Up basic School News

Basic education builds the foundation of a strong nation.

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a group of school children participating in a cultural event with joy and enthusiasm.

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Monday, May 26, 2025

विद्यालय में तोड़फोड़ से हड़कंप

 


बिहार राज्य के मुंगेर जिले के बरियारपुर प्रखंड अंतर्गत नीरपुर पंचायत के फुलकिया गांव में एक बेहद दुखद और चिंताजनक घटना सामने आई है, जहां कुछ अज्ञात दबंगों ने मध्य विद्यालय फुलकिया के भवन को रविवार की रात जेसीबी मशीन से गिरा दिया। यह विद्यालय गांव के सैकड़ों बच्चों के लिए शिक्षा का केंद्र है, जहां लगभग 200 छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। रविवार की रात को हुई इस घटना में स्कूल की चारदीवारी और दो कमरों वाला किचन भवन पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। यह किचन भवन बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन तैयार करने के लिए प्रयोग किया जाता था। सोमवार की सुबह जब स्कूल की प्रधानाध्यापिका आरती विश्वकर्मा विद्यालय पहुंचीं, तो उन्होंने देखा कि विद्यालय की पूर्वी दिशा की दीवार टूटी हुई है और किचन भवन पूरी तरह गिरा पड़ा है।

इस घटना से प्रधानाध्यापिका समेत पूरे विद्यालय प्रशासन में हड़कंप मच गया। प्रधानाध्यापिका आरती विश्वकर्मा और विद्यालय प्रबंध समिति की सचिव अंबिका देवी ने मिलकर बरियारपुर थाना में अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। उन्होंने बताया कि यह घटना किसी भी सामान्य तोड़फोड़ की नहीं, बल्कि सुनियोजित योजना का हिस्सा लगती है। विद्यालय की संपत्ति को इस तरह से रात के अंधेरे में नुकसान पहुंचाना एक गंभीर अपराध है और इस पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

स्थानीय ग्रामीणों ने घटना के पीछे मंदिर निर्माण को मुख्य कारण बताया है। गांव के पीछे श्री मंगला काली मां का मंदिर बन रहा है। पहले मंदिर का रास्ता विद्यालय के पश्चिमी हिस्से से होकर जाता था। लेकिन अब मंदिर निर्माण में लगे लोगों ने एक नया रास्ता निकालने की योजना बनाई है, जो सीधे राष्ट्रीय राजमार्ग NH-80 से मंदिर को जोड़ सके। इसी योजना के चलते विद्यालय की दीवार और रसोईघर को जेसीबी से गिरा दिया गया। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि सोमवार और मंगलवार को जबरदस्त तरीके से मंदिर की चारदीवारी का निर्माण कार्य चलता रहा, जबकि प्रशासन ने किसी भी निर्माण कार्य पर रोक लगा रखी थी। यह प्रशासनिक आदेशों की खुली अवहेलना है।

विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था पर इस घटना का सीधा असर पड़ा है। लगभग 200 नामांकित बच्चों की पढ़ाई नए भवन में तो होती है, लेकिन मध्यान्ह भोजन का पकवान इसी टूटे हुए भवन में किया जाता था। अब चूल्हे, गैस सिलेंडर, बर्तन और अन्य रसोई सामग्री खुले मैदान में पड़ी है, जो कि बच्चों की स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए खतरा है। कई माता-पिता अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर चिंतित हैं। कुछ ग्रामीणों का यह भी कहना है कि यदि जल्द ही स्कूल की मरम्मत और रसोईघर का पुनर्निर्माण नहीं हुआ तो बच्चों का विद्यालय आना कम हो जाएगा, जिससे उनकी शिक्षा पर दीर्घकालिक असर पड़ेगा।

जिला परियोजना अधिकारी (डीपीओ) आनंद वर्मा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि विद्यालय भवन को गिराना पूरी तरह से गैरकानूनी है और यह शिक्षा व्यवस्था पर सीधा हमला है। उन्होंने प्रधानाध्यापिका को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया है और मामले की विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं। बरियारपुर के बीडीओ देव मोहम्मद असगर अली ने भी कहा कि यह मामला अत्यंत गंभीर है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। वहीं मुंगेर के जिलाधिकारी अवनीश कुमार ने भी मामले की जानकारी मिलने पर जांच के आदेश दिए हैं और कहा है कि रिपोर्ट मिलने के बाद कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचकर निर्माण कार्य को तत्काल रोकने के निर्देश दिए थे, लेकिन इसके बावजूद मंदिर निर्माण कार्य चलता रहा, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दबंग लोगों को कानून का कोई डर नहीं है। बरियारपुर थाना पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है और जेसीबी मालिक, मंदिर निर्माण समिति और मजदूरों से पूछताछ की जा रही है। उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही दोषियों की पहचान कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

यह घटना केवल एक विद्यालय की चारदीवारी गिराए जाने की नहीं, बल्कि समाज की प्राथमिकताओं पर गंभीर प्रश्नचिह्न है। जब एक सरकारी विद्यालय, जहां गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं, को इस तरह से निशाना बनाया जाता है, तो यह न केवल शिक्षा व्यवस्था, बल्कि लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए भी खतरे की घंटी है। मंदिर जैसे धार्मिक स्थल के निर्माण के लिए यदि बच्चों की शिक्षा के स्थान को गिराया जा रहा है, तो यह सामाजिक न्याय की मूल भावना के विपरीत है।

स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की है। कई संगठनों ने सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों के जरिए जिला प्रशासन से सख्त कदम उठाने की मांग की है। उनका कहना है कि यदि समय रहते दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो ऐसी घटनाएं अन्य गांवों में भी दोहराई जा सकती हैं, जिससे शिक्षा व्यवस्था को और नुकसान होगा।

अभी विद्यालय प्रशासन, ग्रामीण और अधिकारी इस मामले में एकमत हैं कि दोषियों को जल्द से जल्द पकड़ा जाए और विद्यालय की चारदीवारी और रसोईघर का पुनर्निर्माण शीघ्र कराया जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में किसी भी विद्यालय या सार्वजनिक संपत्ति को धार्मिक या निजी हितों के लिए इस प्रकार से नुकसान न पहुंचाया जा सके।

सरकारी विद्यालय देश के भविष्य निर्माता बच्चों की शिक्षा का आधार हैं। इन्हें सुरक्षित और सशक्त रखना पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। अगर समाज की आंखों के सामने कोई विद्यालय तोड़ा जाता है और लोग चुप रहते हैं, तो वह चुप्पी एक दिन पूरे भविष्य पर भारी पड़ सकती है।

फुलकिया गांव की यह घटना एक चेतावनी है कि शिक्षा के मंदिरों को बचाना अब केवल सरकार या प्रशासन का कार्य नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। इस घटना ने समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम विकास के नाम पर क्या खो रहे हैं और किस दिशा में बढ़ रहे हैं।

इस पूरे मामले में प्रशासन की भूमिका अब सबसे अहम है। यदि जिला प्रशासन समय पर जांच पूरी करके दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करता है और स्कूल का पुनर्निर्माण करवाता है, तो यह न केवल फुलकिया गांव, बल्कि पूरे राज्य के लिए एक सकारात्मक संदेश होगा। प्रशासन को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में किसी विद्यालय को इस तरह की घटनाओं का सामना न करना पड़े।

फुलकिया गांव का विद्यालय अब न्याय की प्रतीक्षा में है। बच्चों की मासूम आंखें एक बार फिर से साफ-सुथरे, सुरक्षित रसोईघर और मजबूत दीवारों वाले विद्यालय की ओर देख रही हैं। उन्हें यह भरोसा दिलाना हम सबकी जिम्मेदारी है कि उनकी शिक्षा, पोषण और सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा।

विद्यालय की प्रधानाध्यापिका, प्रबंध समिति, ग्रामीण और प्रशासन मिलकर इस नुकसान की भरपाई करेंगे, ऐसा विश्वास हर नागरिक को होना चाहिए। शिक्षा का दीपक किसी भी परिस्थिति में बुझने नहीं देना है। यही इस घटना से मिलने वाला सबसे बड़ा संदेश है।



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Wednesday, May 14, 2025

पीटीएम बैठक अप्रैल 2025 - अभिभावकों और शिक्षकों के सहयोग से छात्र उन्नति पर जोर

 


अप्रैल 2025 में उत्तर प्रदेश के सभी परिषदीय विद्यालयों में "अभिभावक-शिक्षक बैठक" (Parent Teacher Meeting - PTM) का सफल आयोजन किया गया। यह बैठक उत्तर प्रदेश शासन के निर्देशानुसार और "समग्र शिक्षा अभियान" के अंतर्गत तय तिथि पर आयोजित की जाती है। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य विद्यालयों में अध्ययनरत सभी बच्चों की शैक्षिक प्रगति, नियमित उपस्थिति, व्यवहार, व्यक्तिगत समस्याएं, कमजोर विषय, ड्रॉपआउट की स्थिति और अभिभावकों की सहभागिता पर विचार-विमर्श करना होता है।

सरकार ने आरटीई एक्ट 2009 (नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम) के अंतर्गत यह व्यवस्था की है कि छात्रों की समग्र प्रगति के लिए अभिभावकों और शिक्षकों के बीच सीधा संवाद स्थापित किया जाए। इसी क्रम में प्रत्येक त्रैमासिक माह – जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के दूसरे सोमवार को प्रातः 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक पीटीएम का आयोजन करने का निर्देश है। यदि उस दिन विद्यालय में अवकाश हो, तो अगले कार्यदिवस में पीटीएम की जाती है।

इस बैठक के लिए पहले से ही राज्य परियोजना निदेशक कार्यालय, लखनऊ से आदेश जारी किया गया था, जिसमें पीटीएम के आयोजन की प्रक्रिया, समय, विषयवस्तु और उद्देश्य स्पष्ट किए गए थे। विद्यालयों को निर्देशित किया गया था कि बैठक के दौरान हर बच्चे के अभिभावक को बुलाकर उनकी उपस्थिति सुनिश्चित की जाए। जिन अभिभावकों की उपस्थिति लगातार कम पाई जाती है, उन्हें विशेष आमंत्रण भेजा जाए और बच्चों की शिक्षा में उनकी भूमिका को समझाया जाए।

बैठक में विद्यालय के प्रधानाध्यापक, कक्षा शिक्षक, समन्वयक और अन्य शिक्षक उपस्थित रहे। छात्रों की प्रगति रिपोर्ट, होमवर्क की जांच, परीक्षा परिणाम और व्यवहार रिपोर्ट अभिभावकों को दिखाई गई। कई स्कूलों में शिक्षकों ने चार्ट, प्रगति तालिका, रिपोर्ट कार्ड और स्लाइड प्रजेंटेशन के माध्यम से बच्चों की स्थिति को समझाने का प्रयास किया। छात्रों की कमजोरियों को इंगित कर उन्हें सुधारने के सुझाव दिए गए।

