया। यह अधिकार केवल अधिकृत अधिकारी को होता है।

ए आर पी का काम है कि वह विद्यालय में जाकर देखे कि शिक्षक पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ा रहे हैं या नहीं, बच्चे पढ़ाई को समझ रहे हैं या नहीं, पढ़ाई में कोई परेशानी आ रही है या नहीं। अगर कोई कमी दिखाई दे तो शिक्षक को सहयोगात्मक रूप से सुझाव दें कि इसे कैसे सुधारा जा सकता है। वे शिक्षकों को नई पद्धतियों की जानकारी देते हैं और शिक्षण में मदद करते हैं।

विद्यालयों में औचक निरीक्षण का अधिकार केवल जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, खंड शिक्षा अधिकारी या अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को होता है। वे ही विद्यालय की सफाई, बच्चों की उपस्थिति, मिड डे मील, कक्षाओं की स्थिति और दस्तावेजों की जांच कर सकते हैं। वे ही निरीक्षण पंजिका में अपनी टिप्पणियाँ लिख सकते हैं।

ए आर पी भ्रमण पंजिका या सहयोगात्मक पंजिका में अपनी जानकारी दर्ज कर सकते हैं। इसमें वे लिखते हैं कि किस दिन, कितने बजे विद्यालय आए, किस शिक्षक से मिले, किस कक्षा में गए और बच्चों की पढ़ाई की स्थिति क्या पाई। साथ ही वे अपने सुझाव भी लिख सकते हैं।

अगर ए आर पी अपने कार्य को सही तरीके से करें तो इससे विद्यालय को कई फायदे हो सकते हैं। शिक्षकों को पढ़ाई के नए तरीके सीखने को मिलेंगे। बच्चों की पढ़ाई में सुधार होगा। शिक्षकों और बच्चों के बीच बेहतर तालमेल बनेगा। बच्चों को अपने सवाल पूछने और समझने में आसानी होगी। विद्यालय में शिक्षा का वातावरण बेहतर बनेगा।

विद्यालयों में सहयोगात्मक पर्वेक्षण इसलिए जरूरी है ताकि शिक्षकों को पढ़ाई में मदद मिले और बच्चों की पढ़ाई में गुणवत्ता बनी रहे। ए आर पी और शिक्षक मिलकर अगर ईमानदारी से काम करें तो पढ़ाई का स्तर निश्चित रूप से बेहतर होगा।

सहयोगात्मक पर्वेक्षण का मतलब यह नहीं है कि कमियाँ ढूँढकर सख्ती की जाए। इसका मतलब है मिल-जुलकर पढ़ाई को सुधारना और एक अच्छा शैक्षिक वातावरण बनाना। ए आर पी को भी यह समझना चाहिए कि उनका काम केवल सहयोग करना है, न कि औचक निरीक्षण करना।

विद्यालयों में भ्रमण के दौरान ए आर पी को कोई सख्ती नहीं करनी चाहिए। उन्हें सिर्फ बच्चों और शिक्षकों से बात कर के पढ़ाई की स्थिति को समझना चाहिए और जहाँ जरूरत हो, वहाँ सुझाव देना चाहिए। अगर ए आर पी सच्चे मन से यह काम करें, तो बच्चों की पढ़ाई में बहुत सुधार आ सकता है।

विद्यालयों के शिक्षकों को भी चाहिए कि वे ए आर पी का सहयोग करें। उनसे नई-नई शिक्षण विधियाँ सीखें और अपने पढ़ाने के तरीके में सुधार करें। बच्चों को अच्छे से पढ़ाएँ और उनकी समस्याएँ समझें।

जब शिक्षक और ए आर पी मिलकर काम करेंगे तो विद्यालय का माहौल अच्छा बनेगा। बच्चे भी पढ़ाई में रुचि लेने लगेंगे और अच्छे अंक लाएँगे।

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि ए आर पी केवल सहयोगात्मक पर्वेक्षण करें। वे औचक निरीक्षण न करें और निरीक्षण पंजिका में कुछ भी न लिखें। उन्हें केवल भ्रमण पंजिका या सहयोगात्मक पंजिका में ही अपनी रिपोर्ट दर्ज करनी चाहिए।

यह बात जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा भी स्पष्ट कर दी गई है। उन्होंने कहा है कि ए आर पी का काम केवल सहयोग करना है। वे औचक निरीक्षण नहीं कर सकते और निरीक्षण पंजिका में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते।

