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Monday, April 21, 2025

पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन | 1 मई 2025 जंतर-मंतर चलो अभियान

 


सरकारी कर्मचारियों के हक की लड़ाई! पुरानी पेंशन बहाली के लिए 1 मई 2025 को जंतर-मंतर, दिल्ली चलें। एकजुटता दिखाएं, भविष्य सुरक्षित बनाएं।



पेंशन एक ऐसी चीज़ है, जो हर सरकारी कर्मचारी के जीवन में बहुत ज़रूरी होती है। जब कोई इंसान अपने पूरे जीवन का सबसे अच्छा समय नौकरी में लगा देता है, दिन-रात मेहनत करता है, अपने परिवार से दूर रहकर, कई बार खतरों का सामना करके देश और समाज के लिए काम करता है, तो उसके बुढ़ापे का सहारा वही पेंशन होती है। पेंशन एक ऐसी लाठी है, जो बुढ़ापे में इंसान को सहारा देती है। जब शरीर जवाब देने लगता है, काम करने की ताकत नहीं रहती, तब यही पेंशन हर महीने एक उम्मीद लेकर आती है कि अब भी हमारा जीवन सम्मान से चल सकेगा।

आज देशभर में बहुत से कर्मचारी इस पेंशन के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। नई पेंशन योजना के आने के बाद से पुरानी पेंशन योजना बंद कर दी गई, और कर्मचारियों को एक ऐसे सिस्टम में डाल दिया गया, जिसमें बुढ़ापे में उन्हें ये भरोसा नहीं रहता कि उनका जीवन बिना किसी चिंता के चलेगा। अब कर्मचारियों को यह डर सताने लगा है कि जब हम बूढ़े हो जाएंगे, तब कौन हमारी मदद करेगा? हमारी पेंशन तो अब तय ही नहीं है, बाजार के उतार-चढ़ाव पर चलने वाली रकम पर हम कैसे अपना भविष्य सुरक्षित मानें? इसी बात ने हजारों कर्मचारियों को एकजुट किया है, और वे अब पुरानी पेंशन बहाली के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

कई राज्यों में इस मुद्दे पर धरने-प्रदर्शन हो चुके हैं। हिमाचल प्रदेश ने इस लड़ाई को बखूबी लड़ा और वहां की सरकार को पुरानी पेंशन योजना लागू करनी पड़ी। यह सब हुआ कर्मचारियों की एकजुटता और हिम्मत के कारण। उन्होंने अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सड़कों पर आंदोलन किया, अपनी आवाज़ को बुलंद किया और आखिरकार अपना हक पाया। अब वही उम्मीद देश के दूसरे राज्यों के कर्मचारियों को भी है। सबको यह लगने लगा है कि अगर हम भी एकजुट होकर अपनी बात कहें, तो सरकार को हमारी बात माननी पड़ेगी।

इसी सिलसिले में 1 मई 2025 को जंतर-मंतर, दिल्ली में एक बड़ा आंदोलन होने जा रहा है। यह केवल एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक मिशन है। इसमें भाग लेना हर उस कर्मचारी का फर्ज़ है, जो अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा चाहता है। यह लड़ाई केवल आज की नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की भी है। अगर आज हम चुप रहेंगे, तो आने वाले समय में हमारे बच्चे और उनके बाद की पीढ़ी भी इसी समस्या से जूझती रहेगी।

कई लोग सोचते हैं कि मैं नहीं जाऊंगा तो क्या फर्क पड़ेगा। पर असली बात यही है कि जब हर कोई यही सोचेगा, तो कोई भी नहीं जाएगा। अगर आप नहीं जाएंगे, तो दूसरा क्यों जाएगा? जब हर कोई ये सोचने लगेगा कि मेरे पास समय नहीं है, मुझे काम है, पत्नी भी नौकरी करती है, बच्चों को देखना है, तो फिर इस लड़ाई को कौन लड़ेगा? ये सोच सही नहीं है। हम चुनाव ड्यूटी करने जाते हैं, स्कूल भी जाते हैं, ऑफिस का सारा काम भी करते हैं, तो फिर अपने हक के लिए क्यों नहीं? अगर आप दो पेंशन लेना चाहेंगे, तो आंदोलन में भी दो लोग जाने चाहिए, आप और आपकी पत्नी। क्योंकि पेंशन दोनों को चाहिए।

बहाने बहुत हो चुके। कोई कहता है कि मैं अगली बार जाऊंगा। पर अगली बार कभी नहीं आती। जो लड़ाई आज लड़नी है, वो आज ही लड़नी पड़ेगी। कोई भी दूसरा आपके लिए लड़ने नहीं आएगा। जब तक आप खुद अपने हक के लिए खड़े नहीं होंगे, तब तक कुछ भी नहीं बदलेगा। महिलाओं का भी ये सवाल है कि हम कैसे जाएं? लेकिन वही महिलाएं स्कूल भी जाती हैं, ऑफिस भी जाती हैं, चुनाव ड्यूटी भी करती हैं। तो फिर अपने हक के लिए जाना क्यों मुश्किल है? पेंशन आपको भी चाहिए, तो उसके लिए लड़ाई भी आपको ही लड़नी होगी। अपने बच्चों के भविष्य के लिए हमें एक बार फिर से हिमाचल की मातृशक्ति की तरह आगे आना होगा।