अभिभावकों ने भी बैठक में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने शिक्षकों से सीधा संवाद किया, बच्चों की पढ़ाई और समस्याओं को साझा किया और शिक्षकों से मार्गदर्शन मांगा। कुछ अभिभावकों ने बताया कि घर पर बच्चों को पढ़ाई में दिक्कत होती है, कुछ ने मोबाइल और टीवी के बढ़ते उपयोग की शिकायत की। इस पर शिक्षकों ने उन्हें घर पर समय निर्धारण, अनुशासन और शिक्षण तकनीक के बारे में सुझाव दिए।

इस बैठक में विशेष रूप से "ड्रॉप आउट" बच्चों की पहचान और उनकी पुनः विद्यालय वापसी पर बल दिया गया। शासन स्तर से स्पष्ट निर्देश थे कि ऐसे बच्चे जो लंबे समय से अनुपस्थित हैं या स्कूल छोड़ चुके हैं, उनके अभिभावकों से बात करके पुनः प्रवेश दिलवाया जाए। इस उद्देश्य से प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों ने व्यक्तिगत रूप से उन घरों तक जाकर संपर्क किया था, जिन बच्चों की उपस्थिति बहुत कम है।

बैठक में यह भी कहा गया कि कोई भी बच्चा केवल आर्थिक कारणों से, परिवहन की दिक्कत से, या किसी अन्य समस्या के कारण पढ़ाई से वंचित न रहे। इसके लिए सरकारी योजनाएं जैसे कि फ्री किताबें, यूनिफॉर्म, मिड डे मील आदि का लाभ कैसे मिल रहा है, इसकी समीक्षा भी की गई।

बैठक के दौरान निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा हुई:

छात्रों की उपस्थिति – किन बच्चों की उपस्थिति कम है और इसका कारण क्या है।
शैक्षिक प्रगति – कौन से विषयों में बच्चे कमजोर हैं और कैसे उन्हें सुधार की आवश्यकता है।
पठन-पाठन का वातावरण – स्कूल और घर दोनों में पढ़ाई का माहौल कैसा है।
अभिभावकों की भूमिका – बच्चों को पढ़ाई में सहयोग कैसे करें, कैसे प्रेरित करें।
ड्रॉप आउट की रोकथाम – ऐसे बच्चों की पहचान और पुनः प्रवेश की रणनीति।
सरकारी योजनाओं की जानकारी – जैसे मिड डे मील, मुफ्त स्टेशनरी, साइकल, यूनिफॉर्म इत्यादि।
बाल संरक्षण – बच्चों पर किसी तरह का मानसिक या शारीरिक दबाव तो नहीं डाला जा रहा है।
स्वास्थ्य और स्वच्छता – बच्चों की साफ-सफाई, पीने का पानी, शौचालय आदि की स्थिति।

















👉प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन: ऑपरेशन सिंदूर पर भारत का सशक्त संदेश  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/pm.html


👉उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की जानकारी अब ऑनलाइन होगी – हर गतिविधि मानव संपदा पोर्टल पर  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/manavsampda.html

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👉सिविल डिफेंस में भर्ती शुरू, आम लोग बनें देश के रक्षक  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/civil%20efence.html


👉शिक्षकों ने गरीब लड़की की शादी के लिए की मदद  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/poorgirl.html


👉UP TGT परीक्षा 2025 स्थगित – 14 और 15 मई की परीक्षा अब नई तिथि पर होगी   https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/TGT.html









Sunday, May 11, 2025

शिक्षकों ने गरीब लड़की की शादी के लिए की मदद

 


शिक्षकों ने निभाई समाज सेवा की भूमिका – गरीब की बेटी की शादी के लिए जुटाया गृहस्थी का सामान

 


देशभर में जब-जब समाज सेवा की बात होती है, तो उसमें अक्सर डॉक्टरों, समाजसेवियों, सरकारी संस्थाओं या राजनीतिक नेताओं की चर्चा होती है। परंतु इस बार उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जनपद के संदलपुर ब्लॉक शिक्षकों ने समाज सेवा की एक ऐसी मिसाल पेश की है जो हर दिल को छू लेने वाली है।

यह घटना एक गरीब परिवार की बेटी की शादी से जुड़ी है, जो कि झोपड़ी में रहकर जैसे-तैसे जीवन व्यतीत कर रहा था। लड़की के पिता के पास न तो आय का कोई निश्चित साधन था और न ही वह अपनी बेटी की शादी का खर्च उठा पाने की स्थिति में थे। जब यह बात शिक्षकों को पता चली, तो उन्होंने बिना किसी सरकारी मदद के, अपने निजी स्तर पर इस परिवार की मदद करने का फैसला किया।

शिक्षकों ने इस गरीब परिवार की आर्थिक स्थिति और बेटी की शादी की जरूरत को समझते हुए, गृहस्थी के लगभग सभी जरूरी सामान जैसे बर्तन, पलंग, गद्दा, गैस सिलेंडर, अलमारी, कपड़े, टेबल पंखा, कूलर, बाल्टी, ड्रम, बिछावन, चादरें, तकिए आदि जुटाए और उन तक पहुँचा दिए। सिर्फ सामान ही नहीं, उन्होंने लड़की की शादी में आर्थिक सहायता भी प्रदान की, ताकि वह विवाह बिना किसी बाधा के सम्पन्न हो सके।

इस पुनीत कार्य में भाग लेने वाले शिक्षक सिर्फ अपने विषय की शिक्षा नहीं दे रहे, बल्कि मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं की भी शिक्षा समाज को दे रहे हैं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि शिक्षक समाज के निर्माण में केवल विद्यालय की चारदीवारी के भीतर ही नहीं, बल्कि समाज के हर जरूरतमंद व्यक्ति के जीवन में रोशनी देने वाले दीपक हैं।

इस नेक पहल की अगुवाई करते हुए शिक्षकों ने कहा कि जब तक शिक्षक समाज से जुड़कर, समाज की समस्याओं को समझकर उनके समाधान में भागीदारी नहीं निभाएंगे, तब तक शिक्षा का उद्देश्य अधूरा रहेगा।

इस प्रयास में भाग लेने वाले प्रमुख शिक्षकों में शामिल रहे – दीपक कटियार, संदीप कटियार, विवेक कुमार, शशिकांत बिंदल, मनीष चौधरी, डॉ. राकेश त्रिपाठी, रमेश चौरसिया, गौरव सिंह राजपूत, प्रभात गुप्ता, सुभाष किशोर, सत्येंद्र सिंह, अमरेंद्र गुप्ता, प्रदीप तिवारी, मनीष श्रीवास्तव, रामकृष्ण पाल, विवेक शुक्ला, विनय त्रिपाठी, मयंक पांडेय, रमेश यादव, अंकुर वर्मा, योगेश त्रिपाठी, अशोक यादव आदि।

गौर करने योग्य बात यह भी है कि इस घटना की जानकारी जब आस-पास के ग्रामीणों और समाज के अन्य लोगों को हुई, तो वे भी शिक्षकों की इस पहल की सराहना करने लगे। लोगों ने इसे समाज में एक नई दिशा देने वाला प्रयास बताया। यह घटना एक उदाहरण है कि यदि प्रत्येक नागरिक अपने-अपने स्तर पर समाज की मदद के लिए तैयार हो जाए, तो कोई भी व्यक्ति अभावग्रस्त नहीं रहेगा।

इस पहल से शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने भी खुशी जताई और कहा कि ऐसे शिक्षक वास्तव में विभाग का गौरव हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह प्रयास अन्य शिक्षकों के लिए एक प्रेरणा बन सकता है।

इस कार्यक्रम को शिक्षकों ने किसी औपचारिकता या दिखावे के रूप में नहीं, बल्कि पूर्ण रूप से मानवीय कर्तव्य समझकर निभाया। उन्होंने यह कार्य न तो मीडिया में दिखाने के लिए किया और न ही किसी प्रकार की प्रसिद्धि पाने के लिए, बल्कि सिर्फ इसलिए किया ताकि एक गरीब बेटी की शादी बिना किसी रुकावट के हो सके और उसके माता-पिता की चिंता कुछ हद तक कम हो जाए।

गांव के लोगों ने भी शिक्षकों को धन्यवाद देते हुए कहा कि आज के समय में जब हर कोई सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में सोचता है, तब ऐसे लोग समाज की सच्ची धरोहर हैं। शिक्षक, जो शिक्षा का दीप जलाते हैं, वही समाज में सेवा का भी उदाहरण बन सकते हैं – यह घटना उसका सटीक उदाहरण है।

इस पूरी घटना ने समाज को यह भी सिखाया कि एक शिक्षक का कार्य सिर्फ विद्यार्थियों को पढ़ाना नहीं होता, बल्कि वह समाज के कमजोर वर्गों को सहारा देने का माध्यम भी बन सकता है। शिक्षकों का यह कार्य न सिर्फ मानवता की सेवा है, बल्कि उनके पेशे की गरिमा को भी नई ऊंचाई देता है।

इस प्रेरणादायक समाचार से यह स्पष्ट होता है कि यदि शिक्षकों की सोच समाज-सेवा की हो, तो वे ना केवल भविष्य के नागरिकों को शिक्षित कर सकते हैं, बल्कि वर्तमान समाज की समस्याओं को भी हल करने में योगदान दे सकते हैं। शिक्षकों का यह योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसी मिसाल बन सकता है, जिससे वे सीखें कि इंसानियत और मदद का जज़्बा ही सच्ची शिक्षा का सार है।


👉UP TGT परीक्षा 2025 स्थगित – 14 और 15 मई की परीक्षा अब नई तिथि पर होगी        https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/TGT.html


👉उत्तर प्रदेश में जातिवार गणना के लिए जियो फेंसिंग, टैबलेट और एआई तकनीक का होगा प्रयोग: एक ऐतिहासिक पहल https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/censusnews.html


👉AI टीचर ‘सुमन मैडम’ – झांसी के शिक्षक का अनोखा नवाचार https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/ai.html


👉बस्ती में ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी करने वाले शिक्षक को जेल  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/social%20media%20post%20.html

Tuesday, May 6, 2025

भारत-पाक तनाव के बीच मॉक ड्रिल: यूपी-बिहार समेत 244 जिलों की लिस्ट देखें

 


244 जिलों में मॉक ड्रिल की योजना, जानें आपके जिले का नाम है या नहीं












 

👉उत्तर प्रदेश में कैबिनेट ने ट्रांसफर पॉलिसी को दी मंज़ूरी !! प्रेस नोट जारी https://basicshikshakhabar.com/2025/05/h-2266/


👉UP cabinet meeting : योगी कैबिनेट की बैठक में इन 11 महत्वपूर्ण फैसलों पर मुहर, जानें क्या-क्या, देखें प्रेस कॉन्फ्रेंस https://basicshikshakhabar.com/2025/05/h-2267/