अगर हम सभी मिलकर इस व्यवस्था का सही तरीके से पालन करें तो निश्चित रूप से विद्यालयों की पढ़ाई का स्तर और बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा। सहयोग, समझदारी और ईमानदारी से किया गया हर काम हमेशा अच्छे परिणाम देता है।

विद्यालयों में शिक्षा का माहौल तभी बेहतर होगा जब शिक्षक, ए आर पी और अधिकारी मिल-जुलकर काम करें। हर किसी को अपने अधिकार और कर्तव्य का ज्ञान होना चाहिए। इससे शिक्षा व्यवस्था मजबूत होगी और देश का भविष्य भी बेहतर बनेगा।

अगर ए आर पी अपना काम ईमानदारी से करें, शिक्षक उनका सहयोग करें और अधिकारी समय-समय पर विद्यालय का उचित निरीक्षण करें तो पढ़ाई में निश्चित रूप से सुधार होगा। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी और वे देश का नाम रोशन करेंगे।

इसी सोच और भावना के साथ हमें सभी को मिलकर काम करना चाहिए। शिक्षकों को अपने पढ़ाने के तरीके को सुधारना चाहिए। ए आर पी को सहयोग करना चाहिए और अधिकारी को अपने अधिकार के अनुसार निरीक्षण करना चाहिए।

अगर हम सभी मिलकर ईमानदारी और नियम के अनुसार काम करें तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। शिक्षा का स्तर ऊँचा होगा और समाज में अच्छा माहौल बनेगा। यही देश की तरक्की का असली रास्ता है।






पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन | 1 मई 2025 जंतर-मंतर चलो अभियान

 


सरकारी कर्मचारियों के हक की लड़ाई! पुरानी पेंशन बहाली के लिए 1 मई 2025 को जंतर-मंतर, दिल्ली चलें। एकजुटता दिखाएं, भविष्य सुरक्षित बनाएं।



पेंशन एक ऐसी चीज़ है, जो हर सरकारी कर्मचारी के जीवन में बहुत ज़रूरी होती है। जब कोई इंसान अपने पूरे जीवन का सबसे अच्छा समय नौकरी में लगा देता है, दिन-रात मेहनत करता है, अपने परिवार से दूर रहकर, कई बार खतरों का सामना करके देश और समाज के लिए काम करता है, तो उसके बुढ़ापे का सहारा वही पेंशन होती है। पेंशन एक ऐसी लाठी है, जो बुढ़ापे में इंसान को सहारा देती है। जब शरीर जवाब देने लगता है, काम करने की ताकत नहीं रहती, तब यही पेंशन हर महीने एक उम्मीद लेकर आती है कि अब भी हमारा जीवन सम्मान से चल सकेगा।

आज देशभर में बहुत से कर्मचारी इस पेंशन के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। नई पेंशन योजना के आने के बाद से पुरानी पेंशन योजना बंद कर दी गई, और कर्मचारियों को एक ऐसे सिस्टम में डाल दिया गया, जिसमें बुढ़ापे में उन्हें ये भरोसा नहीं रहता कि उनका जीवन बिना किसी चिंता के चलेगा। अब कर्मचारियों को यह डर सताने लगा है कि जब हम बूढ़े हो जाएंगे, तब कौन हमारी मदद करेगा? हमारी पेंशन तो अब तय ही नहीं है, बाजार के उतार-चढ़ाव पर चलने वाली रकम पर हम कैसे अपना भविष्य सुरक्षित मानें? इसी बात ने हजारों कर्मचारियों को एकजुट किया है, और वे अब पुरानी पेंशन बहाली के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

कई राज्यों में इस मुद्दे पर धरने-प्रदर्शन हो चुके हैं। हिमाचल प्रदेश ने इस लड़ाई को बखूबी लड़ा और वहां की सरकार को पुरानी पेंशन योजना लागू करनी पड़ी। यह सब हुआ कर्मचारियों की एकजुटता और हिम्मत के कारण। उन्होंने अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सड़कों पर आंदोलन किया, अपनी आवाज़ को बुलंद किया और आखिरकार अपना हक पाया। अब वही उम्मीद देश के दूसरे राज्यों के कर्मचारियों को भी है। सबको यह लगने लगा है कि अगर हम भी एकजुट होकर अपनी बात कहें, तो सरकार को हमारी बात माननी पड़ेगी।

इसी सिलसिले में 1 मई 2025 को जंतर-मंतर, दिल्ली में एक बड़ा आंदोलन होने जा रहा है। यह केवल एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक मिशन है। इसमें भाग लेना हर उस कर्मचारी का फर्ज़ है, जो अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा चाहता है। यह लड़ाई केवल आज की नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की भी है। अगर आज हम चुप रहेंगे, तो आने वाले समय में हमारे बच्चे और उनके बाद की पीढ़ी भी इसी समस्या से जूझती रहेगी।

