Up basic School News

Basic education builds the foundation of a strong nation.

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a group of school children participating in a cultural event with joy and enthusiasm.

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NIPUN Bharat helps young children read and do basic math with understanding and confidence.

Nurturing Nature, Growing Futures

Green mission by students to make earth clean and fresh.

Mission Shikshan Samvad – For Education and Teacher Respect

Mission to uplift education, honor teachers, and promote human welfare through dialogue.

Friday, May 30, 2025

मात्र 155 रुपए से 48 लाख रुपए तक की मदद

 


आज हम एक ऐसे खास सामाजिक प्रयास के बारे में जानेंगे जो दिखाता है कि जब लोग नेक इरादे से साथ आते हैं तो कैसे थोड़ी सी रकम भी बड़ा बदलाव ला सकती है। यह कहानी है TSCT (टीचर्स सपोर्ट एंड केयर टीम) की। इस अभियान में लोगों ने सिर्फ़ ₹155 दिए और हर ज़रूरतमंद परिवार को लगभग ₹48 लाख की मदद मिली। यह न सिर्फ़ आर्थिक मदद है बल्कि हमारे समाज में एकता और दयालुता की मिसाल भी है।

कैसे हुआ यह?

इस अभियान की योजना बहुत सरल थी, लेकिन इसका नतीजा कमाल का रहा। आइए मुख्य तथ्यों को समझते हैं:

उत्तर प्रदेश में कुल सदस्य: 3,11,161 से ज़्यादा शिक्षक TSCT का हिस्सा हैं।

हर व्यक्ति द्वारा दी गई राशि: हर सदस्य ने एक परिवार के लिए सिर्फ़ ₹15.50 दिए।

एक परिवार को मिली राशि: लगभग ₹48 लाख।

कुल परिवारों की मदद की गई: 20 गरीब और जरूरतमंद परिवार।

लगा समय: यह काम सिर्फ़ 13 दिनों में पूरा हुआ।

ये संख्याएँ सामान्य लग सकती हैं, लेकिन ये दिखाती हैं कि एकता और देखभाल कितनी शक्तिशाली हो सकती है।

TSCT का लक्ष्य और भावना

TSCT का मुख्य लक्ष्य शिक्षकों और उनके परिवारों की मदद करना है, जब वे आर्थिक संकट में हों। यह संगठन स्वैच्छिक मदद से चलता है। इसका मतलब है कि लोग बिना किसी दबाव के मदद करते हैं और किसी के साथ गलत व्यवहार नहीं किया जाता।

इस अभियान से सबसे बड़ी सीख यह है: जब हर कोई थोड़ी-थोड़ी मदद करता है, तो हम बड़ी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। हर सदस्य ने साबित किया कि एकता शक्तिशाली है - ₹15.50 से भी।

किसको मिली मदद?

इस अभियान में 20 परिवारों की मदद की गई। ये सभी गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे थे।

कुछ परिवारों के पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे।

कुछ बच्चों की पढ़ाई रुक रही थी।

कुछ परिवार अपने घर का किराया भी नहीं दे पा रहे थे।

ऐसे मुश्किल समय में TSCT ने उन्हें नई उम्मीद दी।


इस काम को किसने संभव बनाया?

यह सफलता सिर्फ़ सदस्यों की बदौलत संभव नहीं थी। इस काम में कई टीमों ने मदद की - जैसे ब्लॉक टीमें, जिला टीमें, राज्य आईटी सेल, राज्य कार्यकारिणी और संस्थापक मंडल। सभी ने अपना समय और प्रयास दिया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मदद सही लोगों तक सही तरीके से पहुंचे।

सिर्फ़ 13 दिनों में एक ऐतिहासिक काम

सिर्फ़ 13 दिनों में इतना पैसा इकट्ठा करना और उसे सही परिवारों तक पहुँचाना एक बड़ी सफलता है। यह सिर्फ़ इसलिए संभव हो पाया क्योंकि सभी ने ईमानदारी और देखभाल के साथ मिलकर काम किया।

कई बार लोगों को मदद की ज़रूरत होती है लेकिन उन्हें नहीं पता होता कि कहाँ जाएँ। TSCT एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म है जो न सिर्फ़ पैसे में मदद देता है बल्कि मानसिक और भावनात्मक सहारा भी देता है।

TSCT क्यों ज़रूरी है?