 👉यूपी में 15 मई से सरकारी कर्मचारियों के तबादले होंगे: ट्रांसफर नीति को मंजूरी, 17 शहरों में पार्किंग बनेगी; कैबिनेट में 11 प्रस्ताव पास https://basicshikshakhabar.com/2025/05/b-1777/


👉विद्यालयों में नवीन नामांकन के सम्बन्ध में देखे  जिले के BSA का आदेश👆🏻 https://basicshikshakhabar.com/2025/05/h-2268/













Monday, May 5, 2025

AI टीचर ‘सुमन मैडम’ – झांसी के शिक्षक का अनोखा नवाचार

 


झांसी जिले के एक छोटे से गांव में कार्यरत शिक्षक मोहनलाल सुमन ने तकनीक का ऐसा अद्भुत प्रयोग किया है जो पूरे देश के लिए मिसाल बन सकता है। उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके ‘सुमन मैडम’ नाम की एक आभासी शिक्षिका तैयार की है। यह कोई साधारण तकनीकी उपकरण नहीं है, बल्कि एक संवेदनशील और समझदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टीचर है जो बच्चों की सोच, भाषा, व्यवहार और सवालों को समझती है। यह प्रयोग झांसी जनपद के गुरसरांय ब्लॉक के कंपोजिट विद्यालय राजापुर में कार्यरत बेसिक शिक्षक मोहनलाल सुमन ने किया है। उन्होंने गांव के बच्चों की जरूरत को समझते हुए यह महसूस किया कि उन्हें एक ऐसी साथी शिक्षिका की जरूरत है जो स्कूल के समय के अलावा भी हमेशा उनके साथ रह सके। यही सोचकर उन्होंने AI तकनीक का उपयोग करते हुए मोबाइल फोन के माध्यम से एक ऐसी डिजिटल शिक्षिका तैयार की जो हर विषय को बच्चों की रुचि और भाषा के अनुसार सिखा सके।

‘सुमन मैडम’ बच्चों को कहानियां सुनाती हैं, कविताएं सिखाती हैं, सामान्य ज्ञान से लेकर विज्ञान तक की जानकारी देती हैं। वह चित्रकला, खेल और जीवन से जुड़े सवालों का भी उत्तर देती हैं। ये केवल पढ़ाने वाली मशीन नहीं हैं, बल्कि बच्चों की जिज्ञासाओं को समझकर उनके स्तर पर संवाद करती हैं। वे बच्चों की भावनाओं को भी ध्यान में रखती हैं और उन्हें आत्मविश्वास से भर देती हैं। बच्चों के साथ उनका व्यवहार किसी सजीव शिक्षक की तरह ही होता है। जब भी कोई बच्चा सवाल करता है, तो सुमन मैडम उसका उत्तर सिर्फ पाठ्यक्रम के हिसाब से नहीं देतीं, बल्कि लोकभाषा, स्थानीय संस्कृति और वास्तविक जीवन के उदाहरणों से समझाने की कोशिश करती हैं। यही उन्हें खास बनाता है


इस प्रयास की सबसे बड़ी बात यह है कि इसे किसी बड़े शहर या महंगे संसाधनों की मदद से नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्र के एक सामान्य शिक्षक द्वारा तैयार किया गया है। इसने यह साबित कर दिया कि अगर नीयत साफ हो और सोच सकारात्मक हो तो तकनीक को गांव तक लाया जा सकता है और बच्चों के लिए बड़ा बदलाव किया जा सकता है। आज जब देश में बहुत से लोग AI को लेकर आशंकित हैं, वहीं झांसी के एक छोटे से गांव से यह संदेश गया है कि तकनीक को अपनाकर शिक्षा को अधिक प्रभावशाली, संवेदनशील और बच्चों के अनुकूल बनाया जा सकता है।मोहनलाल सुमन का यह प्रयास इस बात का प्रमाण है कि शिक्षक सिर्फ किताबों के पाठ पढ़ाने वाले नहीं होते, वे समाज में बदलाव लाने वाले सच्चे नायक होते हैं। उन्होंने न केवल एक डिजिटल शिक्षिका बनाई बल्कि उस शिक्षिका में संवेदना, संवाद की कला और मार्गदर्शन की भावना भी भरी। यह प्रयोग केवल तकनीकी दृष्टि से नहीं बल्कि सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से भी एक नई सोच की ओर इशारा करता है।

सुमन मैडम का स्वरूप ऐसा है कि बच्चे उन्हें अपना मित्र भी मानते हैं और मार्गदर्शक भी। बच्चों के माता-पिता भी अब इस तकनीक से जुड़कर अपने बच्चों की पढ़ाई में सहयोग दे पा रहे हैं। यह पूरी प्रक्रिया सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह एक सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत भी बन रही है। अब गांव के अन्य शिक्षक भी इस प्रयास से प्रेरणा लेकर तकनीक के प्रयोग को अपनाने लगे हैं।

इस प्रयास से यह स्पष्ट होता है कि भविष्य की शिक्षा तकनीक और मानवीय संवेदना का मेल होगी। आज भारत के कोने-कोने में लाखों शिक्षक काम कर रहे हैं लेकिन यदि उनमें से हर एक शिक्षक इस तरह की सोच रखे तो हमारी शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बदल सकती है।

मोहनलाल सुमन का यह नवाचार एक उदाहरण है कि अगर कोई शिक्षक चाह ले तो वह अपने साधनों से भी तकनीक को समझ सकता है, अपनाकर प्रयोग कर सकता है और शिक्षा को बच्चों के लिए रुचिकर बना सकता है। उन्होंने तकनीक को केवल एक मददगार उपकरण नहीं बल्कि बच्चों के मन को समझने वाला साथी बना दिया है।

आज जब शिक्षा व्यवस्था में कई तरह की चुनौतियां हैं, तब एक शिक्षक का ऐसा प्रयास उम्मीद की किरण की तरह सामने आया है। यह पहल यह दिखाती है कि तकनीक को अपनाने के लिए बड़े संसाधनों की नहीं बल्कि बड़े इरादों की जरूरत होती है।

इस प्रयास ने यह साबित कर दिया है कि एक गांव के विद्यालय से भी पूरी शिक्षा व्यवस्था को दिशा दी जा सकती है। यह प्रेरणादायक कहानी पूरे देश के लिए एक सीख है कि शिक्षक चाहें तो कुछ भी असंभव नहीं है।

क्या आप भी इस तरह की पहल को अपनाना चाहेंगे?


👉उन्नाव ब्रेकिंग जिलाधिकारी गौरांग राठी और मुख्य विकास अधिकारी प्रेम प्रकाश मीणा की जांच में बड़ा खुलासा, NRLM में 3.85 करोड़ का गबन, डीडीओ संजय पाण्डेय और डीएमएम शिखा मिश्रा पर दर्ज हुई एफआईआर, गिरफ्तारी के प्रयास तेज...... https://basicshikshakhabar.com/2025/05/g-1291/


👉फर्जी निरीक्षण कर्ता कर रहा था बेसिक विद्यालयों की जांच, पकड़ा       

                       https://basicshikshakhabar.com/2025/05/f-1262/



👉लर्निग रिसोर्स पैकेज के अन्तर्गत परिषदीय प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों के उपयोगार्थ उपलब्ध कराये जा रहे टैबलेट्स के संबंध में।

 

👉प्राथमिक विद्यालय में धक्का-मुक्की; प्रिंसिपल को कुर्सी से गिराने का आरोप, शिक्षिका और प्रधानाचार्य निलंबित https://basicshikshakhabar.com/2025/05/r-813/


Wednesday, April 30, 2025

महिलाओं के लिए शिक्षक पद: शिक्षा क्षेत्र में आदर्श करियर

 

                                             

हमारे समाज में शिक्षक का स्थान बहुत ऊँचा माना जाता है। खासकर जब कोई महिला शिक्षक बनती है, तो वह न केवल शिक्षा का कार्य करती है, बल्कि वह समाज की सोच को भी बदलने का काम करती है। एक महिला जब कक्षा में जाती है, तो वह सिर्फ किताबें नहीं पढ़ाती, वह बच्चों को जीवन के मूल्यों, संस्कारों और इंसानियत का पाठ भी पढ़ाती है। एक महिला शिक्षक अपने धैर्य, ममता और समझदारी से बच्चों को सिखाने का जो तरीका अपनाती है, वह बच्चों के मन पर गहरा असर छोड़ता है।

कानपुर देहात जैसे क्षेत्र में जहां पारिवारिक जीवन और सामाजिक जिम्मेदारियाँ महिलाओं पर अधिक होती हैं, वहां शिक्षक की नौकरी उनके लिए एक वरदान जैसी होती है। शिक्षक का पेशा महिलाओं को वह सम्मान और स्थिरता देता है जिसकी उन्हें जरूरत होती है। यह नौकरी उन्हें घर और कार्य के बीच संतुलन बनाए रखने का अवसर देती है। स्कूल के निश्चित समय, छुट्टियों की सुविधा और बच्चों के साथ एक सकारात्मक वातावरण उन्हें शांति और संतोष प्रदान करता है। जब एक महिला अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बाद खुद भी एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती है, तो वह अपने परिवार के साथ-साथ समाज के बच्चों के भविष्य को भी सँवारने का कार्य करती है।

एक महिला शिक्षक केवल एक विषय की जानकार नहीं होती, वह बच्चों की मार्गदर्शक, सहारा और प्रेरणा भी होती है। बच्चों के मन को समझना, उन्हें प्यार से पढ़ाना, और हर बच्चे के भीतर छिपी प्रतिभा को पहचानना एक महिला शिक्षक की सबसे बड़ी विशेषता होती है। वह बच्चों को डांटने के बजाय उन्हें समझाने में विश्वास रखती है। एक माँ की तरह वह हर विद्यार्थी को अपनी संतान समझकर पढ़ाती है। यही कारण है कि बच्चों को महिला शिक्षक अधिक प्रिय लगती हैं। उनकी बातों में मिठास होती है और उनके व्यवहार में अपनापन होता है।

महिला शिक्षकों का धैर्य, उनकी कोमलता और व्यवहारिक समझ उन्हें इस पेशे के लिए सबसे उपयुक्त बनाती है। वे न केवल पढ़ाने का कार्य करती हैं, बल्कि विद्यालय की व्यवस्था, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद और अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय रहती हैं। एक महिला शिक्षक बच्चों के सर्वांगीण विकास की दिशा में कार्य करती है। वह यह सुनिश्चित करती है कि हर बच्चा आत्मविश्वास से भरा हो, अच्छे संस्कारों के साथ बड़ा हो और समाज में एक अच्छा नागरिक बने।