कई लोग सोचते हैं कि मैं नहीं जाऊंगा तो क्या फर्क पड़ेगा। पर असली बात यही है कि जब हर कोई यही सोचेगा, तो कोई भी नहीं जाएगा। अगर आप नहीं जाएंगे, तो दूसरा क्यों जाएगा? जब हर कोई ये सोचने लगेगा कि मेरे पास समय नहीं है, मुझे काम है, पत्नी भी नौकरी करती है, बच्चों को देखना है, तो फिर इस लड़ाई को कौन लड़ेगा? ये सोच सही नहीं है। हम चुनाव ड्यूटी करने जाते हैं, स्कूल भी जाते हैं, ऑफिस का सारा काम भी करते हैं, तो फिर अपने हक के लिए क्यों नहीं? अगर आप दो पेंशन लेना चाहेंगे, तो आंदोलन में भी दो लोग जाने चाहिए, आप और आपकी पत्नी। क्योंकि पेंशन दोनों को चाहिए।

बहाने बहुत हो चुके। कोई कहता है कि मैं अगली बार जाऊंगा। पर अगली बार कभी नहीं आती। जो लड़ाई आज लड़नी है, वो आज ही लड़नी पड़ेगी। कोई भी दूसरा आपके लिए लड़ने नहीं आएगा। जब तक आप खुद अपने हक के लिए खड़े नहीं होंगे, तब तक कुछ भी नहीं बदलेगा। महिलाओं का भी ये सवाल है कि हम कैसे जाएं? लेकिन वही महिलाएं स्कूल भी जाती हैं, ऑफिस भी जाती हैं, चुनाव ड्यूटी भी करती हैं। तो फिर अपने हक के लिए जाना क्यों मुश्किल है? पेंशन आपको भी चाहिए, तो उसके लिए लड़ाई भी आपको ही लड़नी होगी। अपने बच्चों के भविष्य के लिए हमें एक बार फिर से हिमाचल की मातृशक्ति की तरह आगे आना होगा।

कई बार लोग कहते हैं कि हमारे पास समय नहीं है, या हमें गैरसैण नहीं जाना, जिला मुख्यालय नहीं जाना, देहरादून नहीं जाना। तो कब जाओगे? ये बहाने कब तक चलते रहेंगे? क्या जब सबकुछ खत्म हो जाएगा, तब? तब तो कोई फायदा नहीं। पेंशन वो चीज है, जो हर महीने मिलती है। लड़ाई भी उसी तरह लगातार लड़ी जानी चाहिए। जब तक पेंशन नहीं मिलेगी, तब तक धरने भी लगेंगे, प्रदर्शन भी होंगे। जब तक पेंशन बहाल नहीं होगी, हमें चैन से बैठना नहीं है।

जो साथी इस आंदोलन को लड़ रहे हैं, उन्हें भी वही एक पेंशन मिलेगी। वो भी आपके ही जैसे कर्मचारी हैं। उन्होंने अपने विभागीय संगठनों में जिम्मेदारी ली है और अब ये उनका परम कर्तव्य बनता है कि वे इस मिशन में बढ़-चढ़कर भाग लें। अगर वे आपके भविष्य के लिए सड़क पर खड़े हो सकते हैं, तो क्या आप उनके साथ नहीं खड़े हो सकते? ये केवल उनकी लड़ाई नहीं है, ये हम सबकी लड़ाई है।

इस बार सवाल-जवाब और बहानेबाजी बहुत हो गई। अब एक ही जवाब है — 1 मई 2025 को जंतर-मंतर पर चलना है। पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन को मजबूत करना है। हमें अपने हक की इस लड़ाई को और तेज़ करना है। अगर हिमाचल के साथियों ने अपने बच्चों को गोद में लेकर आंदोलन किया और जीत हासिल की, तो हम क्यों नहीं कर सकते? हमें भी आलस छोड़कर, बहानेबाजी छोड़कर, निष्क्रियता और नकारात्मकता से बाहर निकलकर, अपने भविष्य के लिए डटकर खड़ा होना होगा।

यह लड़ाई सिर्फ पैसों की नहीं है, यह सम्मान की भी है। जब कोई रिटायर होता है, तो वह चाहता है कि उसे सम्मान के साथ, बिना किसी चिंता के जीवन जीने का हक़ मिले। अगर आज हम खामोश रहेंगे, तो कल कोई हमारी आवाज़ नहीं सुनेगा। कल कोई हमारा हाल भी पूछने नहीं आएगा। इसी लिए आज उठ खड़े होना जरूरी है।

