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Wednesday, April 30, 2025

मुरादाबाद में 250 से अधिक शिक्षक आईपीएल सट्टेबाजी में लिप्त, तीन गिरफ्तार और निलंबित

 


मुरादाबाद जिले में एक बहुत ही चौंकाने वाली घटना सामने आई है। यह घटना शिक्षा जगत से जुड़ी है, जिसमें बेसिक शिक्षा विभाग के 250 से भी ज्यादा शिक्षक आईपीएल में सट्टा लगाने के मामले में शामिल पाए गए हैं। यह बात जब सामने आई तो शिक्षा विभाग और पुलिस दोनों में हलचल मच गई। जो शिक्षक बच्चों को स्कूल में पढ़ाने और संस्कार देने की जिम्मेदारी निभाते हैं, वही अब सट्टेबाजी जैसे गलत कामों में लिप्त पाए गए हैं।

इस पूरे मामले की शुरुआत 11 अप्रैल 2025 की रात को हुई, जब मुरादाबाद पुलिस ने सीओ सिविल लाइंस कुलदीप गुप्ता के नेतृत्व में एक फ्लैट पर छापा मारा। यह फ्लैट सिविल लाइंस इलाके में पीटीसी के सामने था। पुलिस को यहां आईपीएल मैच पर सट्टा लगाए जाने की जानकारी मिली थी। जब पुलिस ने छापा मारा, तो वहां 9 लोग मौके पर रंगे हाथों पकड़े गए। कुछ समय बाद पुलिस ने एक और आरोपी को गिरफ्तार किया, जिससे कुल मिलाकर 10 लोग जेल भेजे गए। इन्हीं में से 3 लोग बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षक हैं।

इन तीन शिक्षकों के नाम हैं: धर्मेंद्र कुमार, जो बिलारी ब्लॉक के कंपोजिट स्कूल इब्राहिमपुर में प्रभारी प्रधानाध्यापक हैं; मनोज अरोड़ा, जो सहायक शिक्षक हैं; और सुशील चौधरी उर्फ सुरेंद्र सिंह, जो डिलारी ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय वसावनपुर में प्रधानाध्यापक हैं। ये तीनों अब मुरादाबाद जेल में बंद हैं। बीएसए विमलेश कुमार ने तुरंत कार्रवाई करते हुए इन तीनों शिक्षकों को निलंबित कर दिया है।

पुलिस को जांच के दौरान जो मोबाइल चैट्स और कॉल डिटेल रिकॉर्ड मिले हैं, उनमें लगभग 250 से ज्यादा शिक्षकों के नाम, मोबाइल नंबर और बातचीत की जानकारी सामने आई है। इन चैट्स में आईपीएल सट्टेबाजी से जुड़े लेन-देन, भाव, रकम और अन्य सटोरियों से बातचीत के सबूत हैं। अब पुलिस इन्हीं सबूतों के आधार पर बाकी शिक्षकों की पहचान कर रही है। जिन शिक्षकों के नंबर और चैट्स मिले हैं, उनके खिलाफ भी जल्दी ही सख्त कार्रवाई की जाएगी।

यह मामला इसलिए भी गंभीर हो गया है क्योंकि इन शिक्षकों ने पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी छोड़कर सट्टेबाजी को अपनी कमाई का जरिया बना लिया है। बहुत से शिक्षक ऐसे हैं जो अब अपने स्कूल तक नहीं जाते। कुछ ने तो अपने स्कूलों में प्राइवेट टीचर रख लिए हैं, जो उनकी जगह बच्चों को पढ़ाते हैं। वहीं कुछ शिक्षक ऐसे हैं जो अपने रसूख के दम पर घर बैठे ही हाजिरी लगवाते हैं। इन शिक्षकों ने सट्टा लगाकर रातोंरात लाखों और करोड़ों रुपये कमाए हैं। लेकिन अब उनका यह खेल पुलिस और प्रशासन की नजर में आ गया है।

जेल में बंद इन 10 आरोपियों में से 7 लोगों की जमानत याचिका सेशन कोर्ट ने खारिज कर दी है। अब उन्हें जमानत के लिए हाईकोर्ट जाना होगा। जिनकी जमानत खारिज हुई है, उनके नाम हैं – टीटू उर्फ दीपक, विक्की छावड़ा, कमल छावड़ा, मनोज अरोड़ा (जो कि शिक्षक हैं), हेमंत अरोड़ा, रोहित गुप्ता और अभिनव। इससे साफ है कि कोर्ट भी इस मामले को बहुत गंभीरता से देख रहा है।

पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार इस सट्टेबाजी रैकेट के अभी भी 13 आरोपी फरार हैं। 11 अप्रैल के बाद से पुलिस लगातार छापेमारी कर रही है, लेकिन अब तक कोई भी वांटेड आरोपी पकड़ा नहीं जा सका है। पुलिस हर दिन करीब 10 जगहों पर छापे मार रही है, लेकिन अभी तक उन्हें खास सफलता नहीं मिली है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सट्टेबाजी रैकेट का जाल कितना बड़ा और गहरा है।

यह घटना शिक्षा विभाग के लिए एक बहुत बड़ा सवाल बनकर खड़ी हो गई है। जो शिक्षक बच्चों को ईमानदारी, मेहनत और नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं, वही अगर कानून तोड़ने लगें, तो बच्चों का भविष्य कैसे सुरक्षित रह पाएगा? बेसिक शिक्षा विभाग अब इन शिक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की तैयारी में है। सिर्फ निलंबन ही नहीं, बल्कि उनकी नौकरी तक खतरे में है। अगर दोष साबित हुआ, तो इनकी सेवा समाप्त भी की जा सकती है।

इस पूरे मामले से एक और सच्चाई सामने आई है – कुछ शिक्षक अपनी ड्यूटी के प्रति बिल्कुल लापरवाह हो गए हैं। उन्हें न बच्चों की पढ़ाई की चिंता है और न ही अपने कर्तव्यों की। वे सिर्फ पैसे कमाने की सोच में लगे हैं, चाहे वह तरीका गलत ही क्यों न हो। ये शिक्षक यह भूल गए हैं कि एक शिक्षक सिर्फ स्कूल में पढ़ाता नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक आदर्श भी होता है। जब समाज का यह आदर्श खुद गलत रास्ते पर चले, तो समाज का क्या होगा?

पुलिस अब इस मामले में तकनीकी सहायता भी ले रही है। मोबाइल चैट्स, कॉल रिकॉर्ड्स, बैंक ट्रांजैक्शन, व्हाट्सएप ग्रुप्स और मोबाइल पेमेंट ऐप्स की मदद से यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि और कितने लोग इस सट्टेबाजी में शामिल हैं। इसके अलावा पुलिस ने यह भी बताया है कि जो शिक्षक स्कूल नहीं जा रहे थे, उनका रिकॉर्ड भी खंगाला जा रहा है। अगर कोई शिक्षक लगातार अनुपस्थित रहा है और फिर भी वेतन ले रहा है, तो उस पर भी कार्रवाई की जाएगी।

शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने भी कहा है कि वे इस पूरे मामले को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। बीएसए कार्यालय से यह निर्देश जारी किया गया है कि सभी बीईओ अपने-अपने ब्लॉक के स्कूलों की हाजिरी और शिक्षकों की उपस्थिति की रिपोर्ट दें। यह देखा जाएगा कि कौन-कौन से शिक्षक नियमित रूप से स्कूल आ रहे हैं और कौन गायब रहते हैं।

इस घटना ने साफ कर दिया है कि शिक्षा विभाग को अब और सख्ती बरतनी होगी। शिक्षकों की भर्ती से लेकर उनकी निगरानी तक हर स्तर पर पारदर्शिता लानी होगी। साथ ही यह भी जरूरी है कि ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई हो, ताकि गलत काम करने वालों को सबक मिले और बाकी शिक्षक भी अपनी जिम्मेदारी समझें।

यह भी जरूरी है कि समाज के लोग और अभिभावक भी इस तरह की गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाएं। स्कूल बच्चों का दूसरा घर होता है और शिक्षक उनके मार्गदर्शक। अगर वही शिक्षक गलत राह पर चलें, तो बच्चों का भविष्य अंधकार में चला जाएगा।

इस पूरे प्रकरण से हमें यह सिखने को मिलता है कि चाहे कोई भी पेशा हो, अगर उसमें ईमानदारी न हो, तो उसका समाज पर बुरा असर पड़ता है। शिक्षक का काम सिर्फ नौकरी नहीं है, वह एक मिशन है, एक जिम्मेदारी है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि इस तरह के मामलों पर जल्द से जल्द सख्त कार्रवाई हो और ऐसे शिक्षक जो इस पवित्र पेशे को बदनाम कर रहे हैं, उन्हें उनके किए की सजा मिले।



2025 परिषदीय स्कूल छुट्टियों की लिस्ट देखें व डाउनलोड करें



साल 2025 के परिषदीय स्कूलों की छुट्टियों की लिस्ट देखें और आसानी से डाउनलोड करें। बेसिक शिक्षा परिषद की पूरी अवकाश तालिका यहाँ पाएं।

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हाईकोर्ट का फैसला: प्रभारी प्रधानाध्यापक को समान वेतन









प्रभारी प्रधानाध्यापक को समान वेतन: हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

मई 2025 में उत्तर प्रदेश के स्कूलों के लिए एक बड़ी खबर आई। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने ऐसा फैसला दिया है जिससे हजारों प्रभारी प्रधानाध्यापक खुश हो गए हैं। अब उन्हें भी वही वेतन मिलेगा जो एक नियमित प्रधानाध्यापक को मिलता है, अगर उनके पास जरूरी योग्यता है।

क्या है मामला?

राज्य के कई स्कूलों में कुछ शिक्षक ऐसे हैं जो खुद प्रधानाध्यापक नहीं हैं, लेकिन प्रधानाध्यापक की तरह काम कर रहे हैं। उन्हें "प्रभारी प्रधानाध्यापक" कहा जाता है। ये शिक्षक स्कूल चलाते हैं, बच्चों और शिक्षकों की जिम्मेदारी संभालते हैं, लेकिन उन्हें उतना वेतन नहीं मिलता जितना एक प्रधानाध्यापक को मिलता है।
इसलिए बहुत से प्रभारी प्रधानाध्यापक कोर्ट गए और कहा कि जब हम वही काम कर रहे हैं, तो हमें भी बराबर वेतन मिलना चाहिए।

पहले कोर्ट का क्या फैसला था?

पहले सिंगल बेंच (एक जज की अदालत) ने कहा था कि जिन प्रभारी प्रधानाध्यापकों के पास प्रधानाध्यापक बनने की योग्यता है, उन्हें बराबर वेतन मिलना चाहिए। लेकिन सरकार इस फैसले से खुश नहीं थी, इसलिए उन्होंने डबल बेंच (दो जजों वाली अदालत) में अपील की।
मई 2025 में डबल बेंच का फैसला क्या आया? 

डबल बेंच ने सरकार की अपील खारिज कर दी। अदालत ने फिर से कहा कि:

अगर कोई शिक्षक प्रधानाध्यापक की तरह काम कर रहा है और उसके पास योग्यता है, तो उसे भी वही वेतन मिलना चाहिए।
यह नियम छोटे स्कूलों पर भी लागू होगा, जहाँ छात्र संख्या 150 से कम है।
जिन शिक्षकों ने समय पर याचिका दी है, उन्हें तीन साल पहले से बकाया वेतन मिलेगा।
ऐसे प्रभारी प्रधानाध्यापक जिनके पास योग्यता नहीं है, उनके लिए कुछ सीमाएँ रखी गई हैं, जिन पर आगे फैसला आएगा।

क्या होगा अब?

अब जिन प्रभारी प्रधानाध्यापकों ने कोर्ट में याचिका लगाई थी और जिनके पास प्रधानाध्यापक बनने की योग्यता है, उन्हें तीन साल पहले से बकाया वेतन मिलेगा। साथ ही, जब तक उन्हें प्रमोशन नहीं मिलता, वे समान वेतन पर ही काम करते रहेंगे।

कोर्ट ने सरकार की बात क्यों नहीं मानी?

सरकार ने कहा था कि छोटे स्कूलों के प्रभारी प्रधानाध्यापकों को यह लाभ नहीं मिलना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने यह तर्क नहीं माना। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शिक्षक प्रधानाध्यापक का काम कर रहा है और उसके पास योग्यता है, तो उसे पूरा हक मिलना चाहिए, चाहे स्कूल छोटा हो या बड़ा।

क्या सभी प्रभारी प्रधानाध्यापकों को लाभ मिलेगा?

नहीं। यह लाभ सिर्फ उन्हीं शिक्षकों को मिलेगा:
जो कोर्ट में समय पर याचिका लेकर आए थे।
जिनके पास प्रधानाध्यापक की न्यूनतम योग्यता है।
बाकी शिक्षकों के लिए कोर्ट ने कुछ शर्तें रखी हैं, जिन पर पूरा आदेश आने के बाद ही स्थिति साफ होगी।
वकीलों और शिक्षकों की मेहनत रंग लाई
शिक्षकों की लीगल टीम ने शुरू से ही कहा था कि वे पूरी ताकत से यह लड़ाई लड़ेंगे। वे सिर्फ आधी जीत नहीं, पूरी जीत चाहते थे। अगर जरूरत पड़ी तो वे सुप्रीम कोर्ट भी जाने को तैयार थे। आखिरकार, उनकी मेहनत रंग लाई और हाईकोर्ट ने शिक्षकों के हक में फैसला सुनाया।

अब क्या करना होगा?