आजकल कई महिलाएं शादी के बाद या माँ बनने के बाद घर की जिम्मेदारियों में उलझ जाती हैं, लेकिन शिक्षक की नौकरी उन्हें फिर से आत्मनिर्भर और सक्रिय बनाने का माध्यम बनती है। वह सुबह बच्चों को तैयार करती है, खुद विद्यालय जाती है, और समय पर घर लौटती है। स्कूल के समय और घर के काम के बीच एक अच्छा तालमेल बन जाता है। इससे उन्हें न केवल मानसिक संतुलन मिलता है, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता भी प्राप्त होती है। उन्हें अपनी मेहनत की कमाई मिलती है, जिससे उनका आत्मविश्वास और आत्मसम्मान दोनों बढ़ता है।

महिला शिक्षक होने का एक और बड़ा लाभ यह है कि वह समाज में एक आदर्श बन जाती हैं। जब एक गाँव या कस्बे की लड़की यह देखती है कि उनकी दीदी या आंटी स्कूल में पढ़ाने जाती हैं, तो उनके मन में भी शिक्षक बनने की प्रेरणा जागती है। एक महिला शिक्षक अपने कार्य और व्यवहार से समाज की अन्य महिलाओं के लिए उदाहरण बनती है। वह दिखाती हैं कि एक महिला सिर्फ रसोई या घर तक सीमित नहीं है, वह बच्चों के भविष्य की निर्माता भी बन सकती है।

एक महिला शिक्षक जब बच्चों को पढ़ाती है, तो वह हर बच्चे के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करती है। वह जानती है कि हर बच्चा अलग है, और हर बच्चे को अलग तरीके से समझाना पड़ता है। उसके पास धैर्य होता है, सहनशीलता होती है और एक सच्चा मन होता है। वह बच्चों की सफलता में अपनी खुशी ढूंढती है। जब कोई बच्चा परीक्षा में अच्छे अंक लाता है या मंच पर आत्मविश्वास से बोलता है, तो उसे लगता है कि उसकी मेहनत सफल हो गई। यह संतोष और खुशी शायद ही किसी अन्य पेशे में इतनी सच्चाई से मिलती हो।

महिला शिक्षक का यह कार्य सिर्फ स्कूल तक ही सीमित नहीं होता। वह बच्चों के अभिभावकों से भी मिलती है, उन्हें बच्चों की प्रगति की जानकारी देती है, और जरूरत पड़ने पर परामर्श भी देती है। वह समाज और परिवार के बीच एक पुल की तरह काम करती है। एक अच्छा शिक्षक न केवल किताबों का ज्ञान देता है, बल्कि बच्चों को अच्छा इंसान भी बनाता है। और जब यह कार्य एक महिला करती है, तो उसमें संवेदना, अपनापन और ममता और भी अधिक जुड़ जाती है।

सरकारी विद्यालयों में महिला शिक्षकों की संख्या बढ़ना हमारे समाज के लिए शुभ संकेत है। इससे न केवल शिक्षा का स्तर सुधरता है, बल्कि महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ती है। वे अपनी प्रतिभा और ज्ञान से समाज को सशक्त बनाती हैं। सरकार भी अब महिला शिक्षकों को बढ़ावा दे रही है, क्योंकि यह देखा गया है कि जब महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में आती हैं, तो बच्चों के प्रति अनुशासन और संवेदनशीलता दोनों में सुधार होता है। महिलाएं बच्चों के साथ ज्यादा जुड़ाव बना लेती हैं और उन्हें सकारात्मक दिशा में प्रेरित कर सकती हैं।

शिक्षक की नौकरी में सबसे अच्छी बात यह होती है कि इसमें हर दिन कुछ नया होता है। हर दिन नया पाठ, नई गतिविधि, और नई बातें। महिला शिक्षक इन सभी में उत्साह के साथ भाग लेती हैं। उन्हें स्कूल के बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों और प्रधानाचार्य के साथ भी अच्छा तालमेल बनाना होता है। वे सबकी बातें सुनती हैं, समझती हैं और स्कूल के वातावरण को खुशनुमा बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।

कई बार जब बच्चों के माता-पिता व्यस्त होते हैं या शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होते, तब महिला शिक्षक बच्चों की विशेष देखभाल करती हैं। वह न केवल पढ़ाई बल्कि व्यवहार, साफ-सफाई और नैतिक मूल्यों के बारे में भी सिखाती हैं। वह बच्चों को अपनेपन से सुधारती हैं। यही कारण है कि बच्चों को अपनी 'मैम' सबसे प्यारी लगती हैं। वे उनके साथ अपनी बातें साझा करते हैं, उनसे प्रेरणा लेते हैं और उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

महिला शिक्षक का जीवन सरल होते हुए भी महान होता है। वह सुबह तैयार होकर विद्यालय जाती है, बच्चों को सिखाती है, उन्हें जीवन के लिए तैयार करती है और शाम को घर लौटकर अपने परिवार की देखभाल भी करती है। वह हर जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाती है। वह कभी थकती नहीं, क्योंकि उसे पता है कि उसका कार्य केवल एक नौकरी नहीं है, यह सेवा है – देश सेवा, समाज सेवा और मानव सेवा।

महिलाओं को शिक्षक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह न केवल उनके लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक करियर है, बल्कि समाज के निर्माण में भी उनकी भागीदारी सुनिश्चित करता है। जब एक महिला शिक्षिका बनती है, तो वह एक पीढ़ी को सिखाती है, संवारती है और मजबूत बनाती है। यह पेशा उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है, उन्हें एक पहचान देता है और समाज में उनका स्थान ऊँचा करता है।

अंत में यही कहा जा सकता है कि महिला शिक्षक हमारे समाज की रीढ़ हैं। वे शिक्षा के माध्यम से समाज को संवारती हैं, बच्चों को संस्कार देती हैं, और आने वाले कल को बेहतर बनाती हैं। उनका योगदान अमूल्य है। हर महिला जो शिक्षक बनना चाहती है, वह समाज के लिए एक प्रेरणा है। शिक्षक की नौकरी उसके लिए केवल आजीविका का साधन नहीं है, बल्कि यह उसके जीवन का मिशन बन जाता है। ऐसी महिला शिक्षिकाओं को हम सभी का नमन और सम्मान मिलना चाहिए।

 

👉विगत दस वर्षों (अप्रैल, 2016 से मार्च 2025) में नियुक्त शिक्षकों के सम्बन्ध में सूचना उपलब्ध कराये जाने विषयक।‌

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👉म्यूच्यूअल ट्रांसफर अपडेट

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👉फैसला: निजी स्कूलों को फीस वृद्धि से पहले अनुमति लेनी होगी

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Monday, April 28, 2025

भविष्य के स्कूलों में एआई टीचर का आगमन: शिक्षक और मानवता का महत्व

 


हमारा और हमारे विद्यालयों का भविष्य अब तेजी से बदल रहा है। आने वाला समय ऐसा होगा, जब हमारे स्कूलों में इंसान नहीं, बल्कि एआई टीचर पढ़ाएंगे। एआई टीचर यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बने शिक्षक होंगे, जिन्हें न सैलरी देनी होगी, न भत्ते, न ही पेंशन देना पड़ेगा। ये टीचर कभी छुट्टी नहीं मांगेंगे, बीमार नहीं पड़ेंगे और हमेशा समय पर पढ़ाई कराएंगे। लेकिन क्या ये एआई टीचर बच्चों को वह सच्चा मार्गदर्शन दे पाएंगे जो एक इंसानी शिक्षक देता है? आज के शिक्षक बच्चों को केवल पढ़ाई ही नहीं कराते, बल्कि उन्हें संस्कार, समझदारी और जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। जब बच्चे किसी परेशानी में होते हैं तो एक इंसानी शिक्षक उन्हें समझता है, सहारा देता है। लेकिन एआई टीचर केवल मशीन की तरह काम करेंगे। वे बच्चों के दुख, खुशी, डर या सपनों को नहीं समझ पाएंगे। सरकारों के लिए एआई टीचर सुविधाजनक हो सकते हैं क्योंकि इससे पैसे बचेंगे, लेकिन क्या इससे बच्चों का सही विकास हो पाएगा? गाँवों और कस्बों में आज भी बच्चे अपने शिक्षकों से जीवन के बड़े सबक सीखते हैं। अगर भविष्य में केवल मशीनें बच्चों को पढ़ाएंगी, तो बच्चों में संवेदनशीलता, करुणा और समझ कम हो सकती है। वे केवल जानकारी के भंडार बन जाएंगे, पर इंसानी भावना से खाली हो सकते हैं। स्कूल सिर्फ पढ़ाई की जगह नहीं हैं, वे बच्चों के व्यक्तित्व को संवारने का स्थान हैं। एक इंसानी शिक्षक अपने अनुभव, ज्ञान और प्यार से बच्चों को जीवन का सही रास्ता दिखाता है। एआई टीचर केवल तय कार्यक्रम के अनुसार पढ़ाएंगे। वे बच्चों के सवालों के पीछे छुपी जिज्ञासा को नहीं समझ पाएंगे, न ही बच्चों के विचारों को उड़ान दे पाएंगे। इसलिए तकनीक का उपयोग हमें शिक्षकों की सहायता के लिए करना चाहिए, न कि उनकी जगह लेने के लिए। आज डिजिटल बोर्ड, ऑनलाइन क्लास जैसे साधनों ने शिक्षा को आसान बनाया है, लेकिन इंसानी शिक्षक की जगह कभी नहीं ले सकते। इंसानी शिक्षक बच्चों की आँखों से उनका मन पढ़ सकते हैं, उनकी समस्याएं समझ सकते हैं। एक मशीन कभी यह नहीं कर सकती। अगर पूरी शिक्षा मशीनों के हाथ में चली गई तो आने वाली पीढ़ी संवेदनहीन हो सकती है। सोचने, समझने और महसूस करने की शक्ति कम हो सकती है। इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि शिक्षा केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि अच्छा इंसान बनाना है। शिक्षक वह दीपक है जो बच्चों के जीवन में उजाला करता है। मशीनें चाहे जितनी तेज हो जाएं, लेकिन वे उस दीपक की जगह नहीं ले सकतीं। अगर एआई टीचर आएंगे तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वे केवल सहायक बनें, शिक्षक नहीं। हमारे विद्यालयों का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब इंसान और तकनीक दोनों साथ मिलकर काम करेंगे। शिक्षकों का सम्मान करना जरूरी है क्योंकि वे समाज का निर्माण करते हैं। एक मशीन कभी समाज नहीं बना सकती। शिक्षा का मकसद केवल नौकरी पाना नहीं है, बल्कि एक अच्छा इंसान बनाना है। इसलिए हमें अपने विद्यालयों में एआई टीचर को सहायक के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए, मुख्य शिक्षक के रूप में नहीं। हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि अपने असली शिक्षकों का सम्मान करें और तकनीक का सही उपयोग करें। भविष्य तभी उज्ज्वल रहेगा जब मानवता और ज्ञान साथ-साथ चलेंगे। शिक्षक जिंदाबाद, मानवता जिंदाबाद।