हिमाचल ने दिखा दिया कि जब कर्मचारी एकजुट हो जाएं, तो कोई भी सरकार उनकी मांगें मानने को मजबूर हो जाती है। हमें भी वही करना है। 1 मई 2025 को हमें दिल्ली के जंतर-मंतर पर इकट्ठा होकर इतिहास रचना है। हर कर्मचारी को वहां पहुंचना है। सिर्फ सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने से कुछ नहीं होगा। हमें सड़कों पर उतरना होगा। अपने नेताओं को आगे लाना होगा। जनजागरूकता फैलानी होगी। हर किसी को बताना होगा कि पेंशन हमारा अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे।

एकजुटता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। जब हम सब एकजुट होंगे, तो हमारी आवाज़ दूर तक जाएगी। सरकार भी तब सुनेगी, जब उसे लगेगा कि अब कर्मचारी शांत बैठने वाले नहीं हैं। इसलिए समय आ गया है, जब हमें अपना हक खुद लेना है। 1 मई 2025 को दिल्ली चल पड़ना है।

हमारे पास अब ज्यादा समय नहीं है। हमें अपने परिवार, अपने बच्चों और अपने बुढ़ापे की चिंता खुद करनी होगी। ये सोचिए कि अगर पुरानी पेंशन नहीं मिली, तो बुढ़ापे में जब तनख्वाह नहीं मिलेगी और इलाज, घर के खर्च, बच्चों की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी, तब क्या होगा? यही सोचिए और इसी सोच के साथ अपनी पूरी इच्छाशक्ति जुटाकर इस आंदोलन में भाग लीजिए।

1 मई को जंतर-मंतर पर एक ऐसी ज्वाला जलानी है, जो हर कर्मचारी के दिल में पेंशन की लड़ाई की आग को और तेज़ कर दे। यह लड़ाई केवल आज के लिए नहीं है, यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है। इस लड़ाई को जीतना ही होगा।

हर कर्मचारी को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। कोई पीछे नहीं रहे। नेता भी आगे आएं। सोशल मीडिया का सही तरीके से इस्तेमाल करें। वीडियो बनाएं, मैसेज भेजें, पोस्टर बनाएं। हर गली, हर मोहल्ले में इस आंदोलन की बात होनी चाहिए। सबको बताइए कि पेंशन हमारा हक है और हम इसे लेकर रहेंगे।

याद रखिए — एकजुटता ही हमारी ताकत है। पेंशन हमारा अधिकार है। हमें मिलकर, एकजुट होकर, बिना डरे, बिना रुके, लगातार लड़ाई लड़नी है। जब तक जीत नहीं मिलती, तब तक लड़ते रहना है। 1 मई 2025 को चलो दिल्ली — जंतर-मंतर पर इतिहास रचने।


 पेंशन है बुढ़ापे का सहारा,
हर महीने मिलने वाला हमारा।
अपने हक के लिए अब लड़ना है,
जंतर-मंतर जाकर कहना है।
सब मिलकर आवाज़ उठाएँगे,
अपना अधिकार वापस लाए 
1 मई को सब चल पड़ेंगे,
पुरानी पेंशन फिर से लेंगे।

 

 



 


Saturday, April 19, 2025

स्कूल चलो मिशन 2025-26: हर बच्चा स्कूल जाएगा, सपनों को सच बनाएगा।




स्कूल चलो मिशन 2025 – एक शिक्षित उत्तर प्रदेश की दिशा में कदम



स्कूल चलो मिशन 2025 उत्तर प्रदेश की एक महत्वपूर्ण योजना है, जिसका उद्देश्य यह है कि हर बच्चा स्कूल जाए और पढ़ाई से वंचित न रहे। यह योजना खासकर गरीब, पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है ताकि वे भी शिक्षा का अधिकार पा सकें। यह मिशन उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा चलाया जा रहा है और इसका मकसद सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा से जोड़ना है।

उत्तर प्रदेश की सरकार यह मानती है कि जब तक हर बच्चा स्कूल नहीं जाएगा, तब तक समाज और देश का विकास अधूरा रहेगा। इसीलिए सरकार ने यह लक्ष्य रखा है कि 2025 तक राज्य का कोई भी बच्चा स्कूल से बाहर न रहे। इसके लिए गांव-गांव और मोहल्लों में जाकर अभिभावकों को जागरूक किया जा रहा है कि वे अपने बच्चों को स्कूल जरूर भेजें। कई जगहों पर शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्राम प्रधानों की मदद से बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया जा रहा है|