लीगल टीम ने कहा है कि जब तक कोर्ट का पूरा आधिकारिक आदेश नहीं आ जाता, तब तक सभी शिक्षक धैर्य रखें। आदेश आने के बाद ही आगे की रणनीति बनाई जाएगी।

निष्कर्ष

यह फैसला हजारों प्रभारी प्रधानाध्यापकों के लिए बहुत बड़ी राहत है। अब उन्हें भी वह सम्मान और वेतन मिलेगा जो वे लंबे समय से मांग रहे थे। यह सिर्फ वेतन की बात नहीं है, यह न्याय और बराबरी की बात है।
इससे सभी स्कूलों में काम करने वाले शिक्षकों का मनोबल बढ़ेगा और शिक्षा व्यवस्था और बेहतर होगी। यह फैसला बताता है कि अगर हम सच और हक के लिए डटे रहें, तो जीत ज़रूर मिलती है।


👉 शिक्षकों की मेहनत आई रंग, परिषदीय स्कूलों में 10 हजार बढ़े छात्र


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👉 गैरहाजिर मिले 46 शिक्षक, रोका वेतन


👉NPS में अब हर तरह की मिलेगी ग्रेच्युटी, गैजेट नोटिफिकेशन जारी


SMC बैठक मई 2025

 



 

  

👉शिक्षकों को 20 फीसदी नामांकन बढ़ाने का बीएसए ने दिया लक्ष्य
https://www.updatemarts.com/2025/04/20_29.html


शिक्षकों की मेहनत आई रंग, परिषदीय स्कूलों में 10 हजार बढ़े छात्र


महिलाओं के लिए शिक्षक पद: शिक्षा क्षेत्र में आदर्श करियर

 

                                             

हमारे समाज में शिक्षक का स्थान बहुत ऊँचा माना जाता है। खासकर जब कोई महिला शिक्षक बनती है, तो वह न केवल शिक्षा का कार्य करती है, बल्कि वह समाज की सोच को भी बदलने का काम करती है। एक महिला जब कक्षा में जाती है, तो वह सिर्फ किताबें नहीं पढ़ाती, वह बच्चों को जीवन के मूल्यों, संस्कारों और इंसानियत का पाठ भी पढ़ाती है। एक महिला शिक्षक अपने धैर्य, ममता और समझदारी से बच्चों को सिखाने का जो तरीका अपनाती है, वह बच्चों के मन पर गहरा असर छोड़ता है।

कानपुर देहात जैसे क्षेत्र में जहां पारिवारिक जीवन और सामाजिक जिम्मेदारियाँ महिलाओं पर अधिक होती हैं, वहां शिक्षक की नौकरी उनके लिए एक वरदान जैसी होती है। शिक्षक का पेशा महिलाओं को वह सम्मान और स्थिरता देता है जिसकी उन्हें जरूरत होती है। यह नौकरी उन्हें घर और कार्य के बीच संतुलन बनाए रखने का अवसर देती है। स्कूल के निश्चित समय, छुट्टियों की सुविधा और बच्चों के साथ एक सकारात्मक वातावरण उन्हें शांति और संतोष प्रदान करता है। जब एक महिला अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बाद खुद भी एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती है, तो वह अपने परिवार के साथ-साथ समाज के बच्चों के भविष्य को भी सँवारने का कार्य करती है।

एक महिला शिक्षक केवल एक विषय की जानकार नहीं होती, वह बच्चों की मार्गदर्शक, सहारा और प्रेरणा भी होती है। बच्चों के मन को समझना, उन्हें प्यार से पढ़ाना, और हर बच्चे के भीतर छिपी प्रतिभा को पहचानना एक महिला शिक्षक की सबसे बड़ी विशेषता होती है। वह बच्चों को डांटने के बजाय उन्हें समझाने में विश्वास रखती है। एक माँ की तरह वह हर विद्यार्थी को अपनी संतान समझकर पढ़ाती है। यही कारण है कि बच्चों को महिला शिक्षक अधिक प्रिय लगती हैं। उनकी बातों में मिठास होती है और उनके व्यवहार में अपनापन होता है।

महिला शिक्षकों का धैर्य, उनकी कोमलता और व्यवहारिक समझ उन्हें इस पेशे के लिए सबसे उपयुक्त बनाती है। वे न केवल पढ़ाने का कार्य करती हैं, बल्कि विद्यालय की व्यवस्था, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद और अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय रहती हैं। एक महिला शिक्षक बच्चों के सर्वांगीण विकास की दिशा में कार्य करती है। वह यह सुनिश्चित करती है कि हर बच्चा आत्मविश्वास से भरा हो, अच्छे संस्कारों के साथ बड़ा हो और समाज में एक अच्छा नागरिक बने।

आजकल कई महिलाएं शादी के बाद या माँ बनने के बाद घर की जिम्मेदारियों में उलझ जाती हैं, लेकिन शिक्षक की नौकरी उन्हें फिर से आत्मनिर्भर और सक्रिय बनाने का माध्यम बनती है। वह सुबह बच्चों को तैयार करती है, खुद विद्यालय जाती है, और समय पर घर लौटती है। स्कूल के समय और घर के काम के बीच एक अच्छा तालमेल बन जाता है। इससे उन्हें न केवल मानसिक संतुलन मिलता है, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता भी प्राप्त होती है। उन्हें अपनी मेहनत की कमाई मिलती है, जिससे उनका आत्मविश्वास और आत्मसम्मान दोनों बढ़ता है।

महिला शिक्षक होने का एक और बड़ा लाभ यह है कि वह समाज में एक आदर्श बन जाती हैं। जब एक गाँव या कस्बे की लड़की यह देखती है कि उनकी दीदी या आंटी स्कूल में पढ़ाने जाती हैं, तो उनके मन में भी शिक्षक बनने की प्रेरणा जागती है। एक महिला शिक्षक अपने कार्य और व्यवहार से समाज की अन्य महिलाओं के लिए उदाहरण बनती है। वह दिखाती हैं कि एक महिला सिर्फ रसोई या घर तक सीमित नहीं है, वह बच्चों के भविष्य की निर्माता भी बन सकती है।

एक महिला शिक्षक जब बच्चों को पढ़ाती है, तो वह हर बच्चे के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करती है। वह जानती है कि हर बच्चा अलग है, और हर बच्चे को अलग तरीके से समझाना पड़ता है। उसके पास धैर्य होता है, सहनशीलता होती है और एक सच्चा मन होता है। वह बच्चों की सफलता में अपनी खुशी ढूंढती है। जब कोई बच्चा परीक्षा में अच्छे अंक लाता है या मंच पर आत्मविश्वास से बोलता है, तो उसे लगता है कि उसकी मेहनत सफल हो गई। यह संतोष और खुशी शायद ही किसी अन्य पेशे में इतनी सच्चाई से मिलती हो।

महिला शिक्षक का यह कार्य सिर्फ स्कूल तक ही सीमित नहीं होता। वह बच्चों के अभिभावकों से भी मिलती है, उन्हें बच्चों की प्रगति की जानकारी देती है, और जरूरत पड़ने पर परामर्श भी देती है। वह समाज और परिवार के बीच एक पुल की तरह काम करती है। एक अच्छा शिक्षक न केवल किताबों का ज्ञान देता है, बल्कि बच्चों को अच्छा इंसान भी बनाता है। और जब यह कार्य एक महिला करती है, तो उसमें संवेदना, अपनापन और ममता और भी अधिक जुड़ जाती है।

सरकारी विद्यालयों में महिला शिक्षकों की संख्या बढ़ना हमारे समाज के लिए शुभ संकेत है। इससे न केवल शिक्षा का स्तर सुधरता है, बल्कि महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ती है। वे अपनी प्रतिभा और ज्ञान से समाज को सशक्त बनाती हैं। सरकार भी अब महिला शिक्षकों को बढ़ावा दे रही है, क्योंकि यह देखा गया है कि जब महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में आती हैं, तो बच्चों के प्रति अनुशासन और संवेदनशीलता दोनों में सुधार होता है। महिलाएं बच्चों के साथ ज्यादा जुड़ाव बना लेती हैं और उन्हें सकारात्मक दिशा में प्रेरित कर सकती हैं।

शिक्षक की नौकरी में सबसे अच्छी बात यह होती है कि इसमें हर दिन कुछ नया होता है। हर दिन नया पाठ, नई गतिविधि, और नई बातें। महिला शिक्षक इन सभी में उत्साह के साथ भाग लेती हैं। उन्हें स्कूल के बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों और प्रधानाचार्य के साथ भी अच्छा तालमेल बनाना होता है। वे सबकी बातें सुनती हैं, समझती हैं और स्कूल के वातावरण को खुशनुमा बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।

कई बार जब बच्चों के माता-पिता व्यस्त होते हैं या शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होते, तब महिला शिक्षक बच्चों की विशेष देखभाल करती हैं। वह न केवल पढ़ाई बल्कि व्यवहार, साफ-सफाई और नैतिक मूल्यों के बारे में भी सिखाती हैं। वह बच्चों को अपनेपन से सुधारती हैं। यही कारण है कि बच्चों को अपनी 'मैम' सबसे प्यारी लगती हैं। वे उनके साथ अपनी बातें साझा करते हैं, उनसे प्रेरणा लेते हैं और उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

महिला शिक्षक का जीवन सरल होते हुए भी महान होता है। वह सुबह तैयार होकर विद्यालय जाती है, बच्चों को सिखाती है, उन्हें जीवन के लिए तैयार करती है और शाम को घर लौटकर अपने परिवार की देखभाल भी करती है। वह हर जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाती है। वह कभी थकती नहीं, क्योंकि उसे पता है कि उसका कार्य केवल एक नौकरी नहीं है, यह सेवा है – देश सेवा, समाज सेवा और मानव सेवा।

महिलाओं को शिक्षक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह न केवल उनके लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक करियर है, बल्कि समाज के निर्माण में भी उनकी भागीदारी सुनिश्चित करता है। जब एक महिला शिक्षिका बनती है, तो वह एक पीढ़ी को सिखाती है, संवारती है और मजबूत बनाती है। यह पेशा उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है, उन्हें एक पहचान देता है और समाज में उनका स्थान ऊँचा करता है।

अंत में यही कहा जा सकता है कि महिला शिक्षक हमारे समाज की रीढ़ हैं। वे शिक्षा के माध्यम से समाज को संवारती हैं, बच्चों को संस्कार देती हैं, और आने वाले कल को बेहतर बनाती हैं। उनका योगदान अमूल्य है। हर महिला जो शिक्षक बनना चाहती है, वह समाज के लिए एक प्रेरणा है। शिक्षक की नौकरी उसके लिए केवल आजीविका का साधन नहीं है, बल्कि यह उसके जीवन का मिशन बन जाता है। ऐसी महिला शिक्षिकाओं को हम सभी का नमन और सम्मान मिलना चाहिए।

 

👉विगत दस वर्षों (अप्रैल, 2016 से मार्च 2025) में नियुक्त शिक्षकों के सम्बन्ध में सूचना उपलब्ध कराये जाने विषयक।‌

https://www.updatemarts.com/2025/04/2016-2025.html


👉म्यूच्यूअल ट्रांसफर अपडेट

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_728.html


👉फैसला: निजी स्कूलों को फीस वृद्धि से पहले अनुमति लेनी होगी

https://www.updatemarts.com/2025/04/blog-post_805.html


Monday, April 28, 2025

पहले देश, फिर मांगें: पहलगाम शहीदों को श्रद्धांजलि और राष्ट्रहित का संकल्प

 

पहले देश, फिर मांगें: पहलगाम शहीदों को श्रद्धांजलि और राष्ट्रहित का संकल्प......

 



देश से बड़ा कुछ नहीं होता। जब भी कोई मुश्किल समय आता है, हमें अपने निजी हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को सबसे पहले रखना चाहिए। हाल ही में जो दर्दनाक घटना हमारे देश में घटी, उसने पूरे देशवासियों को सोचने पर मजबूर कर दिया। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा पहलगाम में किए गए भीषण आतंकी हमले में हमारे 27 निर्दोष भारतीय भाई-बहनों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस हादसे ने देश को गहरे शोक और आक्रोश से भर दिया है। इस कठिन समय में, अटेवा संगठन ने एक बहुत ही समझदारी भरा फैसला लिया है। उन्होंने 1 मई को दिल्ली के जंतर मंतर पर पुरानी पेंशन बहाली के लिए प्रस्तावित धरना स्थगित कर दिया है। यह निर्णय न केवल संवेदनशीलता दिखाता है बल्कि राष्ट्र के प्रति सच्ची निष्ठा का प्रमाण भी है।

जब देश संकट में हो, तो अपने हक और अधिकारों की लड़ाई को कुछ समय के लिए रोकना ही असली देशभक्ति है। देश रहेगा, तभी हम रहेंगे। अगर हमारे देश की सुरक्षा खतरे में होगी, तो हमारे अधिकार, हमारी सुविधाएं, हमारी पेंशन, सब कुछ अर्थहीन हो जाएगा। सेना में कार्यरत लेफ्टिनेंट विनय नरवाल भी इस हमले में वीरगति को प्राप्त हुए। सेना में आज भी पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू है, लेकिन पेंशन का लाभ तभी लिया जा सकता है जब व्यक्ति जीवित रहे। शांति और सुरक्षा के बिना न पेंशन का कोई मतलब रह जाता है और न ही किसी सुविधा का।

पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने हमें यह सिखाया है कि सबसे पहले देश की रक्षा जरूरी है। हमारे नागरिकों की जान बचाना जरूरी है। हमारा भविष्य तभी सुरक्षित है जब हमारा देश सुरक्षित है। अगर देश के नागरिक असुरक्षित होंगे तो किसी भी प्रकार की मांग, आंदोलन, सुविधाएं सब व्यर्थ हैं। इसलिए इस समय हम सबकी पहली प्राथमिकता देश की एकता और अखंडता को बचाना है। हमें यह समझना चाहिए कि व्यक्तिगत हितों की लड़ाई बाद में लड़ी जा सकती है, लेकिन राष्ट्रहित सर्वोपरि है।