👉शिक्षा निदेशालय में भीषण आग पांच हजार फाइलें जलकर राख, घटना की जांच के लिए समिति गठित

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👉निकली शिक्षक पदों हेतु नौकरियां, करें आवेदन, देखें विज्ञप्ति

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👉बिना सूचना/बिना अवकाश के विद्यालय से दीर्घावधि से अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने के सम्बन्ध में ।

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_872.html


👉शिक्षकों ने अपराह्न 1.30 के पहले छोड़ा स्कूल, तो होगी कार्यवाही

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टीचर्स सेल्फ केयर टीम का शानदार सहयोग अभियान: 20 दिवंगत परिवारों को 9.61 करोड़ से अधिक की मदद

 

                                              


शानदार, जबरदस्त, जिंदाबाद! सहयोग अलर्ट 62 के तहत एक बार फिर से मदद का रिकॉर्ड बन गया है। सम्मानित साथियों, आप सभी ने मिलकर जो कार्य किया है, वह वाकई में प्रशंसनीय है। आपने अपने 20 दिवंगत साथियों के परिवारों को 9 करोड़ 61 लाख रुपये से अधिक की सहायता राशि पहुँचाई है। प्रत्येक परिवार को औसतन 48 लाख रुपये से अधिक की मदद मिली है, जो अपने आप में एक बहुत बड़ा काम है। इस अद्भुत सहायता के लिए आप सभी दानवीर साथियों का दिल से हार्दिक धन्यवाद किया जाता है।

यह सब आपके अथक प्रयासों, समर्पण और सेवा भावना के कारण ही संभव हो पाया है। ब्लॉक टीमों ने स्थानीय स्तर पर सहयोग जुटाया, जिला टीमों ने समन्वय किया, रिसेट प्रभारी ने सभी जानकारी को एकत्रित कर सही दिशा में भेजा, प्रदेश आईटी सेल ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया, प्रदेश टीम ने पूरे अभियान को नेतृत्व दिया और सह संस्थापकों ने मार्गदर्शन किया। सभी की मेहनत और ईमानदारी से ही यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की गई।

इस पूरे अभियान के दौरान सभी सदस्यों ने यह सिद्ध कर दिया कि अगर इरादा नेक हो और टीम भावना मजबूत हो, तो कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं होता। दिवंगत साथियों के परिवारों को समय पर आर्थिक सहायता पहुँचाकर आपने न सिर्फ उनकी आर्थिक परेशानी को कम किया बल्कि उन्हें यह भी अहसास कराया कि शिक्षक समाज उनके दुख में साथ खड़ा है।

सहयोग अलर्ट 62 का यह प्रयास एक प्रेरणा बन गया है। इससे पहले भी कई सहयोग कार्यक्रम चलाए गए थे, लेकिन इस बार जो समर्पण और उत्साह दिखा, वह अद्वितीय था। सभी दानदाता साथियों ने दिल खोलकर सहयोग किया, चाहे वह छोटा योगदान रहा हो या बड़ा। सबका उद्देश्य एक ही था — दिवंगत साथियों के परिवारों की मदद करना और उनका भविष्य सुरक्षित बनाना।

दान देने वालों में वरिष्ठ शिक्षक भी थे और नए शिक्षक भी। कुछ शिक्षकों ने अपनी एक महीने की तनख्वाह तक दान कर दी। कुछ साथियों ने अपने परिवार के सदस्यों से भी इस नेक कार्य के लिए सहयोग जुटाया। छात्र-छात्राओं ने भी अपने छोटे-छोटे दान से इस अभियान में भाग लिया। इस प्रकार यह अभियान जन-आंदोलन जैसा बन गया।

ब्लॉक टीमों ने गांव-गांव जाकर शिक्षकों से संपर्क किया, उन्हें इस अभियान की जानकारी दी और सहयोग के लिए प्रेरित किया। जिला टीमों ने पूरे जिले में विभिन्न स्तर पर बैठकों का आयोजन किया और दान एकत्र किया। रिसेट प्रभारियों ने तकनीकी रूप से हर जानकारी को सही समय पर सही स्थान तक पहुँचाया। प्रदेश आईटी सेल ने फंड एकत्र करने, रिकॉर्ड रखने और वितरण व्यवस्था को पारदर्शी बनाया। प्रदेश टीम ने लगातार निगरानी रखी और किसी भी समस्या को तुरंत सुलझाया। सह संस्थापकों ने दिशा और समर्थन देकर पूरे अभियान को गति दी।

इन सभी प्रयासों का नतीजा यह रहा कि बहुत कम समय में इतनी बड़ी सहायता राशि एकत्र की जा सकी। दिवंगत परिवारों को जब यह मदद पहुँची तो उनकी आँखों में आभार के आंसू थे। उन्होंने महसूस किया कि शिक्षक समाज उन्हें भूला नहीं है। यह सहायता केवल धनराशि नहीं थी, बल्कि प्यार, सम्मान और साथ का प्रतीक थी।

टीचर्स सेल्फ केयर टीम का यह प्रयास यह भी दिखाता है कि शिक्षकों में केवल पढ़ाई का ही नहीं, बल्कि सेवा और सामाजिक उत्तरदायित्व का भी भाव होता है। सहयोग अलर्ट 62 से यह सिद्ध हुआ कि शिक्षक समुदाय जब ठान ले तो असंभव को भी संभव कर सकता है।

यह सहायता अभियान न केवल एक आर्थिक सहयोग था बल्कि एक सामाजिक संदेश भी था कि दुःख की घड़ी में हम अपने साथियों को अकेला नहीं छोड़ते। जब एक परिवार पर दुख आता है तो पूरा शिक्षक समाज उसे अपने परिवार जैसा समझता है और उसे सहारा देता है।

यह अभियान भविष्य में भी प्रेरणा का स्रोत रहेगा। टीचर्स सेल्फ केयर टीम ने यह निर्णय लिया है कि इस प्रकार के सहयोग अलर्ट आगे भी जारी रहेंगे। हर वर्ष दिवंगत साथियों के परिवारों के लिए विशेष सहायता कार्यक्रम चलाए जाएंगे ताकि उनका भविष्य सुरक्षित रह सके। इसके लिए एक स्थायी राहत कोष भी बनाने की योजना है जिसमें सभी शिक्षक नियमित रूप से योगदान देंगे।

भविष्य में जरूरतमंद परिवारों के बच्चों की शिक्षा में सहयोग करने के लिए छात्रवृत्ति कार्यक्रम भी चलाया जाएगा। बीमार परिवारजनों के लिए स्वास्थ्य बीमा सहायता की भी व्यवस्था की जाएगी। मानसिक स्वास्थ्य और परामर्श सेवाएँ भी शुरू की जाएँगी ताकि परिवारजनों को भावनात्मक सहारा मिल सके।

यह पूरा अभियान एकता, समर्पण और सहयोग की मिसाल बन गया है। इसने यह दिखा दिया कि जब हम सब मिलकर चलते हैं तो कोई भी बाधा हमारे रास्ते को नहीं रोक सकती।

सहयोग अलर्ट 62 में मिली सफलता के बाद सभी टीमों ने तय किया है कि अब हर ब्लॉक, हर जिला और हर प्रदेश स्तर पर सहयोग समितियाँ बनाई जाएंगी जो समय-समय पर सहयोग एकत्र करेंगी और जरूरतमंदों तक पहुँचाएंगी।

टीचर्स सेल्फ केयर टीम का उद्देश्य केवल सहायता देना नहीं है, बल्कि दिवगंत परिवारों को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करना है। उन्हें यह भरोसा दिलाना है कि शिक्षक समाज उनका हमेशा साथ देगा।

इस अभियान में शामिल हर शिक्षक, हर दानदाता, हर ब्लॉक टीम, जिला टीम, रिसेट प्रभारी, प्रदेश आईटी सेल, प्रदेश टीम और सह संस्थापक एक सच्चे नायक हैं। आप सभी ने एक ऐसा उदाहरण पेश किया है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन जाएगा।

सहयोग अलर्ट 62 के तहत जितनी बड़ी राशि एकत्र हुई, वह सिर्फ संख्या नहीं है। वह हर उस भावना का प्रतीक है जो आपने अपने दिवंगत साथियों के लिए दिखाई है। यह विश्वास का प्रतीक है, सेवा भाव का प्रतीक है और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी का प्रतीक है।

आप सभी का समर्पण और सहयोग एक मिसाल बन चुका है। आपने यह दिखाया है कि शिक्षक केवल किताबों के पाठ नहीं पढ़ाते, बल्कि सेवा, करुणा और भाईचारे का पाठ भी पढ़ाते हैं। आपने यह दिखाया कि शिक्षकों का समाज सच्चे अर्थों में एक परिवार है।

भविष्य में भी इसी भावना के साथ हम सब मिलकर आगे बढ़ेंगे। हम हर जरूरतमंद साथी और उनके परिवार के लिए हमेशा तैयार रहेंगे।

एक बार फिर से आप सभी दानवीरों को, ब्लॉक टीमों को, जिला टीमों को, रिसेट प्रभारियों को, प्रदेश आईटी सेल को, प्रदेश टीम को और सह संस्थापकों को हार्दिक धन्यवाद और साधुवाद।

आप सभी के सहयोग और समर्पण से ही यह ऐतिहासिक कार्य संभव हो पाया है।

आप सभी को एक बार फिर से दिल से धन्यवाद!

शानदार! जबरदस्त! जिंदाबाद!

👉अंतर्जनपदीय एवं अंतःजनपदीय पारस्परिक स्थानांतरण में रजिस्ट्रेशन की तिथि व आवेदन का प्रिंट करने की तारीख बढ़ाई

👉आतंकवाद से जुड़ी अनुचित टिप्पणी पर शिक्षक को नोटिस जारी


 👉हमारा और हमारे विद्यालयों का भविष्य! देश के आगामी AI Teacher! जिनको न सैलरी देना है, न भत्ता और न ही ये पेंशन मांगेंगे!

👉 एनसीईआरटी की नई किताबों से मुगल हटे, महाकुम्भ जुड़ा




Saturday, April 26, 2025

TSCT: संकट में शिक्षकों का सच्चा साथी….