हज़ारों शिक्षक और उनके परिवार हैं जो जीवन में समस्याओं का सामना करते हैं। लेकिन उनके पास मदद पाने का कोई स्पष्ट तरीका नहीं है। TSCT एक ऐसा सहायता नेटवर्क बना रहा है जो:

ज़रूरत के समय मदद करता है,

लोगों का सम्मान और भरोसा बनाए रखता है,

ईमानदारी और स्पष्टता से काम करता है।

बहुत से लोगों की एक छोटी सी रकम भी बड़ा बदलाव ला सकती है। यही TSCT की पहचान है।

TSCT भरोसेमंद और पारदर्शी है

अपने सदस्यों का भरोसा बनाए रखने के लिए TSCT हर अभियान का पूरा ब्यौरा देता है। कोई भी देख सकता है कि पैसे का इस्तेमाल कैसे और कहाँ किया गया। इसलिए ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को TSCT से जुड़ने के लिए कहा जा रहा है।


यह तो बस शुरुआत है

इससे यह सिद्ध होता है कि जब हम साथ आते हैं, तो हम न सिर्फ़ आज की समस्याओं को हल कर सकते हैं, बल्कि एक बेहतर भविष्य का निर्माण भी कर सकते हैं।

इस अभियान ने इस बार सिर्फ़ 20 परिवारों की मदद की, लेकिन इसने पूरे समाज को प्रेरित किया है।

अगर ₹155 से एक परिवार को ₹48 लाख मिल सकते हैं, तो सोचिए कि अगर हम हर महीने थोड़ी सी रकम दें, तो हम कितने और परिवारों की मदद कर सकते हैं।

यह सिर्फ़ आर्थिक मदद नहीं है। यह एक तरह का सामाजिक बीमा है, जहाँ हम सब एक-दूसरे की रक्षा करते हैं।


यह मॉडल हर राज्य में काम कर सकता है

TSCT मॉडल सिर्फ़ शिक्षकों के लिए नहीं है। यह सभी को सिखाता है कि एकता और टीमवर्क से बड़ी समस्याओं का समाधान हो सकता है।

आइए हम सब मिलकर इस बात को फैलाएँ, हाथ मिलाएँ और इस खूबसूरत बदलाव का हिस्सा बनें।


👉बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलावों की ओर उत्तर प्रदेश https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/basic-shiksha-yojna-2025.html


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Tuesday, May 27, 2025

TSCT – शिक्षकों की सेवा और सहयोग की मिसाल

 


आज हम एक ऐसी संस्था की बात करने जा रहे हैं जो शिक्षकों के जीवन में उम्मीद, सहयोग और इंसानियत की नई रौशनी लेकर आई है – TSCT यानी "teachers self care team”। यह संस्था ना सिर्फ एक सामाजिक आंदोलन बन चुकी है, बल्कि यह पूरे उत्तर प्रदेश में शिक्षक समुदाय के बीच एक मजबूत सहारा बनकर उभरी है। जब इसका गठन हुआ था, तब किसी को यह अंदाज़ा नहीं था कि आने वाले समय में यह 4 लाख शिक्षकों के विश्वास की मिसाल बनेगी। यह केवल एक संस्था नहीं, बल्कि एक भावना है, एक परिवार है जो हर मुश्किल घड़ी में अपने साथियों के साथ खड़ा रहता है।

TSCT की स्थापना और उसका उद्देश्य:

करीब पाँच साल पहले, जब TSCT की स्थापना हुई, तब इसका मकसद था – संकट के समय में शिक्षक साथियों की मदद करना। इस संस्था की नींव ऐसे लोगों ने रखी जो निस्वार्थ भाव से समाज और शिक्षक समुदाय की भलाई के लिए समर्पित थे। धीरे-धीरे यह संस्था एक आंदोलन बन गई। हजारों शिक्षक जुड़ते गए, मदद करने लगे और जरूरतमंदों को संबल देने लगे।

TSCT का उद्देश्य है कि आज हम जिन लोगों की मदद करते हैं, वही कल को किसी और की मदद करने वाले बनें। यानी – आज का सहयोग, कल का सहारा। यही संस्था का मूलमंत्र है।

15 मई 2025 से चल रहा सहयोग अभियान:

इस वर्ष 15 मई से TSCT का एक और सहयोग अभियान शुरू हुआ, जिसमें दो ऐसे परिवारों को सहायता दी गई जिनकी स्थितियाँ बहुत भावुक करने वाली थीं:

1. स्वर्गीय हरीश गंगवार जी (बरेली):

एक कर्मठ और निष्ठावान शिक्षक जो जीवनभर सहयोग के भाव से जुड़े रहे। उनके निधन के बाद TSCT ने उनके परिवार की मदद के लिए कदम आगे बढ़ाया।

2. आजमगढ़ के शिक्षा मित्र का परिवार:

एक ऐसा परिवार जो आज भी छप्पर के नीचे जीवन यापन कर रहा है, जिसके पास खुद का घर नहीं है। उनके हालात देखकर हर कोई भावुक हो गया और TSCT ने इस परिवार की मदद कर मिसाल पेश की।

एक अनोखा और भावनात्मक अनुभव:

इस माह एक और बहुत महत्वपूर्ण और दिल को छू जाने वाली घटना घटी। TSCT ने उस दिवंगत शिक्षक साथी के परिवार की मदद की, जिसने कभी संस्था की निंदा की थी। उन्होंने TSCT के संस्थापक मंडल और उसके सदस्यों को सोशल मीडिया पर बदनाम करने की कोशिश की, आपसी बातचीत के ऑडियो और स्क्रीनशॉट सार्वजनिक किए और संस्था की छवि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया।