आज भारत सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्यवाही का ऐलान किया है। यह समय है कि हम सब भारतवासियों को सरकार और सुरक्षाबलों का पूर्ण समर्थन करना चाहिए। आतंकवाद का सामना एकजुट होकर ही किया जा सकता है। हमें अपने दुख, अपनी मांगों को कुछ समय के लिए भूलकर शहीदों के परिवारों के साथ खड़ा होना चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि जो लोग देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर देते हैं, उनके कारण ही हम सुरक्षित रह पाते हैं।

शिक्षक, कर्मचारी, सैनिक, किसान, व्यापारी — सभी देश की उन्नति में अपना योगदान देते हैं। लेकिन इन सबका योगदान तभी अर्थपूर्ण होता है जब देश का वातावरण शांत और सुरक्षित हो। कोई भी विकास तभी संभव है जब देश की सीमाएं सुरक्षित हों, जब देश के भीतर शांति हो। इसलिए इस समय जरूरी है कि हम राष्ट्रहित को प्राथमिकता दें।

जब देश की रक्षा में लगे जवान अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं, तब हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपने छोटे-छोटे हितों को भूलकर राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए काम करें। इस समय आंदोलन, धरना, प्रदर्शन का समय नहीं है। यह समय है देश के साथ खड़े होने का, आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का।

आज हमारे 27 भाई-बहन आतंकी हमले में शहीद हो गए। उनके घरों में मातम पसरा है। उनके परिवारों का दुख शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उन परिवारों का दर्द समझना और उनके साथ खड़ा होना हम सबका नैतिक दायित्व है। जब देश पर हमला होता है तो वह केवल एक जगह या कुछ लोगों पर हमला नहीं होता, वह हम सब पर हमला होता है।

अटेवा द्वारा धरना स्थगित करने का निर्णय एक उदाहरण है कि कैसे देशहित को निजी मांगों से ऊपर रखा जा सकता है। हमें इस निर्णय से प्रेरणा लेकर हमेशा यह याद रखना चाहिए कि देश सबसे पहले है। अगर देश सुरक्षित है तो हम अपनी सभी मांगें भविष्य में पूरी कर सकते हैं। लेकिन अगर देश ही सुरक्षित नहीं रहा तो कोई आंदोलन, कोई मांग, कोई सुविधा बच नहीं पाएगी।

देशभक्ति केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराने से पूरी नहीं होती। असली देशभक्ति तो तब होती है जब हम कठिन समय में अपने निजी हितों को त्याग कर देश के साथ खड़े होते हैं। जब हम शहीदों के बलिदान को याद करते हैं और उनके सपनों का भारत बनाने के लिए काम करते हैं।

आज आतंकवाद केवल गोली चलाकर नहीं लड़ रहा, बल्कि वह हमारे समाज में डर फैलाकर हमें तोड़ने की कोशिश कर रहा है। अगर हम अपने छोटे-छोटे स्वार्थों में उलझकर एकता भूल जाएंगे तो आतंकवादी अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे। लेकिन अगर हम एकजुट रहेंगे, अपने मतभेदों को भूलकर देश के साथ खड़े रहेंगे तो कोई भी ताकत हमें हरा नहीं सकती।

पहलगाम के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनका बलिदान व्यर्थ न जाने दें। हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम हर परिस्थिति में देश को सर्वोपरि रखेंगे। देशहित में जो भी त्याग करना पड़े, हम करेंगे।

हमें यह भी समझना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई एक दिन की नहीं है। यह एक लंबी लड़ाई है जिसमें धैर्य, एकता और समर्पण की जरूरत है। हमें अपने सैनिकों, अपने सुरक्षाबलों पर भरोसा रखना चाहिए और उन्हें अपना पूर्ण समर्थन देना चाहिए।

जब देश सुरक्षित रहेगा, जब देश में अमन रहेगा, तब ही हम अपने हक और अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं। तब ही हम पेंशन बहाली की लड़ाई को भी सही तरीके से आगे बढ़ा सकते हैं।

आज का दिन हमें यह सिखाता है कि पहले देश, फिर अन्य मांगें। राष्ट्र सबसे पहले। व्यक्तिगत हित बाद में।

आइए, हम सब मिलकर पहलगाम के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करें और यह संकल्प लें कि हम हर हाल में देश के साथ खड़े रहेंगे। हम आतंकवाद के खिलाफ एकजुट रहेंगे। हम अपने निजी स्वार्थों को देशहित के सामने छोटा मानेंगे।

भारत माता की जय! जय हिंद! वंदे मातरम्!



 

👉जनपद के भीतर BEO के बदले विकास खण्ड

https://www.updatemarts.com/2025/04/beo_28.html

👉हर सप्ताह परखी जाएगी विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता

👉समस्त डायट प्राचार्य, AD BASIC, BSA, BEO, DCs, SRG, ARP एवं शिक्षक संकुल कृपया ध्यान दें

👉95 हजार विद्यार्थियों के अभिभावकों के खातों में शीघ्र जाएगी यूनिफॉर्म की रकम https://basicshikshakhabar.com/2025/04/ff-715/


 


भविष्य के स्कूलों में एआई टीचर का आगमन: शिक्षक और मानवता का महत्व

 


हमारा और हमारे विद्यालयों का भविष्य अब तेजी से बदल रहा है। आने वाला समय ऐसा होगा, जब हमारे स्कूलों में इंसान नहीं, बल्कि एआई टीचर पढ़ाएंगे। एआई टीचर यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बने शिक्षक होंगे, जिन्हें न सैलरी देनी होगी, न भत्ते, न ही पेंशन देना पड़ेगा। ये टीचर कभी छुट्टी नहीं मांगेंगे, बीमार नहीं पड़ेंगे और हमेशा समय पर पढ़ाई कराएंगे। लेकिन क्या ये एआई टीचर बच्चों को वह सच्चा मार्गदर्शन दे पाएंगे जो एक इंसानी शिक्षक देता है? आज के शिक्षक बच्चों को केवल पढ़ाई ही नहीं कराते, बल्कि उन्हें संस्कार, समझदारी और जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। जब बच्चे किसी परेशानी में होते हैं तो एक इंसानी शिक्षक उन्हें समझता है, सहारा देता है। लेकिन एआई टीचर केवल मशीन की तरह काम करेंगे। वे बच्चों के दुख, खुशी, डर या सपनों को नहीं समझ पाएंगे। सरकारों के लिए एआई टीचर सुविधाजनक हो सकते हैं क्योंकि इससे पैसे बचेंगे, लेकिन क्या इससे बच्चों का सही विकास हो पाएगा? गाँवों और कस्बों में आज भी बच्चे अपने शिक्षकों से जीवन के बड़े सबक सीखते हैं। अगर भविष्य में केवल मशीनें बच्चों को पढ़ाएंगी, तो बच्चों में संवेदनशीलता, करुणा और समझ कम हो सकती है। वे केवल जानकारी के भंडार बन जाएंगे, पर इंसानी भावना से खाली हो सकते हैं। स्कूल सिर्फ पढ़ाई की जगह नहीं हैं, वे बच्चों के व्यक्तित्व को संवारने का स्थान हैं। एक इंसानी शिक्षक अपने अनुभव, ज्ञान और प्यार से बच्चों को जीवन का सही रास्ता दिखाता है। एआई टीचर केवल तय कार्यक्रम के अनुसार पढ़ाएंगे। वे बच्चों के सवालों के पीछे छुपी जिज्ञासा को नहीं समझ पाएंगे, न ही बच्चों के विचारों को उड़ान दे पाएंगे। इसलिए तकनीक का उपयोग हमें शिक्षकों की सहायता के लिए करना चाहिए, न कि उनकी जगह लेने के लिए। आज डिजिटल बोर्ड, ऑनलाइन क्लास जैसे साधनों ने शिक्षा को आसान बनाया है, लेकिन इंसानी शिक्षक की जगह कभी नहीं ले सकते। इंसानी शिक्षक बच्चों की आँखों से उनका मन पढ़ सकते हैं, उनकी समस्याएं समझ सकते हैं। एक मशीन कभी यह नहीं कर सकती। अगर पूरी शिक्षा मशीनों के हाथ में चली गई तो आने वाली पीढ़ी संवेदनहीन हो सकती है। सोचने, समझने और महसूस करने की शक्ति कम हो सकती है। इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि शिक्षा केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि अच्छा इंसान बनाना है। शिक्षक वह दीपक है जो बच्चों के जीवन में उजाला करता है। मशीनें चाहे जितनी तेज हो जाएं, लेकिन वे उस दीपक की जगह नहीं ले सकतीं। अगर एआई टीचर आएंगे तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वे केवल सहायक बनें, शिक्षक नहीं। हमारे विद्यालयों का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब इंसान और तकनीक दोनों साथ मिलकर काम करेंगे। शिक्षकों का सम्मान करना जरूरी है क्योंकि वे समाज का निर्माण करते हैं। एक मशीन कभी समाज नहीं बना सकती। शिक्षा का मकसद केवल नौकरी पाना नहीं है, बल्कि एक अच्छा इंसान बनाना है। इसलिए हमें अपने विद्यालयों में एआई टीचर को सहायक के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए, मुख्य शिक्षक के रूप में नहीं। हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि अपने असली शिक्षकों का सम्मान करें और तकनीक का सही उपयोग करें। भविष्य तभी उज्ज्वल रहेगा जब मानवता और ज्ञान साथ-साथ चलेंगे। शिक्षक जिंदाबाद, मानवता जिंदाबाद।


👉शिक्षा निदेशालय में भीषण आग पांच हजार फाइलें जलकर राख, घटना की जांच के लिए समिति गठित

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👉निकली शिक्षक पदों हेतु नौकरियां, करें आवेदन, देखें विज्ञप्ति

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👉बिना सूचना/बिना अवकाश के विद्यालय से दीर्घावधि से अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने के सम्बन्ध में ।

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👉शिक्षकों ने अपराह्न 1.30 के पहले छोड़ा स्कूल, तो होगी कार्यवाही

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टीचर्स सेल्फ केयर टीम का शानदार सहयोग अभियान: 20 दिवंगत परिवारों को 9.61 करोड़ से अधिक की मदद

 

                                              


शानदार, जबरदस्त, जिंदाबाद! सहयोग अलर्ट 62 के तहत एक बार फिर से मदद का रिकॉर्ड बन गया है। सम्मानित साथियों, आप सभी ने मिलकर जो कार्य किया है, वह वाकई में प्रशंसनीय है। आपने अपने 20 दिवंगत साथियों के परिवारों को 9 करोड़ 61 लाख रुपये से अधिक की सहायता राशि पहुँचाई है। प्रत्येक परिवार को औसतन 48 लाख रुपये से अधिक की मदद मिली है, जो अपने आप में एक बहुत बड़ा काम है। इस अद्भुत सहायता के लिए आप सभी दानवीर साथियों का दिल से हार्दिक धन्यवाद किया जाता है।

यह सब आपके अथक प्रयासों, समर्पण और सेवा भावना के कारण ही संभव हो पाया है। ब्लॉक टीमों ने स्थानीय स्तर पर सहयोग जुटाया, जिला टीमों ने समन्वय किया, रिसेट प्रभारी ने सभी जानकारी को एकत्रित कर सही दिशा में भेजा, प्रदेश आईटी सेल ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया, प्रदेश टीम ने पूरे अभियान को नेतृत्व दिया और सह संस्थापकों ने मार्गदर्शन किया। सभी की मेहनत और ईमानदारी से ही यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की गई।

इस पूरे अभियान के दौरान सभी सदस्यों ने यह सिद्ध कर दिया कि अगर इरादा नेक हो और टीम भावना मजबूत हो, तो कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं होता। दिवंगत साथियों के परिवारों को समय पर आर्थिक सहायता पहुँचाकर आपने न सिर्फ उनकी आर्थिक परेशानी को कम किया बल्कि उन्हें यह भी अहसास कराया कि शिक्षक समाज उनके दुख में साथ खड़ा है।

सहयोग अलर्ट 62 का यह प्रयास एक प्रेरणा बन गया है। इससे पहले भी कई सहयोग कार्यक्रम चलाए गए थे, लेकिन इस बार जो समर्पण और उत्साह दिखा, वह अद्वितीय था। सभी दानदाता साथियों ने दिल खोलकर सहयोग किया, चाहे वह छोटा योगदान रहा हो या बड़ा। सबका उद्देश्य एक ही था — दिवंगत साथियों के परिवारों की मदद करना और उनका भविष्य सुरक्षित बनाना।

दान देने वालों में वरिष्ठ शिक्षक भी थे और नए शिक्षक भी। कुछ शिक्षकों ने अपनी एक महीने की तनख्वाह तक दान कर दी। कुछ साथियों ने अपने परिवार के सदस्यों से भी इस नेक कार्य के लिए सहयोग जुटाया। छात्र-छात्राओं ने भी अपने छोटे-छोटे दान से इस अभियान में भाग लिया। इस प्रकार यह अभियान जन-आंदोलन जैसा बन गया।

ब्लॉक टीमों ने गांव-गांव जाकर शिक्षकों से संपर्क किया, उन्हें इस अभियान की जानकारी दी और सहयोग के लिए प्रेरित किया। जिला टीमों ने पूरे जिले में विभिन्न स्तर पर बैठकों का आयोजन किया और दान एकत्र किया। रिसेट प्रभारियों ने तकनीकी रूप से हर जानकारी को सही समय पर सही स्थान तक पहुँचाया। प्रदेश आईटी सेल ने फंड एकत्र करने, रिकॉर्ड रखने और वितरण व्यवस्था को पारदर्शी बनाया। प्रदेश टीम ने लगातार निगरानी रखी और किसी भी समस्या को तुरंत सुलझाया। सह संस्थापकों ने दिशा और समर्थन देकर पूरे अभियान को गति दी।