 

TSCT एक ऐसा संगठन है जो शिक्षकों की मदद के लिए बनाया गया है। जब कोई शिक्षक साथी किसी परेशानी में होता है, जैसे कि बीमारी, दुर्घटना या अचानक निधन हो जाता है, तब TSCT उसकी और उसके परिवार की सहायता करता है। TSCT का पूरा नाम Teachers Social Contribution Team होता है। इस संगठन का काम है कि जब भी किसी शिक्षक को मदद की जरूरत हो, तो तुरंत सहायता दी जाए। अगर कोई शिक्षक साथी दुनिया से चला जाता है, तो उसके परिवार को आर्थिक मदद दी जाती है ताकि वे अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें।

TSCT में कई शिक्षक भाई-बहन जुड़े हुए हैं। सभी साथी समय-समय पर अपनी तरफ से छोटा-छोटा सहयोग करते हैं। इस तरह जब भी कोई मुसीबत आती है, तो संगठन के पास पहले से पैसा जमा होता है और तुरंत मदद दी जा सकती है। TSCT का नियम है कि मदद देने में कोई देरी नहीं होनी चाहिए, ताकि परेशान परिवार को जल्दी सहारा मिल सके। संगठन के सभी काम पारदर्शी तरीके से होते हैं यानी जो भी सहयोग आता है या दिया जाता है, उसकी पूरी जानकारी सभी सदस्यों को दी जाती है।

TSCT में कोई भी शिक्षक भाई-बहन शामिल हो सकता है। इसमें कोई जबरदस्ती नहीं होती। जो अपनी इच्छा से समाज सेवा करना चाहते हैं, वही इसमें जुड़ते हैं। संगठन के पास एक मोबाइल ऐप भी है, जिससे मदद भेजना और जानकारी लेना आसान हो जाता है। आज के समय में जब सब कुछ मोबाइल से हो रहा है, TSCT ने भी अपनी सेवा को तेज और आसान बना दिया है।

यह संगठन इसलिए भी खास है क्योंकि यहां किसी सरकारी मदद का इंतजार नहीं करना पड़ता। जब कोई संकट आता है, तो TSCT तुरंत मदद कर देता है। शिक्षक समाज को मजबूत बनाने के लिए यह संगठन बहुत जरूरी है। जब शिक्षकों को सुरक्षा और सहारा मिलेगा, तभी वे भी बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकेंगे और समाज को आगे बढ़ा सकेंगे।

TSCT में शामिल होने से हर सदस्य को यह भरोसा होता है कि अगर भविष्य में उसे भी कोई परेशानी आई, तो संगठन उसके साथ खड़ा रहेगा। संगठन सभी सदस्यों का सम्मान भी करता है और समय-समय पर सामाजिक कार्यक्रम जैसे रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य जांच, सम्मान समारोह आदि भी कराता है।

अब तक TSCT ने कई ऐसे परिवारों की मदद की है जिनके घर के सदस्य शिक्षक साथी अचानक बीमार हुए या दुनिया से चले गए। कई बार ऐसे दुखद समय में सरकारी मदद आने में देर लगती है, लेकिन TSCT बिना देरी के मदद करता है। बहुत से शिक्षक साथी कहते हैं कि TSCT ने मुश्किल समय में उन्हें एक परिवार की तरह सहारा दिया। सभी शिक्षक मिलकर जब थोड़ा-थोड़ा सहयोग करते हैं, तो बड़ी मदद बन जाती है। यही TSCT की असली ताकत है।

भविष्य में TSCT और भी बड़े स्तर पर काम करना चाहता है। संगठन की योजना है कि जरूरतमंद शिक्षकों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति दी जाए, आवासीय सहायता मिले, पेंशन न पाने वाले शिक्षकों को मदद दी जाए और सभी के लिए स्वास्थ्य बीमा भी कराया जाए। TSCT यह भी चाहता है कि शिक्षकों के लिए एक ऐसा माहौल बने जिसमें वे खुद को सुरक्षित महसूस करें और बिना किसी डर के अपना जीवन आगे बढ़ा सकें।

TSCT मानता है कि शिक्षक केवल पढ़ाने का काम ही नहीं करते, बल्कि समाज के निर्माण में भी बड़ा योगदान देते हैं। इसलिए TSCT ने कई सामाजिक काम भी किए हैं जैसे गरीब बच्चों को किताबें देना, पेड़ लगाना और लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देना। ऐसे काम करके TSCT यह बताता है कि शिक्षक समाज के हर क्षेत्र में बदलाव ला सकते हैं।

आज TSCT उन सभी शिक्षकों के लिए एक उम्मीद बन चुका है जो किसी संकट में पड़ जाते हैं। यह संगठन न केवल आर्थिक सहायता करता है, बल्कि भावनात्मक रूप से भी लोगों का सहारा बनता है। जब कोई शिक्षक दुखी होता है, तो TSCT उसे यह भरोसा दिलाता है कि वह अकेला नहीं है। संगठन का हर सदस्य एक दूसरे के साथ खड़ा रहता है।

अगर हम चाहते हैं कि शिक्षक समाज मजबूत हो, तो हमें भी ऐसे संगठनों को सहयोग देना चाहिए। जो सहयोग हम आज करेंगे, वही कल हमारे लिए एक मजबूत सुरक्षा बन सकता है। इसीलिए हमें समय रहते TSCT से जुड़ना चाहिए और इसमें अपना योगदान देना चाहिए। संगठन की ताकत सभी सदस्यों के सहयोग से बढ़ती है। जब सभी मिलकर साथ चलते हैं, तो कोई भी मुश्किल हमें हरा नहीं सकती। आज का छोटा सा योगदान कल किसी के जीवन में बहुत बड़ा सहारा बन सकता है।

आइए, हम सब मिलकर TSCT को और मजबूत बनाएं। एक दूसरे की मदद करें और शिक्षक समाज को गर्व के साथ आगे बढ़ाएं। जब हम मिलकर काम करेंगे, तभी हमारा समाज और देश भी मजबूत बनेगा। TSCT हमारे लिए एक परिवार की तरह है, जिसमें हर सदस्य का सुख-दुख बांटा जाता है। इस परिवार को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी हम सबकी है।


👉कानपुर देहात: स्कूल से कोल्डड्रिंक लाते समय छात्र की ट्रैक्टर से कुचलकर मौत, परिवार में मातम

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कानपुर देहात: स्कूल से कोल्डड्रिंक लाते समय छात्र की ट्रैक्टर से कुचलकर मौत, परिवार में मातम

 



कानपुर देहात जिले के अमराहत थाना क्षेत्र के सिहुरा गाँव में शुक्रवार को एक बेहद दुखद और दिल को झकझोर देने वाली घटना सामने आई। गाँव के साविलियन विद्यालय के आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र हर्ष कुमार की तेज रफ्तार ट्रैक्टर से कुचलकर मौके पर ही मौत हो गई। हर्ष कुमार रोज की तरह स्कूल गया था। स्कूल में पढ़ाई के बीच उसके शिक्षक ने उसे कोल्डड्रिंक मंगाने के लिए गाँव की दुकान पर भेजा। हर्ष दुकान से कोल्डड्रिंक लेकर जैसे ही लौट रहा था, तभी गाँव के काली माता मंदिर मोड़ के पास पीछे से आ रहे एक तेज रफ्तार ट्रैक्टर ने उसे रौंद दिया। हादसा इतना भयानक था कि हर्ष की मौके पर ही मौत हो गई।

गाँव वालों ने हादसा होते ही शोर मचाया और दौड़कर हर्ष के घरवालों को सूचना दी। घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थीं, इसलिए सभी लोग खुशी के माहौल में थे, लेकिन यह खबर सुनते ही घर में कोहराम मच गया। हर्ष की माँ निर्मला देवी, बहन कुशमा देवी, वीरवती, कमला और हसना आदि रोते-बिलखते घटनास्थल पर पहुँचीं। माँ के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। बहनों की चीख-पुकार से पूरा माहौल गमगीन हो गया। पूरे गाँव में शोक की लहर दौड़ गई। जो घर शादी के गीतों से गूंज रहा था, वहाँ अब मातम पसरा हुआ है।

हर्ष कुमार अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। परिवार में उसकी सबसे बड़ी बहन गुनवती की पहले ही शादी हो चुकी थी। अब छोटी बहन कुशमा की शादी 5 मई को होनी थी। घर में शादी की तैयारियाँ जोरों पर थीं। रिश्तेदार बुलाए जा रहे थे, घर में हल्दी और मेहंदी की तैयारियाँ चल रही थीं, लेकिन इस हादसे ने सारी खुशियाँ छीन लीं। अब घर में सिर्फ आँसू और मातम रह गया है। परिवार वालों का कहना है कि हर्ष बहुत होशियार और समझदार लड़का था। वह पढ़ाई में भी अच्छा था और अपने माता-पिता का सपना था कि वह बड़ा होकर कुछ बनकर उनका नाम रोशन करेगा।

हादसे के बाद ट्रैक्टर चालक गाड़ी छोड़कर मौके से फरार हो गया। ग्रामीणों ने ट्रैक्टर को घेर लिया और तुरंत पुलिस को सूचना दी। थाना प्रभारी सुरजीत सिंह दल बल के साथ मौके पर पहुँचे। उन्होंने हर्ष के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया और ट्रैक्टर को कब्जे में ले लिया। पुलिस ने ट्रैक्टर चालक की पहचान कर ली है और उसकी तलाश में दबिश दे रही है। थाना प्रभारी ने कहा कि जल्द ही आरोपी चालक को गिरफ्तार कर लिया जाएगा और उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी।

हर्ष के पिता शिवसागर निषाद और गाँव के अन्य लोगों ने बताया कि साविलियन विद्यालय में शिक्षक अक्सर बच्चों को स्कूल के काम के अलावा निजी काम के लिए भी भेजते हैं। कभी चाय मंगवाते हैं, कभी कोल्डड्रिंक और कभी अन्य सामान। इसी तरह शुक्रवार को भी शिक्षक ने हर्ष को कोल्डड्रिंक लाने के लिए भेजा था। यदि शिक्षक बच्चों को निजी काम के लिए बाहर न भेजते तो शायद यह हादसा टल सकता था और हर्ष आज जीवित होता। गाँव वालों ने शिक्षकों के इस गैरजिम्मेदाराना रवैये पर गहरी नाराजगी जताई है और दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की माँग की है।

राजपुर खंड शिक्षा अधिकारी संजय गुप्ता ने कहा कि इस पूरे मामले की जाँच कराई जाएगी। यदि जाँच में शिक्षक दोषी पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने कहा कि स्कूल में पढ़ाई के समय बच्चों से निजी काम करवाना नियमों के खिलाफ है। बच्चों को स्कूल में सिर्फ पढ़ाई और गतिविधियों में ही लगाया जाना चाहिए। इस मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है और दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।

गाँव के बुजुर्गों और समाज के अन्य लोगों ने भी इस दुखद हादसे पर दुख जताया और कहा कि स्कूल शिक्षा का मंदिर होता है। वहाँ बच्चों से सामान मंगवाना या निजी काम करवाना बहुत गलत है। इस तरह की घटनाएँ बच्चों की जान के लिए खतरा बन सकती हैं। बच्चों को सुरक्षित माहौल देना सभी शिक्षकों और स्कूल प्रशासन की जिम्मेदारी है। यदि शिक्षक ही बच्चों की सुरक्षा को लेकर लापरवाह रहेंगे तो अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने से डरने लगेंगे।