लेकिन जब वह शिक्षक गंभीर बीमारी से पीड़ित हुए और संस्था से जुड़ना चाहा, तो TSCT ने उन्हें खुले दिल से अपनाया। किसी ने भी उनकी पिछली बातों का बदला नहीं लिया। बल्कि संस्था के सभी सदस्यों ने ईश्वर से उनके स्वास्थ्य की कामना की। दुर्भाग्यवश उनका निधन हो गया। लेकिन उनके परिवार को TSCT ने पूरा सहयोग देकर यह सिद्ध कर दिया कि मानवता सबसे ऊपर है।

यह उदाहरण बताता है कि TSCT केवल एक संस्था नहीं, बल्कि एक संस्कार है – क्षमा, सेवा और अपनत्व का प्रतीक।

नियम और व्यवस्था की आवश्यकता:

TSCT जैसे बड़े समूह को चलाना कोई आसान काम नहीं। जब कोई व्यवस्था चलती है, तो उसमें नियम बनाना जरूरी होता है। लेकिन नियम कभी किसी को लाभ देते हैं तो कभी किसी को कठिनाई भी होती है। यही जीवन का सच है।

हर किसी को खुश रखना संभव नहीं, लेकिन अगर सोच और नीयत सही हो, तो संस्था अपने रास्ते पर मजबूती से चल सकती है। TSCT के संचालकों ने हमेशा यह कोशिश की कि किसी भी सदस्य के साथ अन्याय ना हो। कोई भूखा ना रहे, कोई संकट में अकेला ना पड़े, यह संस्था का संकल्प है।

TSCT क्यों है खास?

सहयोग की भावना: हर सदस्य दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहता है।

समर्पण: TSCT के संचालकों ने बिना किसी लाभ की उम्मीद के सेवा को अपना धर्म बना लिया है।

पारदर्शिता: संस्था में हर निर्णय खुले मंच पर साझा किया जाता है ताकि किसी को कोई भ्रम ना रहे।

समुदाय का विश्वास: पूरे प्रदेश के 80% से अधिक शिक्षक TSCT से जुड़े हैं, जो अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।

TSCT का संदेश:

TSCT का यही संदेश है कि आप संस्था के नियमों या नेतृत्व से मतभेद रख सकते हैं, लेकिन पूरी संस्था या प्रदेश के लाखों शिक्षकों से नाराजगी रखना अनुचित है। जो संस्था लाखों लोगों के दुःख में सहभागी है, जो हर आहट पर मदद के लिए तैयार है, उसका उद्देश्य हमेशा सेवा ही रहा है।

जब कोई शिक्षक TSCT की सहायता से फिर से मुस्कुराता है, जब किसी शिक्षक परिवार की रसोई में खाना बनता है, जब किसी विधवा को बच्चों की पढ़ाई का सहारा मिलता है – तब TSCT का हर सदस्य गौरव अनुभव करता है।

संस्था की ताकत – उसका संगठन:

TSCT आज जिस ऊँचाई पर है, उसका श्रेय उन हजारों शिक्षकों को जाता है जिन्होंने तन-मन-धन से संस्था को सींचा है। चाहे बाढ़ हो, बीमारी हो या आकस्मिक मृत्यु – TSCT हमेशा साथी के घर पहले पहुँचती है।

इसके संचालन में कोई राजनीति नहीं, कोई स्वार्थ नहीं – बस सेवा की भावना है। यहाँ कोई छोटा बड़ा नहीं, हर कोई "TSCT परिवार" का सदस्य है।

निष्कर्ष:

TSCT की कहानी सिर्फ एक संस्था की नहीं है, बल्कि यह उस संस्कृति की कहानी है जिसमें "वसुधैव कुटुम्बकम्" यानी पूरी दुनिया को परिवार मानने की सोच है। किसी की निंदा से नहीं, किसी के साथ खड़े होने से संगठन बनते हैं।

इसलिए अगर आप कभी किसी शिक्षक साथी को परेशानी में देखें, तो TSCT की याद ज़रूर करें। शायद वही दिन आपके जीवन का सबसे बड़ा दिन बन जाए।

TSCT का नारा:

"आज का सहयोग, कल का सहारा" – यह केवल शब्द नहीं, बल्कि एक ऐसा दर्शन है जो हर शिक्षक को भाईचारे और मानवता की राह पर चलने की प्रेरणा देता है।

अंतिम संदेश:

अगर आप TSCT से अभी तक नहीं जुड़े हैं, तो यह समय है जुड़ने का, सहयोग करने का, एक नए युग की शुरुआत करने का।

ईश्वर की कृपा, शिक्षक साथियों का समर्थन, और संगठन की नीयत अगर सच्ची हो – तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता।

TSCT – सबका साथ, सबका सहयोग, सबका विश्वास, सबका प्रयास 

 

👉बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलावों की ओर उत्तर प्रदेश  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/basic-shiksha-yojna-2025.html

 

👉जामिया उर्दू की डिग्रियां अमान्य, हाईकोर्ट का बड़ा फैसला  

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         👉Jamia Urdu Degrees Rejected by Court for Teacher Jobs