कई बार लोग कहते हैं कि हमारे पास समय नहीं है, या हमें गैरसैण नहीं जाना, जिला मुख्यालय नहीं जाना, देहरादून नहीं जाना। तो कब जाओगे? ये बहाने कब तक चलते रहेंगे? क्या जब सबकुछ खत्म हो जाएगा, तब? तब तो कोई फायदा नहीं। पेंशन वो चीज है, जो हर महीने मिलती है। लड़ाई भी उसी तरह लगातार लड़ी जानी चाहिए। जब तक पेंशन नहीं मिलेगी, तब तक धरने भी लगेंगे, प्रदर्शन भी होंगे। जब तक पेंशन बहाल नहीं होगी, हमें चैन से बैठना नहीं है।

जो साथी इस आंदोलन को लड़ रहे हैं, उन्हें भी वही एक पेंशन मिलेगी। वो भी आपके ही जैसे कर्मचारी हैं। उन्होंने अपने विभागीय संगठनों में जिम्मेदारी ली है और अब ये उनका परम कर्तव्य बनता है कि वे इस मिशन में बढ़-चढ़कर भाग लें। अगर वे आपके भविष्य के लिए सड़क पर खड़े हो सकते हैं, तो क्या आप उनके साथ नहीं खड़े हो सकते? ये केवल उनकी लड़ाई नहीं है, ये हम सबकी लड़ाई है।

इस बार सवाल-जवाब और बहानेबाजी बहुत हो गई। अब एक ही जवाब है — 1 मई 2025 को जंतर-मंतर पर चलना है। पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन को मजबूत करना है। हमें अपने हक की इस लड़ाई को और तेज़ करना है। अगर हिमाचल के साथियों ने अपने बच्चों को गोद में लेकर आंदोलन किया और जीत हासिल की, तो हम क्यों नहीं कर सकते? हमें भी आलस छोड़कर, बहानेबाजी छोड़कर, निष्क्रियता और नकारात्मकता से बाहर निकलकर, अपने भविष्य के लिए डटकर खड़ा होना होगा।

यह लड़ाई सिर्फ पैसों की नहीं है, यह सम्मान की भी है। जब कोई रिटायर होता है, तो वह चाहता है कि उसे सम्मान के साथ, बिना किसी चिंता के जीवन जीने का हक़ मिले। अगर आज हम खामोश रहेंगे, तो कल कोई हमारी आवाज़ नहीं सुनेगा। कल कोई हमारा हाल भी पूछने नहीं आएगा। इसी लिए आज उठ खड़े होना जरूरी है।

हिमाचल ने दिखा दिया कि जब कर्मचारी एकजुट हो जाएं, तो कोई भी सरकार उनकी मांगें मानने को मजबूर हो जाती है। हमें भी वही करना है। 1 मई 2025 को हमें दिल्ली के जंतर-मंतर पर इकट्ठा होकर इतिहास रचना है। हर कर्मचारी को वहां पहुंचना है। सिर्फ सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने से कुछ नहीं होगा। हमें सड़कों पर उतरना होगा। अपने नेताओं को आगे लाना होगा। जनजागरूकता फैलानी होगी। हर किसी को बताना होगा कि पेंशन हमारा अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे।

एकजुटता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। जब हम सब एकजुट होंगे, तो हमारी आवाज़ दूर तक जाएगी। सरकार भी तब सुनेगी, जब उसे लगेगा कि अब कर्मचारी शांत बैठने वाले नहीं हैं। इसलिए समय आ गया है, जब हमें अपना हक खुद लेना है। 1 मई 2025 को दिल्ली चल पड़ना है।

हमारे पास अब ज्यादा समय नहीं है। हमें अपने परिवार, अपने बच्चों और अपने बुढ़ापे की चिंता खुद करनी होगी। ये सोचिए कि अगर पुरानी पेंशन नहीं मिली, तो बुढ़ापे में जब तनख्वाह नहीं मिलेगी और इलाज, घर के खर्च, बच्चों की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी, तब क्या होगा? यही सोचिए और इसी सोच के साथ अपनी पूरी इच्छाशक्ति जुटाकर इस आंदोलन में भाग लीजिए।

1 मई को जंतर-मंतर पर एक ऐसी ज्वाला जलानी है, जो हर कर्मचारी के दिल में पेंशन की लड़ाई की आग को और तेज़ कर दे। यह लड़ाई केवल आज के लिए नहीं है, यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है। इस लड़ाई को जीतना ही होगा।

हर कर्मचारी को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। कोई पीछे नहीं रहे। नेता भी आगे आएं। सोशल मीडिया का सही तरीके से इस्तेमाल करें। वीडियो बनाएं, मैसेज भेजें, पोस्टर बनाएं। हर गली, हर मोहल्ले में इस आंदोलन की बात होनी चाहिए। सबको बताइए कि पेंशन हमारा हक है और हम इसे लेकर रहेंगे।

याद रखिए — एकजुटता ही हमारी ताकत है। पेंशन हमारा अधिकार है। हमें मिलकर, एकजुट होकर, बिना डरे, बिना रुके, लगातार लड़ाई लड़नी है। जब तक जीत नहीं मिलती, तब तक लड़ते रहना है। 1 मई 2025 को चलो दिल्ली — जंतर-मंतर पर इतिहास रचने।