गाँव में अभी भी मातम पसरा हुआ है। हर कोई हर्ष की मौत पर दुखी है। गाँव के लोग हर्ष के परिवार को ढांढस बंधाने उनके घर पहुँच रहे हैं, लेकिन कोई भी शब्द उनके दुख को कम नहीं कर पा रहा। माँ-बाप की आँखों में आँसू और दिल में अपने बेटे को खोने का दर्द साफ नजर आ रहा है। बहन कुशमा, जिसकी शादी की तैयारियाँ चल रही थीं, अब भाई के बिना कैसे शादी करेगी, यह सोचकर हर किसी की आँखें भर आ रही हैं।

पुलिस का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्यवाही की जाएगी। चालक को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर न्याय दिलाने की कोशिश की जाएगी। वहीं शिक्षा विभाग की ओर से भी जाँच शुरू कर दी गई है। गाँव के लोग भी इस मामले में न्याय की माँग कर रहे हैं। उनका कहना है कि बच्चों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वालों को सख्त सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई और मासूम बच्चा ऐसी लापरवाही का शिकार न हो।

यह हादसा पूरे समाज के लिए एक बड़ा सबक है। बच्चों को स्कूल भेजने का मतलब है कि वे सुरक्षित रहेंगे और पढ़ाई करेंगे, न कि कि वे किसी निजी काम में भेजे जाएंगे। बच्चों की सुरक्षा को सबसे ऊपर रखना चाहिए। इस घटना से सबको यह सीख लेनी चाहिए कि बच्चों के साथ कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। किसी भी कीमत पर बच्चों से गैरशैक्षणिक कार्य नहीं करवाना चाहिए।

हर्ष कुमार की असमय मौत ने पूरे गाँव, जिले और समाज को झकझोर कर रख दिया है। उसकी मासूम मुस्कान, उसके सपने और उसके माता-पिता की उम्मीदें सब कुछ एक झटके में खत्म हो गईं। अब सिर्फ उसकी यादें रह गई हैं, जो उसके परिवार और गाँव वालों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी। हर्ष की मौत ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम अपने बच्चों को वाकई सुरक्षित माहौल दे पा रहे हैं।

इस दुखद घटना से यह भी साफ हो गया है कि स्कूलों में बच्चों के अधिकारों का सम्मान करना कितना जरूरी है। शिक्षा का अधिकार सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि बच्चों की सुरक्षा और गरिमा का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए। इस तरह की घटनाएँ रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए और उनका पालन कड़ाई से होना चाहिए।

आज हर्ष कुमार हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी मौत एक सवाल छोड़ गई है - क्या हम भविष्य में अपने बच्चों को सुरक्षित और सम्मानपूर्ण माहौल दे पाएंगे? इस सवाल का जवाब हमें ढूँढना ही होगा। प्रशासन, शिक्षा विभाग, स्कूलों के शिक्षक और समाज को मिलकर यह संकल्प लेना चाहिए कि अब कोई भी बच्चा स्कूल के दौरान ऐसी लापरवाही का शिकार न हो।

हर्ष कुमार की आत्मा को शांति मिले और उसके परिवार को इस असीम दुःख को सहने की शक्ति मिले। यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।





सोशल मीडिया पोस्ट से फंसा सरकारी शिक्षक, पहलगाम हमले को बताया प्रोपेगेंडा, पुलिस ने किया गिरफ्तार


पहुलगाम में 22 अप्रैल 2025 का आतंकी हमला – बायसरन पार्क में निर्दोष हिंदू पर्यटकों की हत्या


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सोशल मीडिया पोस्ट से फंसा सरकारी शिक्षक, पहलगाम हमले को बताया प्रोपेगेंडा, पुलिस ने किया गिरफ्तार





हाल ही में एक सरकारी शिक्षक का मामला सामने आया है, जो अपने सोशल मीडिया स्टेटस के कारण बड़ी मुसीबत में फंस गया है। शिक्षक ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले को एक "प्रोपेगेंडा" बताया था। इस बयान को सोशल मीडिया पर डालते ही यह तेजी से वायरल हो गया और पुलिस तक मामला पहुँच गया। पुलिस का कहना है कि इस तरह की पोस्ट न केवल समाज में शांति भंग कर सकती है, बल्कि आतंकियों की सोच को समर्थन भी दे सकती है। पुलिस ने इस शिक्षक को तुरंत गिरफ्तार कर लिया। वहीं शिक्षा विभाग ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए शिक्षक को निलंबित कर दिया है।

बताया जा रहा है कि शिक्षक ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक स्टेटस डाला था, जिसमें पहलगाम में हुए हमले को फर्जी और योजनाबद्ध बताया गया था। शिक्षक ने लिखा था कि यह सब एक साजिश है और लोगों को गुमराह करने के लिए फैलाया जा रहा है। जैसे ही यह स्टेटस सामने आया, लोगों में नाराजगी फैल गई। कई लोगों ने इस पर आपत्ति जताई और तुरंत पुलिस को इसकी सूचना दी। पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी।

पुलिस का कहना है कि इस तरह की पोस्ट बहुत संवेदनशील माहौल में जहर घोल सकती है। खासकर जब देश का माहौल पहले से ही आतंकवाद के कारण तनावपूर्ण है, ऐसे में किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा इस तरह का बयान देना बहुत गैरजिम्मेदाराना है। पुलिस ने शिक्षक को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। प्रारंभिक पूछताछ में शिक्षक ने अपना अपराध कबूल कर लिया है और कहा है कि उसने यह स्टेटस बिना सोचे-समझे डाला था।

शिक्षा विभाग ने भी मामले को गंभीरता से लिया है। विभाग ने तत्काल प्रभाव से शिक्षक को निलंबित कर दिया है। विभाग का कहना है कि सरकारी कर्मचारियों को ऐसे संवेदनशील मामलों पर सोच-समझकर बयान देना चाहिए। सरकारी सेवा में रहते हुए किसी भी तरह की गैरजिम्मेदाराना हरकत सहन नहीं की जाएगी। विभाग ने यह भी कहा है कि शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाएगी और उसकी सेवाओं पर आगे फैसला जांच पूरी होने के बाद लिया जाएगा।

लोगों का भी इस मामले पर तीखा प्रतिक्रिया सामने आया है। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि जब एक शिक्षक, जो बच्चों को सही और गलत का पाठ पढ़ाता है, खुद इस तरह की अफवाहें फैलाता है, तो समाज का क्या होगा। लोगों ने सरकार से मांग की है कि ऐसे कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए ताकि दूसरों को भी सबक मिले।

देश में इस समय सुरक्षा को लेकर बहुत सतर्कता बरती जा रही है। आतंकी घटनाओं के बाद सुरक्षा एजेंसियां लगातार अलर्ट पर हैं। ऐसे में किसी भी तरह की अफवाह या गलत सूचना समाज में तनाव बढ़ा सकती है। सरकार और पुलिस दोनों इस तरह की हरकतों पर कड़ी नजर रख रही हैं। पुलिस ने लोगों से भी अपील की है कि अगर वे किसी भी तरह की भड़काऊ या गलत सूचना देखें तो तुरंत पुलिस को सूचित करें।

यह मामला यह भी बताता है कि सोशल मीडिया का उपयोग कितनी जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए। आजकल हर व्यक्ति के पास सोशल मीडिया पर अपनी बात रखने की आजादी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम बिना सोच-विचार के कुछ भी लिखें। खासकर सरकारी कर्मचारियों को तो और भी ज्यादा सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि उनके हर शब्द को जनता गंभीरता से लेती है।

पुलिस ने यह भी बताया कि शिक्षक का स्टेटस उन ग्रुप्स और पेजों पर भी फैल गया था, जो देश विरोधी सोच रखते हैं। इस वजह से यह मामला और भी गंभीर बन गया। पुलिस अब यह भी जांच कर रही है कि कहीं शिक्षक के किसी आतंकी संगठन से संबंध तो नहीं हैं। हालांकि अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन जांच जारी है। पुलिस का कहना है कि इस तरह की किसी भी साजिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

शिक्षा विभाग ने अपने सभी कर्मचारियों को भी चेतावनी जारी की है कि वे सोशल मीडिया पर कोई भी टिप्पणी करते समय सतर्क रहें। विभाग ने कहा है कि अगर कोई भी कर्मचारी सरकारी सेवा के नियमों का उल्लंघन करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। विभाग ने सोशल मीडिया आचार संहिता का पालन करने की भी सलाह दी है।

यह घटना समाज के लिए भी एक सीख है। हमें यह समझना चाहिए कि सोशल मीडिया पर लिखी गई एक छोटी सी बात भी बड़े विवाद का कारण बन सकती है। जब देश के हालात नाजुक हों, तो और भी जिम्मेदारी से व्यवहार करना चाहिए। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारी बातें दूसरों को प्रभावित कर सकती हैं।

लोगों ने शिक्षक के इस कृत्य की निंदा करते हुए कहा है कि जब शिक्षक ही गलत संदेश फैलाएंगे, तो छात्रों को क्या सिखाएंगे। शिक्षक का काम बच्चों को सही दिशा दिखाना है, न कि अफवाहें फैलाना। इस घटना के बाद समाज में शिक्षकों की भूमिका को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। कई लोगों ने कहा कि शिक्षकों को भी सोशल मीडिया प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे समझ सकें कि किस तरह की बातें करना सही है और किस तरह की बातें नहीं।

पुलिस ने शिक्षक के मोबाइल फोन और सोशल मीडिया अकाउंट की भी जांच शुरू कर दी है। पुलिस यह जानने की कोशिश कर रही है कि क्या उसने पहले भी इस तरह की कोई पोस्ट की थी या किसी आतंकी ग्रुप के संपर्क में था। पुलिस ने कहा है कि अगर जांच में कुछ भी संदिग्ध पाया गया तो शिक्षक पर देशद्रोह जैसी गंभीर धाराओं मंब भी मामला दर्ज किया जा सकता है।

सरकार ने भी इस पूरे मामले पर कड़ी नजर रखी है। सरकार का कहना है कि जो भी देश की एकता और अखंडता के खिलाफ जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। सरकार ने यह भी कहा है कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कड़ी सजा दी जाएगी।

इस घटना से साफ है कि सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। एक गलत शब्द भी आपको बड़ी मुसीबत में डाल सकता है। खासकर जब आप सरकारी सेवा में हों, तो आपकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। इस मामले ने सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए एक चेतावनी का काम किया है कि वे अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लें और बिना जांचे-परखे कोई भी टिप्पणी न करें।