इन सभी प्रयासों का नतीजा यह रहा कि बहुत कम समय में इतनी बड़ी सहायता राशि एकत्र की जा सकी। दिवंगत परिवारों को जब यह मदद पहुँची तो उनकी आँखों में आभार के आंसू थे। उन्होंने महसूस किया कि शिक्षक समाज उन्हें भूला नहीं है। यह सहायता केवल धनराशि नहीं थी, बल्कि प्यार, सम्मान और साथ का प्रतीक थी।

टीचर्स सेल्फ केयर टीम का यह प्रयास यह भी दिखाता है कि शिक्षकों में केवल पढ़ाई का ही नहीं, बल्कि सेवा और सामाजिक उत्तरदायित्व का भी भाव होता है। सहयोग अलर्ट 62 से यह सिद्ध हुआ कि शिक्षक समुदाय जब ठान ले तो असंभव को भी संभव कर सकता है।

यह सहायता अभियान न केवल एक आर्थिक सहयोग था बल्कि एक सामाजिक संदेश भी था कि दुःख की घड़ी में हम अपने साथियों को अकेला नहीं छोड़ते। जब एक परिवार पर दुख आता है तो पूरा शिक्षक समाज उसे अपने परिवार जैसा समझता है और उसे सहारा देता है।

यह अभियान भविष्य में भी प्रेरणा का स्रोत रहेगा। टीचर्स सेल्फ केयर टीम ने यह निर्णय लिया है कि इस प्रकार के सहयोग अलर्ट आगे भी जारी रहेंगे। हर वर्ष दिवंगत साथियों के परिवारों के लिए विशेष सहायता कार्यक्रम चलाए जाएंगे ताकि उनका भविष्य सुरक्षित रह सके। इसके लिए एक स्थायी राहत कोष भी बनाने की योजना है जिसमें सभी शिक्षक नियमित रूप से योगदान देंगे।

भविष्य में जरूरतमंद परिवारों के बच्चों की शिक्षा में सहयोग करने के लिए छात्रवृत्ति कार्यक्रम भी चलाया जाएगा। बीमार परिवारजनों के लिए स्वास्थ्य बीमा सहायता की भी व्यवस्था की जाएगी। मानसिक स्वास्थ्य और परामर्श सेवाएँ भी शुरू की जाएँगी ताकि परिवारजनों को भावनात्मक सहारा मिल सके।

यह पूरा अभियान एकता, समर्पण और सहयोग की मिसाल बन गया है। इसने यह दिखा दिया कि जब हम सब मिलकर चलते हैं तो कोई भी बाधा हमारे रास्ते को नहीं रोक सकती।

सहयोग अलर्ट 62 में मिली सफलता के बाद सभी टीमों ने तय किया है कि अब हर ब्लॉक, हर जिला और हर प्रदेश स्तर पर सहयोग समितियाँ बनाई जाएंगी जो समय-समय पर सहयोग एकत्र करेंगी और जरूरतमंदों तक पहुँचाएंगी।

टीचर्स सेल्फ केयर टीम का उद्देश्य केवल सहायता देना नहीं है, बल्कि दिवगंत परिवारों को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करना है। उन्हें यह भरोसा दिलाना है कि शिक्षक समाज उनका हमेशा साथ देगा।

इस अभियान में शामिल हर शिक्षक, हर दानदाता, हर ब्लॉक टीम, जिला टीम, रिसेट प्रभारी, प्रदेश आईटी सेल, प्रदेश टीम और सह संस्थापक एक सच्चे नायक हैं। आप सभी ने एक ऐसा उदाहरण पेश किया है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन जाएगा।

सहयोग अलर्ट 62 के तहत जितनी बड़ी राशि एकत्र हुई, वह सिर्फ संख्या नहीं है। वह हर उस भावना का प्रतीक है जो आपने अपने दिवंगत साथियों के लिए दिखाई है। यह विश्वास का प्रतीक है, सेवा भाव का प्रतीक है और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी का प्रतीक है।

आप सभी का समर्पण और सहयोग एक मिसाल बन चुका है। आपने यह दिखाया है कि शिक्षक केवल किताबों के पाठ नहीं पढ़ाते, बल्कि सेवा, करुणा और भाईचारे का पाठ भी पढ़ाते हैं। आपने यह दिखाया कि शिक्षकों का समाज सच्चे अर्थों में एक परिवार है।

भविष्य में भी इसी भावना के साथ हम सब मिलकर आगे बढ़ेंगे। हम हर जरूरतमंद साथी और उनके परिवार के लिए हमेशा तैयार रहेंगे।

एक बार फिर से आप सभी दानवीरों को, ब्लॉक टीमों को, जिला टीमों को, रिसेट प्रभारियों को, प्रदेश आईटी सेल को, प्रदेश टीम को और सह संस्थापकों को हार्दिक धन्यवाद और साधुवाद।

आप सभी के सहयोग और समर्पण से ही यह ऐतिहासिक कार्य संभव हो पाया है।

आप सभी को एक बार फिर से दिल से धन्यवाद!

शानदार! जबरदस्त! जिंदाबाद!

👉अंतर्जनपदीय एवं अंतःजनपदीय पारस्परिक स्थानांतरण में रजिस्ट्रेशन की तिथि व आवेदन का प्रिंट करने की तारीख बढ़ाई

👉आतंकवाद से जुड़ी अनुचित टिप्पणी पर शिक्षक को नोटिस जारी


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Saturday, April 26, 2025

TSCT: संकट में शिक्षकों का सच्चा साथी….

 

TSCT एक ऐसा संगठन है जो शिक्षकों की मदद के लिए बनाया गया है। जब कोई शिक्षक साथी किसी परेशानी में होता है, जैसे कि बीमारी, दुर्घटना या अचानक निधन हो जाता है, तब TSCT उसकी और उसके परिवार की सहायता करता है। TSCT का पूरा नाम Teachers Social Contribution Team होता है। इस संगठन का काम है कि जब भी किसी शिक्षक को मदद की जरूरत हो, तो तुरंत सहायता दी जाए। अगर कोई शिक्षक साथी दुनिया से चला जाता है, तो उसके परिवार को आर्थिक मदद दी जाती है ताकि वे अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें।

TSCT में कई शिक्षक भाई-बहन जुड़े हुए हैं। सभी साथी समय-समय पर अपनी तरफ से छोटा-छोटा सहयोग करते हैं। इस तरह जब भी कोई मुसीबत आती है, तो संगठन के पास पहले से पैसा जमा होता है और तुरंत मदद दी जा सकती है। TSCT का नियम है कि मदद देने में कोई देरी नहीं होनी चाहिए, ताकि परेशान परिवार को जल्दी सहारा मिल सके। संगठन के सभी काम पारदर्शी तरीके से होते हैं यानी जो भी सहयोग आता है या दिया जाता है, उसकी पूरी जानकारी सभी सदस्यों को दी जाती है।

TSCT में कोई भी शिक्षक भाई-बहन शामिल हो सकता है। इसमें कोई जबरदस्ती नहीं होती। जो अपनी इच्छा से समाज सेवा करना चाहते हैं, वही इसमें जुड़ते हैं। संगठन के पास एक मोबाइल ऐप भी है, जिससे मदद भेजना और जानकारी लेना आसान हो जाता है। आज के समय में जब सब कुछ मोबाइल से हो रहा है, TSCT ने भी अपनी सेवा को तेज और आसान बना दिया है।

यह संगठन इसलिए भी खास है क्योंकि यहां किसी सरकारी मदद का इंतजार नहीं करना पड़ता। जब कोई संकट आता है, तो TSCT तुरंत मदद कर देता है। शिक्षक समाज को मजबूत बनाने के लिए यह संगठन बहुत जरूरी है। जब शिक्षकों को सुरक्षा और सहारा मिलेगा, तभी वे भी बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकेंगे और समाज को आगे बढ़ा सकेंगे।

TSCT में शामिल होने से हर सदस्य को यह भरोसा होता है कि अगर भविष्य में उसे भी कोई परेशानी आई, तो संगठन उसके साथ खड़ा रहेगा। संगठन सभी सदस्यों का सम्मान भी करता है और समय-समय पर सामाजिक कार्यक्रम जैसे रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य जांच, सम्मान समारोह आदि भी कराता है।

अब तक TSCT ने कई ऐसे परिवारों की मदद की है जिनके घर के सदस्य शिक्षक साथी अचानक बीमार हुए या दुनिया से चले गए। कई बार ऐसे दुखद समय में सरकारी मदद आने में देर लगती है, लेकिन TSCT बिना देरी के मदद करता है। बहुत से शिक्षक साथी कहते हैं कि TSCT ने मुश्किल समय में उन्हें एक परिवार की तरह सहारा दिया। सभी शिक्षक मिलकर जब थोड़ा-थोड़ा सहयोग करते हैं, तो बड़ी मदद बन जाती है। यही TSCT की असली ताकत है।

भविष्य में TSCT और भी बड़े स्तर पर काम करना चाहता है। संगठन की योजना है कि जरूरतमंद शिक्षकों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति दी जाए, आवासीय सहायता मिले, पेंशन न पाने वाले शिक्षकों को मदद दी जाए और सभी के लिए स्वास्थ्य बीमा भी कराया जाए। TSCT यह भी चाहता है कि शिक्षकों के लिए एक ऐसा माहौल बने जिसमें वे खुद को सुरक्षित महसूस करें और बिना किसी डर के अपना जीवन आगे बढ़ा सकें।

TSCT मानता है कि शिक्षक केवल पढ़ाने का काम ही नहीं करते, बल्कि समाज के निर्माण में भी बड़ा योगदान देते हैं। इसलिए TSCT ने कई सामाजिक काम भी किए हैं जैसे गरीब बच्चों को किताबें देना, पेड़ लगाना और लड़कियों की पढ़ाई को बढ़ावा देना। ऐसे काम करके TSCT यह बताता है कि शिक्षक समाज के हर क्षेत्र में बदलाव ला सकते हैं।

आज TSCT उन सभी शिक्षकों के लिए एक उम्मीद बन चुका है जो किसी संकट में पड़ जाते हैं। यह संगठन न केवल आर्थिक सहायता करता है, बल्कि भावनात्मक रूप से भी लोगों का सहारा बनता है। जब कोई शिक्षक दुखी होता है, तो TSCT उसे यह भरोसा दिलाता है कि वह अकेला नहीं है। संगठन का हर सदस्य एक दूसरे के साथ खड़ा रहता है।

अगर हम चाहते हैं कि शिक्षक समाज मजबूत हो, तो हमें भी ऐसे संगठनों को सहयोग देना चाहिए। जो सहयोग हम आज करेंगे, वही कल हमारे लिए एक मजबूत सुरक्षा बन सकता है। इसीलिए हमें समय रहते TSCT से जुड़ना चाहिए और इसमें अपना योगदान देना चाहिए। संगठन की ताकत सभी सदस्यों के सहयोग से बढ़ती है। जब सभी मिलकर साथ चलते हैं, तो कोई भी मुश्किल हमें हरा नहीं सकती। आज का छोटा सा योगदान कल किसी के जीवन में बहुत बड़ा सहारा बन सकता है।

आइए, हम सब मिलकर TSCT को और मजबूत बनाएं। एक दूसरे की मदद करें और शिक्षक समाज को गर्व के साथ आगे बढ़ाएं। जब हम मिलकर काम करेंगे, तभी हमारा समाज और देश भी मजबूत बनेगा। TSCT हमारे लिए एक परिवार की तरह है, जिसमें हर सदस्य का सुख-दुख बांटा जाता है। इस परिवार को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी हम सबकी है।


👉कानपुर देहात: स्कूल से कोल्डड्रिंक लाते समय छात्र की ट्रैक्टर से कुचलकर मौत, परिवार में मातम

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कानपुर देहात: स्कूल से कोल्डड्रिंक लाते समय छात्र की ट्रैक्टर से कुचलकर मौत, परिवार में मातम

 



कानपुर देहात जिले के अमराहत थाना क्षेत्र के सिहुरा गाँव में शुक्रवार को एक बेहद दुखद और दिल को झकझोर देने वाली घटना सामने आई। गाँव के साविलियन विद्यालय के आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र हर्ष कुमार की तेज रफ्तार ट्रैक्टर से कुचलकर मौके पर ही मौत हो गई। हर्ष कुमार रोज की तरह स्कूल गया था। स्कूल में पढ़ाई के बीच उसके शिक्षक ने उसे कोल्डड्रिंक मंगाने के लिए गाँव की दुकान पर भेजा। हर्ष दुकान से कोल्डड्रिंक लेकर जैसे ही लौट रहा था, तभी गाँव के काली माता मंदिर मोड़ के पास पीछे से आ रहे एक तेज रफ्तार ट्रैक्टर ने उसे रौंद दिया। हादसा इतना भयानक था कि हर्ष की मौके पर ही मौत हो गई।

गाँव वालों ने हादसा होते ही शोर मचाया और दौड़कर हर्ष के घरवालों को सूचना दी। घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थीं, इसलिए सभी लोग खुशी के माहौल में थे, लेकिन यह खबर सुनते ही घर में कोहराम मच गया। हर्ष की माँ निर्मला देवी, बहन कुशमा देवी, वीरवती, कमला और हसना आदि रोते-बिलखते घटनास्थल पर पहुँचीं। माँ के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। बहनों की चीख-पुकार से पूरा माहौल गमगीन हो गया। पूरे गाँव में शोक की लहर दौड़ गई। जो घर शादी के गीतों से गूंज रहा था, वहाँ अब मातम पसरा हुआ है।