 पेंशन है बुढ़ापे का सहारा,
हर महीने मिलने वाला हमारा।
अपने हक के लिए अब लड़ना है,
जंतर-मंतर जाकर कहना है।
सब मिलकर आवाज़ उठाएँगे,
अपना अधिकार वापस लाए 
1 मई को सब चल पड़ेंगे,
पुरानी पेंशन फिर से लेंगे।

 

 



 


Saturday, April 19, 2025

स्कूल चलो मिशन 2025-26: हर बच्चा स्कूल जाएगा, सपनों को सच बनाएगा।




स्कूल चलो मिशन 2025 – एक शिक्षित उत्तर प्रदेश की दिशा में कदम



स्कूल चलो मिशन 2025 उत्तर प्रदेश की एक महत्वपूर्ण योजना है, जिसका उद्देश्य यह है कि हर बच्चा स्कूल जाए और पढ़ाई से वंचित न रहे। यह योजना खासकर गरीब, पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है ताकि वे भी शिक्षा का अधिकार पा सकें। यह मिशन उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा चलाया जा रहा है और इसका मकसद सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा से जोड़ना है।

उत्तर प्रदेश की सरकार यह मानती है कि जब तक हर बच्चा स्कूल नहीं जाएगा, तब तक समाज और देश का विकास अधूरा रहेगा। इसीलिए सरकार ने यह लक्ष्य रखा है कि 2025 तक राज्य का कोई भी बच्चा स्कूल से बाहर न रहे। इसके लिए गांव-गांव और मोहल्लों में जाकर अभिभावकों को जागरूक किया जा रहा है कि वे अपने बच्चों को स्कूल जरूर भेजें। कई जगहों पर शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्राम प्रधानों की मदद से बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया जा रहा है|



स्कूल चलो मिशन 2025 में कई योजनाओं को जोड़ा गया है जिससे बच्चों को स्कूल आने में किसी तरह की परेशानी न हो। बच्चों को मुफ्त किताबें, यूनिफॉर्म, जूते-मोज़े और बैग दिए जा रहे हैं। साथ ही मिड-डे मील योजना के तहत दोपहर का भोजन भी स्कूलों में दिया जा रहा है। इससे गरीब परिवारों के लिए अपने बच्चों को स्कूल भेजना आसान हो गया है क्योंकि अब उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ खाना और जरूरी सामान भी स्कूल से मिल रहा है।

सरकार ने यह भी तय किया है कि जो बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं, उन्हें दोबारा शिक्षा से जोड़ा जाए। इसके लिए विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं। शिक्षक और अधिकारी उन बच्चों के घर जाकर उनसे और उनके माता-पिता से बात करते हैं और उन्हें स्कूल में दाखिला दिलाने का प्रयास करते हैं। खासकर बालिकाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि कई बार लड़कियों को घरेलू कामों में लगा दिया जाता है और उनकी पढ़ाई छूट जाती है। अब सरकार लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए भी विशेष योजनाएं बना रही है।

स्कूल चलो मिशन के तहत सभी स्कूलों में नामांकन अभियान चलाया गया है। इसमें बच्चों को स्कूल में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया जाता है और हर बच्चे की जानकारी दर्ज की जाती है। अगर कोई बच्चा स्कूल से गायब होता है या नहीं आता, तो उसके बारे में जांच की जाती है और उसे वापस स्कूल लाने की कोशिश की जाती है। शिक्षकों को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे अपने क्षेत्र के सभी बच्चों की जानकारी रखें और सुनिश्चित करें कि कोई भी बच्चा पढ़ाई से वंचित न रहे।

इस योजना में तकनीक का भी उपयोग किया जा रहा है। कई स्कूलों में अब डिजिटल हाजिरी की जा रही है जिससे यह पता चलता है कि कितने बच्चे नियमित रूप से स्कूल आ रहे हैं। साथ ही शिक्षा विभाग एक ऐप के माध्यम से हर स्कूल की जानकारी इकट्ठा कर रहा है ताकि योजना को सफल बनाया जा सके। यह ऐप यह भी दिखाता है कि कहां पर बच्चों की संख्या कम है और कहां पर और काम करने की जरूरत है।

स्कूल चलो मिशन 2025 में पंचायतों, नगर निकायों, शिक्षकों, समाजसेवियों और स्थानीय लोगों की भी मदद ली जा रही है। स्कूल चलो रैलियां, प्रभात फेरियां और जनजागरूकता कार्यक्रम किए जा रहे हैं ताकि लोगों को यह समझाया जा सके कि शिक्षा कितनी जरूरी है। छोटे-छोटे बच्चे हाथों में तख्तियां लेकर जब गांवों में निकलते हैं और नारे लगाते हैं "पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया", तो लोगों का ध्यान इस ओर जाता है और वे भी अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने लगते हैं।

सरकार यह भी चाहती है कि सरकारी स्कूलों की छवि सुधरे ताकि माता-पिता अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों के बजाय सरकारी स्कूलों में भेजने को तैयार हों। इसके लिए स्कूलों की इमारतें सुधारी जा रही हैं, शौचालय बनवाए जा रहे हैं, पीने का साफ पानी उपलब्ध कराया जा रहा है और कंप्यूटर शिक्षा की सुविधा भी दी जा रही है। जब स्कूल अच्छा और साफ-सुथरा होगा, तो बच्चे भी वहां जाना पसंद करेंगे और पढ़ाई में रुचि लेंगे।