स्कूल चलो मिशन 2025 में कई योजनाओं को जोड़ा गया है जिससे बच्चों को स्कूल आने में किसी तरह की परेशानी न हो। बच्चों को मुफ्त किताबें, यूनिफॉर्म, जूते-मोज़े और बैग दिए जा रहे हैं। साथ ही मिड-डे मील योजना के तहत दोपहर का भोजन भी स्कूलों में दिया जा रहा है। इससे गरीब परिवारों के लिए अपने बच्चों को स्कूल भेजना आसान हो गया है क्योंकि अब उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ खाना और जरूरी सामान भी स्कूल से मिल रहा है।

सरकार ने यह भी तय किया है कि जो बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं, उन्हें दोबारा शिक्षा से जोड़ा जाए। इसके लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं। शिक्षक और अधिकारी उन बच्चों के घर जाकर उनसे और उनके माता-पिता से बात करते हैं और उन्हें स्कूल में दाखिला दिलाने का प्रयास करते हैं। खासकर बालिकाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि कई बार लड़कियों को घरेलू कामों में लगा दिया जाता है और उनकी पढ़ाई छूट जाती है। अब सरकार लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए भी विशेष योजनाएं बना रही है।

स्कूल चलो मिशन के तहत सभी स्कूलों में नामांकन अभियान चलाया गया है। इसमें बच्चों को स्कूल में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया जाता है और हर बच्चे की जानकारी दर्ज की जाती है। अगर कोई बच्चा स्कूल से गायब होता है या नहीं आता, तो उसके बारे में जांच की जाती है और उसे वापस स्कूल लाने की कोशिश की जाती है। शिक्षकों को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे अपने क्षेत्र के सभी बच्चों की जानकारी रखें और सुनिश्चित करें कि कोई भी बच्चा पढ़ाई से वंचित न रहे।

इस योजना में तकनीक का भी उपयोग किया जा रहा है। कई स्कूलों में अब डिजिटल हाजिरी की जा रही है जिससे यह पता चलता है कि कितने बच्चे नियमित रूप से स्कूल आ रहे हैं। साथ ही शिक्षा विभाग एक ऐप के माध्यम से हर स्कूल की जानकारी इकट्ठा कर रहा है ताकि योजना को सफल बनाया जा सके। यह ऐप यह भी दिखाता है कि कहां पर बच्चों की संख्या कम है और कहां पर और काम करने की जरूरत है।

स्कूल चलो मिशन 2025 में पंचायतों, नगर निकायों, शिक्षकों, समाजसेवियों और स्थानीय लोगों की भी मदद ली जा रही है। स्कूल चलो रैलियां, प्रभात फेरियां और जनजागरूकता कार्यक्रम किए जा रहे हैं ताकि लोगों को यह समझाया जा सके कि शिक्षा कितनी जरूरी है। छोटे-छोटे बच्चे हाथों में तख्तियां लेकर जब गांवों में निकलते हैं और नारे लगाते हैं "पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया", तो लोगों का ध्यान इस ओर जाता है और वे भी अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने लगते हैं।

सरकार यह भी चाहती है कि सरकारी स्कूलों की छवि सुधरे ताकि माता-पिता अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों के बजाय सरकारी स्कूलों में भेजने को तैयार हों। इसके लिए स्कूलों की इमारतें सुधारी जा रही हैं, शौचालय बनवाए जा रहे हैं, पीने का साफ पानी उपलब्ध कराया जा रहा है और कंप्यूटर शिक्षा की सुविधा भी दी जा रही है। जब स्कूल अच्छा और साफ-सुथरा होगा, तो बच्चे भी वहां जाना पसंद करेंगे और पढ़ाई में रुचि लेंगे।

स्कूल चलो मिशन में शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर भी ध्यान दिया जा रहा है। खेल-कूद, चित्रकला, गायन, नृत्य और अन्य गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ अपनी रुचियों को भी पहचान सकें। शिक्षकों को भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि वे बच्चों को प्यार और स्नेह से पढ़ाएं ताकि बच्चा स्कूल आने से डरे नहीं बल्कि खुशी से आए।

यह मिशन केवल सरकार का नहीं, बल्कि हम सबका है। जब तक हर माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजेंगे, तब तक यह मिशन सफल नहीं हो सकता। समाज के हर वर्ग को आगे आना होगा और शिक्षा के इस अभियान में योगदान देना होगा। स्कूल चलो मिशन 2025 हमें यह याद दिलाता है कि शिक्षा केवल किताबें पढ़ना नहीं है, बल्कि यह बच्चों का भविष्य है, और एक पढ़ा-लिखा बच्चा ही कल एक अच्छा नागरिक बन सकता है।