हर्ष कुमार अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। परिवार में उसकी सबसे बड़ी बहन गुनवती की पहले ही शादी हो चुकी थी। अब छोटी बहन कुशमा की शादी 5 मई को होनी थी। घर में शादी की तैयारियाँ जोरों पर थीं। रिश्तेदार बुलाए जा रहे थे, घर में हल्दी और मेहंदी की तैयारियाँ चल रही थीं, लेकिन इस हादसे ने सारी खुशियाँ छीन लीं। अब घर में सिर्फ आँसू और मातम रह गया है। परिवार वालों का कहना है कि हर्ष बहुत होशियार और समझदार लड़का था। वह पढ़ाई में भी अच्छा था और अपने माता-पिता का सपना था कि वह बड़ा होकर कुछ बनकर उनका नाम रोशन करेगा।

हादसे के बाद ट्रैक्टर चालक गाड़ी छोड़कर मौके से फरार हो गया। ग्रामीणों ने ट्रैक्टर को घेर लिया और तुरंत पुलिस को सूचना दी। थाना प्रभारी सुरजीत सिंह दल बल के साथ मौके पर पहुँचे। उन्होंने हर्ष के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया और ट्रैक्टर को कब्जे में ले लिया। पुलिस ने ट्रैक्टर चालक की पहचान कर ली है और उसकी तलाश में दबिश दे रही है। थाना प्रभारी ने कहा कि जल्द ही आरोपी चालक को गिरफ्तार कर लिया जाएगा और उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी।

हर्ष के पिता शिवसागर निषाद और गाँव के अन्य लोगों ने बताया कि साविलियन विद्यालय में शिक्षक अक्सर बच्चों को स्कूल के काम के अलावा निजी काम के लिए भी भेजते हैं। कभी चाय मंगवाते हैं, कभी कोल्डड्रिंक और कभी अन्य सामान। इसी तरह शुक्रवार को भी शिक्षक ने हर्ष को कोल्डड्रिंक लाने के लिए भेजा था। यदि शिक्षक बच्चों को निजी काम के लिए बाहर न भेजते तो शायद यह हादसा टल सकता था और हर्ष आज जीवित होता। गाँव वालों ने शिक्षकों के इस गैरजिम्मेदाराना रवैये पर गहरी नाराजगी जताई है और दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की माँग की है।

राजपुर खंड शिक्षा अधिकारी संजय गुप्ता ने कहा कि इस पूरे मामले की जाँच कराई जाएगी। यदि जाँच में शिक्षक दोषी पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने कहा कि स्कूल में पढ़ाई के समय बच्चों से निजी काम करवाना नियमों के खिलाफ है। बच्चों को स्कूल में सिर्फ पढ़ाई और गतिविधियों में ही लगाया जाना चाहिए। इस मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है और दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।

गाँव के बुजुर्गों और समाज के अन्य लोगों ने भी इस दुखद हादसे पर दुख जताया और कहा कि स्कूल शिक्षा का मंदिर होता है। वहाँ बच्चों से सामान मंगवाना या निजी काम करवाना बहुत गलत है। इस तरह की घटनाएँ बच्चों की जान के लिए खतरा बन सकती हैं। बच्चों को सुरक्षित माहौल देना सभी शिक्षकों और स्कूल प्रशासन की जिम्मेदारी है। यदि शिक्षक ही बच्चों की सुरक्षा को लेकर लापरवाह रहेंगे तो अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने से डरने लगेंगे।

गाँव में अभी भी मातम पसरा हुआ है। हर कोई हर्ष की मौत पर दुखी है। गाँव के लोग हर्ष के परिवार को ढांढस बंधाने उनके घर पहुँच रहे हैं, लेकिन कोई भी शब्द उनके दुख को कम नहीं कर पा रहा। माँ-बाप की आँखों में आँसू और दिल में अपने बेटे को खोने का दर्द साफ नजर आ रहा है। बहन कुशमा, जिसकी शादी की तैयारियाँ चल रही थीं, अब भाई के बिना कैसे शादी करेगी, यह सोचकर हर किसी की आँखें भर आ रही हैं।

पुलिस का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्यवाही की जाएगी। चालक को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर न्याय दिलाने की कोशिश की जाएगी। वहीं शिक्षा विभाग की ओर से भी जाँच शुरू कर दी गई है। गाँव के लोग भी इस मामले में न्याय की माँग कर रहे हैं। उनका कहना है कि बच्चों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वालों को सख्त सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई और मासूम बच्चा ऐसी लापरवाही का शिकार न हो।

यह हादसा पूरे समाज के लिए एक बड़ा सबक है। बच्चों को स्कूल भेजने का मतलब है कि वे सुरक्षित रहेंगे और पढ़ाई करेंगे, न कि कि वे किसी निजी काम में भेजे जाएंगे। बच्चों की सुरक्षा को सबसे ऊपर रखना चाहिए। इस घटना से सबको यह सीख लेनी चाहिए कि बच्चों के साथ कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। किसी भी कीमत पर बच्चों से गैरशैक्षणिक कार्य नहीं करवाना चाहिए।

हर्ष कुमार की असमय मौत ने पूरे गाँव, जिले और समाज को झकझोर कर रख दिया है। उसकी मासूम मुस्कान, उसके सपने और उसके माता-पिता की उम्मीदें सब कुछ एक झटके में खत्म हो गईं। अब सिर्फ उसकी यादें रह गई हैं, जो उसके परिवार और गाँव वालों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी। हर्ष की मौत ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम अपने बच्चों को वाकई सुरक्षित माहौल दे पा रहे हैं।

इस दुखद घटना से यह भी साफ हो गया है कि स्कूलों में बच्चों के अधिकारों का सम्मान करना कितना जरूरी है। शिक्षा का अधिकार सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि बच्चों की सुरक्षा और गरिमा का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए। इस तरह की घटनाएँ रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए और उनका पालन कड़ाई से होना चाहिए।

आज हर्ष कुमार हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी मौत एक सवाल छोड़ गई है - क्या हम भविष्य में अपने बच्चों को सुरक्षित और सम्मानपूर्ण माहौल दे पाएंगे? इस सवाल का जवाब हमें ढूँढना ही होगा। प्रशासन, शिक्षा विभाग, स्कूलों के शिक्षक और समाज को मिलकर यह संकल्प लेना चाहिए कि अब कोई भी बच्चा स्कूल के दौरान ऐसी लापरवाही का शिकार न हो।

हर्ष कुमार की आत्मा को शांति मिले और उसके परिवार को इस असीम दुःख को सहने की शक्ति मिले। यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।





सोशल मीडिया पोस्ट से फंसा सरकारी शिक्षक, पहलगाम हमले को बताया प्रोपेगेंडा, पुलिस ने किया गिरफ्तार


पहुलगाम में 22 अप्रैल 2025 का आतंकी हमला – बायसरन पार्क में निर्दोष हिंदू पर्यटकों की हत्या


अंतर्जनपदीय म्यूच्यूअल ट्रांसफर स्पेशल
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सोशल मीडिया पोस्ट से फंसा सरकारी शिक्षक, पहलगाम हमले को बताया प्रोपेगेंडा, पुलिस ने किया गिरफ्तार





हाल ही में एक सरकारी शिक्षक का मामला सामने आया है, जो अपने सोशल मीडिया स्टेटस के कारण बड़ी मुसीबत में फंस गया है। शिक्षक ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले को एक "प्रोपेगेंडा" बताया था। इस बयान को सोशल मीडिया पर डालते ही यह तेजी से वायरल हो गया और पुलिस तक मामला पहुँच गया। पुलिस का कहना है कि इस तरह की पोस्ट न केवल समाज में शांति भंग कर सकती है, बल्कि आतंकियों की सोच को समर्थन भी दे सकती है। पुलिस ने इस शिक्षक को तुरंत गिरफ्तार कर लिया। वहीं शिक्षा विभाग ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए शिक्षक को निलंबित कर दिया है।

बताया जा रहा है कि शिक्षक ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक स्टेटस डाला था, जिसमें पहलगाम में हुए हमले को फर्जी और योजनाबद्ध बताया गया था। शिक्षक ने लिखा था कि यह सब एक साजिश है और लोगों को गुमराह करने के लिए फैलाया जा रहा है। जैसे ही यह स्टेटस सामने आया, लोगों में नाराजगी फैल गई। कई लोगों ने इस पर आपत्ति जताई और तुरंत पुलिस को इसकी सूचना दी। पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी।

पुलिस का कहना है कि इस तरह की पोस्ट बहुत संवेदनशील माहौल में जहर घोल सकती है। खासकर जब देश का माहौल पहले से ही आतंकवाद के कारण तनावपूर्ण है, ऐसे में किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा इस तरह का बयान देना बहुत गैरजिम्मेदाराना है। पुलिस ने शिक्षक को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। प्रारंभिक पूछताछ में शिक्षक ने अपना अपराध कबूल कर लिया है और कहा है कि उसने यह स्टेटस बिना सोचे-समझे डाला था।

शिक्षा विभाग ने भी मामले को गंभीरता से लिया है। विभाग ने तत्काल प्रभाव से शिक्षक को निलंबित कर दिया है। विभाग का कहना है कि सरकारी कर्मचारियों को ऐसे संवेदनशील मामलों पर सोच-समझकर बयान देना चाहिए। सरकारी सेवा में रहते हुए किसी भी तरह की गैरजिम्मेदाराना हरकत सहन नहीं की जाएगी। विभाग ने यह भी कहा है कि शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाएगी और उसकी सेवाओं पर आगे फैसला जांच पूरी होने के बाद लिया जाएगा।

लोगों का भी इस मामले पर तीखा प्रतिक्रिया सामने आया है। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि जब एक शिक्षक, जो बच्चों को सही और गलत का पाठ पढ़ाता है, खुद इस तरह की अफवाहें फैलाता है, तो समाज का क्या होगा। लोगों ने सरकार से मांग की है कि ऐसे कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए ताकि दूसरों को भी सबक मिले।

देश में इस समय सुरक्षा को लेकर बहुत सतर्कता बरती जा रही है। आतंकी घटनाओं के बाद सुरक्षा एजेंसियां लगातार अलर्ट पर हैं। ऐसे में किसी भी तरह की अफवाह या गलत सूचना समाज में तनाव बढ़ा सकती है। सरकार और पुलिस दोनों इस तरह की हरकतों पर कड़ी नजर रख रही हैं। पुलिस ने लोगों से भी अपील की है कि अगर वे किसी भी तरह की भड़काऊ या गलत सूचना देखें तो तुरंत पुलिस को सूचित करें।

यह मामला यह भी बताता है कि सोशल मीडिया का उपयोग कितनी जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए। आजकल हर व्यक्ति के पास सोशल मीडिया पर अपनी बात रखने की आजादी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम बिना सोच-विचार के कुछ भी लिखें। खासकर सरकारी कर्मचारियों को तो और भी ज्यादा सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि उनके हर शब्द को जनता गंभीरता से लेती है।

पुलिस ने यह भी बताया कि शिक्षक का स्टेटस उन ग्रुप्स और पेजों पर भी फैल गया था, जो देश विरोधी सोच रखते हैं। इस वजह से यह मामला और भी गंभीर बन गया। पुलिस अब यह भी जांच कर रही है कि कहीं शिक्षक के किसी आतंकी संगठन से संबंध तो नहीं हैं। हालांकि अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन जांच जारी है। पुलिस का कहना है कि इस तरह की किसी भी साजिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

शिक्षा विभाग ने अपने सभी कर्मचारियों को भी चेतावनी जारी की है कि वे सोशल मीडिया पर कोई भी टिप्पणी करते समय सतर्क रहें। विभाग ने कहा है कि अगर कोई भी कर्मचारी सरकारी सेवा के नियमों का उल्लंघन करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। विभाग ने सोशल मीडिया आचार संहिता का पालन करने की भी सलाह दी है।

यह घटना समाज के लिए भी एक सीख है। हमें यह समझना चाहिए कि सोशल मीडिया पर लिखी गई एक छोटी सी बात भी बड़े विवाद का कारण बन सकती है। जब देश के हालात नाजुक हों, तो और भी जिम्मेदारी से व्यवहार करना चाहिए। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमारी बातें दूसरों को प्रभावित कर सकती हैं।

लोगों ने शिक्षक के इस कृत्य की निंदा करते हुए कहा है कि जब शिक्षक ही गलत संदेश फैलाएंगे, तो छात्रों को क्या सिखाएंगे। शिक्षक का काम बच्चों को सही दिशा दिखाना है, न कि अफवाहें फैलाना। इस घटना के बाद समाज में शिक्षकों की भूमिका को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। कई लोगों ने कहा कि शिक्षकों को भी सोशल मीडिया प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे समझ सकें कि किस तरह की बातें करना सही है और किस तरह की बातें नहीं।

पुलिस ने शिक्षक के मोबाइल फोन और सोशल मीडिया अकाउंट की भी जांच शुरू कर दी है। पुलिस यह जानने की कोशिश कर रही है कि क्या उसने पहले भी इस तरह की कोई पोस्ट की थी या किसी आतंकी ग्रुप के संपर्क में था। पुलिस ने कहा है कि अगर जांच में कुछ भी संदिग्ध पाया गया तो शिक्षक पर देशद्रोह जैसी गंभीर धाराओं मंब भी मामला दर्ज किया जा सकता है।

सरकार ने भी इस पूरे मामले पर कड़ी नजर रखी है। सरकार का कहना है कि जो भी देश की एकता और अखंडता के खिलाफ जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। सरकार ने यह भी कहा है कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कड़ी सजा दी जाएगी।

इस घटना से साफ है कि सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। एक गलत शब्द भी आपको बड़ी मुसीबत में डाल सकता है। खासकर जब आप सरकारी सेवा में हों, तो आपकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। इस मामले ने सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए एक चेतावनी का काम किया है कि वे अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लें और बिना जांचे-परखे कोई भी टिप्पणी न करें।