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       👉उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में बनेगा आधुनिक सुविधाओं से युक्त मुख्यमंत्री अभ्युदय       स्कूल  

 
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होगा प्रयोग: एक ऐतिहासिक पहल  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/censusnews.html  


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Monday, May 26, 2025

बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलावों की ओर उत्तर प्रदेश

 


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया 3300 करोड़ की परियोजनाओं का शुभारंभ

लखनऊ, 26 मई 2025 — उत्तर प्रदेश में बच्चों को बेहतर भविष्य और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकभवन सभागार में एक विशाल कार्यक्रम के माध्यम से 3300 करोड़ रुपये की शिक्षा परियोजनाओं का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि बेसिक शिक्षा राष्ट्र निर्माण की नींव है और इसे मजबूत बनाने के लिए सरकार लगातार कार्य कर रही है।

शिक्षा में बड़ा निवेश: नए स्कूल भवन और डिजिटल साधनों की शुरुआत

मुख्यमंत्री योगी ने कार्यक्रम के दौरान 139 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों के उच्चीकृत भवनों और अतिरिक्त डॉरमेट्री का लोकार्पण किया। इसके अलावा 43 मुख्यमंत्री मॉडल कम्पोजिट विद्यालयों और 66 मुख्यमंत्री अभ्युदय कम्पोजिट विद्यालयों की आधारशिला रखी गई। इस पहल का मकसद ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में बच्चों को आधुनिक शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध कराना है।

हर विद्यार्थी को मिले समान अवसर: डीबीटी के ज़रिए ₹1200 ट्रांसफर

सीएम योगी ने यूनिफॉर्म, बैग, जूते, मोजे और स्टेशनरी के लिए प्रत्येक छात्र को ₹1200 की धनराशि अभिभावकों के बैंक खाते में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के ज़रिए भेजी। यह राशि प्रदेश के 1.5 करोड़ से अधिक बच्चों को दी गई है। मुख्यमंत्री ने सभी अभिभावकों और शिक्षकों से अपील की कि इस पैसे का उपयोग बच्चों की ज़रूरतों पर ही हो।

डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा: स्मार्ट क्लास, आईसीटी लैब और टैबलेट्स वितरण

शिक्षा को तकनीक से जोड़ते हुए मुख्यमंत्री ने प्रदेश के 7,409 विद्यालयों में स्मार्ट क्लास, 5,258 विद्यालयों में आईसीटी लैब, और 51,667 शिक्षकों को टैबलेट्स वितरित किए। साथ ही 503 पीएम श्री विद्यालयों में डिजिटल लाइब्रेरी का उद्घाटन किया गया।

‘निपुण प्लस एप’ से होगा स्मार्ट असेसमेंट, स्टूडियो से शिक्षा का प्रसारण

मुख्यमंत्री ने राज्य शैक्षिक तकनीकी संस्थान में एजुकेशनल ब्रॉडकास्ट स्टूडियो की शुरुआत की, जिससे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर शिक्षण सामग्री प्रसारित की जा सकेगी। साथ ही कक्षा 3 से 12 तक के छात्रों के लिए ‘निपुण प्लस एप’ की शुरुआत की गई, जिससे उनका स्मार्ट असेसमेंट किया जाएगा।

शिक्षकों की अहम भूमिका: अनुपात सुनिश्चित और प्रशिक्षु शिक्षकों को नया अनुभव

मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षकों की संख्या पर्याप्त रखी जाएगी और शिक्षक-छात्र अनुपात हर हाल में सुनिश्चित किया जाएगा। बीएड और एमएड के छात्रों को निपुण आकलन कार्यक्रम में शामिल करने की बात कही गई ताकि उन्हें फील्ड का अनुभव मिल सके और शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर हो।

ऑपरेशन कायाकल्प ने बदली स्कूलों की तस्वीर

सीएम योगी ने बताया कि 2017 से पहले बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों की हालत जर्जर थी, वहां साफ-सफाई, शौचालय, पीने का पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं थीं। लेकिन ऑपरेशन कायाकल्प के तहत यह सब कुछ बदला है। अब इन स्कूलों में खेल मैदान, स्मार्ट क्लास, डिजिटल लाइब्रेरी, और शौचालय जैसी सुविधाएं मौजूद हैं, जिससे बच्चों की संख्या में भी वृद्धि हुई है।

हर विधानसभा क्षेत्र में खुलेगा मुख्यमंत्री कंपोजिट विद्यालय

सीएम योगी ने घोषणा की कि हर विधानसभा क्षेत्र में एक मुख्यमंत्री कंपोजिट विद्यालय खोला जाएगा, जो प्री-प्राइमरी से सीनियर सेकेंडरी तक की शिक्षा एक ही परिसर में देगा। इन स्कूलों में साइंस लैब, कंप्यूटर लैब, स्टेडियम, और मल्टीपर्पज हॉल जैसी आधुनिक सुविधाएं होंगी।