बेसिक शिक्षा विभाग का यह प्रयास सराहनीय है कि वह हर साल इस योजना को और मजबूत बना रहा है। पहले जहां स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक थी, वहीं अब धीरे-धीरे यह संख्या घट रही है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में अब माता-पिता भी शिक्षा के महत्व को समझने लगे हैं। उन्हें यह समझ में आने लगा है कि अगर उनके बच्चे पढ़-लिख जाएंगे तो वे एक अच्छा जीवन जी पाएंगे।

अभी भी कुछ चुनौतियाँ हैं, जैसे कुछ इलाकों में स्कूल दूर होने के कारण बच्चे नहीं जा पाते, कुछ जगहों पर शिक्षक पर्याप्त नहीं हैं, तो कहीं स्कूलों में सुविधा कम है। लेकिन सरकार इन सभी समस्याओं को दूर करने की कोशिश कर रही है। नए स्कूल खोले जा रहे हैं, शिक्षक बहाल किए जा रहे हैं और स्कूलों को सुविधाजनक बनाया जा रहा है। इसके साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि स्कूलों में बच्चों को सही तरीके से पढ़ाया जाए और उनकी पढ़ाई में कोई कमी न हो।

स्कूल चलो मिशन 2025 का लक्ष्य बड़ा है लेकिन अगर सभी लोग मिलकर प्रयास करें तो यह जरूर सफल हो सकता है। यह मिशन न केवल बच्चों को शिक्षा देगा बल्कि हमारे देश को एक उज्जवल भविष्य भी देगा। जब हर बच्चा पढ़ेगा, तो वह अपने परिवार, गांव और देश के विकास में योगदान देगा। एक पढ़ा-लिखा समाज ही सशक्त समाज बन सकता है।

इसलिए हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने आस-पास के सभी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करेंगे, उनकी मदद करेंगे और इस मिशन को सफल बनाने में अपना योगदान देंगे। स्कूल चलो मिशन 2025 केवल एक योजना नहीं है, यह एक आंदोलन है – शिक्षा का आंदोलन, भविष्य निर्माण का आंदोलन। आइए हम सब मिलकर इस मिशन को सफल बनाएं और उत्तर प्रदेश को शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श राज्य बनाएं।


Tuesday, April 15, 2025

कानपुर-उन्नाव सड़क हादसा: 3 शिक्षिकाओं और चालक की मौत, शिक्षक गंभीर घायल

 




कानपुर और उन्नाव के बीच मंगलवार की सुबह एक बेहद दर्दनाक सड़क हादसा हो गया। इस हादसे में तीन महिला शिक्षिकाओं और एक कार चालक की मौके पर ही मौत हो गई। इसके अलावा एक शिक्षक गंभीर रूप से घायल हो गए। यह भयानक हादसा नारामऊ हाईवे कट के पास हुआ। हादसे की खबर जैसे ही आसपास के लोगों और शिक्षा विभाग तक पहुँची, पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई।

सुबह लगभग 7:30 बजे कल्याणपुर निवासी विशाल द्विवेदी नामक युवक अपनी कार से तीन शिक्षिकाओं को स्कूल छोड़ने उन्नाव की ओर ले जा रहा था। नारामऊ में दलहन रोड के पास हाईवे पर एक सीएनजी पंप है। जैसे ही विशाल अपनी कार को सीएनजी भरवाने के लिए मोड़ने लगे, तभी उनकी कार एक बाइक से टकरा गई। बाइक सवार सरकारी शिक्षक अशोक कुमार, जो पनकी के रहने वाले हैं, इस टक्कर में गंभीर रूप से घायल हो गए।

इस टक्कर के तुरंत बाद सामने से आ रही एक प्राइवेट ट्रैवल्स की बस ने कार को जोरदार टक्कर मार दी। बस की टक्कर इतनी तेज थी कि कार पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। कार में सवार सभी लोग कार के अंदर बुरी तरह फंस गए। राहगीरों और बिठूर पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद कार में फंसे लोगों को बाहर निकाला।