अंत में, यह कहना गलत नहीं होगा कि यह घटना हमें सोशल मीडिया के सही उपयोग की अहमियत समझाती है। सोशल मीडिया एक शक्तिशाली साधन है, लेकिन इसका दुरुपयोग समाज को नुकसान पहुँचा सकता है। हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हम जो भी लिखें या शेयर करें, वह सही और जिम्मेदारी भरा हो। तभी हम एक सुरक्षित और मजबूत समाज का निर्माण कर सकते हैं। इस घटना ने यह भी साबित कर दिया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है और गलत काम करने वाले को सजा जरूर मिलेगी। शिक्षक का निलंबन और गिरफ्तारी समाज को एक संदेश देता है कि देश विरोधी गतिविधियों के लिए कोई जगह नहीं है, चाहे वह कोई भी हो।


👉पहेंलगाम में 22 अप्रैल 2025 का आतंकी हमला – बायसरन पार्क में निर्दोष हिंदू पर्यटकों की हत्या

https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/04/22-2025.html


👉8वां वेतन आयोग: सरकारी वेतन और पेंशन में बदलाव की तैयारी

https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/04/8.html


👉पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन | 1 मई 2025 जंतर-मंतर चलो अभियान

https://upbasicschoolnews.blogspot.com/2025/04/1-2025.html


👉किसी भी शादी विवाह एवं निजी समारोह कार्यक्रम हेतु परिषदीय विद्यालय भवन किसी को भी उपलब्ध न करायें, BSA का आदेश जारी https://basicshikshakhabar.com/2025/04/r-808/



Friday, April 25, 2025

पहुलगाम में 22 अप्रैल 2025 का आतंकी हमला – बायसरन पार्क में निर्दोष हिंदू पर्यटकों की हत्या

 

22 अप्रैल 2025 का दिन देश के लिए बहुत दुख और सदमे से भरा हुआ रहा। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में बायसरन नाम की एक सुंदर और हरी-भरी जगह है, जिसे लोग 'मिनी स्विट्जरलैंड' भी कहते हैं। यह जगह घने जंगलों, बर्फ से ढके पहाड़ों और खूबसूरत मैदानों के कारण बहुत प्रसिद्ध है। गर्मियों की छुट्टियों में लोग परिवार के साथ घूमने-फिरने आते हैं और यहां की ठंडी हवा, हरियाली और शांत वातावरण का आनंद लेते हैं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस बार बायसरन में कुछ ऐसा हुआ जिसने देशभर के लोगों का दिल दहला दिया।

मंगलवार की दोपहर को करीब तीन बजे का समय था। बायसरन पार्क में बहुत सारे लोग अपने परिवार के साथ टट्टू की सवारी कर रहे थे, बच्चे घास पर खेल रहे थे, कुछ लोग फोटोग्राफी कर रहे थे और कुछ खाने-पीने की दुकानों के पास चाय और स्नैक्स का आनंद ले रहे थे। तभी अचानक वहां कुछ लोग सेना की वर्दी पहनकर आए। उन्हें देखकर किसी को शक नहीं हुआ, क्योंकि ऐसा लग रहा था कि वो सेना के जवान हैं और पर्यटकों की सुरक्षा के लिए आए हैं। लेकिन कुछ ही देर बाद सब कुछ बदल गया।

सेना की वर्दी में आए ये लोग असली सैनिक नहीं थे। ये आतंकवादी थे, जो पहले से योजना बनाकर आए थे। उन्होंने सबसे पहले लोगों को इकट्ठा किया और फिर उनसे उनका नाम और धर्म पूछा। कुछ लोगों से पहचान पत्र भी दिखवाए। जब उन्हें यह पता चला कि सामने खड़ा व्यक्ति हिंदू है और उसने कलमा नहीं पढ़ा है, तो उन्होंने उस पर गोलियां चला दीं। यह बहुत ही क्रूर और अमानवीय हमला था। लोग भागने लगे, बच्चों की चीखें गूंजने लगीं, और चारों ओर अफरा-तफरी मच गई।

इस हमले में कुल 26 लोगों की मौत हो गई और 17 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। मरने वालों में ज्यादातर लोग अलग-अलग राज्यों से आए पर्यटक थे। कोई अपने माता-पिता के साथ आया था, कोई अपने बच्चों के साथ और कोई अपने जीवनसाथी के साथ। लेकिन अब वे सब वापस नहीं जा पाए। उनकी यात्रा वहीं खत्म हो गई। यह हमला पुलवामा के बाद जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा आतंकवादी हमला माना जा रहा है।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि हमलावर चार से छह की संख्या में थे। वे देवदार के पेड़ों के पीछे से चुपचाप आए थे और अचानक हमला कर दिया। उनके पास ऑटोमैटिक राइफलें थीं। उन्होंने पहले हिन्दू पहचान करने के लिए कई लोगों से बातें कीं और जैसे ही उनकी पहचान सुनिश्चित हुई, उन पर गोलियों की बौछार कर दी। जो लोग वहां मौजूद थे, उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसा भयानक मंजर कभी नहीं देखा।

घटना के बाद सुरक्षा बलों को खबर दी गई और तुरंत सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान वहां पहुंचे। उन्होंने इलाके को घेर लिया और आतंकियों की तलाश शुरू की। घायलों को हेलीकॉप्टर से श्रीनगर के अस्पतालों में भेजा गया, जहां उनका इलाज चल रहा है। बहुत सारे लोग अब भी सदमे में हैं और बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं।

इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकवादी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने ली है। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस हमले का मास्टरमाइंड लश्कर का डिप्टी चीफ सैफुल्लाह खालिद है। सैफुल्लाह खालिद पाकिस्तान में बैठकर आतंक फैलाने की योजना बनाता है और पाकिस्तानी सेना की मदद से उन्हें अंजाम देता है। उसे हाल ही में पाकिस्तान के एक शहर में भाषण देने के लिए बुलाया गया था, जहां उसने भारतीय लोगों के खिलाफ नफरत फैलाई।

हमले में जिन लोगों की जान गई, उनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, गुजरात, हरियाणा, केरल, ओडिशा, मध्यप्रदेश और यहां तक कि नेपाल और अरुणाचल प्रदेश से भी लोग थे। वे सभी सिर्फ छुट्टी मनाने और कश्मीर की खूबसूरती देखने आए थे। लेकिन अब उनकी लाशें घर पहुंचीं, जिससे उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।

इस हमले ने न केवल पूरे देश को दुखी किया है, बल्कि एक बड़ा सवाल भी खड़ा किया है कि क्या पर्यटक अब सुरक्षित हैं? क्या परिवारों के साथ घूमने जाने वाले लोग अब डर के साए में जिएंगे? क्या धर्म के नाम पर किसी की जान लेना सही है? इन सवालों के जवाब ढूंढना सरकार, सुरक्षा एजेंसियों और हम सभी की जिम्मेदारी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस समय विदेश दौरे पर थे और अमेरिका के उपराष्ट्रपति भारत दौरे पर आए थे। इस हमले का समय भी सोच-समझकर चुना गया था, ताकि दुनिया का ध्यान इस ओर जाए कि जम्मू-कश्मीर अब भी सुरक्षित नहीं है। इस हमले से यह संदेश देने की कोशिश की गई कि जम्मू-कश्मीर में पर्यटक सुरक्षित नहीं हैं, खासकर हिंदू धर्म के लोग।

यह हमला अमरनाथ यात्रा से कुछ समय पहले हुआ, लेकिन यह यात्रा से जुड़ा नहीं था। यह उन लोगों पर हमला था, जो सिर्फ घूमने और प्रकृति का आनंद लेने आए थे। वे न तो किसी धार्मिक कार्य में लगे थे, न ही किसी राजनीतिक मकसद से आए थे। वे आम नागरिक थे, जो छुट्टी मना रहे थे।

हमले के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तीन संदिग्ध आतंकियों के स्केच जारी किए हैं, जिनके नाम आसिफ फौजी, सुलेमान शाह और अबु तल्हा बताए गए हैं। सुरक्षा एजेंसियां अब इनकी तलाश में जंगलों और आसपास के इलाकों में छानबीन कर रही हैं। साथ ही, बायसरन और आसपास के इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

इस हमले के बाद देशभर में गुस्सा और दुख की लहर फैल गई है। सोशल मीडिया पर लोगों ने सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की है। कई राज्यों में मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए शोक सभाएं आयोजित की गईं। स्कूलों और कार्यालयों में दो मिनट का मौन रखा गया और मोमबत्तियां जलाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

पर्यटन मंत्रालय ने भी इस हमले की निंदा की और कहा कि ऐसी घटनाएं देश की छवि को नुकसान पहुंचाती हैं। साथ ही, सरकार ने सभी राज्यों के पर्यटकों से अपील की है कि वे सतर्क रहें और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी तुरंत पुलिस को दें।

अब यह सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि इस हमले के दोषियों को पकड़कर उन्हें कड़ी सजा दिलवाएं। साथ ही, पर्यटकों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए जाएं, ताकि भविष्य में कोई भी परिवार इस तरह के दुख का सामना न करे।

यह हमला हमें यह भी याद दिलाता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। जो लोग धर्म के नाम पर खून बहाते हैं, वे इंसान नहीं हो सकते। एक सच्चा इंसान किसी की मुस्कान, किसी के परिवार और किसी के सपने छीनने का हकदार नहीं हो सकता। हमें एकजुट होकर नफरत के इन सौदागरों का विरोध करना होगा और देश में शांति, भाईचारे और प्रेम की भावना को बनाए रखना होगा।

देश आज भी उन 26 निर्दोष लोगों के लिए शोक मना रहा है, जो केवल पहलगाम की सुंदरता देखने आए थे, लेकिन उनकी जिंदगी वहीं खत्म हो गई। उनका कसूर बस इतना था कि वे किसी एक धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने किसी का 'कलमा' नहीं पढ़ा। यह एक बहुत ही शर्मनाक और अमानवीय सोच है, जिसे हमें मिलकर खत्म करना होगा।

हमले के बाद बचे लोगों ने जो बताया, वह बहुत ही दर्दनाक था। एक महिला ने बताया कि उसका बेटा घास पर खेल रहा था, और तभी गोली चलने लगी। उसने अपने बेटे को बचाने की कोशिश की, लेकिन गोली उसके पति को लग गई और वह वहीं गिर पड़ा। एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि वह अपने माता-पिता के साथ आया था, और सब लोग बहुत खुश थे। लेकिन अचानक गोलियां चलने लगीं और उसका भाई वहीं मारा गया। ऐसे कितने ही लोगों की कहानियां हैं, जो सुनकर आंखों से आंसू निकल आते हैं।

हम सबको इस घटना से सीख लेनी चाहिए और अपने देश, अपने लोगों और अपने समाज की सुरक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए। कोई भी ताकत हमें डराकर नहीं हरा सकती, जब तक हम मिलकर उसका विरोध करते रहें। इन शहीद पर्यटकों की याद में हमें अपने देश को और मजबूत और सुरक्षित बनाना होगा।






Thursday, April 24, 2025

UP Board Result 2025: 10वीं और 12वीं का रिजल्ट कल होगा जारी

 

UP Board 10वीं और 12वीं रिजल्ट 2025 कल होगा जारी | यूपी बोर्ड रिजल्ट अपडेट
यूपी बोर्ड की 10वीं और 12वीं की परीक्षा 2025 में फरवरी और मार्च के महीनों में हुई थी। अब सभी छात्र और उनके परिवार बहुत उत्साहित हैं क्योंकि कल बोर्ड का रिजल्ट आने वाला है। इस रिजल्ट का इंतजार लाखों छात्रों को है, जिन्होंने साल भर मेहनत करके परीक्षा दी थी।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (UPMSP) रिजल्ट को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर जारी करेगी। छात्र अपना रिजल्ट upresults.nic.in या upmsp.edu.in पर जाकर देख सकेंगे। रिजल्ट देखने के लिए रोल नंबर और जन्मतिथि की जरूरत होगी।
इस साल लगभग 55 लाख छात्रों ने परीक्षा दी थी। इसमें 10वीं के करीब 30 लाख और 12वीं के लगभग 25 लाख छात्र शामिल थे। इस बार परीक्षा को नकल रहित और शांतिपूर्ण बनाने के लिए कई नई व्यवस्थाएं की गई थीं जैसे सीसीटीवी कैमरे और सख्त निगरानी। इससे परीक्षा ठीक से हुई और अब रिजल्ट की तैयारी पूरी हो गई है।
जब रिजल्ट आएगा, तो उसमें छात्र का नाम, रोल नंबर, विषय के अंक, कुल अंक, प्रतिशत और पास या फेल की जानकारी होगी। अगर किसी छात्र को लगे कि उसके अंक कम आए हैं, तो वह पुनः जांच (रीचेकिंग) के लिए आवेदन कर सकता है। और अगर कोई छात्र एक-दो विषयों में फेल हो जाता है, तो वह कम्पार्टमेंट परीक्षा देकर पास हो सकता है।
10वीं पास करने के बाद छात्र 11वीं में जाकर आर्ट्स, साइंस या कॉमर्स में से कोई भी स्ट्रीम चुन सकते हैं। कुछ छात्र आईटीआई या तकनीकी कोर्स भी कर सकते हैं। वहीं 12वीं पास करने वाले छात्र कॉलेज में बीए, बीएससी, बीकॉम जैसे कोर्स में दाखिला ले सकते हैं या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकते हैं।
हर साल की तरह इस साल भी जो छात्र टॉप करेंगे, उन्हें सरकार की ओर से इनाम मिल सकते हैं, जैसे लैपटॉप, टेबलेट या छात्रवृत्ति। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी टॉप करने वाले छात्रों को सम्मानित कर सकते हैं।
रिजल्ट आने पर बहुत सारे छात्र एक साथ वेबसाइट खोलते हैं, जिससे साइट स्लो हो सकती है। ऐसे में घबराएं नहीं, थोड़ा इंतजार करें और दोबारा कोशिश करें। रिजल्ट का प्रिंट या स्क्रीनशॉट जरूर निकालकर रखें, क्योंकि यह आगे स्कूल या कॉलेज में काम आएगा।
अगर किसी छात्र के अंक कम आए हैं, तो निराश होने की जरूरत नहीं है। रिजल्ट केवल एक पड़ाव है, मंज़िल नहीं। मेहनत करने से हमेशा आगे बढ़ने का रास्ता मिलता है। इस रिजल्ट से हर छात्र को अपने भविष्य की नई शुरुआत करने का मौका मिलेगा।
कल का दिन बहुत खास होगा, क्योंकि लाखों छात्र अपनी सालभर की मेहनत का फल देखेंगे। सभी बच्चों को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं। मेहनत और ईमानदारी से काम करने वालों को सफलता जरूर मिलती है।
👉UP Board Result 2025 : यूपी बोर्ड परिणाम पर बड़ा अपडेट, कल 12:30 बजे जारी होंगे 10वीं-12वीं के नतीजे, आदेश जारी
https://basicshikshakhabar.com/2025/04/d-3607/ 