समर कैंप में बच्चों के समग्र विकास की तैयारी

मुख्यमंत्री ने समर कैंप में बच्चों के सर्वांगीण विकास की बात करते हुए कहा कि इनमें खेल, संगीत, नृत्य, नाटक, और योग जैसी गतिविधियों को शामिल किया जाए। उन्होंने निर्देश दिया कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए अभी से तैयारी की जाए और आयुष मंत्रालय के योग प्रोटोकॉल को लागू किया जाए।

‘स्कूल चलो अभियान’ को मिले नई गति, कोई बच्चा न छूटे

सीएम योगी ने ‘स्कूल चलो अभियान’ को तेज़ करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि गांवों में कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रह जाए, इसके लिए शिक्षक और प्रधानाचार्य घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल में जोड़ें। नए बच्चों का स्वागत ढोल-नगाड़े के साथ हो और स्वच्छता को विद्यालयों से जोड़ा जाए।

शिक्षकों को किया गया सम्मानित, नई किताबों का विमोचन

निपुण आकलन में बेहतर प्रदर्शन करने वाले 5 शिक्षकों को सम्मानित किया गया। साथ ही एससीईआरटी द्वारा तैयार की गई दो नई पुस्तकें ‘सारथी’ और ‘अनुरूपण’ का विमोचन भी किया गया, जो शिक्षा में नवाचार को बढ़ावा देंगी।

बच्चों की प्रदर्शनी का मुख्यमंत्री ने किया अवलोकन

कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बच्चों द्वारा तैयार की गई शैक्षिक प्रदर्शनी का निरीक्षण किया और बच्चों से उनकी परियोजनाओं की जानकारी ली। बच्चों ने अपनी कला, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित परियोजनाएं प्रस्तुत कीं।

मुख्यमंत्री का संदेश: शिक्षक बनाएं देश का भविष्य

मुख्यमंत्री ने शिक्षकों से अपील की कि वे राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका को गंभीरता से लें। उन्होंने कहा कि शिक्षक समाज का भविष्य गढ़ते हैं और उनका सम्मान तभी है जब वे बच्चों को उज्ज्वल भविष्य दे पाएं। समय का सदुपयोग करें और बच्चों की प्रतिभा को निखारें।

कार्यक्रम में शामिल हुए कई गणमान्य व्यक्ति

इस भव्य कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह, मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह, और अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार, सहित बड़ी संख्या में अधिकारी और शिक्षक उपस्थित रहे।


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रस्तुत यह संपूर्ण कार्यक्रम उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा देने की कोशिश है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, डिजिटल साधनों का उपयोग, बच्चों की समग्र प्रतिभा का विकास और शिक्षकों की भूमिका को सम्मान देने के उद्देश्य से यह पहल एक मजबूत बुनियाद तैयार कर रही है। यह कदम न केवल बच्चों के भविष्य को संवारने वाला है, बल्कि पूरे समाज को आगे बढ़ाने वाला है।

👉विद्यालय में तोड़फोड़ से हड़कंप  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/phulkia-munger.html

👉जामिया उर्दू की डिग्रियां अमान्य, हाईकोर्ट का बड़ा फैसला  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/jamia-urdu-verdict-2025.html

 

👉Jamia Urdu Degrees Rejected by Court for Teacher Jobs  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/jamia-urdu-verdict-2025_0908282563.html

 

👉भारत में फिर लौटा कोरोना, मुंबई में 53 नए केस, सतर्कता ज़रूरी  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/corona.html


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 👉TSCT द्वारा शिक्षामित्र परिवार को पक्की छत का सहारा   https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/TSCT.html

👉ट्रांसफर में देरी पर यूपी सरकार ने 26 बीएसए को नोटिस।  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/BSA.html 

👉शिक्षक: समाज के सच्चे हीरो और जीवन के मार्गदर्शक https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/heroesofsociety.html  

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👉उत्तर प्रदेश में जातिवार गणना के लिए जियो फेंसिंग, टैबलेट और एआई तकनीक का होगा प्रयोग: एक ऐतिहासिक पहल  https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/censusnews.html  

👉AI टीचर ‘सुमन मैडम’ – झांसी के शिक्षक का अनोखा नवाचार   https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/05/ai.html



विद्यालय में तोड़फोड़ से हड़कंप

 


बिहार राज्य के मुंगेर जिले के बरियारपुर प्रखंड अंतर्गत नीरपुर पंचायत के फुलकिया गांव में एक बेहद दुखद और चिंताजनक घटना सामने आई है, जहां कुछ अज्ञात दबंगों ने मध्य विद्यालय फुलकिया के भवन को रविवार की रात जेसीबी मशीन से गिरा दिया। यह विद्यालय गांव के सैकड़ों बच्चों के लिए शिक्षा का केंद्र है, जहां लगभग 200 छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। रविवार की रात को हुई इस घटना में स्कूल की चारदीवारी और दो कमरों वाला किचन भवन पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। यह किचन भवन बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन तैयार करने के लिए प्रयोग किया जाता था। सोमवार की सुबह जब स्कूल की प्रधानाध्यापिका आरती विश्वकर्मा विद्यालय पहुंचीं, तो उन्होंने देखा कि विद्यालय की पूर्वी दिशा की दीवार टूटी हुई है और किचन भवन पूरी तरह गिरा पड़ा है।