स्कूल चलो मिशन में शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर भी ध्यान दिया जा रहा है। खेल-कूद, चित्रकला, गायन, नृत्य और अन्य गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ अपनी रुचियों को भी पहचान सकें। शिक्षकों को भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि वे बच्चों को प्यार और स्नेह से पढ़ाएं ताकि बच्चा स्कूल आने से डरे नहीं बल्कि खुशी से आए।

यह मिशन केवल सरकार का नहीं, बल्कि हम सबका है। जब तक हर माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजेंगे, तब तक यह मिशन सफल नहीं हो सकता। समाज के हर वर्ग को आगे आना होगा और शिक्षा के इस अभियान में योगदान देना होगा। स्कूल चलो मिशन 2025 हमें यह याद दिलाता है कि शिक्षा केवल किताबें पढ़ना नहीं है, बल्कि यह बच्चों का भविष्य है, और एक पढ़ा-लिखा बच्चा ही कल एक अच्छा नागरिक बन सकता है।

बेसिक शिक्षा विभाग का यह प्रयास सराहनीय है कि वह हर साल इस योजना को और मजबूत बना रहा है। पहले जहां स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक थी, वहीं अब धीरे-धीरे यह संख्या घट रही है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में अब माता-पिता भी शिक्षा के महत्व को समझने लगे हैं। उन्हें यह समझ में आने लगा है कि अगर उनके बच्चे पढ़-लिख जाएंगे तो वे एक अच्छा जीवन जी पाएंगे।

अभी भी कुछ चुनौतियाँ हैं, जैसे कुछ इलाकों में स्कूल दूर होने के कारण बच्चे नहीं जा पाते, कुछ जगहों पर शिक्षक पर्याप्त नहीं हैं, तो कहीं स्कूलों में सुविधा कम है। लेकिन सरकार इन सभी समस्याओं को दूर करने की कोशिश कर रही है। नए स्कूल खोले जा रहे हैं, शिक्षक बहाल किए जा रहे हैं और स्कूलों को सुविधाजनक बनाया जा रहा है। इसके साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि स्कूलों में बच्चों को सही तरीके से पढ़ाया जाए और उनकी पढ़ाई में कोई कमी न हो।

स्कूल चलो मिशन 2025 का लक्ष्य बड़ा है लेकिन अगर सभी लोग मिलकर प्रयास करें तो यह जरूर सफल हो सकता है। यह मिशन न केवल बच्चों को शिक्षा देगा बल्कि हमारे देश को एक उज्जवल भविष्य भी देगा। जब हर बच्चा पढ़ेगा, तो वह अपने परिवार, गांव और देश के विकास में योगदान देगा। एक पढ़ा-लिखा समाज ही सशक्त समाज बन सकता है।

इसलिए हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने आस-पास के सभी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करेंगे, उनकी मदद करेंगे और इस मिशन को सफल बनाने में अपना योगदान देंगे। स्कूल चलो मिशन 2025 केवल एक योजना नहीं है, यह एक आंदोलन है – शिक्षा का आंदोलन, भविष्य निर्माण का आंदोलन। आइए हम सब मिलकर इस मिशन को सफल बनाएं और उत्तर प्रदेश को शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श राज्य बनाएं।


Thursday, April 17, 2025

भीषण गर्मी में स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए एक्शन प्लान लागू

 

हीट वेव से बच्चों की सुरक्षा को लेकर स्कूलों में एडवाइजरी, ओआरएस, पानी और पंखे की व्यवस्था के निर्देश

कानपुर देहात ज़िले में इन दिनों गर्मी अपना रौद्र रूप दिखा रही है। अप्रैल महीने में ही तापमान इतना बढ़ गया है कि लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। ऐसी भीषण गर्मी में बच्चों की सुरक्षा के लिए बेसिक शिक्षा विभाग ने एक अहम कदम उठाया है। विभाग ने हीट वेव यानी लू से बचाव के लिए एडवाइजरी जारी की है। इस एडवाइजरी में स्कूलों के प्रधानाचार्यों और अध्यापकों को कई ज़रूरी निर्देश दिए गए हैं, ताकि बच्चे इस खतरनाक गर्मी में सुरक्षित रह सकें। स्कूलों में पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों का स्वास्थ्य भी ज़रूरी है। इसलिए गर्मी में बच्चों को हीट वेव से बचाने के लिए आपदा प्रबंधन के तहत बेसिक शिक्षा विभाग ने पूरी तैयारी कर ली है।

गर्मी के मौसम में सबसे बड़ी परेशानी बिजली और पानी की होती है। अगर स्कूलों में बिजली चली जाए और पानी की सप्लाई न हो तो बच्चों को दिक्कत हो सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए विभाग ने निर्देश दिया है कि स्कूलों में बिजली की व्यवस्था दुरुस्त रहे और पानी की सप्लाई लगातार बनी रहे। इसके अलावा हर क्लासरूम में पंखे सही हालत में काम करते रहें, इसका भी ध्यान रखना ज़रूरी है। सभी स्कूलों को कहा गया है कि वे कमरों को ठंडा और आरामदायक बनाए रखें।