 

👉UP TGT, PGT दोनों में bed अनिवार्य कर दिया गया है , देखें ऑफिशल लेटर https://basicshikshakhabar.com/2025/04/dd-1146/

 

👉पूरे प्रदेश में स्कूल अब 07:30-01:30 चलेंगे। लेकिन बच्चों की छुट्टी 12:30 बजे होगी। , देखें शिक्षा निदेशक बेसिक क आदेश जारी https://basicshikshakhabar.com/2025/04/ff-706/








8वां वेतन आयोग: सरकारी वेतन और पेंशन में बदलाव की तैयारी

 

                

              वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी लाएगा 8वां वेतन आयोग, केंद्र सरकार की तैयारी तेज



भारत में सरकारी कर्मचारी देश के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। केंद्र सरकार समय-समय पर उनके वेतन और पेंशन में बदलाव करती है ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें और अपने काम में मन लगाकर योगदान दे सकें। इसी उद्देश्य से हर 10 साल में एक वेतन आयोग (Pay Commission) बनाया जाता है। अब भारत सरकार 8वां वेतन आयोग (8th Pay Commission) बनाने जा रही है, जिसकी तैयारी जोरों पर है।

सरकार ने 8वें वेतन आयोग के कार्यक्षेत्र (Terms of Reference - ToR) को तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और यह प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है। उम्मीद है कि अगले दो से तीन हफ्तों के भीतर आयोग के कार्यक्षेत्र को अधिसूचित कर दिया जाएगा और इसके साथ ही आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के नाम भी घोषित कर दिए जाएंगे। इससे पहले इस प्रक्रिया में कई महीने की देरी हो चुकी थी, लेकिन अब सरकार ने इसे प्राथमिकता देते हुए तेज़ी से आगे बढ़ाया है।

सरकारी कर्मचारियों का वेतन समय के साथ बढ़ाना जरूरी होता है क्योंकि महंगाई बढ़ती रहती है, चीजों की कीमतें बदलती हैं और जीवन की आवश्यकताएं भी बढ़ती हैं। ऐसे में कर्मचारियों का वेतन यदि पुराना ही बना रहता है, तो वे अपनी और अपने परिवार की जरूरतें पूरी नहीं कर पाते। इसीलिए हर दशक में एक वेतन आयोग बनाया जाता है, जो यह तय करता है कि वर्तमान समय में वेतन और पेंशन की दरें क्या होनी चाहिए।

8वें वेतन आयोग का काम होगा कि वह सभी संबंधित पक्षों से बातचीत करके एक रिपोर्ट तैयार करे। इसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSUs) और कर्मचारी संगठनों के साथ बातचीत की जाएगी। आयोग को यह रिपोर्ट तैयार करने के लिए कम से कम एक वर्ष का समय मिल सकता है। रिपोर्ट 2026 के मध्य में आने की संभावना है। इसके बाद सरकार रिपोर्ट पर निर्णय लेकर 1 जनवरी 2026 से नए वेतन और पेंशन लागू करेगी। इसका लाभ सभी कर्मचारियों और पेंशनधारकों को मिलेगा और उन्हें पिछली तारीख से बकाया राशि भी दी जाएगी।

यह आयोग लगभग 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 65 लाख पेंशनभोगियों को सीधे प्रभावित करेगा। इन कर्मचारियों में सेना, अर्धसैनिक बल, रेलवे, डाक, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन जैसे विभागों के कर्मचारी शामिल हैं। राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के लाखों कर्मचारी भी अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होंगे क्योंकि वे भी केंद्र सरकार के वेतन आयोग की सिफारिशों को अपनाते हैं।

सरकार ने हाल ही में व्यय विभाग (Department of Expenditure) के माध्यम से एक विज्ञापन भी जारी किया है जिसमें 8वें वेतन आयोग के लिए 35 पदों को प्रतिनियुक्ति (deputation) के आधार पर भरने की बात कही गई है। इससे साफ है कि सरकार आयोग की स्थापना में तेजी ला रही है।

7वां वेतन आयोग 28 फरवरी 2014 को गठित हुआ था और इसकी सिफारिशें 1 जनवरी 2016 से लागू की गई थीं। उस समय आयोग की अध्यक्षता जस्टिस अशोक कुमार माथुर ने की थी। 7वें आयोग ने वेतन और पेंशन में औसतन 23.55% की वृद्धि की थी। इससे कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन 7,000 रुपये से बढ़ाकर 18,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया था और अधिकतम वेतन 90,000 रुपये से बढ़कर 2.5 लाख रुपये प्रति माह हो गया था। उस समय महंगाई भत्ता 119% था, जिसे नए वेतन में जोड़ दिया गया था।

7वें वेतन आयोग ने एक नई "वेतन मैट्रिक्स" भी प्रस्तावित की थी जिसमें पुरानी "पे बैंड" और "ग्रेड पे" की जगह एक सरल वेतन संरचना बनाई गई थी। इसमें हर स्तर पर वेतन तय कर दिया गया था और कर्मचारियों को उनके स्तर के अनुसार वेतन मिलने लगा था। आयोग ने 2.57 का फिटमेंट फैक्टर तय किया था, जिसका अर्थ था कि पुराने वेतन को 2.57 गुना करके नया वेतन तय किया गया।

अब 8वां वेतन आयोग भी ऐसा ही कोई नया फिटमेंट फैक्टर तय करेगा। यह तय करने में आयोग महंगाई, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), जीवन यापन की लागत और कर्मचारियों की खरीदने की शक्ति को ध्यान में रखेगा। जैसे 2016-17 में जब 7वां वेतन आयोग लागू हुआ था, तो सरकार के राजस्व खर्च में 9.9% की वृद्धि हो गई थी, जबकि इससे पहले यह केवल 4.8% थी। इससे सरकार के लिए पूंजीगत व्यय (capital expenditure) पर असर पड़ा था।

हालांकि, वेतन आयोग की सिफारिशों से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है, लेकिन इसका फायदा भी होता है। जब कर्मचारियों के पास अधिक पैसा आता है, तो वे ज्यादा खरीदारी करते हैं, जिससे बाजार में रौनक बढ़ती है और देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। इससे व्यापार और उद्योग को भी लाभ होता है।

लेकिन राज्यों और सार्वजनिक उपक्रमों के लिए यह हमेशा आसान नहीं होता। उन्हें भी केंद्र के समान वेतन लागू करना पड़ता है जिससे उन पर भी आर्थिक दबाव बढ़ जाता है। इसलिए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से पहले हर सरकार को अपने वित्तीय संसाधनों का आंकलन करना पड़ता है।

सरकार की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया है कि 8वें वेतन आयोग की सिफारिशों के असर को नई मध्यम अवधि की वित्तीय योजनाओं और 16वें वित्त आयोग की सिफारिशों में भी जोड़ा जाएगा। 16वां वित्त आयोग वर्ष 2027 से शुरू होने वाले पांच सालों के लिए केंद्रीय करों के वितरण और राज्यों को मिलने वाले अनुदानों के बारे में सिफारिशें करेगा।

वेतन आयोग न केवल कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने का माध्यम है, बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो सामाजिक और आर्थिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। जब सरकारी कर्मचारियों को अच्छा वेतन मिलता है, तो वे बेहतर जीवन जी पाते हैं, उनका मनोबल बढ़ता है और वे अपने काम में और मेहनत करते हैं। इससे सरकार की योजनाओं को जमीन पर लागू करने में भी मदद मिलती है।

8वें वेतन आयोग से लाखों कर्मचारियों को उम्मीदें हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें उचित वेतन मिले, ताकि वे अपने परिवार की जरूरतें अच्छी तरह पूरी कर सकें। महंगाई के इस दौर में जब सब कुछ महंगा होता जा रहा है, वेतन में वृद्धि समय की मांग है। सरकार भी जानती है कि यदि कर्मचारियों को संतोषजनक वेतन नहीं मिला, तो उनका प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है।

इसलिए 8वें वेतन आयोग की सिफारिशें केवल वेतन और पेंशन का मामला नहीं हैं, यह कर्मचारियों की मेहनत को सम्मान देने और देश की आर्थिक प्रगति में योगदान देने का एक जरिया भी है


👉 8वां वेतन आयोग हेतु पैनल का 2-3 सप्ताह में होगा गठन: टीओआर, अध्यक्ष और वेतन संशोधन पर प्रमुख अपडेट

https://www.updatemarts.com/2025/04/8-2-3.html


👉 UP Board Result 2025 : यूपी बोर्ड परिणाम पर बड़ा अपडेट, कल 12:30 बजे जारी होंगे 10वीं-12वीं के नतीजे, आदेश जारी 

https://basicshikshakhabar.com/2025/04/d-3607/


👉पूरे प्रदेश में स्कूल अब 07:30-01:30। बच्चों की छुट्टी 12:30 बजे।

https://www.updatemarts.com/2025/04/0730-0130-1230.html



Monday, April 21, 2025

कानपुर देहात में शिक्षकों का सम्मान और प्रेरणा भरा आयोजन

 

शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता — सम्मान समारोह में जीवन भर की उपलब्धियों को सलाम



दिनांक 19 अप्रैल 2025 को उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ, अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ, ब्लॉक इकाई मैंथा कानपुर देहात द्वारा एक बहुत ही सुंदर और भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम विकासखंड मैथा के उन शिक्षकों के सम्मान में किया गया, जिन्होंने लंबे समय तक शिक्षा सेवा दी और 31 मार्च 2025 को सेवानिवृत्त हुए। यह समारोह टाउन एरिया गेस्ट हाउस शिवली, कानपुर देहात में बड़े ही अच्छे तरीके से और खुशी-खुशी मनाया गया। इस कार्यक्रम में सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों का सम्मान किया गया।

सेवानिवृत्त शिक्षकों में श्री अशोक कुमार शुक्ला जो कि जिला मंत्री, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ और प्रधानाध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय औगी मैंथा के पद पर कार्यरत थे, श्रीमती रमा वर्मा, प्रधानाध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय कारानी, श्रीमती उषा कटियार, प्रधानाध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय औरंगाबाद, श्री ओम नारायण कटियार, प्रधानाध्यापक, प्राथमिक विद्यालय रंजीतपुर और श्रीमती रुखसाना बेगम, सहायक अध्यापक, उच्च प्राथमिक विद्यालय जुगराजपुर शिवली शामिल रहे। सभी शिक्षकों को इस समारोह में बड़े सम्मान के साथ बुलाया गया और उनके कार्यकाल की प्रशंसा की गई।

कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के पूजन, अर्चन और माल्यार्पण से की गई। सबसे पहले मुख्य अतिथि श्री राजेंद्र सिंह, जिन्हें सभी राजू भैया के नाम से जानते हैं और जो कंचौसी टाउन एरिया के प्रथम अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष के पति हैं, ने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता नगर पंचायत शिवली के अध्यक्ष श्री अवधेश शुक्ला ने की।

कार्यक्रम में नगर पंचायत सिकंदरा की अध्यक्षा श्रीमती सीमा पाल और उनके प्रतिनिधि श्री पंकज पाल भी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इनके साथ ही खंड शिक्षा अधिकारी मैथा सुश्री सपना सिंह भी समारोह में पधारीं। सबसे पहले सभी अतिथियों का स्वागत उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जनपद और ब्लॉक पदाधिकारियों द्वारा माल्यार्पण और फूलों से किया गया।

इसके बाद मुख्य अतिथि श्री राजेंद्र सिंह राजू भैया ने सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों को मंच पर बुलाया और माल्यार्पण कर, प्रतीक चिन्ह भेंट कर और अंग वस्त्र पहनाकर सम्मानित किया। इसके साथ ही विशिष्ट अतिथियों ने भी सेवानिवृत्त शिक्षकों का सम्मान किया। पूरे माहौल में खुशियों और सम्मान की भावना दिख रही थी।

मुख्य अतिथि श्री राजेंद्र सिंह ने अपने भाषण में कहा कि शिक्षक कभी भी पूरी तरह से सेवानिवृत्त नहीं होता। वह केवल एक पड़ाव पार करता है, लेकिन समाज और शिक्षा के लिए उसका मार्गदर्शन जीवनभर बना रहता है। उन्होंने सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों को शुभकामनाएं दीं और कहा कि आप सभी का जीवन हमेशा खुशहाल और सुखद हो।