कार में कुल चार लोग सवार थे। इनमें आकांक्षा मिश्रा, अंजुला मिश्रा, ऋचा अग्निहोत्री और कार चालक विशाल द्विवेदी शामिल थे। हादसे के बाद आकांक्षा मिश्रा और अंजुला मिश्रा को हैलेट अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। विशाल द्विवेदी ने भी इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। शुरू में यह सूचना भी आई कि ऋचा अग्निहोत्री की भी मृत्यु हो गई है, लेकिन बाद में यह खबर गलत साबित हुई।



ऋचा अग्निहोत्री फिलहाल रामा अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हैं। वो होश में हैं, बात कर रही हैं और अपने परिजनों को पहचान भी रही हैं। उनके पेट में गंभीर अंदरूनी चोटें हैं। डॉक्टरों ने बताया है कि अगर ब्लीडिंग नहीं हो रही है, तो वो पूरी तरह ठीक हो सकती हैं। अगर सीटी स्कैन में किसी गंभीर स्थिति का पता चलता है, तो ऑपरेशन कर उनकी तिल्ली निकालनी पड़ सकती है। उनके हाथ, पैर और गले में भी काफी चोटें आई हैं और उन पर प्लास्टर चढ़ाया गया है। उनके परिजन और शिक्षा विभाग के लोग लगातार उनके स्वास्थ्य की जानकारी ले रहे हैं। सभी लोग ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि उनकी सीटी स्कैन रिपोर्ट ठीक आए और वो जल्द से जल्द स्वस्थ होकर घर लौटें।

बाइक सवार अशोक कुमार का भी इलाज रामा अस्पताल में चल रहा है। उनकी हालत भी गंभीर बनी हुई है। इस हादसे की खबर मिलते ही परिजनों में कोहराम मच गया। परिजन अस्पताल पहुँचते ही फूट-फूट कर रोने लगे। वहीं शिक्षा विभाग में भी शोक की लहर फैल गई।

एनएचएआई की टीम ने घटनास्थल पर पहुँच कर क्षतिग्रस्त वाहनों को हटवाया और ट्रैफिक को सामान्य कराया। पुलिस ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और मामले की जाँच शुरू कर दी। इस दुर्घटना में जिन शिक्षिकाओं की मृत्यु हुई, वे कंपोजिट स्कूल जमाल नगर सफीपुर में कार्यरत थीं। इसके अलावा अर्चना नाम की एक और शिक्षिका, जो विद्यालय न्यामतपुर में कार्यरत हैं, की हालत भी गंभीर बताई गई थी। आकांक्षा मिश्रा का भी मौके पर ही निधन हो गया था।

घटना के समय वहां मौजूद राहगीरों ने बताया कि कार पहले बाइक से टकराई और फिर बस से जा भिड़ी। टक्कर इतनी जोरदार थी कि कार के परखच्चे उड़ गए। हादसे के बाद राहगीरों और पुलिस ने कड़ी मशक्कत कर कार में फंसे लोगों को बाहर निकाला।

हादसे के बाद एक और दुखद बात यह रही कि एम्बुलेंस काफी देर से पहुँची। अगर एम्बुलेंस समय पर पहुँच जाती तो शायद कुछ लोगों की जान बचाई जा सकती थी। इस हादसे ने पूरे कानपुर और उन्नाव को गहरे दुख में डुबो दिया। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने शोक व्यक्त किया और कहा कि सड़क सुरक्षा नियमों का पालन करना बहुत ज़रूरी है।

हादसे का सबसे बड़ा कारण हाईवे कट पर अचानक मोड़ लेना और सावधानी में कमी को माना जा रहा है। ऐसे हाईवे कट पर हमेशा दुर्घटनाओं का खतरा ज्यादा रहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हाईवे पर कट बनाते समय विशेष ध्यान देना चाहिए। सीएनजी पंप के सामने कट नहीं होना चाहिए और वहाँ ट्रैफिक सिग्नल व रिफ्लेक्टर लगाए जाने चाहिए। साथ ही बस और भारी वाहन चालकों को भी हाईवे पर धीमी गति से गाड़ी चलानी चाहिए।

इस हादसे से सभी को यह सीख लेनी चाहिए कि कभी भी हाईवे पर अचानक मोड़ नहीं लेना चाहिए। बाइक और कार को आगे-पीछे चलाते समय उचित दूरी बनाए रखनी चाहिए। एम्बुलेंस और पुलिस को घटनास्थल पर समय से पहुँचना चाहिए। सरकारी स्तर पर भी सड़क सुरक्षा के उपाय मजबूत करने चाहिए ताकि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।

ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करें और घायल शिक्षक व शिक्षिका को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ दे। उनके परिजनों को इस असहनीय दुःख को सहने की शक्ति दें। यह हादसा पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है कि हम सभी को सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करना चाहिए और दूसरों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए।