इस घटना से प्रधानाध्यापिका समेत पूरे विद्यालय प्रशासन में हड़कंप मच गया। प्रधानाध्यापिका आरती विश्वकर्मा और विद्यालय प्रबंध समिति की सचिव अंबिका देवी ने मिलकर बरियारपुर थाना में अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। उन्होंने बताया कि यह घटना किसी भी सामान्य तोड़फोड़ की नहीं, बल्कि सुनियोजित योजना का हिस्सा लगती है। विद्यालय की संपत्ति को इस तरह से रात के अंधेरे में नुकसान पहुंचाना एक गंभीर अपराध है और इस पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

स्थानीय ग्रामीणों ने घटना के पीछे मंदिर निर्माण को मुख्य कारण बताया है। गांव के पीछे श्री मंगला काली मां का मंदिर बन रहा है। पहले मंदिर का रास्ता विद्यालय के पश्चिमी हिस्से से होकर जाता था। लेकिन अब मंदिर निर्माण में लगे लोगों ने एक नया रास्ता निकालने की योजना बनाई है, जो सीधे राष्ट्रीय राजमार्ग NH-80 से मंदिर को जोड़ सके। इसी योजना के चलते विद्यालय की दीवार और रसोईघर को जेसीबी से गिरा दिया गया। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि सोमवार और मंगलवार को जबरदस्त तरीके से मंदिर की चारदीवारी का निर्माण कार्य चलता रहा, जबकि प्रशासन ने किसी भी निर्माण कार्य पर रोक लगा रखी थी। यह प्रशासनिक आदेशों की खुली अवहेलना है।

विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था पर इस घटना का सीधा असर पड़ा है। लगभग 200 नामांकित बच्चों की पढ़ाई नए भवन में तो होती है, लेकिन मध्यान्ह भोजन का पकवान इसी टूटे हुए भवन में किया जाता था। अब चूल्हे, गैस सिलेंडर, बर्तन और अन्य रसोई सामग्री खुले मैदान में पड़ी है, जो कि बच्चों की स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए खतरा है। कई माता-पिता अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर चिंतित हैं। कुछ ग्रामीणों का यह भी कहना है कि यदि जल्द ही स्कूल की मरम्मत और रसोईघर का पुनर्निर्माण नहीं हुआ तो बच्चों का विद्यालय आना कम हो जाएगा, जिससे उनकी शिक्षा पर दीर्घकालिक असर पड़ेगा।

जिला परियोजना अधिकारी (डीपीओ) आनंद वर्मा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि विद्यालय भवन को गिराना पूरी तरह से गैरकानूनी है और यह शिक्षा व्यवस्था पर सीधा हमला है। उन्होंने प्रधानाध्यापिका को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया है और मामले की विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं। बरियारपुर के बीडीओ देव मोहम्मद असगर अली ने भी कहा कि यह मामला अत्यंत गंभीर है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। वहीं मुंगेर के जिलाधिकारी अवनीश कुमार ने भी मामले की जानकारी मिलने पर जांच के आदेश दिए हैं और कहा है कि रिपोर्ट मिलने के बाद कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचकर निर्माण कार्य को तत्काल रोकने के निर्देश दिए थे, लेकिन इसके बावजूद मंदिर निर्माण कार्य चलता रहा, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दबंग लोगों को कानून का कोई डर नहीं है। बरियारपुर थाना पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है और जेसीबी मालिक, मंदिर निर्माण समिति और मजदूरों से पूछताछ की जा रही है। उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही दोषियों की पहचान कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

यह घटना केवल एक विद्यालय की चारदीवारी गिराए जाने की नहीं, बल्कि समाज की प्राथमिकताओं पर गंभीर प्रश्नचिह्न है। जब एक सरकारी विद्यालय, जहां गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं, को इस तरह से निशाना बनाया जाता है, तो यह न केवल शिक्षा व्यवस्था, बल्कि लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए भी खतरे की घंटी है। मंदिर जैसे धार्मिक स्थल के निर्माण के लिए यदि बच्चों की शिक्षा के स्थान को गिराया जा रहा है, तो यह सामाजिक न्याय की मूल भावना के विपरीत है।

स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की है। कई संगठनों ने सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों के जरिए जिला प्रशासन से सख्त कदम उठाने की मांग की है। उनका कहना है कि यदि समय रहते दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो ऐसी घटनाएं अन्य गांवों में भी दोहराई जा सकती हैं, जिससे शिक्षा व्यवस्था को और नुकसान होगा।

अभी विद्यालय प्रशासन, ग्रामीण और अधिकारी इस मामले में एकमत हैं कि दोषियों को जल्द से जल्द पकड़ा जाए और विद्यालय की चारदीवारी और रसोईघर का पुनर्निर्माण शीघ्र कराया जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में किसी भी विद्यालय या सार्वजनिक संपत्ति को धार्मिक या निजी हितों के लिए इस प्रकार से नुकसान न पहुंचाया जा सके।