गर्मी में खुले में खेलना या किसी भी प्रकार की गतिविधि करना बच्चों के लिए खतरनाक हो सकता है। तेज़ धूप और हीट वेव में बच्चे बीमार पड़ सकते हैं। इसलिए स्कूलों को सख्त आदेश दिए गए हैं कि बच्चों से कोई भी शारीरिक गतिविधि, जैसे दौड़, खेलकूद या पीटी न कराई जाए। बच्चों को धूप में न भेजा जाए और न ही प्रार्थना सभा जैसी गतिविधियां खुले में कराई जाएं। सभी गतिविधियां कमरे के अंदर ही कराई जाएं।

सिर्फ यही नहीं, बच्चों और उनके अभिभावकों को भी गर्मी से बचाव के तरीके बताए जाएंगे। इसके लिए स्कूलों में आपदा प्रबंधन पर आधारित फिल्में दिखाई जाएंगी। इन फिल्मों के ज़रिए बच्चों और उनके परिवारों को बताया जाएगा कि गर्मी के मौसम में कैसे खुद को सुरक्षित रखें। कौन-कौन से उपाय करें ताकि हीट वेव से बचा जा सके। जैसे — घर से बाहर न निकलना, धूप में छाता या टोपी लगाना, हल्के और सूती कपड़े पहनना, ठंडा पानी पीना और ओआरएस घोल का सेवन करना।

ओआरएस यानी ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन गर्मी में बहुत फायदेमंद होता है। इससे शरीर में पानी की कमी नहीं होती और लू लगने का खतरा कम होता है। स्कूलों को आदेश दिए गए हैं कि वे बच्चों के लिए ओआरएस और इलेक्ट्राल के पैकेट का इंतज़ाम करें। अगर किसी बच्चे को चक्कर आए या वह कमजोर महसूस करे तो उसे तुरंत ओआरएस का घोल दिया जाए।

बेसिक शिक्षा अधिकारी अजय कुमार मिश्रा ने बताया कि सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को यह निर्देश जारी कर दिए गए हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्र के स्कूलों में व्यवस्थाएं दुरुस्त कराएं। पेयजल की व्यवस्था लगातार बनी रहे, बिजली की सप्लाई में कोई रुकावट न आए और पंखे पूरी तरह सही हालत में चलें। अगर गर्मी और बढ़ती है तो स्कूल समय में भी परिवर्तन किया जाएगा। मतलब यह कि स्कूल का समय घटाकर सुबह जल्दी या दिन में जल्दी छुट्टी कर दी जाएगी, ताकि बच्चे दोपहर की तेज़ धूप में घर न जाएं।

गर्मी में बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है। छोटे बच्चों की त्वचा और शरीर जल्दी गर्मी पकड़ लेते हैं। उन्हें जल्दी पसीना आता है और कमजोरी महसूस होती है। अगर सही देखभाल न की जाए तो बच्चे हीट स्ट्रोक का शिकार भी हो सकते हैं। इसलिए विद्यालयों को कहा गया है कि वे हर हाल में बच्चों के लिए बिजली, पानी और पंखे की व्यवस्था बनाए रखें। अगर कहीं कोई समस्या आती है तो तुरंत संबंधित विभाग को सूचना दें।

विद्यालयों में जलपान के समय भी ध्यान रखने की ज़रूरत है। बच्चों को ठंडा और साफ पानी मिलना चाहिए। ज्यादा मीठे, भारी और तले-भुने खाद्य पदार्थ न दिए जाएं। बच्चों को हल्का भोजन और फलों का सेवन करने के लिए प्रेरित किया जाए। अगर कोई बच्चा बीमार लगे तो उसकी सूचना उसके अभिभावकों को तुरंत दें। गर्मी के मौसम में वायरल बुखार, डायरिया और हीट स्ट्रोक जैसी बीमारियां तेजी से फैलती हैं।

इसी वजह से यह भी तय किया गया है कि विद्यालय परिसर में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाए। पानी के टैंकों को साफ कराकर ही पानी भरवाया जाए। बच्चों को साफ-सुथरे गिलास और बर्तनों में पानी पिलाया जाए। कहीं भी गंदा पानी या कीचड़ जमा न होने दिया जाए। इससे मच्छर और कीड़े-मकोड़े भी पनपते हैं जो और बीमारियां फैला सकते हैं।

हीट वेव के दौरान बच्चों के पहनावे का भी ध्यान रखना चाहिए। उन्हें सूती और हल्के रंग के कपड़े पहनने चाहिए। गहरे रंग के कपड़े जल्दी गर्मी पकड़ते हैं। बच्चों को टोपी या रूमाल से सिर ढकने के लिए कहा जाए। अगर स्कूल वर्दी में बदलाव करना संभव हो तो गर्मी के मौसम में हल्की और आरामदायक वर्दी की अनुमति दी जाए।

स्कूलों में सुबह की प्रार्थना सभा भी अब कमरों के अंदर ही कराई जाए या पूरी तरह से स्थगित कर दी जाए। बच्चों को लंबी कतार में खड़ा न कराया जाए। अगर बहुत ज़रूरी हो तो छायादार जगह पर, बहुत कम समय के लिए ही प्रार्थना कराई जाए।