Thursday, April 10, 2025

महावीर के आदर्श और शिक्षा में समावेशिता की जरूरत

 


संकीर्ण सोच नहीं, समावेशिता सिखाएं

आज भगवान महावीर जयंती है। भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। वे अहिंसा, सत्य, संयम और अपरिग्रह के बहुत बड़े उपदेशक थे। उनका जीवन और उनके विचार पूरी मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि आज बहुत सारे शिक्षक इस दिन को भूल गए हैं। आज के दिन, जब हमें भगवान महावीर के आदर्शों को याद करना चाहिए, तब कई शिक्षक समूहों में चुप्पी छाई रही। न कोई शुभकामना, न कोई प्रेरक संदेश, और न ही कोई स्मरण।

वहीं, यही शिक्षक समूह साल भर में अनेक जयंती और पुण्यतिथि पर पोस्ट और बधाइयों से भरे रहते हैं। तो फिर आज भगवान महावीर की बात करते हुए यह चुप्पी क्यों?

क्या भगवान महावीर केवल जैन धर्म के ही हैं? या वे पूरी मानव जाति के लिए एक प्रेरणा हैं? उन्होंने जो बातें सिखाईं – जैसे कि "अहिंसा परमो धर्म" – क्या वो सिर्फ एक धर्म के लिए हैं, या पूरे विश्व के लिए?

आज अगर हम शिक्षक होकर भी महापुरुषों को धर्म और जाति के चश्मे से देखेंगे, तो यह बहुत खतरनाक बात है। शिक्षक का काम है अपने छात्रों को एकता, भाईचारे और सद्भाव की शिक्षा देना। अगर शिक्षक ही संकीर्ण सोच रखेंगे, तो वे बच्चों में कैसे बड़े विचार और इंसानियत भर पाएंगे?

आज की खामोशी यह नहीं दिखाती कि लोग एक दिन भूल गए, बल्कि यह दिखाती है कि हमारे अंदर एक उदासीनता, एक लापरवाही घर कर चुकी है। और यह सोचने का समय है कि क्या हम सही दिशा में जा रहे हैं?

भगवान महावीर का जीवन हमें सिखाता है कि हिंसा किसी भी रूप में ठीक नहीं है। हमें संयम से, सच्चाई से और त्याग से जीवन जीना चाहिए। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि उनके विचार सिर्फ किसी एक धर्म के लिए हैं। उनके विचार सबके लिए हैं – हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, या कोई और।

आज जरूरत है कि शिक्षक इस पर सोचें। अगर हम महापुरुषों को केवल जाति या धर्म के अनुसार पहचानेंगे, तो हम छात्रों को क्या सिखाएंगे? क्या हम उनके मन में भी यही भेदभाव भरेंगे?



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एक सच्चे शिक्षक का काम है सबके विचारों का आदर करना। उन्हें यह नहीं देखना चाहिए कि कौन किस धर्म से है, बल्कि यह देखना चाहिए कि कौन क्या अच्छा सिखा रहा है। अगर कोई व्यक्ति पूरी मानवता के लिए कुछ अच्छा कहता है, तो हमें उसे अपनाना चाहिए।

आज हमें एक नई शुरुआत करनी चाहिए। हमें हर धर्म और जाति के महान लोगों की बातों को बच्चों तक पहुंचाना चाहिए। हमें छात्रों को यह सिखाना चाहिए कि इंसानियत सबसे बड़ी चीज है। हमें उन्हें सिखाना चाहिए कि समाज में प्रेम, सहयोग और समझदारी से रहना जरूरी है।

अगर हम शिक्षक बनकर यह नहीं सिखा पाए, तो हम केवल किताबें पढ़ाने वाले बन जाएंगे, सच्चे शिक्षक नहीं।

इसलिए आज इस पावन दिन पर हम सबको आत्ममंथन करना चाहिए। हमें सोचकर देखना चाहिए कि क्या हम सही कर रहे हैं। क्या हम अपने छात्रों को सही रास्ता दिखा रहे हैं? क्या हम खुद सही सोच रखते हैं?

आइए, आज भगवान महावीर के आदर्शों को याद करें। आइए, हम सब महापुरुषों का आदर करें, चाहे वे किसी भी धर्म या जाति के हों। और आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाएं जिसमें सबको समान नजर से देखा जाए, जहां किसी के साथ भेदभाव न हो, और जहां शिक्षा का मतलब केवल जानकारी नहीं, बल्कि इंसानियत भी हो।

यही हमारे भारत की असली पहचान है।

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