सरकारी विद्यालय देश के भविष्य निर्माता बच्चों की शिक्षा का आधार हैं। इन्हें सुरक्षित और सशक्त रखना पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। अगर समाज की आंखों के सामने कोई विद्यालय तोड़ा जाता है और लोग चुप रहते हैं, तो वह चुप्पी एक दिन पूरे भविष्य पर भारी पड़ सकती है।

फुलकिया गांव की यह घटना एक चेतावनी है कि शिक्षा के मंदिरों को बचाना अब केवल सरकार या प्रशासन का कार्य नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। इस घटना ने समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम विकास के नाम पर क्या खो रहे हैं और किस दिशा में बढ़ रहे हैं।

इस पूरे मामले में प्रशासन की भूमिका अब सबसे अहम है। यदि जिला प्रशासन समय पर जांच पूरी करके दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करता है और स्कूल का पुनर्निर्माण करवाता है, तो यह न केवल फुलकिया गांव, बल्कि पूरे राज्य के लिए एक सकारात्मक संदेश होगा। प्रशासन को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में किसी विद्यालय को इस तरह की घटनाओं का सामना न करना पड़े।

फुलकिया गांव का विद्यालय अब न्याय की प्रतीक्षा में है। बच्चों की मासूम आंखें एक बार फिर से साफ-सुथरे, सुरक्षित रसोईघर और मजबूत दीवारों वाले विद्यालय की ओर देख रही हैं। उन्हें यह भरोसा दिलाना हम सबकी जिम्मेदारी है कि उनकी शिक्षा, पोषण और सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा।

विद्यालय की प्रधानाध्यापिका, प्रबंध समिति, ग्रामीण और प्रशासन मिलकर इस नुकसान की भरपाई करेंगे, ऐसा विश्वास हर नागरिक को होना चाहिए। शिक्षा का दीपक किसी भी परिस्थिति में बुझने नहीं देना है। यही इस घटना से मिलने वाला सबसे बड़ा संदेश है।



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Jamia Urdu Degrees Rejected by Court for Teacher Jobs

 


Jamia Urdu degrees not valid for teacher jobs, says court.

On 17 May 2025, a landmark judgment was delivered by the Allahabad High Court that has had far-reaching consequences for thousands of aspirants to government teaching jobs in Uttar Pradesh. The case centered on the recognition and validity of two specific educational qualifications—Adib-e-Kamil and Moallim-e-Urdu—awarded by Jamia Urdu, Aligarh. These degrees had long been used by candidates seeking eligibility for appointments as assistant teachers, particularly for teaching Urdu in basic education schools under the Uttar Pradesh Basic Education Board (UPBEB). The Court’s ruling, however, has cast doubt on the legality and academic standing of these degrees, effectively barring their holders from consideration for state teaching posts.

This write-up analyzes the High Court’s judgment, the background of the case, the status and legal recognition of Jamia Urdu and its programs, and the broader implications for educational policy, affected candidates, and the state’s recruitment processes.

1. Background of the Dispute

Jamia Urdu, Aligarh, was established in 1939 with the primary aim of promoting the Urdu language and literature. It has historically offered programs such as Moallim-e-Urdu, which was designed to train Urdu teachers, and Adib-e-Kamil, considered equivalent to a bachelor's degree in Urdu literature.

Over the decades, holders of these degrees were allowed to participate in teacher recruitment processes in Uttar Pradesh. In particular, Moallim-e-Urdu was accepted as a professional teaching qualification, while Adib-e-Kamil was often considered equivalent to a BA in Urdu for academic eligibility.

However, the inclusion of these degrees began to face legal scrutiny when questions were raised about their equivalence with degrees recognized by the University Grants Commission (UGC) and the National Council for Teacher Education (NCTE). These concerns were brought into sharp focus during litigation involving candidates who had applied for the Assistant Teacher Recruitment 2019 (69,000 posts) and later rounds of recruitment. The challenge questioned the legality of treating these degrees as equivalent to B.Ed./D.El.Ed. and other recognized qualifications required under the Right of Children to Free and Compulsory Education (RTE) Act, 2009.

2. Key Legal Issues Raised

The Allahabad High Court considered several central questions:

Is Jamia Urdu, Aligarh, a recognized university under Indian law?

Are the degrees "Moallim-e-Urdu" and "Adib-e-Kamil" equivalent to teacher training or academic degrees like B.Ed. or BA in Urdu?

Do these qualifications satisfy the norms laid down by the NCTE and the UGC for appointment to teaching posts in government schools?

Was prior government acceptance of these degrees sufficient to create a right to appointment?

These questions hinged on interpretations of statutes such as the University Grants Commission Act, 1956, the National Council for Teacher Education Act, 1993, and recruitment rules notified by the Uttar Pradesh Basic Education Department.