अभिभावकों को भी जागरूक करने की ज़रूरत है। स्कूलों की तरफ से पत्र भेजकर या अभिभावक बैठक के ज़रिए उन्हें बताया जाए कि वे गर्मी के मौसम में अपने बच्चों का कैसे ध्यान रखें। बच्चों को समय पर स्कूल भेजें और दोपहर की छुट्टी के बाद सीधे घर ले जाएं। बच्चों को घर में ज्यादा देर धूप में खेलने न दें।

हीट वेव के समय बच्चों के खानपान का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। बच्चों को ताजे फल, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा जैसी चीजें खिलाई जाएं। बासी खाना, तली-भुनी चीजें और कोल्ड ड्रिंक से बचें। अगर बच्चा बाहर से खेलकर आया हो तो उसे तुरंत ठंडा पानी या ओआरएस का घोल पिलाएं।

हीट वेव के दौरान लू से बचाव के उपाय बच्चों को बार-बार समझाने चाहिए। जैसे — तेज़ धूप में बाहर न जाएं, छाया में रहें, सिर पर टोपी या गीला कपड़ा रखें, पानी बार-बार पिएं और बहुत जरूरी हो तभी घर से बाहर निकलें।

बेसिक शिक्षा विभाग का यह कदम बच्चों की सुरक्षा के लिए बहुत सराहनीय है। अगर सभी स्कूल इन निर्देशों का पालन करें और अभिभावक भी सतर्क रहें तो गर्मी के मौसम में बच्चों को लू और अन्य बीमारियों से बचाया जा सकता है। विद्यालय प्रधान, अध्यापक और कर्मचारी सभी मिलकर इस जिम्मेदारी को निभाएं तो हीट वेव का प्रभाव काफी हद तक कम किया जा सकता है।

अगर कहीं स्कूल में इन निर्देशों का पालन नहीं हो रहा है तो वहां के खंड शिक्षा अधिकारी को सूचित किया जाए। बच्चों के स्वास्थ्य के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। गर्मी का मौसम अभी और तेज़ होगा। ऐसे में बच्चों को सुरक्षित रखना हम सभी की ज़िम्मेदारी है। विद्यालयों में समय-समय पर निरीक्षण कर यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी व्यवस्थाएं ठीक हैं या नहीं।

इस तरह की सावधानी और सजगता से ही हम अपने नौनिहालों को भीषण गर्मी में सुरक्षित रख सकते हैं। बेसिक शिक्षा विभाग की यह पहल समय की मांग है और इसका पालन हर विद्यालय को सख्ती से करना चाहिए। बच्चे ही हमारे भविष्य हैं और उनका स्वास्थ्य ही देश की असली संपत्ति है|

 





Wednesday, April 16, 2025

अमेठी जिले ने निपुण अस्सेस्मेंट 2024-25 में प्रदेश में पहला स्थान हासिल किया

 



👉हीट-वेव से बचाव हेतु बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा निर्गत एडवाइजरी व आवश्यक कार्यवाही कराये जाने के संबंध में

           https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_279.html


अमेठी जिले ने शिक्षा के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है। निपुण अस्सेस्मेंट टेस्ट 2024-25 में अमेठी ने प्रदेश भर में पहला स्थान हासिल किया है। यह उपलब्धि जिले के शिक्षकों, अभिभावकों और बच्चों की मेहनत का परिणाम है। पिछले सत्र 2022-23 में अमेठी जिले ने 59वां स्थान प्राप्त किया था, लेकिन इस बार जिले ने ऐतिहासिक छलांग लगाते हुए पहला स्थान हासिल किया।

इस सत्र में अमेठी जिले के कुल 1600 स्कूलों के 133410 बच्चों ने निपुण अस्सेस्मेंट टेस्ट में भाग लिया। इस बार जिले का प्रदर्शन पिछले वर्ष से काफी बेहतर रहा। पिछले सत्र में अमेठी का प्रतिशत 68.01 प्रतिशत था, जो अब बढ़कर 96.4 प्रतिशत हो गया है। यह एक बड़ा सुधार है और इसका श्रेय शिक्षकों की निरंतर मेहनत और बच्चों की लगन को जाता है।

ग्रेड ए में आने वाले बच्चों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। पिछले सत्र में 23.01 प्रतिशत बच्चे ग्रेड ए में थे, जबकि इस बार यह आंकड़ा बढ़कर 53.04 प्रतिशत तक पहुँच गया है। यह दिखाता है कि बच्चों ने बेहतर प्रदर्शन किया है और उनकी मेहनत का फल उन्हें मिल रहा है।

इस बार प्रदेश स्तर पर हमीरपुर ने दूसरा स्थान प्राप्त किया और हापुड़ ने तीसरा स्थान हासिल किया। पिछली बार अमेठी ने 42वां स्थान प्राप्त किया था, जबकि इस बार उसने एक ऐतिहासिक छलांग लगाई और पहले स्थान पर पहुँच गया। यह बदलाव जिले के शैक्षिक माहौल में सुधार का संकेत है।