अंत में, यह कहना गलत नहीं होगा कि यह घटना हमें सोशल मीडिया के सही उपयोग की अहमियत समझाती है। सोशल मीडिया एक शक्तिशाली साधन है, लेकिन इसका दुरुपयोग समाज को नुकसान पहुँचा सकता है। हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हम जो भी लिखें या शेयर करें, वह सही और जिम्मेदारी भरा हो। तभी हम एक सुरक्षित और मजबूत समाज का निर्माण कर सकते हैं। इस घटना ने यह भी साबित कर दिया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है और गलत काम करने वाले को सजा जरूर मिलेगी। शिक्षक का निलंबन और गिरफ्तारी समाज को एक संदेश देता है कि देश विरोधी गतिविधियों के लिए कोई जगह नहीं है, चाहे वह कोई भी हो।


👉पहेंलगाम में 22 अप्रैल 2025 का आतंकी हमला – बायसरन पार्क में निर्दोष हिंदू पर्यटकों की हत्या

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👉8वां वेतन आयोग: सरकारी वेतन और पेंशन में बदलाव की तैयारी

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👉किसी भी शादी विवाह एवं निजी समारोह कार्यक्रम हेतु परिषदीय विद्यालय भवन किसी को भी उपलब्ध न करायें, BSA का आदेश जारी https://basicshikshakhabar.com/2025/04/r-808/



Friday, April 25, 2025

पहुलगाम में 22 अप्रैल 2025 का आतंकी हमला – बायसरन पार्क में निर्दोष हिंदू पर्यटकों की हत्या

 

22 अप्रैल 2025 का दिन देश के लिए बहुत दुख और सदमे से भरा हुआ रहा। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में बायसरन नाम की एक सुंदर और हरी-भरी जगह है, जिसे लोग 'मिनी स्विट्जरलैंड' भी कहते हैं। यह जगह घने जंगलों, बर्फ से ढके पहाड़ों और खूबसूरत मैदानों के कारण बहुत प्रसिद्ध है। गर्मियों की छुट्टियों में लोग परिवार के साथ घूमने-फिरने आते हैं और यहां की ठंडी हवा, हरियाली और शांत वातावरण का आनंद लेते हैं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस बार बायसरन में कुछ ऐसा हुआ जिसने देशभर के लोगों का दिल दहला दिया।

मंगलवार की दोपहर को करीब तीन बजे का समय था। बायसरन पार्क में बहुत सारे लोग अपने परिवार के साथ टट्टू की सवारी कर रहे थे, बच्चे घास पर खेल रहे थे, कुछ लोग फोटोग्राफी कर रहे थे और कुछ खाने-पीने की दुकानों के पास चाय और स्नैक्स का आनंद ले रहे थे। तभी अचानक वहां कुछ लोग सेना की वर्दी पहनकर आए। उन्हें देखकर किसी को शक नहीं हुआ, क्योंकि ऐसा लग रहा था कि वो सेना के जवान हैं और पर्यटकों की सुरक्षा के लिए आए हैं। लेकिन कुछ ही देर बाद सब कुछ बदल गया।

सेना की वर्दी में आए ये लोग असली सैनिक नहीं थे। ये आतंकवादी थे, जो पहले से योजना बनाकर आए थे। उन्होंने सबसे पहले लोगों को इकट्ठा किया और फिर उनसे उनका नाम और धर्म पूछा। कुछ लोगों से पहचान पत्र भी दिखवाए। जब उन्हें यह पता चला कि सामने खड़ा व्यक्ति हिंदू है और उसने कलमा नहीं पढ़ा है, तो उन्होंने उस पर गोलियां चला दीं। यह बहुत ही क्रूर और अमानवीय हमला था। लोग भागने लगे, बच्चों की चीखें गूंजने लगीं, और चारों ओर अफरा-तफरी मच गई।

इस हमले में कुल 26 लोगों की मौत हो गई और 17 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। मरने वालों में ज्यादातर लोग अलग-अलग राज्यों से आए पर्यटक थे। कोई अपने माता-पिता के साथ आया था, कोई अपने बच्चों के साथ और कोई अपने जीवनसाथी के साथ। लेकिन अब वे सब वापस नहीं जा पाए। उनकी यात्रा वहीं खत्म हो गई। यह हमला पुलवामा के बाद जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा आतंकवादी हमला माना जा रहा है।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि हमलावर चार से छह की संख्या में थे। वे देवदार के पेड़ों के पीछे से चुपचाप आए थे और अचानक हमला कर दिया। उनके पास ऑटोमैटिक राइफलें थीं। उन्होंने पहले हिन्दू पहचान करने के लिए कई लोगों से बातें कीं और जैसे ही उनकी पहचान सुनिश्चित हुई, उन पर गोलियों की बौछार कर दी। जो लोग वहां मौजूद थे, उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसा भयानक मंजर कभी नहीं देखा।

घटना के बाद सुरक्षा बलों को खबर दी गई और तुरंत सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान वहां पहुंचे। उन्होंने इलाके को घेर लिया और आतंकियों की तलाश शुरू की। घायलों को हेलीकॉप्टर से श्रीनगर के अस्पतालों में भेजा गया, जहां उनका इलाज चल रहा है। बहुत सारे लोग अब भी सदमे में हैं और बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं।

इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकवादी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने ली है। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस हमले का मास्टरमाइंड लश्कर का डिप्टी चीफ सैफुल्लाह खालिद है। सैफुल्लाह खालिद पाकिस्तान में बैठकर आतंक फैलाने की योजना बनाता है और पाकिस्तानी सेना की मदद से उन्हें अंजाम देता है। उसे हाल ही में पाकिस्तान के एक शहर में भाषण देने के लिए बुलाया गया था, जहां उसने भारतीय लोगों के खिलाफ नफरत फैलाई।

हमले में जिन लोगों की जान गई, उनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, गुजरात, हरियाणा, केरल, ओडिशा, मध्यप्रदेश और यहां तक कि नेपाल और अरुणाचल प्रदेश से भी लोग थे। वे सभी सिर्फ छुट्टी मनाने और कश्मीर की खूबसूरती देखने आए थे। लेकिन अब उनकी लाशें घर पहुंचीं, जिससे उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।

इस हमले ने न केवल पूरे देश को दुखी किया है, बल्कि एक बड़ा सवाल भी खड़ा किया है कि क्या पर्यटक अब सुरक्षित हैं? क्या परिवारों के साथ घूमने जाने वाले लोग अब डर के साए में जिएंगे? क्या धर्म के नाम पर किसी की जान लेना सही है? इन सवालों के जवाब ढूंढना सरकार, सुरक्षा एजेंसियों और हम सभी की जिम्मेदारी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस समय विदेश दौरे पर थे और अमेरिका के उपराष्ट्रपति भारत दौरे पर आए थे। इस हमले का समय भी सोच-समझकर चुना गया था, ताकि दुनिया का ध्यान इस ओर जाए कि जम्मू-कश्मीर अब भी सुरक्षित नहीं है। इस हमले से यह संदेश देने की कोशिश की गई कि जम्मू-कश्मीर में पर्यटक सुरक्षित नहीं हैं, खासकर हिंदू धर्म के लोग।

यह हमला अमरनाथ यात्रा से कुछ समय पहले हुआ, लेकिन यह यात्रा से जुड़ा नहीं था। यह उन लोगों पर हमला था, जो सिर्फ घूमने और प्रकृति का आनंद लेने आए थे। वे न तो किसी धार्मिक कार्य में लगे थे, न ही किसी राजनीतिक मकसद से आए थे। वे आम नागरिक थे, जो छुट्टी मना रहे थे।

हमले के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तीन संदिग्ध आतंकियों के स्केच जारी किए हैं, जिनके नाम आसिफ फौजी, सुलेमान शाह और अबु तल्हा बताए गए हैं। सुरक्षा एजेंसियां अब इनकी तलाश में जंगलों और आसपास के इलाकों में छानबीन कर रही हैं। साथ ही, बायसरन और आसपास के इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

इस हमले के बाद देशभर में गुस्सा और दुख की लहर फैल गई है। सोशल मीडिया पर लोगों ने सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की है। कई राज्यों में मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए शोक सभाएं आयोजित की गईं। स्कूलों और कार्यालयों में दो मिनट का मौन रखा गया और मोमबत्तियां जलाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

पर्यटन मंत्रालय ने भी इस हमले की निंदा की और कहा कि ऐसी घटनाएं देश की छवि को नुकसान पहुंचाती हैं। साथ ही, सरकार ने सभी राज्यों के पर्यटकों से अपील की है कि वे सतर्क रहें और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी तुरंत पुलिस को दें।

अब यह सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि इस हमले के दोषियों को पकड़कर उन्हें कड़ी सजा दिलवाएं। साथ ही, पर्यटकों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए जाएं, ताकि भविष्य में कोई भी परिवार इस तरह के दुख का सामना न करे।

यह हमला हमें यह भी याद दिलाता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। जो लोग धर्म के नाम पर खून बहाते हैं, वे इंसान नहीं हो सकते। एक सच्चा इंसान किसी की मुस्कान, किसी के परिवार और किसी के सपने छीनने का हकदार नहीं हो सकता। हमें एकजुट होकर नफरत के इन सौदागरों का विरोध करना होगा और देश में शांति, भाईचारे और प्रेम की भावना को बनाए रखना होगा।

देश आज भी उन 26 निर्दोष लोगों के लिए शोक मना रहा है, जो केवल पहलगाम की सुंदरता देखने आए थे, लेकिन उनकी जिंदगी वहीं खत्म हो गई। उनका कसूर बस इतना था कि वे किसी एक धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने किसी का 'कलमा' नहीं पढ़ा। यह एक बहुत ही शर्मनाक और अमानवीय सोच है, जिसे हमें मिलकर खत्म करना होगा।

हमले के बाद बचे लोगों ने जो बताया, वह बहुत ही दर्दनाक था। एक महिला ने बताया कि उसका बेटा घास पर खेल रहा था, और तभी गोली चलने लगी। उसने अपने बेटे को बचाने की कोशिश की, लेकिन गोली उसके पति को लग गई और वह वहीं गिर पड़ा। एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि वह अपने माता-पिता के साथ आया था, और सब लोग बहुत खुश थे। लेकिन अचानक गोलियां चलने लगीं और उसका भाई वहीं मारा गया। ऐसे कितने ही लोगों की कहानियां हैं, जो सुनकर आंखों से आंसू निकल आते हैं।

हम सबको इस घटना से सीख लेनी चाहिए और अपने देश, अपने लोगों और अपने समाज की सुरक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए। कोई भी ताकत हमें डराकर नहीं हरा सकती, जब तक हम मिलकर उसका विरोध करते रहें। इन शहीद पर्यटकों की याद में हमें अपने देश को और मजबूत और सुरक्षित बनाना होगा।






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