3. Court’s Analysis and Observations

In its judgment, the Allahabad High Court delivered a detailed and critical analysis of the status of Jamia Urdu and the nature of the degrees in question. Key observations include:

a) Jamia Urdu is Not a Recognized University

The Court noted that Jamia Urdu, Aligarh, is neither a university established by an Act of Parliament or State Legislature nor a deemed university under Section 3 of the UGC Act, 1956. It does not appear in the list of recognized institutions maintained by the UGC or NCTE. Therefore, it is not legally empowered to confer degrees within the meaning of Indian law.

This finding effectively nullifies the institution’s ability to claim equivalence or recognition for its programs under statutory educational frameworks.

b) Degrees Not Equivalent to B.Ed./D.El.Ed.

The Court emphasized that Moallim-e-Urdu is not recognized by the National Council for Teacher Education (NCTE) as equivalent to a professional teacher training qualification such as Bachelor of Education (B.Ed.) or Diploma in Elementary Education (D.El.Ed.). Since NCTE is the statutory authority for setting standards for teacher education in India, no equivalence can be presumed without its explicit approval.

Similarly, Adib-e-Kamil, though an Urdu literature course, cannot be considered equivalent to a formal graduation degree (such as a BA in Urdu) awarded by recognized universities. There was also no notification from the state or central government declaring it as such under any legislative provision.

c) Past Practice Cannot Create Legal Entitlement

The Court rejected arguments based on estoppel or legitimate expectation, ruling that past administrative acceptance of these degrees cannot override statutory norms. Even if the state had previously allowed such degree holders to participate in teacher recruitment, this was a policy error and could not be perpetuated. The Court stated that candidates do not acquire a legal right based on a previous mistaken interpretation of the law.

4. Impact on Affected Candidates

This judgment directly affects thousands of candidates who relied on their Moallim-e-Urdu and Adib-e-Kamil degrees to seek teaching positions in Urdu medium or composite schools.

Many of these candidates had:

Applied for teacher eligibility tests like CTET and UPTET.

Been selected for appointment after clearing written exams and interviews.

Received appointment letters or were in the final stages of verification.

The High Court’s decision, by invalidating their degrees for eligibility purposes, effectively disqualifies them from consideration, regardless of their performance in the exams.

This has created significant distress and confusion among the candidates, many of whom come from marginalized backgrounds and have invested years in pursuing these qualifications.

5. Broader Legal and Policy Implications

The ruling has several implications for education governance and regulatory clarity:

a) Reinforcement of UGC and NCTE Authority

The Court’s judgment affirms the primacy of UGC and NCTE in regulating higher education and teacher training, respectively. No private institution or society, unless recognized by these authorities, can claim to award valid degrees or professional teaching credentials.

b) Call for Uniform Teacher Eligibility Norms

The judgment underscores the need for uniform and transparent eligibility criteria for teacher recruitment. Ambiguities around degree equivalence lead to litigation and career uncertainty. The education departments must rigorously vet all institutions and qualifications before advertising eligibility criteria.

c) Responsibility of the State

While the Court laid the legal foundation, it acknowledged the state’s duty to ensure educational fairness. Candidates who relied on Jamia Urdu’s degrees in good faith may deserve transitional support, re-training opportunities, or inclusion in future recruitment with compliant qualifications.

6. Reaction from Stakeholders

a) Candidates and Affected Associations

Candidates and associations representing Urdu educators have expressed anger and disappointment. Many are planning to appeal the decision before a larger bench or the Supreme Court of India. Some have demanded that the Uttar Pradesh government take legislative steps to recognize Jamia Urdu degrees retroactively or offer a one-time exemption.

b) Jamia Urdu’s Response

Jamia Urdu has defended its legacy, claiming that it has been recognized by the Government of India since the pre-Independence era and enjoys historical status as a linguistic and cultural institution. However, this historical relevance does not equate to legal recognition under post-Independence educational statutes like the UGC Act.

The institution may now seek formal recognition or partner with recognized universities to confer joint degrees that are valid under Indian law.

c) UP Government’s Stand

The state government has thus far supported the High Court’s interpretation, emphasizing compliance with national standards and legal norms. Officials have reiterated that only degrees approved by NCTE and UGC will be considered for future recruitment.

7. Possibility of Appeal and Future Directions

The judgment may not be the final word on the matter. Affected candidates are likely to approach the Supreme Court under Article 136 of the Constitution, seeking special leave to appeal. The apex court will have to balance strict legal interpretation with considerations of equity, particularly for those who acted in good faith.

Meanwhile, there is a growing demand for:

Clear and binding equivalence notifications by NCTE and UGC.

Public awareness campaigns on the status of educational institutions.

Rehabilitation pathways for those affected by derecognition of such degrees.

The Allahabad High Court’s decision of 17 May 2025 stands as a reminder of the complex interplay between educational autonomy, regulatory oversight, and constitutional fairness. While it upholds the rule of law by disqualifying unrecognized degrees, it also raises important questions about the responsibility of the state in preventing such institutional ambiguities from arising in the first place.

Moving forward, a coordinated approach between Jamia Urdu, regulatory bodies, the state government, and the judiciary will be essential to resolve the crisis. Ensuring both the quality of education and equity for learners must remain central to educational reform in Uttar Pradesh and beyond.











































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