हालांकि, कुछ जिले इस बार पिछड़ गए हैं। अयोध्या जिला इस बार 64वें स्थान पर लुड़क गया है, जबकि सुल्तानपुर भी पिछली बार की 17वीं रैंक से फिसलकर 62वें स्थान पर पहुँच गया है। यह साबित करता है कि शैक्षिक गुणवत्ता में निरंतर सुधार की आवश्यकता है और यह किसी एक साल की मेहनत से नहीं हो सकता, बल्कि इसे निरंतर बनाए रखना होता है।

अमेठी जिले की यह सफलता केवल बच्चों की मेहनत का परिणाम नहीं है, बल्कि शिक्षकों के निरंतर प्रशिक्षण, स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और अभिभावकों के सहयोग का भी परिणाम है। शिक्षकों को लगातार प्रशिक्षण दिया गया, जिससे वे बच्चों के लिए बेहतर शिक्षण पद्धतियाँ अपना सके। इसके अलावा, विद्यालयों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण की प्रक्रिया को लागू किया गया, जिसका परिणाम आज हम देख रहे हैं।

आने वाले समय में इस सफलता को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे। अमेठी जिले के शिक्षा विभाग ने यह संकल्प लिया है कि बच्चों की शिक्षा में सुधार और गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए निरंतर मेहनत की जाएगी। शिक्षकों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ उनके काम की निगरानी भी की जाएगी, ताकि बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी न रहे।

अमेठी की इस सफलता से अन्य जिलों को भी प्रेरणा मिलनी चाहिए। यह दिखाता है कि अगर समर्पण, मेहनत और सही मार्गदर्शन हो, तो किसी भी जिले को उच्च स्थान प्राप्त किया जा सकता है। यह सफलता जिले के सभी शिक्षा अधिकारियों, शिक्षकों और अभिभावकों के सामूहिक प्रयास का परिणाम है।

अब अमेठी जिले को इस सफलता को बनाए रखते हुए और भी बेहतर करने की चुनौती मिलेगी। बच्चों की शिक्षा में सुधार, शिक्षकों की गुणवत्ता और स्कूलों में सुविधाओं का सुधार अब अमेठी के लिए प्राथमिकता बनेगा। जिले को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों का प्रदर्शन इस स्तर पर बनाए रखा जाए और आगे और भी अच्छे परिणाम प्राप्त किए जाएं।

इस सफलता के बाद अब अमेठी जिले में शिक्षा का माहौल और भी बेहतर होगा। बच्चों को अब और भी अच्छे शिक्षक मिलेंगे, उनके लिए बेहतर सुविधाएँ होंगी और वे शिक्षा के क्षेत्र में और भी ऊँचाइयाँ छू सकेंगे। यह एक नई शुरुआत है, जो जिले की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है।

अमेठी की सफलता से यह भी सीखने को मिलता है कि शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए केवल बच्चों की मेहनत ही नहीं, बल्कि शिक्षकों की मेहनत और निरंतर प्रशिक्षण भी जरूरी है। जब शिक्षक बच्चों के लिए बेहतर तरीकों से पढ़ाते हैं और बच्चों में पढ़ाई के प्रति उत्साह होता है, तो अच्छा परिणाम आता है।

इस सफलता को देखकर अन्य जिलों को भी यह प्रेरणा मिलनी चाहिए कि वे भी अपनी शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाकर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। अगर हर जिला अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए काम करे, तो देशभर में शिक्षा का स्तर ऊँचा हो सकता है और बच्चों का भविष्य उज्जवल हो सकता है।

अमेठी जिले की यह सफलता एक प्रेरणा है, जो यह साबित करती है कि अगर सही दिशा में काम किया जाए और सभी लोग मिलकर प्रयास करें, तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।


👉वित्तीय वर्ष 2025-26 में आयकर अग्रिम कटौती वेतन से प्रति माह किये जाने के सम्बन्ध में

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ए.आर.पी. को औचक निरीक्षण एवं निरीक्षण पंजिका में अंकन का अधिकार नहीं

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Tuesday, April 15, 2025

कानपुर-उन्नाव सड़क हादसा: 3 शिक्षिकाओं और चालक की मौत, शिक्षक गंभीर घायल

 




कानपुर और उन्नाव के बीच मंगलवार की सुबह एक बेहद दर्दनाक सड़क हादसा हो गया। इस हादसे में तीन महिला शिक्षिकाओं और एक कार चालक की मौके पर ही मौत हो गई। इसके अलावा एक शिक्षक गंभीर रूप से घायल हो गए। यह भयानक हादसा नारामऊ हाईवे कट के पास हुआ। हादसे की खबर जैसे ही आसपास के लोगों और शिक्षा विभाग तक पहुँची, पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई।

सुबह लगभग 7:30 बजे कल्याणपुर निवासी विशाल द्विवेदी नामक युवक अपनी कार से तीन शिक्षिकाओं को स्कूल छोड़ने उन्नाव की ओर ले जा रहा था। नारामऊ में दलहन रोड के पास हाईवे पर एक सीएनजी पंप है। जैसे ही विशाल अपनी कार को सीएनजी भरवाने के लिए मोड़ने लगे, तभी उनकी कार एक बाइक से टकरा गई। बाइक सवार सरकारी शिक्षक अशोक कुमार, जो पनकी के रहने वाले हैं, इस टक्कर में गंभीर रूप से घायल हो गए।