इसके बाद विशिष्ट अतिथि श्रीमती सीमा पाल ने कहा कि एक शिक्षक समाज का सबसे बड़ा निर्माता होता है। वह बच्चों को पढ़ाकर उनके भविष्य को संवारता है। उन्होंने सेवानिवृत्त शिक्षकों को शुभकामनाएं दीं और उनके जीवन में सुख-शांति की कामना की। खंड शिक्षा अधिकारी सुश्री सपना सिंह ने भी अपने शब्दों में कहा कि यह बहुत अच्छा और सुंदर कार्यक्रम है। शिक्षक संघ की ब्लॉक इकाई ने इसे बहुत ही अच्छे तरीके से आयोजित किया है। उन्होंने सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों को बधाई दी और कहा कि आपका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।

नगर पंचायत शिवली के अध्यक्ष श्री अवधेश शुक्ला ने अपने भाषण में रामायण की कहानियों का उदाहरण देकर बताया कि जीवन में सेवा और सम्मान का बहुत महत्व है। उन्होंने कहा कि शिक्षक वही है जो जीवनभर शिक्षा देता है। उन्होंने सभी शिक्षकों की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से सभी को प्रेरणा मिलती है।

इस समारोह में शिक्षकों के साथ-साथ अनुदेशक, शिक्षामित्र, बेसिक शिक्षा विभाग के सभी कर्मचारी और बहुत सारे स्थानीय लोग भी मौजूद रहे। सभी ने पूरे कार्यक्रम का आनंद लिया और सेवानिवृत्त शिक्षकों का सम्मान करते हुए तालियां बजाईं।

कार्यक्रम के अंत में उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष श्री एल.बी. सिंह, ब्लॉक अध्यक्ष श्री मुकेश बाजपेई और ब्लॉक मंत्री श्री शशिकांत यादव ने सभी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि हम सबका कर्तव्य है कि अपने शिक्षकों का सम्मान करें और उनके अनुभवों से सीखें। उन्होंने कहा कि संगठन का हमेशा यह प्रयास रहेगा कि शिक्षकों का मान-सम्मान इसी तरह बना रहे।

उन्होंने उपस्थित सभी अतिथियों, शिक्षकों, अनुदेशकों, शिक्षामित्रों, कर्मचारियों और स्थानीय लोगों का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि इतने अच्छे और व्यवस्थित कार्यक्रम के लिए सभी को बधाई और शुभकामनाएं।

इस समारोह में शिक्षकों ने भी अपने-अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने अपने जीवन के कई साल बच्चों को पढ़ाने और संस्कार देने में लगाए। कई शिक्षक अपनी बातें कहते हुए भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता। वह हमेशा समाज और अपने आसपास के लोगों को कुछ न कुछ सिखाता रहता है।

सभी ने मिलकर यह ठाना कि आगे भी इस तरह के कार्यक्रम होते रहने चाहिए ताकि शिक्षक समाज का सम्मान और गौरव हमेशा बना रहे। इस पूरे कार्यक्रम में कहीं भी अव्यवस्था नहीं थी। सब कुछ बहुत अच्छे ढंग से हुआ।

यह कार्यक्रम शिक्षा जगत के लिए प्रेरणा देने वाला और समाज में शिक्षकों के सम्मान को दर्शाने वाला रहा। इस कार्यक्रम ने यह भी बताया कि समाज में शिक्षक का कितना बड़ा स्थान है। अगर शिक्षक न हों तो समाज का निर्माण ही अधूरा रह जाता है।

कार्यक्रम में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और सरस्वती वंदना ने भी सबका मन मोह लिया। पूरे समय वातावरण में खुशी और सम्मान का माहौल रहा। हर किसी के चेहरे पर मुस्कान और गर्व साफ दिख रहा था।

अंत में एक बार फिर से उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ की ओर से सभी का आभार व्यक्त किया गया और यह संकल्प लिया गया कि आगे भी ऐसे आयोजन होते रहेंगे।

इस पूरे कार्यक्रम की सफलता ने यह साबित कर दिया कि शिक्षक हमारे समाज की सबसे मजबूत और सम्मानित कड़ी हैं। जो हर समय देश, समाज और बच्चों के भविष्य को संवारने में लगे रहते हैं।

यह दिन सभी के लिए यादगार और प्रेरणा देने वाला रहा। सभी ने मिलकर इसे एक यादगार समारोह बना दिया।





विद्यालयों में ए आर पी का काम और सहयोगात्मक पर्वेक्षण का महत्व

 

ए आर पी को औचक निरीक्षण और निरीक्षण पंजिका में अंकन का अधिकार नहीं: एक विस्तृत विश्लेषण



भारत में शिक्षा व्यवस्था को लगातार सुधारने के लिए समय-समय पर कई नई योजनाएँ और व्यवस्थाएँ बनाई जाती हैं। विद्यालयों में पढ़ाई की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए अलग-अलग जिम्मेदारियाँ तय की जाती हैं। इन्हीं में से एक व्यवस्था है ए आर पी यानी अकादमिक रिसोर्स पर्सन। ए आर पी का काम यह होता है कि वे विद्यालयों में जाकर शिक्षकों को पढ़ाई-लिखाई में मदद करें, बच्चों की पढ़ाई की स्थिति को समझें और अगर कोई कमी हो, तो उसे सुधारने के लिए सुझाव दें।

ए आर पी का मुख्य उद्देश्य शिक्षा में गुणवत्ता सुधार करना है। वे विद्यालय में जाकर यह देखते हैं कि बच्चे क्या पढ़ रहे हैं, कैसे पढ़ रहे हैं और किस तरीके से शिक्षक पढ़ा रहे हैं। अगर कहीं कोई परेशानी आती है, तो ए आर पी शिक्षक को सलाह देता है कि पढ़ाई में सुधार कैसे किया जा सकता है। साथ ही ए आर पी नई शिक्षा नीति और शिक्षण पद्धति के बारे में भी जानकारी देता है ताकि विद्यालय में पढ़ाई और बेहतर हो सके।

कई बार लोगों में यह भ्रम होता है कि ए आर पी को भी विद्यालय का औचक निरीक्षण करने और निरीक्षण पंजिका में लिखने का अधिकार होता है। लेकिन यह सही नहीं है। औचक निरीक्षण का मतलब होता है बिना बताए अचानक विद्यालय पहुँचकर उसकी पूरी जांच करना। यह अधिकार केवल शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को होता है। जैसे कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी या खंड शिक्षा अधिकारी।

ए आर पी केवल सहयोगात्मक पर्वेक्षण कर सकता है। सहयोगात्मक पर्वेक्षण का मतलब होता है विद्यालय में जाकर शिक्षकों और बच्चों की मदद करना, पढ़ाई की स्थिति को समझना और सुझाव देना। ए आर पी का काम सख्ती करना, दोष निकालना या कार्रवाई करना नहीं होता। वे शिक्षक और बच्चों की पढ़ाई को बेहतर बनाने के लिए मार्गदर्शन देते हैं।

जब ए आर पी विद्यालय में जाता है, तो उसे पहले से सूचना देने की आवश्यकता नहीं होती। वह बिना बताए भी विद्यालय पहुँच सकता है। लेकिन उसका उद्देश्य केवल मदद करना और पढ़ाई में सुधार के लिए सहयोग देना होता है। उसे औचक निरीक्षण करने और निरीक्षण पंजिका में कुछ भी लिखने का अधिकार नहीं है।

डॉ. रहबर सुल्तान द्वारा पूछी गई एक जनसूचना में इस विषय पर जानकारी मांगी गई थी। इसके जवाब में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने स्पष्ट किया कि ए आर पी का काम केवल सहयोग करना है। वे औचक निरीक्षण नहीं कर सकते और निरीक्षण पंजिका में कोई टिप्पणी भी दर्ज नहीं कर सकते। वे केवल भ्रमण पंजिका या सहयोगात्मक पंजिका में ही अपना भ्रमण, सुझाव और शिक्षकों के साथ हुई बातचीत का विवरण दर्ज कर सकते हैं।

निरीक्षण पंजिका वह पंजिका होती है, जिसमें निरीक्षण के समय अधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणियाँ, निर्देश और सुझाव दर्ज किए जाते हैं। इसमें यह भी लिखा जाता है कि विद्यालय में क्या-क्या देखा गया, क्या कमियाँ पाई गईं और क्या सुधार करने को कहा गया। यह अधिकार केवल अधिकृत अधिकारी को होता है।

ए आर पी का काम है कि वह विद्यालय में जाकर देखे कि शिक्षक पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ा रहे हैं या नहीं, बच्चे पढ़ाई को समझ रहे हैं या नहीं, पढ़ाई में कोई परेशानी आ रही है या नहीं। अगर कोई कमी दिखाई दे तो शिक्षक को सहयोगात्मक रूप से सुझाव दें कि इसे कैसे सुधारा जा सकता है। वे शिक्षकों को नई पद्धतियों की जानकारी देते हैं और शिक्षण में मदद करते हैं।

विद्यालयों में औचक निरीक्षण का अधिकार केवल जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, खंड शिक्षा अधिकारी या अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को होता है। वे ही विद्यालय की सफाई, बच्चों की उपस्थिति, मिड डे मील, कक्षाओं की स्थिति और दस्तावेजों की जांच कर सकते हैं। वे ही निरीक्षण पंजिका में अपनी टिप्पणियाँ लिख सकते हैं।

ए आर पी भ्रमण पंजिका या सहयोगात्मक पंजिका में अपनी जानकारी दर्ज कर सकते हैं। इसमें वे लिखते हैं कि किस दिन, कितने बजे विद्यालय आए, किस शिक्षक से मिले, किस कक्षा में गए और बच्चों की पढ़ाई की स्थिति क्या पाई। साथ ही वे अपने सुझाव भी लिख सकते हैं।

अगर ए आर पी अपने कार्य को सही तरीके से करें तो इससे विद्यालय को कई फायदे हो सकते हैं। शिक्षकों को पढ़ाई के नए तरीके सीखने को मिलेंगे। बच्चों की पढ़ाई में सुधार होगा। शिक्षकों और बच्चों के बीच बेहतर तालमेल बनेगा। बच्चों को अपने सवाल पूछने और समझने में आसानी होगी। विद्यालय में शिक्षा का वातावरण बेहतर बनेगा।

विद्यालयों में सहयोगात्मक पर्वेक्षण इसलिए जरूरी है ताकि शिक्षकों को पढ़ाई में मदद मिले और बच्चों की पढ़ाई में गुणवत्ता बनी रहे। ए आर पी और शिक्षक मिलकर अगर ईमानदारी से काम करें तो पढ़ाई का स्तर निश्चित रूप से बेहतर होगा।

सहयोगात्मक पर्वेक्षण का मतलब यह नहीं है कि कमियाँ ढूँढकर सख्ती की जाए। इसका मतलब है मिल-जुलकर पढ़ाई को सुधारना और एक अच्छा शैक्षिक वातावरण बनाना। ए आर पी को भी यह समझना चाहिए कि उनका काम केवल सहयोग करना है, न कि औचक निरीक्षण करना।

विद्यालयों में भ्रमण के दौरान ए आर पी को कोई सख्ती नहीं करनी चाहिए। उन्हें सिर्फ बच्चों और शिक्षकों से बात कर के पढ़ाई की स्थिति को समझना चाहिए और जहाँ जरूरत हो, वहाँ सुझाव देना चाहिए। अगर ए आर पी सच्चे मन से यह काम करें, तो बच्चों की पढ़ाई में बहुत सुधार आ सकता है।

विद्यालयों के शिक्षकों को भी चाहिए कि वे ए आर पी का सहयोग करें। उनसे नई-नई शिक्षण विधियाँ सीखें और अपने पढ़ाने के तरीके में सुधार करें। बच्चों को अच्छे से पढ़ाएँ और उनकी समस्याएँ समझें।

जब शिक्षक और ए आर पी मिलकर काम करेंगे तो विद्यालय का माहौल अच्छा बनेगा। बच्चे भी पढ़ाई में रुचि लेने लगेंगे और अच्छे अंक लाएँगे।

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि ए आर पी केवल सहयोगात्मक पर्वेक्षण करें। वे औचक निरीक्षण न करें और निरीक्षण पंजिका में कुछ भी न लिखें। उन्हें केवल भ्रमण पंजिका या सहयोगात्मक पंजिका में ही अपनी रिपोर्ट दर्ज करनी चाहिए।

यह बात जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा भी स्पष्ट कर दी गई है। उन्होंने कहा है कि ए आर पी का काम केवल सहयोग करना है। वे औचक निरीक्षण नहीं कर सकते और निरीक्षण पंजिका में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते।

अगर हम सभी मिलकर इस व्यवस्था का सही तरीके से पालन करें तो निश्चित रूप से विद्यालयों की पढ़ाई का स्तर और बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा। सहयोग, समझदारी और ईमानदारी से किया गया हर काम हमेशा अच्छे परिणाम देता है।

विद्यालयों में शिक्षा का माहौल तभी बेहतर होगा जब शिक्षक, ए आर पी और अधिकारी मिल-जुलकर काम करें। हर किसी को अपने अधिकार और कर्तव्य का ज्ञान होना चाहिए। इससे शिक्षा व्यवस्था मजबूत होगी और देश का भविष्य भी बेहतर बनेगा।

अगर ए आर पी अपना काम ईमानदारी से करें, शिक्षक उनका सहयोग करें और अधिकारी समय-समय पर विद्यालय का उचित निरीक्षण करें तो पढ़ाई में निश्चित रूप से सुधार होगा। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी और वे देश का नाम रोशन करेंगे।

इसी सोच और भावना के साथ हमें सभी को मिलकर काम करना चाहिए। शिक्षकों को अपने पढ़ाने के तरीके को सुधारना चाहिए। ए आर पी को सहयोग करना चाहिए और अधिकारी को अपने अधिकार के अनुसार निरीक्षण करना चाहिए।

अगर हम सभी मिलकर ईमानदारी और नियम के अनुसार काम करें तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। शिक्षा का स्तर ऊँचा होगा और समाज में अच्छा माहौल बनेगा। यही देश की तरक्की का असली रास्ता है।






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