संकीर्ण सोच नहीं, समावेशिता सिखाएं
आज भगवान महावीर जयंती है। भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। वे अहिंसा, सत्य, संयम और अपरिग्रह के बहुत बड़े उपदेशक थे। उनका जीवन और उनके विचार पूरी मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि आज बहुत सारे शिक्षक इस दिन को भूल गए हैं। आज के दिन, जब हमें भगवान महावीर के आदर्शों को याद करना चाहिए, तब कई शिक्षक समूहों में चुप्पी छाई रही। न कोई शुभकामना, न कोई प्रेरक संदेश, और न ही कोई स्मरण।
वहीं, यही शिक्षक समूह साल भर में अनेक जयंती और पुण्यतिथि पर पोस्ट और बधाइयों से भरे रहते हैं। तो फिर आज भगवान महावीर की बात करते हुए यह चुप्पी क्यों?
क्या भगवान महावीर केवल जैन धर्म के ही हैं? या वे पूरी मानव जाति के लिए एक प्रेरणा हैं? उन्होंने जो बातें सिखाईं – जैसे कि "अहिंसा परमो धर्म" – क्या वो सिर्फ एक धर्म के लिए हैं, या पूरे विश्व के लिए?
आज अगर हम शिक्षक होकर भी महापुरुषों को धर्म और जाति के चश्मे से देखेंगे, तो यह बहुत खतरनाक बात है। शिक्षक का काम है अपने छात्रों को एकता, भाईचारे और सद्भाव की शिक्षा देना। अगर शिक्षक ही संकीर्ण सोच रखेंगे, तो वे बच्चों में कैसे बड़े विचार और इंसानियत भर पाएंगे?
आज की खामोशी यह नहीं दिखाती कि लोग एक दिन भूल गए, बल्कि यह दिखाती है कि हमारे अंदर एक उदासीनता, एक लापरवाही घर कर चुकी है। और यह सोचने का समय है कि क्या हम सही दिशा में जा रहे हैं?
भगवान महावीर का जीवन हमें सिखाता है कि हिंसा किसी भी रूप में ठीक नहीं है। हमें संयम से, सच्चाई से और त्याग से जीवन जीना चाहिए। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि उनके विचार सिर्फ किसी एक धर्म के लिए हैं। उनके विचार सबके लिए हैं – हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, या कोई और।
आज जरूरत है कि शिक्षक इस पर सोचें। अगर हम महापुरुषों को केवल जाति या धर्म के अनुसार पहचानेंगे, तो हम छात्रों को क्या सिखाएंगे? क्या हम उनके मन में भी यही भेदभाव भरेंगे?
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एक सच्चे शिक्षक का काम है सबके विचारों का आदर करना। उन्हें यह नहीं देखना चाहिए कि कौन किस धर्म से है, बल्कि यह देखना चाहिए कि कौन क्या अच्छा सिखा रहा है। अगर कोई व्यक्ति पूरी मानवता के लिए कुछ अच्छा कहता है, तो हमें उसे अपनाना चाहिए।
आज हमें एक नई शुरुआत करनी चाहिए। हमें हर धर्म और जाति के महान लोगों की बातों को बच्चों तक पहुंचाना चाहिए। हमें छात्रों को यह सिखाना चाहिए कि इंसानियत सबसे बड़ी चीज है। हमें उन्हें सिखाना चाहिए कि समाज में प्रेम, सहयोग और समझदारी से रहना जरूरी है।
अगर हम शिक्षक बनकर यह नहीं सिखा पाए, तो हम केवल किताबें पढ़ाने वाले बन जाएंगे, सच्चे शिक्षक नहीं।
इसलिए आज इस पावन दिन पर हम सबको आत्ममंथन करना चाहिए। हमें सोचकर देखना चाहिए कि क्या हम सही कर रहे हैं। क्या हम अपने छात्रों को सही रास्ता दिखा रहे हैं? क्या हम खुद सही सोच रखते हैं?
आइए, आज भगवान महावीर के आदर्शों को याद करें। आइए, हम सब महापुरुषों का आदर करें, चाहे वे किसी भी धर्म या जाति के हों। और आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाएं जिसमें सबको समान नजर से देखा जाए, जहां किसी के साथ भेदभाव न हो, और जहां शिक्षा का मतलब केवल जानकारी नहीं, बल्कि इंसानियत भी हो।
यही हमारे भारत की असली पहचान है।
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