इस टक्कर के तुरंत बाद सामने से आ रही एक प्राइवेट ट्रैवल्स की बस ने कार को जोरदार टक्कर मार दी। बस की टक्कर इतनी तेज थी कि कार पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। कार में सवार सभी लोग कार के अंदर बुरी तरह फंस गए। राहगीरों और बिठूर पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद कार में फंसे लोगों को बाहर निकाला।

कार में कुल चार लोग सवार थे। इनमें आकांक्षा मिश्रा, अंजुला मिश्रा, ऋचा अग्निहोत्री और कार चालक विशाल द्विवेदी शामिल थे। हादसे के बाद आकांक्षा मिश्रा और अंजुला मिश्रा को हैलेट अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। विशाल द्विवेदी ने भी इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। शुरू में यह सूचना भी आई कि ऋचा अग्निहोत्री की भी मृत्यु हो गई है, लेकिन बाद में यह खबर गलत साबित हुई।



ऋचा अग्निहोत्री फिलहाल रामा अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हैं। वो होश में हैं, बात कर रही हैं और अपने परिजनों को पहचान भी रही हैं। उनके पेट में गंभीर अंदरूनी चोटें हैं। डॉक्टरों ने बताया है कि अगर ब्लीडिंग नहीं हो रही है, तो वो पूरी तरह ठीक हो सकती हैं। अगर सीटी स्कैन में किसी गंभीर स्थिति का पता चलता है, तो ऑपरेशन कर उनकी तिल्ली निकालनी पड़ सकती है। उनके हाथ, पैर और गले में भी काफी चोटें आई हैं और उन पर प्लास्टर चढ़ाया गया है। उनके परिजन और शिक्षा विभाग के लोग लगातार उनके स्वास्थ्य की जानकारी ले रहे हैं। सभी लोग ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि उनकी सीटी स्कैन रिपोर्ट ठीक आए और वो जल्द से जल्द स्वस्थ होकर घर लौटें।

बाइक सवार अशोक कुमार का भी इलाज रामा अस्पताल में चल रहा है। उनकी हालत भी गंभीर बनी हुई है। इस हादसे की खबर मिलते ही परिजनों में कोहराम मच गया। परिजन अस्पताल पहुँचते ही फूट-फूट कर रोने लगे। वहीं शिक्षा विभाग में भी शोक की लहर फैल गई।

एनएचएआई की टीम ने घटनास्थल पर पहुँच कर क्षतिग्रस्त वाहनों को हटवाया और ट्रैफिक को सामान्य कराया। पुलिस ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और मामले की जाँच शुरू कर दी। इस दुर्घटना में जिन शिक्षिकाओं की मृत्यु हुई, वे कंपोजिट स्कूल जमाल नगर सफीपुर में कार्यरत थीं। इसके अलावा अर्चना नाम की एक और शिक्षिका, जो विद्यालय न्यामतपुर में कार्यरत हैं, की हालत भी गंभीर बताई गई थी। आकांक्षा मिश्रा का भी मौके पर ही निधन हो गया था।

घटना के समय वहां मौजूद राहगीरों ने बताया कि कार पहले बाइक से टकराई और फिर बस से जा भिड़ी। टक्कर इतनी जोरदार थी कि कार के परखच्चे उड़ गए। हादसे के बाद राहगीरों और पुलिस ने कड़ी मशक्कत कर कार में फंसे लोगों को बाहर निकाला।

हादसे के बाद एक और दुखद बात यह रही कि एम्बुलेंस काफी देर से पहुँची। अगर एम्बुलेंस समय पर पहुँच जाती तो शायद कुछ लोगों की जान बचाई जा सकती थी। इस हादसे ने पूरे कानपुर और उन्नाव को गहरे दुख में डुबो दिया। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने शोक व्यक्त किया और कहा कि सड़क सुरक्षा नियमों का पालन करना बहुत ज़रूरी है।

हादसे का सबसे बड़ा कारण हाईवे कट पर अचानक मोड़ लेना और सावधानी में कमी को माना जा रहा है। ऐसे हाईवे कट पर हमेशा दुर्घटनाओं का खतरा ज्यादा रहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हाईवे पर कट बनाते समय विशेष ध्यान देना चाहिए। सीएनजी पंप के सामने कट नहीं होना चाहिए और वहाँ ट्रैफिक सिग्नल व रिफ्लेक्टर लगाए जाने चाहिए। साथ ही बस और भारी वाहन चालकों को भी हाईवे पर धीमी गति से गाड़ी चलानी चाहिए।

इस हादसे से सभी को यह सीख लेनी चाहिए कि कभी भी हाईवे पर अचानक मोड़ नहीं लेना चाहिए। बाइक और कार को आगे-पीछे चलाते समय उचित दूरी बनाए रखनी चाहिए। एम्बुलेंस और पुलिस को घटनास्थल पर समय से पहुँचना चाहिए। सरकारी स्तर पर भी सड़क सुरक्षा के उपाय मजबूत करने चाहिए ताकि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।

ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करें और घायल शिक्षक व शिक्षिका को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ दे। उनके परिजनों को इस असहनीय दुःख को सहने की शक्ति दें। यह हादसा पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है कि हम सभी को सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करना चाहिए और दूसरों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए।






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